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  • 29 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 19: पिछले दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि के लिये मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • जलवायु परिवर्तन को परिभाषित कीजिये तथा हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं में हुई वृद्धि का उल्लेख कीजिये।
    • आपदाओं की प्रवृत्तियों और आपदाओं के भविष्य के अनुमानों की चर्चा कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि के लिये जलवायु परिवर्तन किस प्रकार उत्तरदायी है।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष लिखिये।

    जलवायु परिवर्तन तापमान और मौसम के प्रारूप में दीर्घकालिक बदलाव को संदर्भित करता है। ये बदलाव प्राकृतिक हो सकते हैं, जैसे कि सौर चक्र में विविधता आदि। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2000 और 2019 के बीच 7,348 प्राकृतिक आपदाएँ देखने को मिली है, जिसमें 1.23 लोगों की जान गई है, 4.2 बिलियन प्रभावित हुए है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग $ 2.97 ट्रिलियन का नुकसान हुआ है। जलवायु परिवर्तन पिछले 20 वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं के लगभग दोगुना होने के लिये काफी हद तक दोषी है। इन सब में तेज़ वृद्धि काफी हद तक जलवायु से संबंधित आपदाओं में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है, जिसमें बाढ़, सूखा और तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएँ शामिल है

    आँकड़े जो समर्थन करतें है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं को कैसे बढ़ाता है

    • प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति:
      • वर्ष 1970 और 2000 के बीच, मध्यम और बड़े पैमाने की आपदाओं की रिपोर्ट औसतन लगभग 90-100 प्रति वर्ष थी, लेकिन वर्ष 2001 और 2020 के बीच, ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट की संख्या बढ़कर 350-500 प्रति वर्ष हो गई।
      • इनमें भू-भौतिकीय आपदाएँ जैसे भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी, जलवायु एवं मौसम से संबंधित आपदाएँ तथा फसल कीट और महामारी सहित जैविक खतरों का प्रकोप शामिल हैं।
    • पूर्वानुमान:
      • यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष आपदाओं की संख्या लगभग 400 (वर्ष 2015 में) से बढ़कर वर्ष 2030 तक 560 प्रति वर्ष हो सकती है, जो कि सेंडाई फ्रेमवर्क के जीवन कल ले दौरान 40% की अनुमानित वृद्धि है।
      • सूखे के लिये वर्तमान रुझान वर्ष 2001 और 2030 के बीच 30% से अधिक की संभावित वृद्धि का संकेत देते हैं।
      • यह IPCC छठी आकलन रिपोर्ट द्वारा प्रदान किये गए वैज्ञानिक साक्ष्य सहित जलवायु अनुमानों द्वारा और अधिक प्रमाणित किया गया है, जो वर्ष 2030 में ग्रीष्म लहरों, अधिक तीव्र बाढ़ और सूखे में वृद्धि तथा अत्यधिक दैनिक वर्षा जैसी घटनाओंं में 7% की वृद्धि की ओर इशारा करता है। (आईपीसीसी, 2021ए)
      • वर्तमान रुझानों के आधार पर, दुनिया वर्ष 2030 के दशक की शुरुआत तक पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस वैश्विक औसत अधिकतम तापमान में वृद्धि के लक्ष्य को पार करने के लिये तैयार है, जिससे खतरनाक घटनाओं की गति और गंभीरता में तेज़ी आएगी।

    जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार है:

    • गंभीर मौसमी घटनाएँ: जलवायु में परिवर्तनीयता जेट स्ट्रीम के व्यवहार को प्रभावित कर रही है, जिससे एक समय में हफ्तों तक की मौसमी प्रणालियाँ प्रभावित होती है, इससे लंबे समय तक वर्षा, सूखा, ठंड या गर्मी की घटनाएँ देखने को मिलती है। उष्णकटिबंधीय तूफान संभवतः उच्च हवा की गति के विशिष्ट रास्तों में बदलाव तथा उष्णकटिबंधीय तूफान या बाढ़ की घटनाओं के रूप में अधिक प्रभावशाली हो जाते है, जब वे अंततः ज़मीन से टकराते है।
    • समुद्र स्तर में वृद्धि: तटीय क्षेत्रों में 21 वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप तटीय कटाव और निचले इलाकों में अधिक बाढ़ आएगी। समुद्र के स्तर में लगभग 50% वृद्धि ऊष्मीय विस्तार के कारण होती है।
    • वर्षा और सूखा: प्रत्येक अतिरिक्त 0.5 °C तापमान में वृद्धि से अत्यधिक गर्माहट, अत्यधिक वर्षा और सूखे में वृद्धि होगी जो पौधों, मिट्टी और समुद्र में मौजूद पृथ्वी के कार्बन सिंक को भी कमज़ोर कर देगी।
    • गर्मी की चरम सीमा: गर्मी की चरम में वृद्धि हुई है जबकि ठंडे में कमी आई है, ये रुझान एशिया में आने वाले दशकों में जारी रहेंगे। दक्षिण एशिया में 21वीं सदी के दौरान हीटवेव अधिक व लगातार प्रभावित होगी।
    • घटती हिमरेखा और पिघलते ग्लेशियर: हिमरेखाओं का पीछे हटने और ग्लेशियरों के पिघलने से जल चक्र, वर्षा के प्रारूप में बदलाव, बाढ़ में वृद्धि के साथ-साथ हिमालय के सीमावर्ती राज्यों में भविष्य में पानी की कमी हो सकती है। पहाड़ों में तापमान वृद्धि और हिमनदों के पिघलने का स्तर 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व है
    • मानसून: मानसून वर्षा में परिवर्तन की भी उम्मीद है, जिसमें वार्षिक और ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा दोनों में वृद्धि होने का अनुमान है।
    • संक्रामक रोग: वर्ष 2050 तक, मलेरिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियों को फैलाने वाले मच्छर अनुमानित 500 मिलियन लोगों तक पहुँच सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से जैव विविधता में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप संचरण और रोग की घटनाओं में वृद्धि हुई है। बदलते जलवायु पैटर्न के कारण, शहरीकरण और वनों की कटाई चमगादड़ और कृन्तकों, जो जानवरों से मनुष्यों में होने वाली 60 प्रतिशत बीमारियों के लिये ज़िम्मेदार हैं, में वृद्धि हुई हैं।
    • वनाग्नि: वर्ष 2030 तक पहले से ही वनाग्नि के संपर्क में आने वाले क्षेत्रों के मौसम में तीन महीने का विस्तार हो सकता है। उदाहरण के लिये पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में यह उच्च वनाग्नि की संभावना वाले तीन महीने का विस्तार कर देगा।
    • चक्रवात: ग्लोबल वार्मिंग के 2.5 डिग्री सेल्सियस के तहत, सबसे विनाशकारी तूफानों में दुगनी वृद्धि का अनुमान है। बढ़ते तापमान और समुद्र के गर्म होने का मतलब है कि अधिक जल वाष्प वायुमंडल में वाष्पित हो जाता है, जो तूफान, आंधी और मूसलाधार बारिश के लिये ईंधन का कार्य करता है।

    जलवायु परिवर्तन को कम करके प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम किया जा सकता है तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की ज़रूरत है। शमन रणनीतियों में इमारतों को अधिक ऊर्जा कुशल बनाने के लिये रेट्रोफिटिंग तथा सौर, पवन और छोटे जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना, शहरों को अधिक सतत् परिवहन जैसे कि बस रैपिड ट्रांजिट, इलेक्ट्रिक वाहन और जैव ईंधन विकसित करने में मदद करना तथा भूमि और वनों के अधिक सतत् उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।

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