दिवस 5: पूर्वी पाकिस्तान में भाषाई मांग/विरोध ने बांग्लादेश के निर्माण का नेतृत्त्व किया। बांग्लादेश के उद्भव में भारत की भूमिका के संदर्भ में इस वक्तव्य का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
15 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण :
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पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान भौगोलिक, सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से अलग थे। पूर्वी पाकिस्तान के लिये एक स्वतंत्रता आंदोलन बंगाल की जातीय चिंताओं, बंगाली भाषा का उपयोग करने के अधिकार और स्थानीय राजनीतिक नियंत्रण और स्व-शासन की इच्छा के आधार पर आगे बढ़ा।
बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के कारण
मुक्ति युद्ध का कारण बनने वाले राजनीतिक संकट के बीज 7 दिसंबर, 1970 को लगाए गए थे। अवामी लीग ने पाकिस्तान के चुनावों में एक बड़ी जीत हासिल की। अवामी लीग शेख मुजीबुर रहमान के नेतृृ्त्त्व में एक राजनीतिक दल था, जिसने पूर्वी पाकिस्तान के लिये स्वायत्तता हेतु अभियान चलाया था। हालाँकि, उन्हें जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो के तत्काल विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अवामी लीग को अगली सरकार बनाने से रोकने का प्रयास किया।
मुक्ति युद्ध (मार्च से दिसंबर 1971)
बंगालियों ने अपने पास मौजूद प्रत्येक संसाधन के साथ पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध लड़ना शुरू कर दिया। आम बंगालियों, खासकर युवाओं, जिनके पास युद्ध में लड़ने के लिये कोई ज्ञान या प्रशिक्षण नहीं था, ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये अपने जीवन और अपने परिवार के सदस्यों के जीवन को खतरे में डाल दिया।
बंगाली राष्ट्रवादियों ने "मुक्ति वाहिनी" (स्वतंत्रता की शक्ति) नामक एक नौसिखिया सशस्त्र बल को इकट्ठा किया। पूर्वी-पाकिस्तान के बंगाली सैन्य अधिकारियों ने बंगाली राष्ट्रवादियों के सैन्य अभियानों का प्रभार संभाला।
भारत की भूमिका:
सैन्य हस्तक्षेप: भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सीधे हस्तक्षेप किया और निर्णायक रूप से पाकिस्तानी सेना को हराया। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने 93,000 सैनिकों के साथ ढाका में भारतीय सेना की सहयोगी मुक्ति वाहिनी (Mukti Bahini) सेना के समक्ष बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।
बांग्लादेशी गुरिल्ला बलों को प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करना: भारत ने बांग्लादेशी गुरिल्ला बलों के लिये संसाधन, प्रशिक्षण और खुफिया सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे “मुक्ति वाहिनी” भी कहा जाता है।
राजनयिक समर्थन: भारत की सक्रिय कूटनीति ने दुनिया भर में बांग्लादेश के लिये नैतिक समर्थन और सहानुभूति सुनिश्चित की। यह भारत की सक्षम कूटनीति ही थी जिसने जो अमेरिका को रोक सकी, जो उस समय के पाकिस्तान के कट्टर समर्थक थे।।
शरणार्थियों के पुनर्वास में सहायता: भारत ने उन लाखों शरणार्थियों की मेजबानी करने में पर्याप्त उदारता दिखाई जो पूर्वी पाकिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना कर रहे थे। सीमावर्ती राज्यों ने आने वाले संकटग्रस्त शरणार्थियों को तत्काल राहत सुनिश्चित करने के लिये विशेष व्यवस्था की।
एक नए राष्ट्र के निर्माण में भारत की भूमिका के लिये अंतिम प्रशंसा यह है कि बांग्लादेश आज एक अपेक्षाकृत समृद्ध देश है, जिसने अल्प विकसित देश की श्रेणी से विकासशील देश के रूप में लगातार प्रगति की है।
पूर्वी पाकिस्तान की राख से बाग्लादेश का निर्माण संभवतः भारत की अब तक की सबसे अच्छी विदेश नीति की जीत है।