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  • 11 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    दिवस 1: लैंगिक रूढ़िवादिता समाज में पुरुषों की सामाजिक स्थिति को कैसे प्रभावित करती है? (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • लैंगिक रूढ़िवादिता शब्द की व्याख्या कीजिये।
    • लैंगिक रूढ़िवादिता का समाज में पुरुषों पर विभिन्न प्रभावों तथा उनके समक्ष चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
    • एक लैंगिक न्यायसंगत समाज के लिये समग्र रूप से लैंगिक रूढ़िवादिता को समाप्त करने हेतु सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    लैंगिक रूढ़िवादिता एक अनुचित विचार है जो ऐसी सामान्यीकृत दृष्टिकोण या विशेषताओं को संदर्भित करता है जो महिलाओं और पुरुषों के पास होना चाहिए। लैंगिक रूढ़िवादिता हानिकारक होती है, यह महिलाओं और पुरुषों की व्यक्तिगत क्षमताओं को विकसित करने, उनके पेशेवर जीवन को आगे बढ़ाने अथवा उनकी चुनाव करने की उनकी क्षमता को सीमित करती है।

    लैंगिक रूढ़िवादिता के कारण समाज में पुरुषों पर बहुत से नकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं:

    पुरुषों पर प्रभाव:

    • सामान्य तौर पर पुरुषों की सामाजिक स्थिति को कमाने वाले के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इसने परिवार जैसी संस्था में एक आश्रित पदानुक्रम का निर्माण किया। इसने एक ब्रेडविनर मॉडल बनाया है, जो परिवार का एक प्रतिमान है तथा जिसमें परिवार कमाने वाले सदस्य पर आश्रित होता है।
    • इस स्टीरियोटाइप ने विषाक्त पुरुषत्व को बढ़ावा दिया है जो पुरुषों की भावनाओं को सीमित करता है, इसके परिणामस्वरूप पुरुष बहुत सी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि क्रोध जैसी अन्य भावनाओं की अभिव्यक्ति तीव्र हो जाती हैं। यह आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अपेक्षाओं द्वारा चिह्नित है।
    • गुलाबी नौकरियों जैसी अवधारणाओं के कारण ही विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों का मानव विकास सीमित हो गया है और उन धाराओं का वैज्ञानिक विकास भी बाधित हो गया है। जैसे, फ्लाइट अटेंडेंट आदि।
    • न्यायिक-कानूनी मोर्चे पर पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा जैसे कृत्यों के उपचार के लिये कानूनी प्रावधानों की कमी प्रतीत होती है, शायद इसलिये कि नीति निर्माताओं का सोचना था कि पुरुषों पर केवल आरोप लगाया जा सकता है, वे पीड़ित नहीं।
    • पंजाब में हाल ही में वित्तीय और भावनात्मक ठगी के कारण युवाओं द्वारा आत्महत्या की घटनाएँ "रिवर्स दहेज" और "संविदात्मक विवाह" के मामलों में कानूनी उपायों की अनुपस्थिति का परिणाम हैं।
    • समाज में पुरुषों के खिलाफ रूढ़िबद्धता न केवल उनके हितों को नुकसान पहुँचाती है, बल्कि अन्य लिंगों के खिलाफ हिंसा और रूढ़िवादिता को भी मज़बूत करती है, क्योंकि यह कभी-कभी पुरुषों को छद्म-विशेषाधिकार प्राप्त पदों पर रखती है।

    पुरुषों के खिलाफ रूढ़ियों को खत्म करने और एक लैंगिक-न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

    • दो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों में हानिकारक रूढ़िवादिता और गलत रूढ़िबद्धता से संबंधित स्पष्ट दायित्व शामिल हैं जिसमें पुरुषों के खिलाफ रूढ़िवादिता का निषेध भी शामिल है।
    • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभावों के उन्मूलन पर कन्वेंशन: अनुच्छेद 5: राज्यों की पार्टियाँ पूर्वाग्रहों और प्रथागत तथा सभी भेदभावों को समाप्त करने की दृष्टि से पुरुषों एवं महिलाओं के आचरण के सामाजिक व सांस्कृतिक पैटर्न को संशोधित करने के लिये सभी उचित उपाय करेंगी। अन्य प्रथाएँ जो किसी भी लिंग की हीनता या श्रेष्ठता के विचार पर या पुरुषों एवं महिलाओं के लिये रूढ़िवादी भूमिकाओं पर आधारित हैं;
    • विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन: अनुच्छेद 8 (1) (बी): राज्यों की पार्टियाँ विकलांग व्यक्तियों से संबंधित रूढ़ियों, पूर्वाग्रहों और हानिकारक प्रथाओं का मुकाबला करने के लिये तत्काल, प्रभावी एवं उचित उपाय अपनाने का वचन देती हैं, जिसमें लिंग तथा उम्र संबंधी आधार भी शामिल हैं।
    • भारत सरकार द्वारा की गई पहल: केंद्र सरकार ने बाल यौन शोषण अपराध संबंधी कानून को कठोर बनाते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण नियम- पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Rules- POCSO), 2020 को अधिसूचित किया है। इसमें किये गए नए संशोधनों के तहत बाल उत्पीड़न से संबंधित प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया है। यह लिंग-तटस्थ अधिनियम है
    • विभिन्न अपराधों के लिये दंड बढ़ाने का प्रावधान करने हेतु अधिनियम 2019 में संशोधित किया गया था ताकि अपराधियों (लिंग की परवाह किये बिना) को रोका जा सके और एक बच्चे के लिये सुरक्षा, सुरक्षित और सम्मानजनक बचपन सुनिश्चित किया जा सके।

    हमारे समाज में एक लिंग द्वारा दूसरे के प्रति भेदभाव और हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है, इसलिये हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिये जहाँ बिना किसी लैंगिक भेदभाव सभी के हितों और चिंताओं को समान रूप से और समानुपातिक आधार पर महत्त्व दिया जाए। आने वाली पीढ़ियों के लिये एक बेहतर समाज बनाने हेतु हमें सीमाओं एवं रूढ़ियों से परे सोचना होगा ताकि हम सभी के लिये लैंगिक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें।

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