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  • 25 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस 46: राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति 2016 पर चर्चा कीजिये। भारत के IPR क्षेत्र में निहित मुद्दों की जाँच कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • बौद्धिक संपदा अधिकारों को संक्षेप में परिभाषित कीजिये और राष्ट्रीय IPR नीति 2016 की मुख्य विशेषताओं को बताइये।
    • भारत के IPR से संबंधित मुद्दों का उल्लेख कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यक्तियों को उनकी बौद्धिक रचना पर दिये गए अधिकार हैं:

    IPR व्यक्तियों को उनके बौद्धिक रचना पर दिये गए अधिकार हैं। इसमें आविष्कार, साहित्यिक, कलात्मक कार्य और वाणिज्य में उपयोग किये जाने वाले प्रतीक, नाम तथा चित्र शामिल होते हैं। ये आमतौर पर निर्माता को एक निश्चित अवधि के लिये उसकी रचना के उपयोग पर एक विशेष अधिकार प्रदान करते हैं।

    इन अधिकारों को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद-27 में उल्लिखित किया गया है, जो वैज्ञानिक साहित्यिक या कलात्मक प्रस्तुतियों के लेखक होने के परिणामस्वरूप नैतिक और भौतिक हितों की सुरक्षा से लाभ का अधिकार प्रदान करता है। बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (1883) और साहित्यिक तथा कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न कन्वेंशन (1886) में मान्यता दी गई थी। दोनों संधियों को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा प्रशासित किया जाता है।

    राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति:

    • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति 2016 को मई 2016 में देश में IPR के भविष्य के विकास के मार्गदर्शन के लिये एक विज़न दस्तावेज़ के रूप में अपनाया गया था।
    • इसका स्पष्ट आह्वान है "रचनात्मक भारत; अभिनव भारत"।
    • यह सभी अंतर-संबंधों को ध्यान में रखते हुए सभी आईपीआर को शामिल करता है और एक मंच पर लाता है और इस प्रकार बौद्धिक संपदा (IP), संबंधित विधियों और एजेंसियों के सभी रूपों के बीच तालमेल बनाने और उनका फायदा उठाने का लक्ष्य रखता है।
    • यह कार्यान्वयन, निगरानी और समीक्षा के लिये एक संस्थागत तंत्र की स्थापना करता है।
    • इसका उद्देश्य भारतीय परिदृश्य में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करना और उन्हें अनुकूलित करना है।
    • औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (DIPP), वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार को भारत में IPR के कार्यान्वयन एवं भविष्य के विकास के समन्वय, मार्गदर्शन और निगरानी के लिये नोडल विभाग के रूप में नियुक्त किया गया है।
    • DIPP के तत्वावधान में स्थापित 'सेल फॉर IPR प्रमोशन एंड मैनेजमेंट (CIPAM)', राष्ट्रीय IPR नीति के उद्देश्यों के कार्यान्वयन के लिये संदर्भ का एकल बिंदु है।
    • भारत की IPR व्यवस्था बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर WTO के समझौते के अनुपालन में है।

    उद्देश्य:

    • IPR जागरूकता: आउटरीच और प्रचार।
    • IPR का सृजन: IPR के सृजन को प्रोत्साहित करना।
    • कानूनी और विधायी ढाँचा: मज़बूत और प्रभावी IPR कानून , जो बड़े जनहित के साथ मालिकों के हितों को संतुलित करता है।
    • प्रशासन और प्रबंधन: सेवा उन्मुख IPR प्रशासन का आधुनिकीकरण और सुदृढ़ीकरण।
    • IPR का व्यावसायीकरण: व्यावसायीकरण के माध्यम से IPR के लिये मूल्य प्राप्त करना।
    • प्रवर्तन और अधिनिर्णय: IPR उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिये प्रवर्तन और न्यायिक तंत्र को मज़बूत करना।
    • मानव पूंजी विकास: IPR में शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान और कौशल निर्माण के लिये मानव संसाधन, संस्थानों और क्षमताओं को मज़बूत और विस्तारित करना।

    IPR से संबद्ध मुद्दे:

    • भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 (2005 में संशोधित) की धारा 3 (d) एक ज्ञात पदार्थ के नए रूपों की खोज करने वाले आविष्कारों को पेटेंट देने की अनुमति नहीं देती है, जब तक कि यह प्रभावकारिता के संबंध में गुणों में महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न न हो।
    • इसका आशय यह है कि भारतीय पेटेंट अधिनियम एवरग्रीनिंग पेटेंट के निर्माण की अनुमति नहीं देता है।
      • यह दवा कंपनियों के लिये चिंता का विषय है। धारा 3 (d) भारतीय पेटेंट कार्यालय (IPO) में नोवार्टिस की दवा ग्लिवेक (इमैटिनिब मेसाइलेट) के पेटेंट को खारिज करने में सहायक थी।
    • अनिवार्य लाइसेंसिंग का प्रावधान विदेशी निवेशकों के लिये चिंता का विषय रहा है, जिन्हें अपनी प्रौद्योगिकी लाने के लिये अनिवार्य लाइसेंसिंग के प्रावधान के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • डेटा विशिष्टता संबंधी प्रावधान के संबंध में विदेशी कंपनियों का आरोप है कि भारतीय कानून दवा या कृषि रासायनिक उत्पादों के बाज़ार अनुमोदन के लिये आवेदन के दौरान सरकार को सौंपे गए डेटा की रक्षा नहीं करते।
    • कॉपीराइट अधिनियम का प्रवर्तन अत्यधिक कमज़ोर है। वर्तमान में भी हज़ारों की संख्या में कॉपीराइट की चोरी संबंधी केस आते हैं।

    आगे की राह

    • IPR से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये एक उचित समाधान तंत्र की ज़रूरत है।
    • भारत की इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये भारत को अपने समग्र बौद्धिक संपदा ढाँचे में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की दिशा में अभी और काम करने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं मज़बूत बौद्धिक संपदा मानकों को लगातार लागू करने के लिये गंभीर कदम उठाए जाने की भी ज़रूरत है।
    • संयुक्त राष्ट्र संघ की औद्योगिक विकास संस्था ने अपने एक अध्ययन के द्वारा यह प्रमाणित किया है कि जिन देशों की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था सुव्यवस्थित वहाँ आर्थिक विकास तेज़ी से हुआ है। अतः यहाँ सुधार की नितांत ही आवश्यकता है।
    • भारत को ‘पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक’ को चुस्त एवं दुरुस्त बनाने की आवश्यकता है।

    राष्ट्रीय IPR नीति, IP अपीलीय न्यायाधिकरण, ई-गवर्नेंस और WTO के ट्रिप्स समझौते का अक्षरश: पालन करने की प्रतिबद्धता को मज़बूत करने के सरकार के प्रयास से विश्व स्तर पर भारत की धारणा में सुधार करने में मदद मिलेगी। एक कुशल और न्यायसंगत बौद्धिक संपदा प्रणाली सभी देशों को आर्थिक विकास एवं सामाजिक और सांस्कृतिक कल्याण के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में बौद्धिक संपदा की क्षमता का एहसास करने में मदद कर सकती है।

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