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दिवस 8: स्थानीय नौकरियों में आरक्षण समानता के अधिकार और भारत के संविधान में परिभाषित एक राष्ट्र के रूप में भारत के आदर्शों को कैसे बाधित करता है?

18 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में आरक्षण की अवधारणा को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि कैसे स्थानीय नौकरियों में आरक्षण समानता के अधिकार और एक राष्ट्र के रूप में भारत के आदर्शों को बाधित कर रहा है।
  • स्थानीय आरक्षण को सही ठहराने के लिये अंक देना संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ नहीं है।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये

आरक्षण सकारात्मक कार्रवाई की एक प्रणाली है जो शिक्षा, रोज़गार और राजनीति में ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि राज्य के तहत रोज़गार के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी और कोई भी नागरिक, केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान के आधार पर राज्य के अंतर्गत किसी भी रोज़गार या कार्यालय में भेदभाव का पात्र नहीं होगा।

स्थानीय नौकरी में आरक्षण समानता के अधिकार और एक राष्ट्र के रूप में भारत के सिद्धांतों के विरुद्ध है:

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 में निजी नौकरी या अधिवास और निवास के आधार पर आरक्षण में आरक्षण का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • स्थानीय नौकरियों में आरक्षण क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने और भूमि पुत्र के सिद्धांत के पक्ष में है जो एक राष्ट्र के रूप में भारत की भावना के खिलाफ है।
  • इसने आरक्षण की ऊपरी सीमा को पार कर लिया है अर्थात, इंद्रा साहनी और अन्य बनाम भारत संघ, 1992 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित की गई थी जो कि विभिन्न राज्यों में स्थानीय नौकरियों में 70-80% है।
  • इसने क्रीमी लेयर की अवधारणा और एम नागराज बनाम भारत संघ मामले 2006 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय आरक्षण के लिये मात्रात्मक डेटा के संग्रह की अवधारणा को भी रेखांकित किया।
  • स्थानीय आरक्षण की अवधारणा भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लिखित स्वतंत्रता के अधिकार की अवधारणा के खिलाफ है जिसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों को अधिकार होगा]
    (a) भारत के पूरे राज्यक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से आवागमन करने का;
    (b) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने और बसने का; तथा
    (c) किसी भी पेशे या किसी भी व्यवसाय, व्यापार को जारी रखने का
  • यह दर्शाता है कि स्थानीय नौकरियों में आरक्षण भारत के संविधान में अंकित व्यक्तियों के व्यापार, आंदोलन आदि की स्वतंत्रता के विरुद्ध है।
  • यद्यपि भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 संसद को आर्थिक और कमज़ोर वर्ग के उत्थान के लिये कानून बनाने का अधिकार देता है, लेकिन राज्य विधायिका भारत के संविधान के भाग 3 में उल्लिखित मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिये कानून बनाने के लिये अधिकृत नहीं है।
  • यह दिखाता है कि राज्य विधायिका द्वारा स्थानीय आरक्षण का कानून संविधान की अनुसूची 7 की भावना के खिलाफ है, जो स्पष्ट रूप से राज्यों और संघ विधायिका के बीच की शक्ति को अलग करता है।

स्थानीय नौकरियों में आरक्षण संवैधानिक भावना और भारतीय एकता के विरुद्ध नहीं है

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 अधिवास और निवास के आधार पर आरक्षण को प्रतिबंधित नहीं करता है। स्थानीय नौकरियों में स्थानीय लोगों को पहले अवसर प्रदान करना संवैधानिक रूप से वैध लगता है क्योंकि ये लोग रोज़गार निर्माण करने वाले प्रतिष्ठानों द्वारा उत्पन्न सभी नकारात्मक बाह्यताओं को वहन करते हैं।
  • स्थानीय नौकरियों में आरक्षण समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग को समानता प्रदान करता है, क्योंकि आरक्षण केवल निम्न स्तर की नौकरियों तक ही सीमित है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार कानून के समान संरक्षण की भावना के अनुसार है।
  • गोलक नाथ मामले (1967) में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि नीति निदेशक तत्त्वों को प्रभावी बनाने के लिये अनुच्छेद 39 (b) और अनुच्छेद 39 (c) के अंतर्गत कोई कानून बनाया जाता है और इस प्रक्रिया में यह कानून अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31 का उल्लंघन करता है, तो कानून को केवल इस आधार पर असंवैधानिक और शून्य घोषित नहीं किया जा सकता। यह लोक कल्याण के लिये अनुच्छेद 14 और 19 के उल्लंघन को सही ठहराता है।
  • अनुच्छेद 14 और 19 संविधान में ही उल्लिखित उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं। यह इस बात को नकारता है कि स्थानीय नौकरियों में आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • भारत के संविधान में, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के लिये उनकी विशेष परिस्थितियों के कारण अनुच्छेद 371 d और e के तहत नौकरियों और शिक्षा के लिये विशेष प्रावधान हैं। इसलिये बेरोज़गारी की स्थिति के बीच स्थानीय नौकरियों में आरक्षण उचित और भारत के संविधान के विशेष प्रावधानों के अनुसार प्रतीत होता है।
  • आज तक की सभी न्यायिक घोषणाएं सार्वजनिक रोज़गार में आरक्षण के संबंध में हैं, न कि निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की गई नौकरियों के संबंध में। इसलिये, राज्यों द्वारा नौकरियों में आरक्षण उचित प्रतीत होता है क्योंकि राज्य उद्यमियों को सभी प्रावधानों की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • स्थानीय नौकरियों में आरक्षण ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग के बीच का बीच का रास्ता बना रहा है।

स्थानीय नौकरियों में आरक्षण बेरोज़गारी और स्थिर रोज़गार सृजन के बीच एक उपयुक्त समाधान है। लेकिन यह सभी बुराइयों के लिये रामबाण नहीं है। हमें रोज़गार सृजन और एक सतत् कार्य वातावरण के लिये कौशल का निर्माण करना होगा।