दिवस 11: "राष्ट्रीय प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना कमज़ोर वर्गों के बच्चों में कुपोषण को रोकने और स्कूल में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये है। इस संदर्भ में योजना के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
21 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण) योजना का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- योजना के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- योजना से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।
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सितंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने हेतु 1.31 ट्रिलियन रुपए की वित्तीय सहायता के साथ ‘प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण’ या ‘पीएम-पोषण’ योजना को मंज़ूरी दी।
यह योजना स्कूलों में मौजूदा राष्ट्रीय कार्यक्रम मध्याह्न भोजन योजना के स्थान पर लाई गई है।
इसे पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये शुरू किया गया है।
पीएम-पोषण का महत्त्व:
- कवरेज़:
- प्राथमिक (कक्षा 1 से 5) और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6 से 8) स्कूलों के छात्र वर्तमान में प्रत्येक कार्य दिवस में 100 ग्राम और 150 ग्राम खाद्यान्न प्राप्त करते हैं, ताकि न्यूनतम 700 कैलोरी सुनिश्चित की जा सके।
- इस योजना के तहत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में चल रहे प्री-प्राइमरी या बालवाटिका में पढ़ने वाले छात्रों को भी भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
- पोषाहार उद्यान: स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये "स्कूल पोषण उद्यान" के माध्यम से स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले पोषक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
- पूरक पोषण: योजना में आकांक्षी ज़िलों और एनीमिया के उच्च प्रसार वाले ज़िलों में बच्चों के लिये पूरक पोषण का भी प्रावधान है।
- यह कमज़ोर समूहों में एनीमिया के प्रसार को रोकने और उनके स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
- तिथि भोजन अवधारणा: यह एक अद्वितीय अवधारणा है क्योंकि इसमें पूरे समुदाय की भागीदारी से समाज के वंचित वर्ग के प्रति करुणा और सहानुभूति की भावना में वृद्धि होगी।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): केंद्र ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और सहायकों को मुआवज़ा प्रदान करने हेतु प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली को अपनाने का निर्देश दिया है। यह भ्रष्टाचार को रोकने में मदद करेगा।
- पोषण विशेषज्ञ:
- प्रत्येक स्कूल में एक पोषण विशेषज्ञ नियुक्त किया गया है, जिसकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल में ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (BMI), वज़न और हीमोग्लोबिन के स्तर जैसे स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाए। यह योजना बेहतर परिणाम प्राप्त करने तथा निष्कर्षों के आधार पर आहार को समायोजित करने में मदद करेगा।
- योजना का सामाजिक लेखांकन: योजना के क्रियान्वयन का अध्ययन करने हेतु प्रत्येक राज्य के हर स्कूल के लिये योजना का सोशल ऑडिट/सामाजिक लेखांकन कराना अनिवार्य है, जो अब तक सभी राज्यों द्वारा नहीं किया जा रहा था। इस प्रावधान से भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाने और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
चुनौतियाँ:
- पोषण लक्ष्यों की प्राप्ति: वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
- 'भुखमरी' का गंभीर स्तर: वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। भारत में भुखमरी का स्तर 'गंभीर' (Serious) है।
- कुपोषण का खतरा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने कुपोषण की स्थिति में सुधार के बावजूद एक बार पुनः कुपोषण के मामलों में वृद्धि दर्ज की है।
- भारत में विश्व के लगभग 30% अल्पविकसित बच्चे और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चे हैं।
- अन्य:
- भ्रष्ट आचरण और जातिगत पूर्वाग्रह तथा भोजन परोसने में भेदभाव।
आगे की राह:
- बच्चों के पोषण से संबंधित इस डेटा को देखते हुए गर्भावस्था से लेकर पाँच वर्ष की आयु तक स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रमों के अभिसरण पर ज़ोर देना अनिवार्य है।
- एक सुनियोजित एवं प्रभावी सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC) रणनीति का निर्माण करना आवश्यक है, क्योंकि लोगों का व्यवहार, समाज तथा पारिवारिक परंपराओं पर निर्भर करता है।
- कुपोषण को दूर करने के लिये कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी एवं क्रियान्वयन और राष्ट्रीय विकास एजेंडे में बाल कुपोषण में कमी को प्राथमिकता देना समय की आवश्यकता है।