-
28 Jul 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 3
विज्ञान-प्रौद्योगिकी
दिवस 18: भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता तथा राष्ट्रीय अर्द्धचालक मिशन इसे प्राप्त करने में किस प्रकार सहायता करेगा? चर्चा कीजिये (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- अर्द्धचालक और उसके लाभों का वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता की विवेचना कीजिये।
- भारत के राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर मिशन और यह भारत में अर्द्धचालकों का उत्पादन कैसे सुनिश्चित करेगा व्याख्या कीजिये।
- सेमीकंडक्टर उद्योग को विकसित करने का तरीका सुझाते हुए निष्कर्ष दीजिये।
अर्द्धचालक ऐसी सामग्री है जिसमें चालकता सुचालक और कुचालक के बीच होती है। वे शुद्ध तत्त्व सिलिकॉन या जर्मेनियम या गैलियम, आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड के यौगिक हो सकते हैं। ये बुनियादी निर्माण खंड हैं जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों के ह्रदय और मस्तिष्क के रूप में कार्य करते हैं। भारत वर्तमान में सभी चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक इस बाज़ार के 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता:
- सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक सूचना युग की जीवनदायिनी हैं। वे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को हमारे जीवन को सरल बनाने वाली क्रियाओं की गणना और नियंत्रण करने में सक्षम बनाते हैं। ये सेमीकंडक्टर चिप्स आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) के विकास के चालक हैं। इनका उपयोग संचार, बिजली प्रेषण आदि जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में किया जाता है, जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
- सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम के विकास का वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ गहन एकीकरण सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में गुणक प्रभाव पड़ेगा। दुनिया में ऐसे देश बहुत कम हैं जो इन चिप्स का निर्माण करते हैं। इस उद्योग में संयुक्त राज्य अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और नीदरलैंड का प्रभुत्व है। जर्मनी आईसीटी का एक उभरता हुआ उत्पादक भी है।
- भारत वर्तमान में सभी चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक इस बाज़ार के 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। भारत में अर्द्धचालकों की खपत वर्ष 2026 तक 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है।
इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM):
- ISM को वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तत्त्वावधान में कुल 76,000 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था। यह देश में स्थायी अर्द्धचालक और प्रदर्शन पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है। कार्यक्रम का उद्देश्य अर्द्धचालक, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन इकोसिस्टम में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अर्द्धचालक और डिस्प्ले उद्योग में वैश्विक विशेषज्ञों के नेतृत्व में आईएसएम योजनाओं के कुशल, सुसंगत एवं सुचारू कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
आईएसएम के घटक जिससे भारत में अर्द्धचालकों के उत्पादन में वृद्धि होगी:
- भारत में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिये योजना: यह सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है जिसका उद्देश्य देश में सेमीकंडक्टर वफर फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना हेतु बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
- भारत में डिस्प्ले फैब स्थापित करने के लिये योजना: यह डिस्प्ले फैब की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य देश में टीएफटी एलसीडी/AMOLED आधारित डिस्प्ले फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना के लिए बड़े निवेश को आकर्षित करना है।
- भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग एवं पैकेजिंग (एटीएमपी)/ओएसएटी सुविधाओं की स्थापना के लिये योजना: यह योजना भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स/सिलिकॉन फोटोनिक्स (एसआईपीएच)/सेंसर (एमईएमएस सहित) फैब और सेमीकंडक्टर एटीएमपी/ओएसएटी (आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट) सुविधाओं की स्थापना के लिये पात्र आवेदकों को पूंजीगत व्यय के 30% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। .
- डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन (DLI) योजना: यह इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (एसओसी), सिस्टम और आईपी कोर तथा सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन के विकास और तैनाती के विभिन्न चरणों में बुनियादी ढाँचा व वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
भारतीय सेमीकंडक्टर मिशन के तहत प्रदान की गई योजनाएँ भारत में अर्द्धचालकों के उत्पादन को बढ़ावा देंगी
भारत के सामने चुनौतियाँ:
- उच्च निवेश की आवश्यकता: अर्द्धचालक और डिस्प्ले निर्माण एक बहुत ही जटिल और प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है, जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी भुगतान अवधि तथा प्रौद्योगिकी में तेज़ी से बदलाव शामिल है, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण व निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।
- सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता: जब कोई सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिये आमतौर पर आवश्यक निवेश के पैमाने पर विचार करता है तो उसे मिलने वाला परिकल्पित राजकोषीय समर्थन का स्तर बहुत कम है।
- क्षमता निर्माण की कमी: भारत में चिप डिज़ाइन की एक अच्छी प्रतिभा है लेकिन इसने कभी भी चिप फैब क्षमता का निर्माण नहीं किया। इसरो और डीआरडीओ के पास अपने-अपने फैब फाउंड्री हैं लेकिन वे मुख्य रूप से अपनी आवश्यकताओं के लिये हैं तथा नवीनतम फैब फाउंड्री की तुलना में परिष्कृत भी नहीं हैं।
- भारत में केवल एक पुराना फैब है जो पंजाब के मोहाली में स्थित है।
- बेहद महँगा फैब सेटअप: एक अर्द्धचालक निर्माण सुविधा (या फैब) की लागत एक अरब डॉलर के गुणकों में हो सकती है, यहाँ तक कि अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर स्थापित करने के पर भी नवीनतम तकनीक से एक या दो पीढ़ी से पिछड़ जाता है।
- संसाधन अक्षम क्षेत्र: चिप फैब हेतु लाखों लीटर स्वच्छ पानी, एक अत्यंत स्थिर बिजली आपूर्ति, बहुत सारी भूमि और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।
चूँकि भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत राजकोषीय सहायता प्रदान की जाती है, इसलिये भारत सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भी विकास कर सकता है। सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो उद्योग 4.0 के तहत डिजिटल परिवर्तन के अगले चरण का संचालन कर रहे हैं। भारत को स्वदेशी सेमीकंडक्टर्स के लक्ष्य को छोड़ने की ज़रूरत है। इसके बजाय, इसका लक्ष्य एक विश्वसनीय, बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने का होना चाहिये। बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये अनुकूल व्यापार नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।