दिवस 11: भारत में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की एक बड़ी संख्या भारत में विकास की प्रक्रिया में भागीदार के रूप में सरकार के साथ मिलकर कार्य कर रही है। चर्चा कीजिये कि सरकार सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की पहुँच बढ़ाने के लिये गैर-सरकारी संगठनों की सेवाओं का उपयोग कैसे कर सकती है। (250 शब्द)
21 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गैर-सरकारी संगठन (NGO) के बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सरकारी पहल के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने हेतु गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों पर चर्चा कीजिये।
- एक निष्पक्ष निष्कर्ष लिखिये।
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गैर-सरकारी संगठन (NGOs):
- जैसा कि विश्व बैंक द्वारा परिभाषित किया गया है NGOs गैर-लाभकारी संगठनों को संदर्भित करते हैं जो गरीबों के हितों को बढ़ावा देने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने या सामुदायिक विकास करने के लिये गतिविधियों का संचालन करते हैं।
- ये संगठन सरकार का हिस्सा नहीं हैं, यह कानूनी रूप से सरकार के विशिष्ट अधिनियम (भारत में सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860) के तहत पंजीकृत हैं।
- भारत में NGO शब्द संगठनों के एक विस्तृत रूपरेखा को दर्शाता है जो गैर-सरकारी या अर्द्ध-सरकारी, स्वैच्छिक या गैर-स्वैच्छिक आदि हो सकते हैं।
सरकार की पहल के कार्यान्वयन में गैर-सरकारी संगठनों का महत्त्व:
- सरकार की भूमिका सर्वोपरि है और एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में सामाजिक आर्थिक विकास पहलों को तैयार करने और उनके कार्यान्वयन में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- सामाजिक समानता, लैंगिक समानता और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के अलावा, विकास में आर्थिक प्रगति अधिक महत्त्व रखती है। अकेले राज्य इस तरह के जटिल विकास कार्यों को ठीक से प्रबंधित नहीं कर सकता है।
- गैर-सरकारी संगठन परिणामस्वरूप सरकार को कई मोर्चों पर सहायता प्रदान करते हैं। इसी आवश्यकता से सहभागी लोकतंत्र का उदय हुआ। गैर-सरकारी संगठन (NGOs) नागरिक समाज का एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं जो राष्ट्र के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- हालाँकि 1970 के दशक की शुरुआत से ही NGOs भारत में कानूनी रूप से पंजीकृत और स्थापित होने में सक्षम हैं, कई अलग-अलग तरीकों से ठीक से स्थापित होने के बाद इन्हें सरकार से सहायता प्राप्त होने लगती है।
- प्रसिद्ध "गरीबी हटाओ" नारे के साथ, भारत सरकार ने छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत के विकास में गैर सरकारी संगठनों के महत्व को पहचाना है ।
- ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करने के लिये इसने सातवीं पंचवर्षीय योजना में गैर सरकारी संगठनों को "आत्मनिर्भर समुदाय" विकसित करने का कार्य दिया।
- बाद में नौवीं पंचवर्षीय योजना में सरकार ने गैर सरकारी संगठनों का एक देशव्यापी नेटवर्क स्थापित करने का प्रयास किया।
- दसवीं पंचवर्षीय योजना ने कृषि क्षेत्र के विकास में गैर सरकारी संगठनों की आवश्यकता और महत्त्व का अनुमान लगाने के लिये विभिन्न आधुनिक कृषि प्रथाओं और उनके लाभ हेतु सरकारी कार्यक्रमों के बारे में किसानों की समझ में वृद्धि की।
- इसके अलावा सरकार ने वित्तीय सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से गैर-सरकारी संगठनों के विस्तार को बढ़ावा दिया है।
- गरीबी उन्मूलन, बच्चों के अधिकार, जातिगत लांछन और भेदभाव, महिला अधिकार, बाल श्रम, ग्रामीण विकास, जल और स्वच्छता, पर्यावरण संबंधी मुद्दों आदि जैसे विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके गैर सरकारी संगठन सरकार की सहायता से अपने विकास के प्रयासों में तेज़ी लाने में सक्षम हैं।
- गैर सरकारी संगठनों ने पिछले 20 वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य सहित सामाजिक क्षेत्रों के विकास में अपनी भागीदारी बढ़ाई है।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गैर सरकारी संगठनों ने स्कूल छोड़ने वालों को फिर से जोड़ने और शिक्षा के अधिकार की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- कुष्ठ, टीबी, मलेरिया की समाप्त करने तथा पानी और स्वच्छता तक पहुँच में सुधार के प्रयास गैर सरकारी संगठन के नेतृत्व वाले स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास की पहल के कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त किये हैं।
- उदाहरण:
- लोक प्रहरी एक गैर सरकारी संगठन है जो वर्ष 2003 में स्थापित किया गया था तथा यह सुशासन के क्षेत्र में सरकार के साथ सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
- दृष्टि फाउंडेशन ट्रस्ट एक गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबों की राहत के क्षेत्रों में कार्य करने और उन लोगों जो खर्च वाहन नहीं कर सकते, को सुविधाएँ प्रदान करने के लिये स्थापित किया गया है।
- ग्रीनपीस का उद्देश्य जैव विविधता को उसके सभी रूपों में सुरक्षित रखना, प्रदूषण और महासागरों, भूमि, वायु और ग्रह पर ताज़े पानी के दोहन को रोकना और सभी परमाणु ज़ोखिमों को समाप्त करना है।
गैर-सरकारी संगठनों से संबंधित मुद्दे:
- राष्ट्र के लोकतांत्रिक आदर्शों को संरक्षित किया जाना चाहिये क्योंकि गैर-सरकारी संगठनों ने वंचितों और गरीबों के अधिकारों का समर्थन किया है।
- हालाँकि भारत में कई गैर-सरकारी संगठन वर्तमान में जाँच का विषय हैं, अतः सावधानी के साथ कार्य संचालन करना सबसे अच्छा है।
- यह मुख्य रूप से भारतीय गैर सरकारी संगठनों की घटती विश्वसनीयता और जवाबदेही की कमी के कारण है। भले की एनजीओ में पारदर्शिता की कमी हो किंतु यह सच है कि देश भर में कई एनजीओ कार्य करते है।
- एक नए इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के आकलन के अनुसार, सरकारी कार्यों के विरोध में कुछ गैर सरकारी संगठनों का कार्य देश के विकास के लिये हानिकारक साबित हुआ है।
- इसके अतिरिक्त, इसमें कहा गया है कि "विदेशी वित्त पोषित गैर-सरकारी संगठनों" ने देश के सकल घरेलू उत्पाद के 2-3% का नुकसान किया है।
- यह सच है कि गैर-सरकारी संगठनों को मानवाधिकारों और उनकी रक्षा के लिये कदम उठाना चाहिये, यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना विकास को सुनिश्चित करने के लिये सरकार के विकल्प प्रदान करना है।
- सरल प्रदर्शन और विकास के प्रयासों को रोकना अप्रभावी होगा जो एक राष्ट्र की स्थापना की प्रक्रिया को नुकसान पहुँचाएगा।
- कई गैर सरकारी संगठन अपने कार्यों के लिये विदेशी स्रोतों से धन प्राप्त करते हैं, जो एक सर्वविदित तथ्य है। यह भी सच है कि इन गैर सरकारी संगठनों ने कोयला और ताप विद्युत संयंत्रों के विकास को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है साथ ही साथ कुडनकुलम परमाणु परियोजना, जिसके कारण संबंधित राज्यों में बिजली की कमी आई है।
- आईबी रिपोर्ट के मद्देनजर विदेशी वित्त पोषण की पहुँच को सीमित करने के लिये विभिन्न स्रोतों द्वारा कुछ औचित्य कदम उठाए गए हैं। हालाँकि भारत जैसे देश में विदेशी वित्त पोषण पर रोक लगाना पूरी तरह से अनुचित है।
- सरकार को विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये अधिक पारदर्शी होने की ज़रूरत है, न कि इसे समाप्त करने की।
गैर-सरकारी संगठन (NGOs) वास्तव में अधिक ज़िम्मेदारी लेकर, वैकल्पिक विकास विचारों की पेशकश करके तथा और सरकार व बाज़ार के साथ सहयोग करके भारत की विकास प्रणाली की सहायता करेंगे जो इस समय महत्वपूर्ण है। गैर सरकारी संगठनों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये शिक्षाविदों, कार्यकर्त्ताओं, सेवानिवृत्त नौकरशाहों की एक राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद बनाई जानी चाहिये। गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों की वित्तीय गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये एक नियामक तंत्र समय की मांग है।