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20 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 41: सोशल मीडिया का महत्त्व इस हद तक बढ़ गया है कि इसने अन्य सभी ऑनलाइन सूचना स्रोतों को लगभग विस्थापित कर दिया है। "सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थों और डिजिटल मीडिया आचार संहिता के लिए दिशानिर्देश) नियम, 2021" की विशेषताएँ क्या हैं और इस संदर्भ में वह किन समस्याओं को संबोधित करता है? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सोशल मीडिया और इसके प्रकारों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) 2021 की विशेषताओं, महत्त्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
पहले सोशल मीडिया को इंटरनेट के सबसेट में से एक माना जाता था लेकिन अब सोशल मीडिया ने विभिन्न उत्पादों और सेवाओं तक पहुँच बनाना संभव बना दिया है जो पहले केवल इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध थे तथा इसके माध्यम से प्रदान की जाने वाली विविध सेवाओं और उत्पादों के कारण यह इंटरनेट के रूप में उभरा है।
केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने वाले उत्पीड़न/परेशानी और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के संबंध में लोगों द्वारा भारी मांँग के बाद इन नियमों को अधिनियमित किया गया।
नियमों का उद्देश्य डिजिटल प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्त्ताओं को काफी हद तक सशक्त बनाना है।
सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम की विशेषताएँ:
- अधिकारियों की नियुक्ति:
- SSMI को निम्नलिखित अधिकारियों की नियुक्ति करने की आवश्यकता होती है, जो सभी भारत के निवासी होने चाहिये:
- एक मुख्य अनुपालन अधिकारी।
- एक नोडल संपर्क अधिकारी जो 24 घंटे और 7 दिन उपलब्ध होगा।
- एक निवासी शिकायत अधिकारी।
- SSMI को निम्नलिखित अधिकारियों की नियुक्ति करने की आवश्यकता होती है, जो सभी भारत के निवासी होने चाहिये:
- शिकायत निवारण तंत्र:
- नए दिशा-निर्देशों के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों हेतु शिकायत निवारण तंत्र का प्रावधान है यदि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा की गई कोई भी सामग्री सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन करती है तो उसके बारे में शिकायत निवारण अधिकारी को शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- मासिक रिपोर्ट:
- SSMIs को प्राप्त शिकायतों की संख्या और प्रतिक्रिया में की गई कार्रवाई का उल्लेख करते हुए एक मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करने की भी आवश्यकता होती है।
- सत्यापन:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हेतु एक स्वैच्छिक सत्यापन तंत्र की भी आवश्यकता होती है जैसे- ट्विटर सत्यापित उपयोगकर्ताओं हेतु एक ब्लू-टिक तंत्र (Blue-Tick Mechanism) प्रदान करता है।
- संदेशों के प्रवर्तकों की पहचान करना:
- नए नियम व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म से "गैरकानूनी" संदेशों को भेजने वालों की पहचान करने हेतु अनिवार्य हैं जबकि, सोशल मीडिया नेटवर्क को एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर ऐसे संदेशों को हटाने की आवश्यकता होती है।
- SSMIs द्वारा इन कानूनों का अनुपालन न करने के परिणामस्वरूप उन्हें IT अधिनियम की धारा 79 के तहत प्रदान की जाने वाली 'सेफ हार्बर’ (Safe Harbour) सुरक्षा समाप्त की जा सकती है।
इस नियम के नकारात्मक पक्ष
- संभावित दुरुपयोग: डिजिटल प्रकाशकों पर अनुपालन बोझ अधिरोपित करने के अलावा ये नियम डिजिटल समाचार कंपनियों में सरकार के हस्तक्षेपों हेतु एक नया उपकरण प्रस्तुत करते हैं।
- सत्तारूढ़ दल अथवा सरकार की कोई भी आलोचना उसके समर्थकों द्वारा शिकायतों की बाढ़ ला सकती है, जिससे दोनों मीडिया संस्थाओं के समक्ष संचालन की चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
- यह व्यवस्था राजनीतिक और धार्मिक बहुसंख्यकवाद के मौजूदा माहौल में काफी चिंताजनक हो सकती है।
- विवेकाधीन शक्तियाँ: यह अधिसूचना सरकार की नज़रों में संदिग्ध अथवा संदेहास्पद किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को बिना आवश्यक प्रक्रिया का पालन किये अवरुद्ध करने अथवा प्रतिबंधित करने के लिये सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान करती है।
- इसके अलावा प्रकाशित न होने वाले कंटेंट की एक नकारात्मक सूची की व्यवस्था को कानून के तहत स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर युक्तियुक्त निर्बंधन के रूप में देखा जाएगा।
- लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमज़ोर करना: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) में प्रेस एवं मीडिया की स्वतंत्रता को परोक्ष रूप से मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया गया है। भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद भारत के सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- प्रथम प्रवर्तक की पहचान करने की चुनौती: ये नियम व्हाट्सएप और सिग्नल जैसे मैसेजिंग एप्स के लिये समस्या उत्पन्न करने वाले संदेशों के प्रवर्तकों की खोज करना अनिवार्य बनाते हैं।
- हालाँकि इस संबंध में एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि ये मैसेजिंग एप्स सरकार के इन नियमों का पालन किस तरह करेंगे, क्योंकि इनमें से अधिकांश एप संदेश हस्तांतरण के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्ट का दावा करते हैं।
आगे की राह
- हितधारकों के साथ विचार-विमर्श: एक श्वेत-पत्र के प्रकाशन के माध्यम से इन नियमों को लेकर की जा रही आलोचना का हल खोजने हेतु सभी हितधारकों के साथ नए सिरे से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
- इस श्वेत-पत्र में स्पष्ट रूप से ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के विनियमन के माध्यम से संबोधित की जाने वाली चुनौतियों और सार्थक जन परामर्श, जो केवल उद्योग तक सीमित न हो, को रेखांकित करना चाहिये।
- सांविधिक समर्थन: हितधारकों से वार्ता के बावजूद यदि नियमों को लागू करना आवश्यक माना जाता है तो इसे कानून के माध्यम से संसद में व्यापक विचार-विमर्श के बाद लागू किया जाना चाहिये, न कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत प्रदान की गईं कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हुए।
- डेटा सुरक्षा कानून: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सूचना साझा करने के लिये मजबूर करना आम नागरिकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि नागरिकों के पास किसी भी डेटा गोपनीयता कानून और उससे संबंधित जागरूकता का अभाव है।
- इस संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को तीव्रता के साथ पारित करने की आवश्यकता है।