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दिवस 11: “सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) लक्षित हस्तक्षेप का प्रभावी उपकरण है और यह रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने तथा आधारिक संरचनाओं के निर्माण में मदद करता है।” इस संदर्भ में MPLADS के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये? (250 शब्द)

21 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • योजना का महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • योजना से संबद्ध चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी। प्रारंभ में इसका क्रियान्वयन ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत किया गया तथा अक्तूबर 1994 में इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया गया।

कार्य पद्धति:

  • MPLADS के तहत सांसदों को प्रत्येक वर्ष 5 करोड़ रुपए की राशि 2.5 करोड़ रुपए की दो किश्तों में वितरित की जाती है। MPLADS के तहत आवंटित राशि नॉन-लैप्सेबल होती है।
  • लोकसभा सदस्यों से इस राशि को अपने लोकसभा क्षेत्रों में ज़िला प्राधिकरण परियोजनाओं में व्यय करने की सिफारिश की जाती है, जबकि राज्यसभा सदस्यों द्वारा इस राशि का उपयोग उस राज्य क्षेत्र में किया जाता है जहाँ से वे निर्वाचित किये गए हैं।
  • राज्यसभा और लोकसभा दोनों के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्य करने की सिफारिश कर सकते हैं।
  • इन परियोजनाओं में पीने के पानी की सुविधा, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य स्वच्छता और सड़कों आदि का निर्माण किया जाना शामिल है।
  • जून 2016 से MPLAD फंड का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान, वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना आदि जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन में भी किया जाता है।

महत्त्व:

  • टिकाऊ परिसंपत्तियों के सृजन पर ज़ोर: MPLAD योजना के दिशानिर्देश टिकाऊ सामुदायिक परिसंपत्ति जैसे सड़क, स्कूल भवन आदि के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। गैर-टिकाऊ परिसंपत्ति के लिये सिफारिशें सीमित परिस्थितियों में ही की जा सकती हैं।
    • इस योजना के तहत देश भर की पूरी आबादी की स्थानीय आवश्यकताओं जैसे पेयजल, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों आदि को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ परिसंपत्ति का निर्माण किया जाता है ताकि सभी लोग लाभान्वित हो सकें।
  • अधिकांश परियोजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में: इस योजना के तहत 82% योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हैं तथा शेष शहरी/अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में संचालित हैं।
  • रोज़गार के अवसर: योजना के तहत अवसंरचनात्मक सृजन से बेरोज़गार व्यक्तियों को रोज़गार के अवसर मिलते हैं और यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।

योजना से संबंधित मुद्दे:

  • संघवाद का उल्लंघन:
    • केंद्र सरकार केवल उन मामलों के संबंध में व्यय कर सकती है जो सातवीं अनुसूची के अनुसार उसके क्षेत्र के विषय हैं।
    • MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के क्षेत्र का अतिक्रमण करता है जो संविधान के भाग IX और IX-A का उल्लंघन है।
  • शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत से टकराव: यह योजना संविधान के तहत शक्तियों के पृथक्करण की योजना को बाधित करती है, क्योंकि कार्यकारी कार्यों में सांसदों का हस्तक्षेप बढ़ रहा है।
  • कार्यान्वयन में चूक:
    • यह योजना सांसदों को संरक्षण के स्रोत के रूप में धन का उपयोग करने की गुंजाइश देती है जिसे वे अपनी इच्छा से वितरित सकते हैं।
    • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा खर्च की गई राशि के वित्तीय कुप्रबंधन और कृत्रिम मुद्रास्फीति के उदाहरणों को चिह्नित किया गया है।
    • साथ ही, इस योजना को सांसदों और निजी फर्मों की आपसी सांठगाँठ से प्रभावित होने का आरोप है।
    • इसके कारण कभी-कभी MPLADS से प्राप्त राशि को निजी कार्यों हेतु खर्च करने, अपात्र एजेंसियों को फंड की सिफारिश करने, फंड को निजी ट्रस्टों को डायवर्ट करने आदि के रूप में देखा जाता है।
  • वैधानिक समर्थन नहीं:
    • इस योजना को किसी भी सांविधिक कानून द्वारा विनियमित नहीं किया जाता है, बल्कि इसका क्रियान्वयन तत्कालीन सरकार की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है।
  • आयोगों द्वारा की गईं कुछ सिफारिशें:
    • वर्ष 2002 में, संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग ने इस आधार पर MPLAD योजना को तत्काल बंद करने की सिफारिश की कि यह संघवाद की भावना तथा केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के पृथक्करण के संगत नहीं था।
    • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 2007 की रिपोर्ट में भी इस तरह का पक्ष रखा गया है।

योजना की संवैधानिकता:

उपरोक्त तर्कों के आधार पर MPLADS को वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) में चुनौती दी गई थी। तब सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि:

  • भारतीय संविधान शक्तियों के सख्त पृथक्करण को मान्यता नहीं देता है।
    • भले ही सांसदों को एक कार्यकारी उत्तरदायित्व दिया गया हो लेकिन उनकी भूमिका 'सिफारिश' करने तक ही सीमित है और वास्तविक कार्यान्वयन स्थानीय अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
    • इस प्रकार, यह योजना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

आगे की राह:

भले MPLAD योजना की संवैधानिकता पर उठ रहे सवालों को सर्वोच्च कोर्ट के निर्णय द्वारा शांत कर दिया गया हो लेकिन योजना के कार्यान्वयन से संबंधित अन्य मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। इनका समाधान निम्न तरीकों से किया जा सकता है:

  • स्वीकृत कार्यों तथा उन पर खर्च की राशि के संबंध में बेहतर पारदर्शिता और निगरानी।
  • जिनके लिये MPLAD निधि परियोजना का क्रियान्वयन किया जाना है उन नागरिकों की भागीदारी द्वारा इस योजना को और अधिक समावेशी बनाया जा सकता है।
  • इसके अलावा, यदि इस योजना के तहत आवंटित राशि की प्रकृति को यदि लैप्सेबल बना दिया जाए तो यह आवंटित राशि के इष्टतम उपयोग के लिये सांसदों पर दबाव डाल सकता है और अप्रयुक्त धन के संग्रहण को रोक सकता है।

MPLAD योजना की विकेंद्रीकृत प्रकृति को देखते हुए, पर्याप्त निगरानी और पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ, ज़मीनी स्तर पर यह योजना विकास के एक अनिवार्य साधन के रूप में काम कर सकती है।