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दिवस 52: गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) भारत का मुख्य आतंकवाद विरोधी कानून है, लेकिन यूएपीए का अक्सर दण्ड से मुक्ति के साथ घोर दुरुपयोग किया जा रहा है। चर्चा कीजिये।

31 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • यूएपीए को संक्षेप में समझाइये।
  • यूएपीए के महत्व की व्याख्या कीजिये।
  • यूएपीए से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष के साथ उत्तर समाप्त कीजिये।

मूल रूप से UAPA को वर्ष 1967 में लागू किया गया था। इसे वर्ष 2004 और वर्ष 2008 में आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में संशोधित किया गया था।

अगस्त 2019 में संसद ने कुछ आधारों पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये UAPA (संशोधन) बिल, 2019 को मंजूरी दी।

आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये यह सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से अलग होता है और इसके नियम सामान्य अपराधों के नियमों से अलग हैं। जहाँ अभियुक्तों के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कम कर दिया जाता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित एक आँकड़े के अनुसार, वर्ष 2016 एवं वर्ष 2019 के मध्य (जिस अवधि के लिये UAPA के आँकड़े प्रकाशित किये गए हैं। ) UAPA की विभिन्न धाराओं के तहत कुल 4,231 प्राथमिकी दर्ज की गईं, जिनमें से 112 मामलों में अपराध सिद्ध हुआ है।

UAPA के तहत लगातार आवेदन इंगित करता है कि भारत में अतीत में अन्य आतंकवाद विरोधी कानूनों जैसे पोटा (आतंकवाद रोकथाम अधिनियम) और टाडा (आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) की तरह इसका अक्सर दुरुपयोग किया जाता है।

UAPA से संबंधित मुद्दे

  • आतंकवादी गतिविधियों की अस्पष्ट परिभाषा: UAPA के तहत "आतंकवादी गतिविधि" की परिभाषा आतंकवाद का मुकाबला करते हुए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेष प्रतिवेदक द्वारा प्रचारित परिभाषा से काफी भिन्न है। किसी अपराध को "आतंकवादी कृत्य" कहने के लिये विशेष प्रतिवेदक के अनुसार, तीन तत्वों का एक साथ होना आवश्यक है:
    • आपराधिक कृत्य में उपयोग किये गए साधन घातक होने चाहिये;
    • कृत्य के पीछे की मंशा समाज के लोगों में भय पैदा करना या किसी सरकार या अंतर्राष्ट्रीय संगठन को कुछ करने या कुछ करने से परहेज करने के लिये मजबूर करना होना चाहिये; तथा
    • उद्देश्य एक वैचारिक लक्ष्य को आगे बढ़ाना होना चाहिये।
    • दूसरी ओर, UAPA "आतंकवादी गतिविधियों" की व्यापक और अस्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु या चोट लगना, किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आदि भी शामिल है।
  • जमानत से इनकार: UAPA के साथ बड़ी समस्या इसकी धारा 43 (D) (5) में निहित है। यदि पुलिस किसी व्यक्ति के लिये UAPA के अंतर्गत आरोप पत्र दायर करती है एवं यह मानने के लिये उचित आधार हैं कि प्रथम दृष्टया आरोप सत्य है तो व्यक्ति को जमानत मिलना मुश्किल होता है जबकि, जमानत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा और गारंटी है।
  • लंबित मुकदमे: भारत में न्याय वितरण प्रणाली की स्थिति को देखते हुए, लंबित मुकदमे की दर औसतन 95.5 प्रतिशत है।
    • इसका मतलब यह है कि हर साल 5 प्रतिशत से कम मामलों में मुकदमा पूरा चलाया जाता है, जिस कारण आरोपियों को लंबे समय तक कारावास में रहना पड़ता है।
  • स्टेट ओवररीच: इसमें "धमकी देने की भावना" या "लोगों में आतंक का डर पैदा करने" जैसा कोई भी कार्य शामिल है, जो सरकार को इन कृत्यों के आधार पर किसी भी सामान्य नागरिक या कार्यकर्त्ता को आतंकवादी साबित करने के लिये असीमित शक्ति प्रदान करता है।
    • यह राज्य प्राधिकरण को अप्रत्यक्ष रूप से उन व्यक्तियों को हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने की शक्ति देता है, जिनके बारे में यह मानता है कि वे आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे।
    • इस प्रकार राज्य खुद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में अधिक अधिकार देता है।
  • संघवाद के महत्त्व को कम आँकना: यह देखते हुए कि 'पुलिस' भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत राज्य का विषय है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघीय ढाँचे के खिलाफ है क्योंकि यह आतंकवाद के मामलों में राज्य पुलिस के अधिकार की उपेक्षा करता है।

'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' और राज्य द्वारा 'सुरक्षा प्रदान करने' के दायित्व के मध्य रेखा खींचना दुष्कर कार्य है। संवैधानिक स्वतंत्रता एवं आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध कार्रवाई संतुलन बनाना राज्य, न्यायपालिका एवं नागरिक समाज पर निर्भर है।