दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की 75वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ के बारे में संक्षेप में लिखिये।
- स्वतंत्र भारत की यात्रा पर चर्चा कीजिये और इसे गांधी जी के आदर्शों से संबद्ध कीजिये। चर्चा कीजिये कि भारत की यात्रा क्या हो सकती है यदि गांधी के भारत संबंधी दृष्टिकोण को नीति निर्माण और इसके निष्पादन में प्रभावी ढंग से लागू किया गया जाता।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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भारत अपनी 75 वी स्वतंत्रता वर्षगांठ और अपने लोगों, संस्कृति तथा उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को आज़ादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है।
भारतीय नीति निर्माताओं ने गांधीवादी आदर्शों और मूल्यों पर विशेष ध्यान दिया था और इसका परिणाम गांधी जी के आदर्शों की ओर विभिन्न नीतियों का झुकाव था।
स्वतंत्रता दिवस की 75 वीं वर्षगांठ तक भारत की नीतियों में गांधीवादी आदर्शों को शामिल करना:
- गांधी जी की सर्वधर्म समभाव भावना को जन-जन के बीच प्रसारित करने के लिये गृह मंत्रालय के अंतर्गत सामुदायिक संगठन के राष्ट्रीय प्रतिष्ठान का गठन गया ।
- स्वतंत्र भारत में ज़मीनी स्तर पर गांधी जी के राम राज्य को साकार करने के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्था को संवैधानिक दर्जा।
- देशी नस्ल के मवेशियों के संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिये गांधीवादी आदर्शों की तर्ज पर मवेशियों/गाय और बछड़ों के वध पर प्रतिबंध को शामिल करना।
- संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 द्वारा सहकारी समिति बनाने के अधिकार को संवैधानिक और मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान करना। भारत में गांधीवादी तर्ज पर सहकारी आंदोलन और कुटीर उद्योग को और बढ़ावा देने के लिये सरकार ने एक सहकारी मंत्रालय का गठन किया।
- आर्थिक-सामाजिक और शैक्षिक उत्थान के लिये सरकार ने सर्वोदय और अंत्योदय की अवधारणा को साकार करने हेतु सार्वजनिक नौकरियों और शिक्षा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिये आरक्षण अधिनियमित किया है।
- कई राज्य सरकारों ने गुजरात और बिहार जैसे अपने राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पेय और दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाया जा सके।
यद्यपि सरकारों ने स्वतंत्र भारत में गांधीवादी आदर्शों को साकार करने के लिये कई कदम उठाए हैं। लेकिन आज़ादी के बाद के भारत की यात्रा अलग हो सकती थी, अगर गांधी जी साथ होते। जैसे:
- पंचायती राज संस्था (पीआरआई) को संवैधानिक दर्जा पहले दिया जा सकता था। पीआरआई के पास वर्तमान में बहुत कम वित्तीय और निष्पादन शक्तियाँ हैं, लेकिन गांधीवादी विचार पूर्ण स्वायत्तता के साथ ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र का समर्थन करते थे।
- सामुदायिक संगठन का राष्ट्रीय फाउंडेशन एक अधिक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु समाज बनाने के लिये अधिक प्रभावी हो सकता है और हिंदू-मुस्लिम एकता जैसे सांप्रदायिक सद्भाव के लिये काम कर सकता है
- यद्यपि पशु वध की रोकथाम के लिये प्रावधान हैं, लेकिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये गाय और मवेशियों की स्वदेशी नस्ल के विकास के लिये पहल बहुत उत्साहजनक नहीं है, यह गांधी जी के साथ अधिक गहन हो सकती थी।
- कॉर्पोरेट समाज का संवैधानीकरण बहुत देर से यानी वर्ष 2011 में किया गया था और ज़मीनी स्तर पर इसका प्रभाव बहुत दयनीय है। यह और अधिक मज़बूत हो सकता था।
- भारत ने कई दंगों और हिंसक आंदोलनों को देखा है, लेकिन जनता के बीच गांधी जी या उनके आदर्शों की उपस्थिति में बहुत जटिल समस्याओं को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जा सकता है।
- गांधी जी के आर्थिक मॉडल में आज के सामाजिक-पूंजीवादी रूप की तुलना में आर्थिक क्षेत्र में ट्रस्टीशिप की अवधारणा के प्रति अधिक झुकाव था।
- गांधीवादी विचार परमाणु हथियारों जैसे सामूहिक विनाश के हथियारों का समर्थन नहीं करते हैं। इसलिये, उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम के संदर्भ में पहले उपयोग न करने की नीति की शर्त के साथ परमाणु निरोध का समर्थन किया होता।
- गांधी जी के आदर्शों में कुटीर उद्योग और सहकारी उद्योग द्वारा आर्थिक उत्थान के साथ अछूतों और दलितों तथा महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान के लिये अधिक स्थान था।
- गांधी के अनुनय के तरीके ने बिना किसी कठोर कानूनी व्यवस्था के भी भारतीय समाज से अस्पृश्यता को हटा दिया होता, जिसे हम कानून और दंडात्मक कार्रवाई के साथ भी प्राप्त करने में विफल रहे हैं।
- गांधीवादी जीवनशैली भारत पर नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रतीक थी।
महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी के दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक नेताओं में से एक माने जाते हैं। वे पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, अहिंसा, सत्य, ईमानदारी, मौलिक शुद्धता और करुणा तथा इन उपकरणों के सफल प्रयोगकर्त्ता के रूप में याद किये जाते हैं, जिसके बल पर उन्होंने उपनिवेशवादी सरकार के खिलाफ पूरे देश को एकजुट कर आज़ादी की अलख जगाई। आज दुनिया के किसी भी देश में जब कोई शांति मार्च निकलता है या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाता है या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो, तो ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधी याद आते हैं। अत: यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा आने वाले समय में भी रहेंगे।