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Mains Marathon

  • 01 Sep 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    दिवस 53: "डिजिटल दुनिया में असमानता स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में भी असमानताओं को जन्म दे रही है"। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग के बारे में एक संक्षिप्त परिचय देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि कैसे डिजिटल असमानताएँ स्वास्थ्य और शिक्षा में असमानताओं को जन्म देती हैं।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    कोविड -19 महामारी ने आर्थिक असमानता बढ़ा दी है। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अमीर और भी अमीर बन गए हैं तथा लाखों लोग नौकरी के नुकसान एवं आय के संकट का सामना कर रहे हैं।

    • महामारी के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में भारत में डिजिटल तकनीकों का त्वरित उपयोग हुआ है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ इस अभियान में सबसे आगे हैं।
    • यद्यपि ये डिजिटल पहलें महामारी के कारण होने वाले व्यवधान को कम करने में मदद कर रही हैं, लेकिन ये डिजिटल विभाजन का कारण बन रही हैं क्योंकि डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ शिक्षा और स्वास्थ्य के उन तरीकों को इस प्रकार पुनर्गठित करने का कार्य कर रही हैं जो पहले से ही असमान समाज में इनकी पहुँच को और अधिक असमान बनाते हैं।

    डिजिटल असमानताएँ:

    • डिजिटल प्रौद्योगिकियों और स्वचालित निर्णय लेने वाले उपकरणों ने असमानताओं को बढ़ा दिया है, विशेष रूप से लोगों को उन सेवाओं की प्राप्ति हेतु बाधा उत्पन्न करके जिसके वे हकदार हैं। यह सामाजिक अवसंरचना के मुख्य स्तंभों यानी शिक्षा और स्वास्थ्य में प्रमुखता से दिखाई दे सकता है।

    डिजिटल असमानताएँ कैसे स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में असमानताओं को जन्म दे रही हैं:

    • डिजिटल निरक्षरता: भारत में बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कैसे किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप असमानता और बढ़ जाती है।
    • वित्तीय स्रोतों की कमी: लोगों को डिजिटल स्रोतों का उपयोग करने से रोकने में वित्तीय बाधा एक प्रमुख कारक के रूप में कार्य करती है।
    • कनेक्टिविटी का मुद्दा: देश के दूरदराज के हिस्सों में भौतिक बुनियादी ढाँंचे की कमी है जो कनेक्टिविटी की समस्या पैदा करती है।
    • भाषा प्रभुत्व: अधिकांश सरकारी वेबसाइटें और अधिकांश ऑनलाइन सामग्री केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है, जो उन लोगों के लिये कठिनाई पैदा करती है जो केवल अपनी स्थानीय/क्षेत्रीय भाषा जानते हैं।
    • लागत का मुद्दा: इंटरनेट की उच्च लागत भी एक अन्य बाधा कारक है।
    • गोपनीयता संबंधी समस्या: व्यक्तिगत जानकारी की बार-बार चोरी होने के कारण लोगों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म की प्रामाणिकता और सुरक्षा पर संदेह है।
    • अनिच्छा: जो लोग लंबे समय से ऑफ़लाइन मोड का उपयोग कर रहे हैं, वे ऑनलाइन मोड पर स्विच करने के लिये अनिच्छुक हैं।

    आगे की राह

    • शिक्षा के लिये एक बहु-प्रचारित दृष्टिकोण: छात्रों के एक बड़े वर्ग को शिक्षा प्रदान करने के लिये स्कूलों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ मिलकर शैक्षणिक समय सारिणी और विकल्पों की खोज करनी चाहिये।
      • उन कम सुविधा वाले छात्रों को प्राथमिकता देना जिनके पास ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
      • प्रत्येक बच्चे को मौलिक अधिकार के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाली न्यायसंगत शिक्षा मिले यह सुनिश्चित करने के लिये वास्तविक प्रयासों में निवेश करना चाहिये।
    • स्वास्थ्य के लिये एक बहु-प्रतीक्षित दृष्टिकोण: बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं (वार्ड स्टाफ, नर्स, डॉक्टर, प्रयोगशाला तकनीशियन, दवाइयाँ, बिस्तर, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर) पर स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि हुई है। फिर भी आरोग्य सेतु, आधार और डिजिटल स्वास्थ्य आईडी जैसे ऐप में थोड़ा और सुधार अपेक्षित है।
      • इसके अलावा, जब तक मेडिकल कदाचार के खिलाफ कानूनों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है, तब तक डिजिटल समाधान हमें वास्तविक समस्या से दूर करेंगे और विचलित करेंगे।
      • इस प्रकार स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रणालीगत सुधार करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    • निश्चित रूप से, प्रौद्योगिकी एक उद्धारक के रूप में उभरी है, लेकिन सिक्के का दूसरा पक्ष यह भी है जो कभी-कभी संवेदनशील वर्ग हेतु असंगति उत्पन्न करता है। उम्मीद है महामारी हमें अधिक विवेकशील होकर डिजिटल तकनीकों को अपनाना सिखा पाएगी।
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