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  • 29 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    दिवस 50: भारत का क्षेत्रवाद कई परस्पर संबंधित परिस्थितियों की उपज है। इस संदर्भ में, भारत में क्षेत्रवाद के विभिन्न रूपों का अन्वेषण कीजिये और उनके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिये उपयुक्त समाधान प्रस्तुत कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • क्षेत्रवाद के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • क्षेत्रवाद के प्रकारों पर प्रकाश डालिये।
    • इससे जुड़े प्रभावों का वर्णन कीजिये।
    • निष्पक्ष निष्कर्ष लिखिये।

    अपने क्षेत्र के प्रति एक मज़बूत आत्मीयता को क्षेत्रवाद कहा जाता है। क्षेत्रवाद एक विचारधारा है जिसका संबंध ऐसे क्षेत्र से होता है जो धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक कारणों से अपने पृथक अस्तित्व के लिये जाग्रत होता है या ऐसे क्षेत्र की पृथकता को बनाए रखने के लिये प्रयासरत रहती है। भारत में क्षेत्रवाद का उदय कई कारणों से हुआ, जिनमें शामिल हैं:

    क्षेत्रीय विचारधारा ऐतिहासिक रूप से कई क्षेत्रीय राज्यों के विकास और लगातार क्षेत्रीय मतभेदों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई।

    एक क्षेत्र के विशिष्ट भूगोल के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के भोजन और वस्त्रों का विकास हुआ। भाषायी आधार पर लोगों को एकीकृत करना या फिर किसी क्षेत्र का गठन करना क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाले कारणों में से एक है।

    • क्षेत्रीय हितों की रक्षा के लिये क्षेत्रीय दलों के गठन से भी क्षेत्रवाद का उदय हुआ।
    • राज्यों के बीच आर्थिक असमानता ने एकतरफा आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप क्षेत्रवाद को जन्म दिया। इस पृष्ठभूमि में विभिन्न प्रकार के क्षेत्रवाद को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है:
    • संकीर्णतावाद: जब किसी क्षेत्र में व्यक्ति राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं।
      • जैसे- बिहारी के खिलाफ अल्फा (असम) द्वारा हिंसा।
    • क्षेत्रवाद: जब किसी क्षेत्र के लोग अपनी स्वायत्तता, अधिकारों और विकास प्रक्रिया में उचित भाग के समर्थन में आवाज उठाते हैं तथा राज्य के भीतर स्वतंत्र राज्य या स्वायत्तता की इच्छा रखते हैं तो यह परिलक्षित होता है।
      • जैसे- बोडोलैंड की मांग
    • अलगाववाद: जब कोई क्षेत्र वैश्विक मानचित्र पर खुद को एक अलग इकाई के रूप में पहचानने के लिये राष्ट्र से अलग होना चाहता है।
      • जैसे- जेड. फिजो ने नागालैंड की मांग की।
    • अंतर-राज्यीय प्रतिद्वंद्विता: साझा संसाधनों और क्षेत्रीय विवादों के विभाजन पर संघर्ष अन्य राज्यों के प्रतिद्वंदी के रूप में एक राज्य की धारणा के परिणामस्वरूप होता है।
      • एक उदाहरण तमिलनाडु-केरल कावेरी जल संघर्ष है।

    आगे की राह:

    • प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रीय उद्देश्यों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये राष्ट्रीय एकता परिषद के कार्य को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिये।
    • हॉकी जैसे राष्ट्रीय खेलों को पुनर्जीवित करना, जो एकता का प्रतीक बन सकें।
    • क्षेत्र के आधार पर नस्लवाद को रोकने के लिये विश्वविद्यालयों में सांस्कृतिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। उदहारण के लिये अन्य राज्यों से खाद्य स्टालों की स्थापना।
    • अविकसित, पिछड़े और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • इस तरह के कार्यों से एक भारत श्रेष्ठ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
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