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  • 02 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस 23: अंधविश्वास का मुकाबला करने के लिये तर्कसंगतता और वैज्ञानिक स्वभाव को बढ़ावा देना एक प्रभावी साधन है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • अंधविश्वास को संक्षेप में परिभाषित कीजिए और बताइये कि भारत किस प्रकार अपने संविधान में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।
    • अंधविश्वास को दूर करने में विफलता के कारणों का वर्णन कीजिये।
    • वैज्ञानिक स्वभाव और तार्किकता विकसित कर अंधविश्वास को दूर करने के सुझाव दीजिये।
    • उत्तर को सारांशित करते हुए समाप्त कीजिये।

    विज्ञान और अंधविश्वास अलग-अलग हैं। फिर भी वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो उनकी अन्योन्याश्रयता से अनजान हैं। अंधविश्वास स्वयं पर लगाए गए स्वार्थी विश्वास हैं, कुछ काल्पनिक लेकिन अकल्पनीय अविश्वास या मात्र विश्वास। लेकिन विज्ञान - इस युग का सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय यथार्थवादी शब्द माना जाता है जो अवास्तविक को भी वास्तविक बना देता है; अप्राप्य को भी प्राप्य बना देता है।

    भारतीय संविधान के मौलिक कर्त्तव्यों में उल्लेख है कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य "वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना है" (अनुच्छेद 51 A)। जवाहरलाल नेहरू "वैज्ञानिक स्वभाव" अभिव्यक्ति का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिसे उन्होंने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में अपनी आदतन स्पष्टयता में वर्णित किया। फिर भी, दशकों बाद, भारत में अंधविश्वासी प्रथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें उच्च शिक्षित लोग भी शामिल हैं।

    अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अंधविश्वास की आवश्यकता के बिना बढ़ती संख्या में लोग सुखी रह रहे है। सबसे भयावह मान्यताओं और अनुष्ठानों को दुनिया भर में बड़े पैमाने पर मिटा दिया गया है - जैसे कि मानव बलि के लिये दवा में खून देना और भारत में, सती जैसी प्रथाएँ। यह समाज सुधार प्रचारकों, शिक्षा और सशक्तिकरण (विशेष रूप से महिलाओं के) द्वारा किये गए प्रयासों के कारण है। फिर भी, जीवित अंधविश्वास भी खतरनाक हो सकते हैं, उदाहरण के लिये जब वे चिकित्सा सलाह का खंडन करते हैं।

    अंधविश्वास के बने रहने के कारण:

    • शिक्षा के अभाव में लोग किसी घटना के घटित होने के वैज्ञानिक कारणों से अनजान होते हैं।
    • अंधविश्वास को ईश्वर के साथ जोड़ दिया जाता है जिससे लोग इसकी आलोचना से डरने लगते हैं।
    • लोग मानते हैं कि कुरीतियाँ प्राचीन काल से ही चली आ रही हैं, इसलिये उन्हें इनका पालन करना चाहिये।
    • जब लोग अपने आर्थिक उत्थान के लिये आवश्यक उपाय नहीं कर पाते तो वे इस उम्मीद में अंधविश्वासों को अपना लेते हैं कि इससे उनकी हालत सुधर सकती है।
    • अंधविश्वासों पर आधारित मान्यताओं को खत्म करने के लिये आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है।

    अंधविश्वास को दूर करने के सुझाव:

    • अल्पावधि सुधारों के लिये हमें ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो इन कुरीतियों के अंत में सहायक हो और दाभोलकर जैसे तर्कवादियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता हो।
    • जबकि दीर्घकालिक सुधार हेतु शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।
    • संविधान की वह धारा 51-ए में मानवीयता एवं वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्ध रहने की बात की गई है और यह सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • साथ ही ज़रूरत यह भी है कि अंधविश्वासों को 'परंपराओं और रीति-रिवाज़ों’ से अलग रखा जाए, क्योंकि ये किसी देश के लोकाचार को प्रतिबिंबित करती हैं और अक्सर समाज के उत्थान में सहायक होती हैं।

    अनुनय मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान और विपणन समुदायों में लोकप्रिय है। शायद वैज्ञानिकों के लिये यहाँ भी कुछ सीखने को है। पास्कल, जिसे नेहरू ने तर्क पर उद्धृत किया था, उन्होंने अनुनय पर भी लिखा है। लोगों को आमतौर पर उन कारणों से बेहतर समझाया जा सकता है जो उन्होंने स्वयं खोजे हैं, उन तर्कों की तुलना में जो दूसरों के दिमाग में आए हैं।

    रिचर्ड डॉकिन्स जैसे तर्कवादियों के आक्रामक अभियानों की तुलना में ऐसी रणनीति अधिक सफल हो सकती है। फिर भी, हानिरहित अंधविश्वास हमेशा के लिये मानवता के साथ रहने की संभावना है।

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