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17 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 3
आंतरिक सुरक्षा
दिवस 38: अधिक से अधिक विद्रोही समूहों के सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल होने के साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले 5 से 6 वर्षों में उग्रवाद में भारी गिरावट देखी जा रही है। पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद में गिरावट के कारणों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- हाल ही के दिनों में पूर्वोत्तर में उग्रवाद के पतन के बारे में बताते हुए अपने उत्तर की शुरूआत कीजिये।
- पूर्वोत्तर में विद्रोह के ऐतिहासिक कारणों की विवेचना कीजिये।
- उग्रवाद में गिरावट के कारणों की व्याख्या कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 के बाद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में विद्रोह में कमी आ रही है। पूर्वोत्तर में सौ से अधिक जातीय समूह हैं। यहाँ ऐसे लोग बसे हुए हैं जिनकी संस्कृति की एक अलग एवं विशिष्ट पहचान है। इनमें से प्रत्येक समुदायों में पहचान की एक प्रबल भावना होती है। क्षेत्र ऐसे कई समूह इस विशिष्टता को राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी अभिव्यक्त करना चाहते हैं। इसके कारण क्षेत्र में कई विभाजनकारी ताकतें कार्य कर रही हैं, जिससे इस क्षेत्र में उग्रवाद का जन्म हुआ है।
इनका संबंध एक ऐसी भावना से है जिसमे उनके हितों की उपेक्षा की जाती है जो हिंसक क्षणों को जन्म देती है। कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (KLO), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड - खापलांग (NSCN-K) आदि पूर्वोत्तर के कुछ उग्रवादी समूह हैं।
विद्रोह के ऐतिहासिक कारण
- असम के मैदानी इलाकों को छोड़कर अधिकांश राज्यों को जानबूझकर ब्रिटिश सरकार के मुख्यधारा के प्रशासन से बाहर रखा गया था और भारत सरकार अधिनियम, 1935 में निर्वासित क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया था और नृजातीय समूहों को पिछड़ी जनजाति कहा जाता था।
- ब्रिटिशों ने जानबूझकर उनमें यह भावना विकसित की कि वे ब्रिटिश उपनिवेश हैं और भारत के किसी भी प्रांत का हिस्सा नहीं हैं। उदाहरण के लिये, नगा हिल्स असम प्रांत द्वारा शासित क्षेत्र था लेकिन बाद में उसे इससे बाहर कर दिया गया था और प्रशासन के कई हिस्सों को प्रत्यक्ष रूप से मुख्य आयुक्त द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
- उनमें एक भावना हमेशा से प्रसारित की गई थी कि कमोबेश वे स्वतंत्र हैं इसलिये स्वतंत्रता के बाद कई समूहों में एक स्वतंत्र राज्य बनने की महत्वाकांक्षा ने जन्म लिया। नगालैंड नेशनल काउंसिल भारत से अपनी स्वतंत्रता का दावा करने वाला पहला समूह था।
पिछले कुछ वर्षों में हिंसा में गिरावट के कारण:
- बाहरी सहायता की समाप्ति: पहले विद्रोही समूह पूर्वोत्तर राज्यों से सटे देशों में शरण लेते थे। बांग्लादेश या म्यांमार क्षेत्र का उपयोग किये बिना विद्रोही अपना अस्तित्व नहीं बचा सकते और तब तक प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकते हैं जब तक कि वहाँ से हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति नहीं होती। म्यांमार और बांग्लादेश के साथ बेहतर सुरक्षा संबंधों ने इन समर्थनों को समाप्त कर दिया है।
- वार्ताओं में संलग्नता: बहुत से विद्रोही समूह सरकार के साथ शांति वार्ताओं में शामिल थे, जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में हिंसक घटनाओं में कमी आई है। उदाहरण के लिये, नगा वार्ता वर्ष 1997 से चल रही थी, लेकिन वर्ष 2015 में समझौते की वास्तविक शर्तों पर बातचीत हुई और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) (एनएससीएन-आईएम) और केंद्र सरकार के मध्य हस्ताक्षर किये गए।
- वर्षों के प्रयासों से तंग आना: वर्षों से चल रहे संघर्षों में विद्रोहियों की शक्ति क्षीण हुई और इस तरह आंदोलन की तीव्रता धीरे-धीरे बेहद कम रह गई। स्थानीय आबादी वर्षों से चल रही हिंसा से तंग आ गई और विद्रोही समूहों के नेताओं की लोकप्रियता में समय के साथ गिरावट आई।
- विद्रोही समूहों के बीच असहमति: सरकारी बल और इसकी खुफिया ईकाइयाँ एक समूह को दूसरे के खिलाफ करने में सक्षम रही हैं और विद्रोही समूहों की एकता को नष्ट किया है। बँटे हुए समूह तुलनात्मक रूप से छोटे समूह हैं और उनके पास इतना राजस्व और संसाधन नहीं हैं तथा इसलिये उनके पास वार्ता करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
आगे की राह:
- कनेक्टिविटी बढ़ाना: पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिये व्यापक भौगोलिक कनेक्टिविटी महत्त्वपूर्ण है। बांग्लादेश और भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के माध्यम से भारतीय मुख्य भूमि से जुड़ने की इस परिवहन व्यवस्था को पूर्ण किया जाना चाहिये।
- निरंतर सतर्कता: भारत को यह सोचकर कि उग्रवाद समाप्त हो गया है अपने सुरक्षा उपाय कम नहीं करने चाहिये तथा सतर्क रहना चाहिये। केंद्र और राज्य सरकार को छोटे और बड़े सभी समूहों की पहचान करनी चाहिये और उनसे निपटना चाहिये ताकि उग्रवाद फिर से न फैले।
- लोगों की आकांक्षाओं को संबोधित करना: पूर्वोत्तर में संघर्ष लोगों की आकांक्षाओं की शारीरिक अभिव्यक्ति है। इस प्रकार उनके साथ निरंतर संवाद स्थापित करके लोगों की आकांक्षाओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
- भ्रष्ट मेल-जोल को समाप्त करना: मुद्दों को स्थायी रूप से हल करने के लिये हितधारकों की पहचान करने और उनके मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है। पूर्वोत्तर में चुनाव परिणाम अक्सर इस आधार पर निर्धारित किये जाते हैं कि राजनीतिक दल किन समूहों के प्रति निष्ठा रखते हैं। इस प्रकार राज्य विधायिका और इन भूमिगत समूहों से जुड़े भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को समाप्त किया जाना चाहिये।
- दूरदर्शी नीति: एक संरचित प्रतिपक्ष नीति की आवश्यकता है जिसमें भविष्य में इस तरह के उग्रवाद से निपटने के लिये सभी हितधारकों से परामर्श करके सरकार द्वारा सभी कारकों पर विचार किया जाना चाहिये।
- अधिक एकीकरण: स्थानीय आबादी के बीच अपनेपन की भावना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कोहिमा युद्ध जैसे भारत में उनके योगदान के लिये उनमें गर्व की भावना उत्पन्न की जानी चाहिये।
राजनीतिक आकांक्षाओं को हिंसा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी भावना को हतोत्साहित किया जाना चाहिये। इसके लिये पूर्वोत्तर राज्यों का राजनीतिक सशक्तीकरण होना चाहिये और सुशासन को ज़मीनी स्तर तक पहुँचना चाहिये।
इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि क्षेत्र के समग्र विकास के लिये लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जाए ।