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दिवस 32भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी क्या है? इस बात पर चर्चा कीजिये कि स्थिति स्थापक भारत के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी क्यों आवश्यक है। (250 शब्द)

11 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी को परिभाषित कीजिये।
  • संसाधन प्रबंधन, समस्या समाधान आदि के विभिन्न क्षेत्रों में भारत के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी क्यों आवश्यक है, इसके कारण लिखिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

उत्तर:

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी पृथ्वी और मानव समाजों के भौगोलिक मानचित्रण और विश्लेषण में योगदान देने वाले आधुनिक उपकरणों की श्रेणी का वर्णन करती है। 'भू-स्थानिक' उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो भौगोलिक जानकारी एकत्र करने, विश्लेषित करने, संग्रहीत करने, प्रबंधित करने, वितरित करने, एकीकृत करने और प्रस्तुत करने में मदद करते हैं।

भू-स्थानिक तकनीक के अंतर्गत भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS), वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (GPS) तथा भौगोलिक मानचित्रण और विश्लेषण के लिये रिमोट सेंसिंग जैसे तंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जो बेहतर माप, प्रबंधन तथा परिसंपत्तियों के रखरखाव, संसाधनों की निगरानी करने में सक्षम बनता है, साथ ही पूर्वानुमान तथा निर्देशात्मक विश्लेषण प्रदान करता है जिससे पूर्वानुमान लगाया जा सके और नियोजित हस्तक्षेप किया जा सके।

भू-स्थानिक अवसंरचना:

भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र में एक सुदृढ़ पारितंत्र मौजूद है जहाँ विशेष रूप से भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India- SoI), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO), रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (RSACs) एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) और सभी मंत्रालयों एवं विभाग सामान्य रूप से भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।

भारत के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, शिक्षा, शासन आदि जैसी आज की कई समस्याओं को हल करने में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के कई महत्त्व हैं।

  • जलवायु परिवर्तन एवं आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं को कम करने, निगरानी रखने और सटीक प्रतिक्रिया देने के लिये GIS प्रौद्योगिकियों ने बहु-अनुशासनात्मक विषयों को साथ लाकर स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने तथा कार्रवाई योग्य जानकारी प्रदान करने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भू-प्रेक्षण क्षमताएँ: भारत ने वर्ष 2020 में अपनी इच्छित कक्षा में EOS-01 (पूर्व में RISAT-2BR2) को इंजेक्ट करके सफल पृथ्वी अवलोकन उपग्रह प्रक्षेपण की अपनी परंपरा को जारी रखा। सिंथेटिक अपर्चर राडार (SAR) जो डाटा प्रदान करता है उसकी अनूठी विशेषताओं की मदद से आने वाले समय में वानिकी, कृषि और आपदा प्रबंधन अनुप्रयोगों को बड़ा बढ़ावा मिलेगा।
  • प्रशासन: देश और उसके नागरिकों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने पर केंद्रित एक प्रमुख सुधार अभियान 'आत्मनिर्भर भारत’ वर्ष 2020 में शुरू किया गया था। इन पहलों की सफलता में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की प्रमुख भूमिका है।
  • स्वास्थ्य सेवा: महामारी से निपटने के लिये स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भू-स्थानिक उपकरणों और डैशबोर्ड के उपयोग में तेज़ी से वृद्धि हुई। यह कोविड-19 स्थिति की निगरानी के साथ शुरू हुआ और तेजी से संचार, नियंत्रण, कीटाणुशोधन क्षेत्र, प्रवासी सहायता, में विस्तारित हुआ। "राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन" वर्ष 2020 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा के लिये बुनियादी डिजिटल ढाँचा तैयार करना था और भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ इसकी सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।
  • भूमि एवं वन संसाधन प्रबंधन: हालाँकि GIS प्रौद्योगिकियों का उपयोग शहरी विकास तथा नियोजन के लिये विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर जारी है, ग्रामीण सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों के संशोधित मानचित्रण की योजना (SVAMITVA) को वर्ष 2020 में लांच किया गया था जिसका उद्देश्य सर्वेक्षण के बुनियादी ढाँचे को तैयार करना, GIS मानचित्र एवं ग्रामीण नियोजन के लिये सटीक भूमि रिकार्ड्स उपलब्ध कराना है। वन विभाग ने GIS प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना जारी रखा जिससे वन क्षेत्र का मानचित्रण कर तथा कार्बन स्टॉक मूल्यांकन कर देश भर में आवश्यक संरक्षण और बहाली के प्रयासों को मजबूत किया जा सके।
  • सामाजिक क्षेत्र: शिक्षा, आजीविका, वित्तीय समावेशन, पर्यावरण, पारिस्थितिकी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन आदि सहित जटिल सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिये सामाजिक क्षेत्र द्वारा भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और उपकरणों को अपनाना वर्ष 2020 में उत्साहजनक था। भारत में उनके द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के साथ संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने की दिशा में प्रयास, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को अपनाना एक बहुत ही सकारात्मक कदम है।
  • जल संसाधन प्रबंधन: जल शक्ति मंत्रालय और राज्य सरकारों ने राष्ट्र की जल सुरक्षा को मज़बूत करने के उद्देश्य से एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के लिये पहल शुरू की है, जिसमे भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ प्रमुख घटक के रूप में है।
  • भू-स्थानिक बुनियादी ढाँचे को अब व्यापक रूप से क्षेत्रीय विकास और आर्थिक विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में स्वीकार किया जाता है। सरकारें और उद्यम आज रणनीतिक प्राथमिकताओं का समर्थन करने, निर्णय लेने और परिणामों की निगरानी के लिये स्थान-आधारित जानकारी पर भरोसा करते हैं। निस्संदेह, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर भारत को ले जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैै।
  • राष्ट्र के लचीलेपन के लिये जीआईएस: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ एकीकृत-सिस्टम-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में एक अनूठा लाभ प्रदान करती हैं तथा और सभी स्तर (स्थानीय, क्षेत्रीय और विश्व) पर, जो एक राष्ट्र के लचीलेपन के लिये महत्वपूर्ण हैं, की सहज समझ प्रदान करती है।
  • स्वास्थ्य देखभाल और COVID-19 टीकाकरण: महामारी का डर अभी खत्म नहीं हुआ है और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की आवश्यकता प्राथमिकता बनी हुई है। जीआईएस प्रौद्योगिकियां वैक्सीन वितरण और प्रशासन की योजना, संचालन एवं प्रबंधन में सरकारों की मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

भू-स्थानिक अवसंरचना घटकों में से प्रत्येक अर्थात् संस्थागत, ज्ञान, प्रौद्योगिकी, मानव और अंतिम मील - की एक महत्वपूर्ण भूमिका है और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिये इसे सामंजस्यपूर्ण तरीके से मज़बूत करने की त्वरित आवश्यकता है।