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  • 15 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 36: भारत में मुद्रास्फीति को केवल लागत-प्रेरित (Cost-Push) नहीं माना जा सकता। तरलता (liquidity) की प्रचुरता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। विचार-विमर्श कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • मुद्रास्फीति को परिभाषित करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में मुद्रास्फीति के कारणों को विशेष रूप से दो शीर्षकों 'लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति' और तरलता की प्रचुरता के कारण मुद्रास्फीति के कारणों की व्याख्या कीजिये।
    • वर्तमान मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपायों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।

    मुद्रास्फीति कीमतों में वृद्धि है, जिसे समय के साथ क्रय शक्ति में गिरावट के रूप में अनुवादित किया जा सकता है। वर्ष 2022 की शुरुआत से (फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले) भारत में मुद्रास्फीति 6% से ऊपर रही है। भारत में मुद्रास्फीति को केवल 'लागत-प्रेरित' के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है। तरलता की प्रचुरता एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है। ‘लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति’ का मतलब है कि उत्पादन के चार कारकों-श्रम, पूँजी, भूमि या उद्यमिता में से किसी एक की लागत में वृद्धि ने कीमतों को "प्रेरित" किया है। तरलता एक अर्थव्यवस्था में उपस्थित मुद्रा या पैसा है। तरलता को मौद्रिक आधार के संदर्भ में मापा जाता है और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) देश में तरलता का एकमात्र आपूर्तिकर्त्ता है।

    हाल ही में भारत में बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण

    • लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति:
      • वैश्विक आपूर्ति शृंखला के कारण व्यवधान: वर्ष 2022 में मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से कच्चे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, खनिज तेल, मूल धातुओं आदि की कीमतों में वृद्धि के कारण थी जो रूस-यूक्रेन संघर्ष से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आए व्यवधान से प्रेरित थी।
        • CPI आँकड़े के अनुसार, मार्च माह में ‘तेल एवं वसा’ में मुद्रास्फीति बढ़कर 18.79% हो गई क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न भू-राजनीतिक संकट ने खाद्य तेल की कीमतों को उच्च कर दिया। यूक्रेन सूरजमुखी तेल का प्रमुख निर्यातक है।
      • आयात लागत में वृद्धि: दुनिया भर में पण्य/कमोडिटी की कीमतों में तेज़ वृद्धि भारत में मुद्रास्फीति की वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। यह कुछ महत्त्वपूर्ण उपभोग्य सामग्रियों के लिये आयात लागत में वृद्धि कर रहा है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है।
      • कैस्केडिंग प्रभाव: जब तेल और उर्वरक की कीमतें बढ़ती हैं, तो अन्य सभी कीमतों पर व्यापक प्रभाव होना तय है, जिसका भुगतान अंततः ग्राहक को करना पड़ता है।
    • तरलता की प्रचुरता:
      • केंद्रीय बैंकों द्वारा अत्यधिक तरलता और महामारी के प्रभावों को रोकने के लिये विभिन्न सरकारों द्वारा किया गया खर्च। यह लगभग 9 ट्रिलियन डॉलर था। संभवत: महामारी के निचले स्तर से उबरने की इच्छा ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मौद्रिक और राजकोषीय समर्थन पर हावी होने के लिये प्रेरित किया। इसका परिणाम अधिकांश वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में अति मुद्रास्फीति था।
      • अत्यधिक तरलता ने भारत में अति मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया है क्योंकि यह दर 35 महीनों से अधिक तक 4% से अधिक रही है ।
      • केनेसियन गुणक सिद्धांत की विफलता: कोविड -19 के बाद से दुनिया भर के नीति निर्माताओं की प्रमुख चिंता मांग को दोबारा प्रेरित करना था। यह सरकारी खर्च बढ़ाकर हासिल करने की मांग की गई थी। यह मानक केनेसियन नुस्खा है। कोविड -19 के प्रसार को रोकने के लिये लगाए गए गंभीर लॉकडाउन ने लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की गतिशीलता को प्रतिबंधित कर दिया। इस प्रकार सरकारी व्यय में विस्तार से उन देशों के उत्पादन में तत्काल वृद्धि नहीं हुई जहाँ लॉकडाउन को गंभीरता से लिया गया था।

    वर्तमान मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने हेतु किये जा सकने वाले उपाय:

    • मौद्रिक नीति: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति के लिये +/- 2 प्रतिशत अंक के सहिष्णुता बैंड के साथ 4% के मुद्रास्फीति लक्ष्य को बनाए रखने का निर्णय लिया है । RBI ने पहले ही रेपो रेट बढ़ाकर मौद्रिक नीति को सख्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
    • ईंधन शुल्क में कटौती:
      • विशेषज्ञों के अनुसार शुल्क में कम से कम 5 रुपये प्रति लीटर की कटौती की जानी चाहिये।
      • यह मुद्रास्फीति को 15-20 bps तक कम कर सकता है।
      • इसका बिजली, परिवहन लागत पर तत्काल और द्वितीयक प्रभाव पड़ेगा।
      • तेल (इंडियन बास्केट) में 1% की वृद्धि WPI को 8 bps तक बढ़ा सकती है।
    • खाद्य कीमतें:
      • जमाखोरी की स्थिति में आपूर्ति पक्ष पर कार्रवाई की जानी चाहिये।
      • दलहन, तिलहन पर आयात सीमा को सरल किया जाना चाहिये।
    • शुल्क में और कटौती:
      • खाद्य तेल आयात के लिये शुल्क में और कटौती की आवश्यकता है। हालाँकि इसे 25% से घटाकर 13.75% कर दिया गया था।
    • बफर स्टॉक:
      • यदि मुद्रास्फीति का विस्तार खाद्यान्न तक होता है तो बफर स्टॉक का उपयोग करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
      • WPI प्राथमिक खाद्य कीमतों में 1% की वृद्धि से CPI 48 bps तक बढ़ सकती है।
    • अन्य उपाय:
      • तेज़ विकास पर बल: 10% अधिक औद्योगिक उत्पादन खुदरा मुद्रास्फीति को 40 bps तक कम कर सकता है।
      • आपूर्ति बाधाओं को संबोधित करना: निम्न आय परिवारों पर बोझ कम करने के लिये आय सृजन क्षमता को बढ़ावा देना।

    यदि हम मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो जमा और ऋण पर ब्याज़ दर में सहवर्ती वृद्धि के साथ तरलता पर कार्रवाई की बहुत आवश्यकता है।

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