दिवस 47: भारत में स्वतंत्रता के बाद के किसान आंदोलनों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
26 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण:
|
यह स्पष्ट था कि औपनिवेशिक शासन की समाप्ति के साथ किसान आंदोलन के प्रकार और प्रकृति में व्यापक परिवर्तन आया। स्वतंत्रता के बाद के भारत में मोटे तौर पर दो तरह के किसान आंदोलन देखे गए।
हरित क्रांति की शुरुआत, नई तकनीक, सरकारी सब्सिडी आदि ने किसानों की कई श्रेणियाांँ बनाई हैं जैसे कि अमीर किसान और गरीब किसान। बाद का आंदोलन पुराने जमाने के गांधीवादी आंदोलन के करीब आता है। यह इस तथ्य के कारण है कि उन्होंने जिन रणनीतियों का सहारा लिया, जिन पद्धतियों को उन्होंने अपनाया, जो राजनीति उन्होंने खेली, जो विश्लेषण उन्होंने किया, जिसमें उनके कुछ संघर्षों की अवधारणा शामिल थी, गांधीवादी आंदोलन का असर था। यहाँ तक कि 'नए किसान' आंदोलन में कुछ संगठनों जैसे कि कर्नाटक में एक ने गांधीवाद की खुले तौर पर पुष्टि की।
आम तौर पर नए किसान आंदोलन की शुरुआत सन 1980 के दशक से देखी जाती है। परंतु इसकी उत्पत्ति सन 1970 के दशक से पहले भी हो सकती है। यह ऐसा दशक था जब हरित क्रांति क्षेत्र के किसानों ने राजनीतिक दलों और नेताओं के इर्द-गिर्द रैली करना शुरू किया। ऐसे ही एक नेता जिन्होंने राजनीतिक दल के अधीन किसानों को संगठित किया था वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह थे। उन्होंने ऐसे मुद्दों पर कुछ रैलियाँ संगठित की, जैसे औद्योगिक और कृषि वस्तुओं के बीच कीमतों में समानता, विदेशों से कृषि इनपुट के आयात की अनुमति, उद्योग को दी जाने वाली संरक्षण में कटौती, विभिन्न बोर्डों (मंडलों) और समितियों में किसानों का उचित प्रतिनिधित्व, बिजली, पानी उर्वरक, बीज के लिये सब्सिडी, शहरी और ग्रामीण लोगों की आय असमानता को कम करना, किसान बैंक की स्थापना करना आदि। उसी दशक के दौरान पंजाब में किसानों ने खेतकरी ज़मीदारी संघ (Khetkari Zamindari Union) के अधीन संघर्ष किया। वर्ष 1974 में ज़मीदारी शब्द को संगठन से हटा दिया गया था। संयोग से वही संघ अगले दशक के दौरान भारतीय किसान संघ का हिस्सा बन गया।
सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आंदोलनों में कुछ निम्नलिखित हैं जो 1980 के दशक के प्रारंभ तक चलते रहें:
हालाँकि तमिलनाडु के नारायण स्वामी नायडू के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है जिन्होंने 1970 के दशक के दौरान तमिलिगा व्यवसैगल संगम के बैनर तले तमिलनाडु में किसानों को संगठित किया था। वास्तव में वह एक ऐसा व्यक्ति था जिसने बाद में पीजेंट यूनिटी के प्रतीक के रूप में किसानों द्वारा हरे रंग के तौलिए पहनने के माध्यम से किसानों की पहचान का समर्थन किया। फिर भी 1970 के दशक के दौरान उनके संगठन ने निम्नलिखित आंदोलनों को आगे बढ़ाया:
1980 के दशक में भारत के विभिन्न हिस्सों में नए किसान आंदोलन की शुरुआत हुई। इसके कारण थे: