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25 Jul 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 15: देश में मैक्रोइकनॉमिक्स (Macroeconomics) स्थिरता लाने के लिये भारत सरकार द्वारा क्या सुधार किये गए हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता का अर्थ बताते हुए परिचय दीजिये।
- मैक्रोइकॉनॉमिक आर्थिक स्थिरता के चरों का उल्लेख कीजिये।
- भारत सरकार द्वारा किये गए सुधारों पर चर्चा कीजिये।
- उत्तर को सारांशित करके समाप्त कीजिये।
मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता एक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का वर्णन करती है जिसने बाहरी संघर्षो व झटकों के प्रति अर्थव्यवस्था की संवेदनशीलता को कम कर दिया है तथा यह निरंतर विकास की संभावनाओं को बढ़ााती है।मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता विकास के लिये आवश्यक है लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं। मुद्रा में उतार-चढ़ाव, बड़े कर्ज के बोझ और अप्रबंधित मुद्रास्फीति के संपर्क में आने से आर्थिक संकट और GDP में गिरावट आ सकती है।
मैक्रोइकॉनॉमिक स्थिरता को पाँच चरों द्वारा मापा जाता है:
- कम और स्थिर मुद्रास्फीति बाज़ार में स्वस्थ मांग को इंगित करती है हालाँकि उच्च या अस्थिर मुद्रास्फीति से विकास को खतरा है।
- कम लंबी अवधि की ब्याज़ दरें स्थिर भविष्य की मुद्रास्फीति की उम्मीदों को दर्शाती हैं।
- GDP के सापेक्ष कम राष्ट्रीय ऋण इंगित करता है कि सरकार के पास विदेशी लेनदारों को भुगतान करने के बजाय घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपने कर राजस्व का उपयोग करने में लचीलापन लाना होगा।
- कम घाटा राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि को रोकता है।
- मुद्रा स्थिरता आयातकों और निर्यातकों को दीर्घकालिक विकास रणनीतियों को विकसित करने तथा विनिमय दर जोखिम का प्रबंधन करने के लिये निवेशकों की ज़रूरतों को कम करने की अनुमति देती है।
देश में मैक्रोइकॉनॉमिक आर्थिक स्थिरता लाने के लिये भारत सरकार द्वारा किये गए सुधार:
जैसा कि 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ लेकिन इसे डिलीवरी में देरी, कंटेनर की कमी और सेमीकंडक्टर चिप की कमी से लेकर गंभीर आपूर्ति-पक्ष बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय में तेज़ वृद्धि को मांग और आपूर्ति प्रतिक्रिया दोनों के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि यह भविष्य के विकास के लिये बुनियादी ढाँचा बनाता है।
भारत की आर्थिक प्रतिक्रिया मांग प्रबंधन पर पूर्ण निर्भरता के बजाय आपूर्ति पक्ष सुधारों पर ज़ोर जोर देने वाली रही है।
भारत की आपूर्ति-पक्ष रणनीति में दो सामान्य विषय हैं:
(i) कोविड के बाद की दुनिया की दीर्घकालिक अप्रत्याशितता से निपटने के लिये लचीलेपन और नवाचार में सुधार।
(ii) भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन में सुधार लाने का उद्देश्य। ये जलवायु/पर्यावरण से संबंधित नीतियों, सामाजिक बुनियादी ढाँचे जैसे नल के पानी के सार्वजनिक प्रावधान, शौचालय, बुनियादी आवास, गरीबों के लिये बीमा और आत्मानिर्भर भारत के तहत प्रमुख उद्योगों हेतु समर्थन से लेकर हैं।उद्योग:
उन्नत प्रौद्योगिकी उत्पादों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और निवेश को आकर्षित करने हेतु ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों, फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स, स्पेशलिटी स्टील आदि सहित 13 क्षेत्रों के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को मंज़ूरी दी गई।
कर निश्चितता और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिये पूर्वव्यापी कर निरस्त।
दूरसंचार
समायोजित सकल राजस्व का युक्तिकरण: गैर-दूरसंचार राजस्व को समायोजित सकल राजस्व से बाहर रखा जाएगा।
लाइसेंस शुल्क और इसी तरह के अन्य शुल्कों हेतु बैंक गारंटी आवश्यकताओं में भारी कमी। अब से आयोजित नीलामियों के लिये किश्त भुगतान सुरक्षित करने के लिये किसी बैंक गारंटी की आवश्यकता नहीं होगी।
श्रम सुधार: केंद्र सरकार ने चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित किया।
रक्षा: रक्षा क्षेत्र में स्वत: मार्ग से 74 प्रतिशत तक और सरकारी मार्ग से 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाया गया।
विनिवेश: राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) चार वर्ष की अवधि (वित्त वर्ष 2022-25) में सड़कों, रेलवे, बिजली, तेल और गैस पाइपलाइन, दूरसंचार, नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्तियों को पट्टे पर देकर 6 लाख करोड़ रुपए की कुल मुद्रीकरण क्षमता की परिकल्पना करता है।
अंतरिक्ष और भू-स्थानिक क्षेत्र: निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि के लिये पारंपरिक उपग्रह संचार और सुदूर संवेदन क्षेत्रों को उदार बनाना।
बैंकिंगः जमा बीमा में प्रति जमाकर्त्ता प्रति बैंक 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया गया। इससे कुल खातों की संख्या का 98.1 प्रतिशत पूरी तरह से सुरक्षित हो गया।
प्रस्तावित अंतरिम भुगतान: जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (DICGC) द्वारा उन बैंकों के जमाकर्त्ताओं को अंतरिम भुगतान किया जाएगा जिनके लिये RBI द्वारा कोई प्रतिबंध/स्थगन लगाया गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs): विनिर्माण और सेवा MSMEs के बीच के अंतर को दूर करना। उद्योग और सेवा क्षेत्र में MSME की ऊपर की ओर संशोधित परिभाषा।
ये आपूर्ति-पक्ष सुधार जैसे कि कई क्षेत्रों का विनियमन, प्रक्रियाओं का सरलीकरण, 'पूर्वव्यापी कर' जैसे विरासत के मुद्दों को हटाना, निजीकरण, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन और इस तरह से कोविड के बाद देश में व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।