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17 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस 38: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड क्या है? इसके प्रमुख कारण और इसे रोकने के उपाय क्या हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की परिभाषा दीजिये और हाल के दिनों में भारत में GLOF के कुछ उदाहरण दीजिये।
- GLOF को रोकने के लिये कारण और NDMA के दिशानिर्देश लिखिये।
- GLOF को रोकने के लिये कुछ और उपाय सुझाते हुए निष्कर्ष निकालिये।
जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो यह जल, रेत, कंकड़ और बर्फ के अवशेषों से बने प्राकृतिक बाँध जैसी संरचना यानी ‘मोराइन’ में एकत्रित हो जाता है। यह ऐसी बाढ़ को संदर्भित करता है जिसमें ग्लेशियर या मोराइन (ग्लेशियर की सतह पर गिरी धूल और मिट्टी का जमाव) से पानी अचानक गिरता है। हाल के अध्ययनों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप लगातार बढ़ रहे गर्म तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसके कारण व्यापक पैमाने पर बाढ़ और विनाशकारी घटनाओं की संभावना में भी बढ़ोतरी हो रही है। उदाहरण के लिये वर्ष 2013 में केदारनाथ त्रासदी में एक बड़ी ग्लेशियल झील का फटना शामिल था। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तराखंड के चमोली ज़िले में आई हालिया बाढ़ के लिये ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) को एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
GLOF के कारण:
मिट्टी के बाँधों के विपरीत, ‘मोराइन’ बाँध की कमजोर संरचना के कारण ये प्रायः जल्दी टूट जाते हैं, जिससे निचले इलाकों में तेज़ी से बाढ़ आती है। बाँध की विफलता से कम अवधि में लाखों घन मीटर पानी छोड़ने की क्षमता है, जिससे नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है। इस तरह के आयोजनों में प्रति सेकंड 15,000 क्यूबिक मीटर तक का पीक फ्लो दर्ज किया गया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, हिंदू-कश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नई ग्लेशियल झीलों का निर्माण हो रहा है, जो कि ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) का प्रमुख कारण हैं। हिमालय में ग्लेशियर घटने के चरण में हैं, इसलिये ग्लेशियर निर्मित झीलें बढ़ रही हैं और डाउनस्ट्रीम बुनियादी ढाँचे और जीवन के लिये संभावित रूप से बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।
GLOF को रोकने हेतु NDMA दिशा-निर्देश:
- NDMA द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक, संभावित रूप से खतरनाक झीलों की पहचान और मैपिंग करके, उनके अचानक फटने या तबाही मचाने को रोकने के लिये संरचनात्मक उपाय करने तथा ऐसी आपात स्थिति में जीवन एवं संपत्ति के नुकसान को बचाने के लिये एक आवश्यक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
- संभावित खतरनाक झीलों की पहचान ज़मीनी दौरे, पूर्व की घटनाओं, झील/बाँध और आस-पास की भू-तकनीकी विशेषताओं तथा अन्य भौतिक स्थितियों के आधार पर संभावित खतरनाक झीलों की पहचान की जा सकती है।
- मानसून के महीनों के दौरान नई झील संरचनाओं समेत जल निकायों में आने वाले स्वतः परिवर्तनों का पता लगाने के लिये सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेज़री (एक प्रकार का रडार जो द्वि-आयामी छवियों के निर्माण में सहायता करता है) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। अंतरिक्ष से जल निकायों की निगरानी से संबंधित तंत्र और प्रोटोकॉल भी विकसित किया जा सकता है।
- संरचनात्मक रूप से झीलों का प्रबंधन करने के लिये, एनडीएमए पानी के आयतन को कम करने की सलाह देता है, जैसे कि नियंत्रित ब्रीचिंग, पंपिंग या साइफनिंग से पानी निकालना और मोराइन बाधा के माध्यम से या बर्फ के बाँध के नीचे सुरंग बनाना।
- 31 दिसंबर, 2014 को लद्दाख के कारगिल ज़िले में फुकताल (ज़ांस्कर नदी की सहायक नदी) के साथ एक भूस्खलन हुआ, जिससे 7 मई, 2015 को संभावित बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। NDMA ने एक विशेषज्ञ टास्क फोर्स बनाया, जिसने सेना के साथ विस्फोटकों का इस्तेमाल नियंत्रित विस्फोट और मलबे की मैन्युअल खुदाई का उपयोग करके नदी से पानी निकालने के लिये किया।
आगे की राह
- हिमालयी क्षेत्र में फ्लैश फ्लड की बढ़ती आवृत्ति को देखते हुए मज़बूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, अवसंरचना विकास, निर्माण और संवेदनशील क्षेत्रों में खुदाई के लिये एक व्यापक रूपरेखा विकसित की जानी चाहिये।
- भारत में उत्खनन, निर्माण और ग्रेडिंग कोड के लिये कोई समान कोड नहीं हैं। GLOF/LLOF प्रवण क्षेत्रों में निर्माण और विकास को प्रतिबंधित करना, बिना किसी लागत के जोखिम को कम करने का एक बहुत ही कुशल साधन है।
- किसी भी उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में आवास का निर्माण निषिद्ध होना चाहिये। मध्यम खतरे वाले क्षेत्र में नए बुनियादी ढाँचे के साथ विशिष्ट सुरक्षा उपाय करने होंगे।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि उपयोग नियोजन के लिये प्रक्रियाओं को मान्यता दिये जाने की आवश्यकता है। ऐसे नियमों को विकसित करने की ज़रूरत है। डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे और बस्तियों के निर्माण से पहले उसके दौरान और बाद में निगरानी प्रणाली होनी चाहिये।