प्रश्न 1. (a) मुक्तिपरक (जीवनरक्षक) नैतिकता क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
(b) मूल्य क्या हैं? शासन में मूल्यों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (150 शब्द)
प्रश्न 2. (a) सैन्य सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से जुड़ी नैतिक चिंताएँ क्या हैं? (150 शब्द)
(b) भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के आलोक में क्या आप इसकी अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता में बदलाव को देखते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिये। (150 शब्द)
(c) ई-नागरिक घोषणा-पत्र क्या है? साथ ही यह भी वर्णित कीजिये कि प्रगति प्लेटफॉर्म एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र के निर्माण में कैसे सहायता कर सकता है? (150 शब्द)
प्रश्न 3. (a) किस प्रकार निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी लोक सेवाओं में तटस्थता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)
(b) एक लोक सेवक को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिये। उन अवांछनीय नकारात्मक भावनाओं की चर्चा कीजिये जिनसे उसे बचना चाहिये। (150 शब्द)
प्रश्न 4. (a) शासन में भ्रष्टाचार पर कौटिल्य के दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये। ये अवधारणाएँ आज भी भारतीय संस्कृति में कितनी प्रासंगिक हैं? (150 शब्द)
(b) महात्मा गांधी के ग्यारह व्रत आज के समाज के लिये कैसे प्रासंगिक हैं? (150 शब्द)
प्रश्न 5. (a) कुछ व्यक्तियों की राय है कि समय और विभिन्न परिस्थितियों के साथ मूल्य बदलते हैं जबकि कुछ अन्य दृढ़ता से मानते हैं कि कुछ मानवीय मूल्य हैं जो सार्वभौमिक और अपरिवर्तनीय दोनों हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (150 words)
(b) प्रभावी नेतृत्त्व के लिये सत्ता की साझेदारी और सहभागितापूर्ण निर्णय लेना आवश्यक है। अपने उत्तर के समर्थन में प्रासंगिक उदाहरण दीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 6. (a) आज की जटिल दुनिया में एक प्रशासक के लिये भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका का परीक्षण कीजिये। उदाहरण के साथ उन प्रमुख विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिये जिन्हें एक भावनात्मक रूप से बुद्धिमान प्रशासक द्वारा आत्मसात की जानी चाहिये। (250 शब्द)
(b) विकास की मांगों और जलवायु न्याय की आवश्यकताओं को संतुलित किया जाना चाहिये। इस दृष्टिकोण से जलवायु न्याय के समकालीन महत्त्व की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 7. एबीसी लिमिटेड एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी है जो विशाल शेयरधारक आधार के साथ विविध व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न है। कंपनी लगातार विस्तार कर रही है और रोज़गार का सृजन कर रही है। कंपनी अपने विस्तार और विविधीकरण कार्यक्रम के तहत विकासपुरी में एक नया संयंत्र स्थापित करने का निर्णय लेती है, जो अविकसित क्षेत्र है। नए संयंत्र को ऊर्जा-कुशल तकनीक का उपयोग करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो कंपनी को उत्पादन लागत में 20% तक बचाने में मदद करेगा। इस तरह के अविकसित क्षेत्रों को विकसित करने के लिये निवेश आकर्षित करने की सरकार की नीति के साथ कंपनी का निर्णय पूर्णतः उचित है। सरकार ने अविकसित क्षेत्रों में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये पाँच साल तक कर अवकाश (टैक्स हॉलिडे) की भी घोषणा की है। हालाँकि नया संयंत्र विकासपुरी क्षेत्र के निवासियों के जीवन में हलचल ला सकता है, जो अन्यथा शांत है। नया संयंत्र लगने से रहने की लागत में वृद्धि हो सकती है तथा अन्य क्षेत्रों से पलायन करके लोग वहाँ आकर सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। संभावित विरोध को भांपते हुए कंपनी ने विकासपुरी क्षेत्र के लोगों और आम जनता को यह बताने की कोशिश की कि कैसे उसकी कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) नीति वहाँ के निवासियों की संभावित कठिनाइयों को दूर करने में मदद करेगी। इसके बावजूद विरोध शुरू हो जाता है और कुछ निवासियों ने मामला न्यायपालिका में ले जाने का फैसला किया क्योंकि सरकार को याचिका देने का कोई परिणाम नहीं निकला। (2016)
(क) मामले में शामिल मुद्दों की पहचान करें।
(ख) कंपनी के लक्ष्य को पूरा करने और निवासियों की चिंता को दूर करने के लिये क्या सुझाव दिया जा सकता है?
प्रश्न 8. एक दिये गए परिदृश्य में सैन्य दल को एक आतंकवादी सेल का पता चलता है, जो एक हमले की तैयारी कर रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों के मारे जाने की आशंका है। सैन्य दल द्वारा हमले को रोकने के लिये एक ड्रोन की मदद से आतंकवादियों पर बम गिराने की योजना बनाई जाती है। जैसे ही टीम बम गिराने वाली होती है तो उनके कैमरों द्वारा ब्लास्ट वाली जगह पर ब्रेड बेचने वाली एक छोटी लड़की को देखा जाता है। क्या उन्हें कई अन्य लोगों को मृत्यु से बचाने हेतु लड़की को नज़रंदाज़ करते हुए अपने मिशन को अंज़ाम देना चाहिये?
(क) फायदे और नुकसान के साथ सैन्य दल के लिये उपलब्ध विकल्पों का परीक्षण कीजिये।
(ख) इस स्थिति में सैन्य दल प्रमुख के रूप में, आप किस कार्यवाही को अपनाएंगे? (250 शब्द)
प्रश्न 9. एक युवा महिला IAS अधिकारी को एक सरकारी विभाग में नियुक्त किया गया है तथा इस महिला अधिकारी को कार्य के दौरान बड़े पैमाने पर लैंगिक पूर्वाग्रह का एहसास होता है। पुरुष कर्मचारी न तो वरिष्ठ महिला अधिकारियों से आदेश लेना चाहते हैं और न ही महिला अधिकारियों को गंभीर/महत्त्वपूर्ण विभागीय परियोजनाओं में शामिल किया जाता हैं। महिलाओं हेतु कार्य संस्कृति को अनुकूल बनाने एवं इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने हेतु युवा IAS अधिकारी द्वारा उठाए जाने योग्य कदम बताइये।
प्रश्न 10. आप एक कानूनी फर्म में भागीदार हैं। आपकी फर्म के ग्राहकों में एक उच्च सामाजिक ख्याति का व्यक्ति है और उसका व्यवसाय समृद्धशाली है। यह ग्राहक आपकी फर्म से पिछले पाँच वर्षों से जुड़ा है। लेकिन अब यह ग्राहक भारत की सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी का भागीदार घोषित किया गया है। ग्राहक फरार है और यह माना जा रहा है कि वह एक ऐसे देश में भाग गया है जो केवल पर्याप्त दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने पर ही उसे प्रत्यर्पित कर सकता है। इस मामले में जाँच एजेंसियों ने आपकी फर्म पर छापा मारा है और ऐसे दस्तावेज़ प्राप्त किये हैं जो ग्राहक के अपराधी होने का संकेत देते हैं। परंतु आप जानते हैं कि अभी भी फर्म के पास बहुत सी ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो ग्राहक का अपराध सिद्ध करने के लिये अति महत्त्वपूर्ण हैं। आपको अहसास है कि उस ग्राहक को गिरफ्तार करना और उसे न्याय हेतु प्रस्तुत करना देश हित में होगा। ऐसी परिस्थितियाँ सामने आने पर आप क्या करेंगे? विभिन्न हितों के संघर्ष का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और देश का एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों की व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 11. महीनों पहले संसद ने भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने के उद्देश्य से एक विधेयक पारित किया था। कई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा इसका आने वाले वर्षों में उच्च आर्थिक विकास के वाहक और एक प्रगतिशील कदम के रूप में स्वागत किया जाता है। दुर्भाग्य से, कुछ संसदीय प्रक्रियाओं को दरकिनार करने और प्रभावित लोगों के लिये सुधारों की संभावनाओं को संप्रेषित करने में राजनीतिक कार्यपालिका की विफलता के कारण, सशंकित नागरिकों ने सुधारों को वापस लेने की मांग करते हुए शांतिपूर्ण विरोध शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों की व्यापक पैमाने पर भागीदारी और प्रतिबद्धता ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। हाल ही में, पश्चिमी देशों की कई मशहूर हस्तियों और कार्यकर्त्ताओं ने इस मुद्दे को उठाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का सहारा लिया। जिस समन्वित तरीके से सोशल मीडिया पोस्ट उभरे हैं, उससे सरकार को उन अराजक तत्त्वों की भागीदारी पर संदेह हुआ है जो गलत सूचना का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश कर रहे हैं। एक जुझारू कदम के तहत, सरकार ने आधिकारिक तौर पर इन सूचनाओं को ‘प्रेरित’ और ‘गलत’ बताया है। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की सूचनाएँ भारतीय हस्तियों के सोशल मीडिया पोस्ट से भी सामने आई, जिन्होंने पुष्टि की कि ये घरेलू मुद्दे हैं और उन्हें दोषपूर्ण प्रचार से मुक्त होना चाहिये। कई लोगों ने इस संभावना को भी इंगित किया है कि ये पोस्ट सरकार के इशारे पर लिखे गए थे।
(क) उपर्युक्त मामले में शामिल नैतिक मुद्दों की पहचान और चर्चा कीजिये।
(ख) सरकार द्वारा स्थिति से निपटने के लिये वैकल्पिक उपाय सुझाइये। (250 शब्द)
प्रश्न 12. आप एक ईमानदार पुलिस अधिकारी हैं, जिसकी साइबर इंटेलिजेंस में विशेषज्ञता है। अपने उत्कृष्ट कार्यकाल (कैरियर) के दौरान आपने कई आपराधिक नेटवर्कों का पर्दाफाश किया, ऑनलाइन आंतकी गतिविधियों को ट्रैक किया तथा अवैध वित्तीय नेटवर्क का पर्दाफाश किया है। आपकी नियुक्ति स्नूपिंग, जासूसी, हैकिंग एवं लक्षित सिस्टम पर मालवेयर के हमले पर विशेषज्ञता के साथ साइबर विशेषज्ञ के रूप में हुई है। अपने क्षेत्र में सफलताओं की एक श्रृंखला के साथ आप अपने सरकारी समूह में प्रसिद्ध हो गए हैं। आपके विभाग प्रमुख की रिटायरमेंट पार्टी पर एक मंत्री के निजी सहायक आपके पास आते हैं तथा आपको मंत्री के साथ एक व्यक्तिगत मीटिंग हेतु आमंत्रित करते हैं। मंत्री के साथ हुई मीटिंग में मंत्री आपको हाल में हुई एडवांस एयरक्राफ्ट खरीद के संबंधों में जानकारी देते हैं जिसमें पारदर्शिता की कमी होने के कारण विपक्ष द्वारा इसे चुनौती दी जा रही है। मंत्री आपसे कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं के व्यक्तिगत चैट और ईमेल प्राप्त करने के लिये कहता है जिससे उनके पूर्व भ्रष्टाचारों का पता लगाया जा सके और उन पर उनके खुद के बचाव का दबाव बनाया जा सके जिससे रक्षा सौदे पर कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी। आप व्यक्तिगत रूप से महसूस करते हैं कि यह सौदा भारत के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा हेतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
(क) इस परिस्थिति में क्या आप मंत्री के प्रस्ताव से सहमत होंगे?
(ख) क्या आपको लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की जासूसी करना एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायोचित है? (250 शब्द)
(a)
हल करने का दृष्टिकोण:
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देशों के बीच सहयोग एवं खुलेपन से कैसे सभी को लाभ हो सकता है, इसको बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
जीवनरक्षक नैतिकता वर्ष 1974 में प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी गैरेट हार्डिन द्वारा प्रस्तावित संसाधनों के वितरण के समतुल्य है। हार्डिग के अनुसार, प्रत्येक देश एक जीवन नौका के समान है जो कि विशिष्ट वहन क्षमता रखते हैं और अन्य व्यक्तियों को भी वहन करने की क्षमता रखते हैं। किंतु इससे उस देश के मूल निवासियों के लिये आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता में बाधा उत्पन्न हो सकती है। किंतु वर्तमान परिदृश्य में विकसित एवं विशेषाधिकार प्राप्त देश गरीब देशों एवं इनके प्रवासियों को सहायता प्रदान नहीं करना चाहते ऐसा शायद इसलिये कि उनमें इनके पीड़ित व्यक्तियों के प्रति कोई कर्त्तव्य-बोध नहीं होता और यह कृत्य उनके अपने नागरिकों के लिये संसाधनों की उपलब्धता को और तनावपूर्ण बना सकता है।
हाल के दिनों में विकसित देशों में तीव्र प्रवासी विरोधी प्रवृत्तियाँ देखी जा रही हैं। युद्धग्रस्त देशों जैसे कि सीरिया, इराक, लीबिया तथा यमन जैसे देशों से आए शरणार्थियों को कई यूरोपीय देशों ने प्रवेश नहीं दिया। यहाँ तक कि भारत ने शरणार्थी सहिष्णु होने के बावजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को सहर्ष स्वीकार नहीं किया है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक नियंत्रणकारी आव्रजन नीति का शुभारंभ किया है जिसमें मध्य अमेरिकी देशों में अशांति तथा गरीबी से क्षुब्ध होकर अमेरिका आने वाले लोगों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। उपर्युक्त सभी कार्यवाहियाँ मानवता की दृष्टि से अनैतिक प्रतीत होती हैं किंतु यदि जीवनरक्षक नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो ये कृत्य पूर्णत: उचित प्रतीत होते हैं।
विज्ञान-प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास एवं शासन में मानवीय प्रगति सभी देशों में जीवनस्तर को सुधारने में विफल रही हैं। विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अविकसित एवं विफल राष्ट्रों में रह रहा है जहाँ वे गरीबी, जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों एवं गृहयुद्धों से जूझ रहे हैं इन प्रभावित लोगों को त्वरित सहायता और शरण दिए जाने की आवश्यकता है। एक जीवनरक्षक नैतिकता का पोषक यह कह सकता है कि देशों को संसाधनों की सीमितता की स्थिति में केवल अपने ही नागरिकों का ध्यान रखना चाहिये।
उपर्युक्त तर्क दो आधारों पर त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है, हालाँकि संसाधन सीमित हैं, परंतु वास्तविक समस्या उनके असमान वितरण में है। दूसरा सहायता एवं शरण के आकांक्षी ऐसा अपने स्वयं के कृत्यों से नहीं कर रहे हैं। विकसित देशों द्वारा इन देशों का शोषण विभिन्न तरीकों जैसे उपनिवेश बनाकर, अपने भू-राजनीतिक हितों के लिये इनकी आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर तथा अपने विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिये जलवायु में तीव्रता से परिवर्तन आदि कर रहे हैं।
जीवनरक्षक नैतिकता राष्ट्र-राज्यों को अभेद्य संस्थाओं के रूप में निर्दिष्ट करती है जहाँ बाह्य परिवर्तनों के प्रति संवेदनहीनता व्याप्त होती है। वस्तुत: जहाँ विश्व कई देशों में विभक्त है वहाँ मानवता हम सबको एकजुट करती है। वैश्विक स्तर पर ‘कॉमंस’ एवं गरीबी कहीं भी हो वह हम सभी की समृद्धि के लिये खतरा है। विश्व के देश एक-दूसरे की सहायता के मूल्य से बच नहीं सकते। संसाधन-संपन्न एवं सशक्त देश शरणार्थियों की सहायता कर अपनी सॉफ्टपावर व सामासिक संस्कृति को बढ़ा सकते हैं एवं प्रवासियों के कौशल का प्रयोग अपनी आर्थिक समृद्धि के लिये कर सकते हैं।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण:
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मूल्य वे मूलभूत मान्यताएँ हैं, जो व्यक्ति के दृष्टिकोण, कार्यों और व्यवहारों का मार्गदर्शन करते हैं। मूल्य, आदर्श व्यवहार का एक चिरस्थायी भाव है। वह हमें यह निर्धारित करने में मदद करते हैं कि हमारे लिये क्या महत्त्वपूर्ण है? मूल्य द्वारा उन व्यक्तिगत गुणों को वर्णित किया जा सकता है, जिन्हें हम अपने कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिये चुनते हैं। जिस तरह का व्यक्ति हम होना चाहते हैं या अपने आपको, दूसरों को और हमारे आसपास के लोगों को हम जिस प्रकार देखना चाहते हैं उसमें मूल्य हमारी सहायता करते हैं।
मूल्यों, नीतियों और संस्थाओं की व्यवस्था, जिनके द्वारा एक समाज अपने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मामलों का प्रबंधन राज्य के भीतर और नागरिक समाज एवं निजी क्षेत्र के बीच बातचीत के माध्यम से करता है, को शासन कहा जाता है।
अखंडता, तटस्थता, ज़िम्मेदारी, विश्वसनीयता, निष्पक्षता, गोपनीयता, सार्वजनिक सेवाओं के प्रति समर्पण, पारदर्शिता और दक्षता जैसे मूल्य प्रशासन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं और कानून, स्थिरता, समता और समावेशिता व सशक्तीकरण के साथ सभी के लिये व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
निम्नलिखित मूल्यों का किसी भी समाज के सामाजिक ढाँचे पर बड़ा प्रभाव पड़ता है:
इस प्रकार मूल्य मार्गदर्शक की भाँति कार्य करते हैं। ये उन नैतिक आचरणों को पुर्नर्स्थापित करते हैं जो कि सुशासन हेतु आवश्यक हैं। मूल्य संस्थागत सहयोग के बिना कमज़ोर होते जाते हैं और अंतत: समाप्त हो जाते हैं। उच्च मूल्यों वाले संस्थानों की कार्य-दक्षता बढ़ जाती है। अंतत: मूल्य, जनता के प्रति सेवा भावना व प्रशासनिक प्रतिबद्धता को मज़बूत करते हैं, सुशासन हेतु आवश्यक होते हैं।
(a)
हल करने का दृष्टिकोण:
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आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये ए.आई. का तर्कसंगत उपयोग प्रगतिशील साबित हो सकता है, हालाँकि नैतिक सिद्धांत और सही आचरण को आत्मसात करने की आवश्यकता है क्योंकि महात्मा गांधी ने कहा था कि कोई भी 'मानवता के बिना विज्ञान' पाप है और हमें सैन्य सुरक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अंधाधुंध उपयोग के पहले इन शब्दों को ध्यान में रखना चाहिये।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण:
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भारत की गुटनिरपेक्ष नीति इस विचार पर आधारित थी कि एक देश को अपनी विदेश नीति के लिये स्वतंत्र होना चाहिये, जो किसी अन्य देश के अधीन नहीं होनी चाहिये। अतः इसने आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और राज्यों की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता एवं बहुपक्षीय सैन्य समझौतों का पालन न करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
यह 'पंचशील' सिद्धांतों पर आधारित थीा:
भारतीय विदेश नीति में 'नैतिक आदर्शवाद':
निम्नलिखित कारक भारत की अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता में बदलाव का संकेत देते हैं:
अपनी विदेश नीति में बदलाव के बाद भी भारत के मूल्य अभी भी बरकरार है जिसे अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण संक्रमण के समर्थन में देखा जा सकता है और सैन्य प्रभुत्व पर निर्भरता के बजाय लोगों से लोगों के बीच संपर्क पर इसका ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
(c)
हल करने का दृष्टिकोण
|
उत्तर:
ई-नागरिक घोषणा-पत्र ई-गवर्नेंस का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जो कि एक ऐसा ई-दस्तावेज़ है जो किसी संगठन के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं, उनके गैर-भेदभावपूर्ण वितरण, पहुँच, शिकायत निवारण तंत्र, उत्तरदायित्व तथा पारदर्शिता के संबंध में नागरिक-केंद्रित प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है, इसके अंतर्गत संगठन द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये नागरिकों से संबंधित अपेक्षाओं को शामिल करता है।
ई-नागरिक घोषणा-पत्र के छ: मूल सिद्धांत हैं-
गुणवत्ता: सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।
चुनाव: जहाँ तक संभव हो चुनने का अधिकार।
मानक: सेवा के मानकों को पूरा करना।
कीमत: करदातों के पैसों की।
जवाबदेही: व्यक्तियों एवं संगठनों के प्रति।
पारदर्शिता: शिकायत निवारण के लिये नियमों एवं प्रक्रियाओं का पालन।
ई-नागरिक घोषणा-पत्र के प्रमुख घटकों को निम्नवत् देखा जा सकता है-
प्रगति (PRAGATI) एप्लिकेशन
प्रगति का पूरा नाम प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एवं टाइमली इंप्लीमेंटेशन है जिसका उद्देश्य सतर्क प्रशासन एवं समयानुकूल संस्कृति को प्रारंभ करना है। यह प्रमुख हितधारकों को रियल टाइम पर ई-पारदर्शिता एवं ई-जवाबदेही उपलब्ध कराती है।
प्रगति प्लेटफॉर्म निम्नलिखित रूप में प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र के रूप में कार्य करता है-
नागरिक घोषणा-पत्र कानूनों के उचित क्रियान्वयन तथा सेवा वितरण के लिये एक मज़बूत संस्थागत तंत्र उपलब्ध कराता है। प्रगति जैसे प्लेटफॉर्म निश्चित रूप से प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएंगे तथा लालफीताशाही एवं भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति में कमी लाने हेतु प्रभावी समाधान उपलब्ध कराएंगे।
(a)
हल करने का दृष्टिकोण:
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एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वजनिक कार्यालयों का प्रत्येक धारक जनता के प्रति जवाबदेह होता है। जवाबदेही का प्रत्यारोपण आचार संहिता के माध्यम से किया जाता है, जो अंतत: सार्वजनिक रूप में सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता को सुधारता है। निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी नैतिकता के दो प्रमुख आयाम हैं, जो कि लोक सेवा में एक तटस्थ दृष्टिकोण के विकास में सहायक होते हैं। तटस्थता को किसी भी लाभ अथवा व्यक्तिगत फायदे के प्रति उदासीनता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है तथा निष्पक्षता एक पक्षपातविहीन दृष्टिकोण है, जिसमें अमीर-गरीब, जाति-धर्म के सामाजिक दबाव आदि से तटस्थ रहकर कार्य किया जाता है। वहीं गैर-तरफदारी किसी विशेष विचारधारा अथवा राजनीतिक दलों के प्रति झुकाव या संबद्धता की अनुपस्थिति की द्योतक है।
निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी सभी के लिये सुशासन की अवधारणा के प्रवर्तन हेतु एक तंत्र का निर्माण करते हैं। हालाँकि, भारत जैसे जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक लोक सेवक का वस्तुनिष्ठ व निष्पक्ष होना अत्यधिक मुश्किल कार्य है। ऐसी स्थिति में निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करते हैं तथा समाज को सर्वोत्तम सेवाएँ देने में सहायक होते हैं। ये मूल्य लोक सेवकों के लिये विभिन्न व्यवस्थाओं या पार्टियों के साथ बिना किसी संघर्ष के और पूरे उत्साह से कार्य करने हेतु पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं।
दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि लोक सेवकों को ‘सभी के कल्याण’ के लिये कार्य करना होता है। उसे नीतियों के क्रियान्वयन हेतु व्यक्तिगत विश्वासों के विपरीत भी कार्य करना पड़ता है। लोक नीतियों के क्रियान्वयन में जाति, वर्ग, क्षेत्र या धर्म के विचार के बिना कार्य करना होता है। उदाहरण के लिये, किसी लोक सेवक को आदिवासी क्षेत्र में काम करने के क्रम में आदिवासी समाज के सांस्कृतिक विश्वासों के साथ असहमति हो सकती है, किंतु यह असहमति उसकी जनता की सेवा करने की इच्छाशक्ति को प्रभावित न करे।
इस प्रकार देखा जाए तो एक लोक सेवक भी किसी विशिष्ट समाज का भाग है। यदि उसमें अपने समाज का कोई सामाजिक मानदंड बचा रहता है तो वह व्यक्तिगत विचारों के आधार पर पक्षपाती निर्णय ले सकता है। उदाहरण के लिये, किसी समाज के संभ्रंात वर्ग का सिविल सेवक कभी भी समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति सहानुभूति या करुणा नहीं रख सकता। निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी लोक सेवकों में बेहतर प्रशासन एवं कल्याणकारी नीतियों के निष्पक्ष क्रियान्वयन हेतु अभिवृत्ति का विकास करेंगे।
जब कभी भी अंतरात्मा की असंतुष्टि और नैतिक दुविधा की स्थिति हो तो सही-गलत में फर्क करने में निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो अंतत: तटस्थता, सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता लाने में सहायक होते हैं। ये वास्तविक अर्थों में लोक सेवा के प्रति समर्पण की ओर ले जाते हैं। श्री टी.एन. शेषन कठिन परिस्थितियों में भी अपनी गरिमा और सम्मान के साथ आगे बढ़ पाए। ऐसा वे इसलिये कर पाए क्योंकि उन्होंने सदैव तटस्थता, गैर-तरफदारी और निष्पक्षता के सिद्धांत का पालन किया। उनके इस दृष्टिकोण ने चुनाव आयोग में अभूतपूर्व सुधार किये। इस प्रकार गैर-तरफदारी और निष्पक्षता सुशासन, तटस्थता तथा निर्णयन में पारदर्शिता को सुनिश्चित करते हैं। ये मूल्य हितों के संघर्ष को रोकने हेतु सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं ताकि संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित विभिन्न आदर्शों का पालन किया जा सके।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण
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परिचय
भावनाएँ जैविक रूप से आधारित मनोवैज्ञानिक अवस्थाएँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के विचारों, व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं और प्रसन्नता या नाराज़गी से जुड़ी होती हैं। इसकी परिभाषा पर वर्तमान में कोई वैज्ञानिक सहमति नहीं है। भावनाओं को अक्सर मनोदशा, स्वभाव, व्यक्तित्व, रचनात्मकता के साथ जोड़ा जाता है।
वर्ष 1972 में, पॉल एकमैन ने सुझाव दिया कि छह बुनियादी भावनाएँ हैं जो मानव संस्कृतियों में सार्वभौमिक हैं: भय, घृणा, क्रोध, आश्चर्य, खुशी और उदासी।
प्रारूप
नकारात्मक भावनाओं को लोक सेवकों को कैसे प्रबंधित करना चाहिये:
निष्कर्ष
भावनाओं को अभ्यास और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की क्षमता को विकसित करके प्रबंधित किया जा सकता है। यह अपनी और दूसरों की भावनाओं की पहचान करने, उन्हें नियंत्रित करने और प्रबंधित करने की क्षमता है।
(a)
हल करने का दृष्टिकोण
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कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में शासन और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर चर्चा की है। अर्थशास्त्र भारत को पहला कल्याणकारी राज्य बनाने के लिये वैचारिक आधार प्रदान करता है।
शासन पर कौटिल्य का दृष्टिकोण
भ्रष्टाचार पर दृष्टिकोण:
सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार पर उनके विचार उल्लेखनीय रूप से यथार्थवादी थे जो सिद्धांत के बजाय व्यवहार पर उनके ज़ोर को रेखांकित करते हैं।
वर्तमान भारतीय समाज में उनके विचारों/दृष्टिकोण की प्रासंगिकता:
अर्थशास्त्र समग्र अर्थव्यवस्था पर व्यापक कवरेज प्रदान करता है, जिसमें बुनियादी ढाँचा (सड़क, सिंचाई, वानिकी और किलेबंदी), भार और माप, श्रम और रोज़गार, वाणिज्य और व्यापार, वस्तुओं और कृषि, भूमि उपयोग एवं संपत्ति से संबंधित कानून, मुद्रा और सिक्का ढलाई , ब्याज दरें और ऋण बाज़ार, टैरिफ और कर आदि शामिल हैं। यह आधुनिक समय के लिये महत्त्वपूर्ण है और कई समकालीन आर्थिक विचारों का उदाहरण देने के लिये उपयोगी हो सकता है।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण:
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महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम के निवासियों के आध्यात्मिक और नैतिक उत्थान के लिये ग्यारह व्रत/प्रतिज्ञाएँ दीं, लेकिन इन प्रतिज्ञाओं ने पूरे समाज के लाभ के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों के रूप में कार्य किया।
ग्यारह व्रत:
सत्य: 'सच्चिदानंद' [सत् (होना) + चित (सच्चा ज्ञान) + आनंद (परम सुख)] सर्वोच्च होने के विशेषणों में से एक है। सत्य का पालन केवल वाणी में ही नहीं बल्कि विचार और कार्य में भी अपेक्षित था।
अहिंसा: अहिंसा वह मार्ग है जिसके द्वारा व्यक्ति सत्य तक पहुँचता है। इसका अर्थ न केवल शारीरिक हिंसा से बचना है बल्कि सभी घृणा, ईर्ष्या और दूसरों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा को भी दूर करना है।
ब्रह्मचर्य: इसका अर्थ है- ब्रह्म की, सत्य की खोज में चर्या, अर्थात् उससे संबंध रखने वाला आचार। इसका मूल अर्थ है- सभी इंद्रियों का संयम।
अस्तेय (चोरी न करना) – दूसरे की ची़ज को उसकी इजाजत के बिना लेना तो चोरी है ही, लेकिन मनुष्य अपनी कम से कम ज़रूरत के अलावा जो कुछ लेता या संग्रह करता है, वह भी चोरी ही है।
अपरिग्रह या असंग्रह: एक व्यक्ति को ऐसा सादा जीवन जीना चाहिये कि वह समाज से केवल अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को अपने लिये ले।
शरीरिक श्रम: जिनका शरीर काम कर सकता है, उन स्त्री-पुरुषों को अपने रोज़मर्रा के खुद करने के लायक सभी काम खुद ही कर लेने चाहिये। बिना कारण दूसरों से सेवा नहीं लेनी चाहिये।
अस्वाद मनुष्य जब तक जीभ के रसों को न जीते, तब तक ब्रह्मचर्य का पालन बहुत कठिन है। भोजन केवल शरीर पोषण के लिये हो, स्वाद या भोग के लिये नहीं।
अभय-निडरता : सत्य को साकार करने के लिये सारे भय को दूर करना आवश्यक है।
सर्व-धर्म-समानत्व: सभी धर्मों के लिये समान सम्मान: सत्य की खोज सभी धर्मों के पीछे चलती आत्मा है। इसलिये कभी भी अपने धर्म को ही एकमात्र पूर्ण धर्म नहीं मानना चाहिये।
स्वदेशी: अपने आसपास रहने वालों की सेवा में ओत-प्रोत हो जाना स्वदेशी धर्म है। जो निकट वालों को छोड़कर दूर वालों की सेवा करने को दौड़ता है, वह स्वदेशी धर्म को भंग करता है।
अस्पृश्यता: अस्पृश्यता को दूर करना: गांधी का उद्देश्य अस्पृश्यता का सफाया करने तथा दबे-कुचले लोगों का उत्थान करना था।
आज के समाज में महत्त्व:
अतः गांधीवादी सिद्धांत आज भी समाज में शांति और सामाजिक एकजुटता के अग्रदूत के रूप में कार्य कर रहे हैं।
(a)
हल करने का दृष्टिकोण:
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मूल्य जीवन के ऐसे तत्व हैं जिन्हें हम महत्त्वपूर्ण या वांछनीय मानते हैं। वे आचरण के मानक और मानव व्यवहार के मार्गदर्शक हैं। मूल्य व्यक्ति के चरित्र को उसके जीवन में एक केंद्रीय स्थान पर रखकर अर्थ और मज़बूती प्रदान करते हैं। मूल्य व्यक्ति के व्यक्तिगत दृष्टिकोण और निर्णयों और विकल्पों, व्यवहार एवं संबंधों को दर्शाते हैं।
सापेक्ष मूल्य:
निरपेक्ष मूल्य:.
इस प्रकार, मूल्य या तो सार्वभौमिक, सापेक्ष या गतिशील हो सकते हैं जो समय के साथ बदलते रहते हैं। जैसा कि आइंस्टीन ने एक बार ठीक ही कहा था कि "सफल व्यक्ति बनने की कोशिश न करें बल्कि मूल्यों के साथ व्यक्ति बनने की कोशिश करें"। मूल्य हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को प्रभावित करते हैं। वे हमें सही कार्य करने के लिये मार्गदर्शन करते हैं। मूल्य जीवन को दिशा और दृढ़ता प्रदान करते हैं।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण:
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सत्ता-साझाकरण और सहभागी निर्णय लेने पर आधारित नेतृत्व अधिक आकर्षक और लोकतांत्रिक हो सकता है। सत्ता-साझाकरण न केवल नेता और समुदाय के बीच विश्वास का निर्माण करता है बल्कि यह नेतृत्व की अगली पंक्ति को भी प्रभावी ढंग से तैयार करता है साथ ही एक सहभागी निर्णय समुदाय में पाए जाने वाले विविध दृष्टिकोणों के बीच आपसी सम्मान को विकसित और मज़बूत कर सकता है।
सत्ता का बंटवारा लोगों को ज़िम्मेदारी लेने के लिये प्रेरित करता है और अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी की भावना का आह्वान करता है। जब सत्ता साझा की जाती है तो समुदाय के सदस्यों का नेतृत्व उनकी दक्षता के आधार पर होता है। यह आगे विभिन्न लक्ष्यों या कार्यों के लिये व्यक्तियों के बीच स्वामित्व की भावना को बढ़ाता है तथा निगरानी की आवश्यकता को कम करता है। इस प्रकार संसाधनों का अधिक कुशल प्रबंधन होता है।
सहभागी निर्णय लेने से समुदाय के सदस्यों के बीच एकता और सहयोग मज़बूत होता है। यह समानता को बढ़ावा देता है साथ ही समस्याओं के समाधान खोजने के लिये अधिक प्रभावी तरीके से परिणाम प्रदान करता है। एक नेता जो निर्णय लेने में सहभागी दृष्टिकोण का पालन करता है, उसके पूर्वाग्रहों से विचलित होने की संभावना कम होती है तथा समुदाय के विभिन्न वर्गों के प्रति अधिक सहानुभूति हो सकती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि सहभागी दृष्टिकोण शक्ति के समान वितरण पर ज़ोर देता है। यह एक शक्तिशाली समूह द्वारा किये जाने वाले शोषण की संभावना को भी कम करता है।
महात्मा गांधी का नेतृत्व काफी हद तक सत्ता के बंटवारे और सहभागी निर्णय लेने पर आधारित था। गांधीवादी नेतृत्व ने मज़दूर वर्ग, आदिवासियों, महिलाओं, दलितों और भारतीय समाज के अन्य कमज़ोर वर्गों के अधिकांश समूहों को शामिल किया तथ उन्हें प्रभावी ढंग से देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। इसने अगली पीढ़ी के नेताओं के लिये अपने नेतृत्व में अधिक लोकतांत्रिक होने की एक मिसाल कायम की।
एक प्रभावी नेतृत्व न केवल समुदाय के सदस्यों की वर्तमान पीढ़ी को उत्पादकता की ओर निर्देशित करता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों में प्रगतिशील, समावेशी और सहानुभूतिपूर्ण नेतृत्व को तैयार करने के लिये आवश्यक नींव भी प्रदान करता है। यह वह है जो समाज को बेहतर कार्य के लिये बदलता है।
(a)
हल करने का दृष्टिकोण
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भावनात्मक बुद्धिमत्ता से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने और नियंत्रित करने की क्षमता एवं साथ ही दूसरों की भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता से है।
नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धि एक बहुत महत्त्वपूर्ण कौशल होती है। डैनियल गोलेमैन ने भावनात्मक बुद्धिमत्ता के 5 तत्त्व बताए हैं:
स्व-जागरूकता: स्व-जागरूकता एक व्यक्ति की भावनाओं, शक्तियों, चुनौतियों, उद्देश्यों, मूल्यों, लक्ष्यों और सपनों को ईमानदारी से प्रतिबिंबित करने एवं समझने की क्षमता है।
आत्मनियमन: यह किसी की भावनाओं को नियंत्रित करने से संबंधित है, इसके माध्यम से व्यक्ति किसी की भावनाओं पर शासन कर सकता है। साथ ही किसी भी विषय पर त्वरित प्रतिक्रिया करने के बजाय गहन सोच-विचार कर अनुक्रिया करता है।
आत्म अभिप्रेरण: इसका अर्थ है कि जब व्यक्ति को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बाहर से पर्याप्त अभिप्रेरणा न मिले तो उसमें यह क्षमता होनी चाहिये कि वह स्वयं को निरंतर प्रेरित कर सके।
समानुभूति: दूसरों की अनुभूतियों और आवश्यकताओं को उसी के नज़रिये से समझने और उसके अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता।
सामाजिक दक्षता: इसका अर्थ है कि व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों के साथ कुछ इस प्रकार से संबंध बनाए रखने चाहिये की उन संबंधों से उसे तथा सभी को लाभ हो।
एक प्रशासक द्वारा EI का अनुप्रयोग:
एक प्रशासक के रूप में लोकसेवक के पास समाज के संरक्षक के रूप में कार्य करने की ज़िम्मेदारी होती है, इस संदर्भ में भावनात्मक बुद्धिमत्ता कौशल का उपयोग इस लक्ष्य की प्राप्ति में उसकी सहायता कर सकता है और निर्णय लेने की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।
(b)
हल करने का दृष्टिकोण:
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जलवायु न्याय एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग ग्लोबल वार्मिंग को एक नैतिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में तैयार करने के लिये किया जाता है, न कि प्रकृति में विशुद्ध रूप से भौतिक या पर्यावरणीय रूप के लिये।
16 वर्षीय स्वीडिश छात्र और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित #FridaysForFuture आंदोलन में दुनिया भर के 123 से अधिक देशों के युवाओं और स्कूली बच्चों ने भाग लिया। उनकी मुख्या मांग यह है कि सरकारें कार्बन उत्सर्जन को कम करें। इसने विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण और जलवायु न्याय की आवश्यकता की चर्चा को नया रूप दिया है।
वर्तमान समय में जलवायु न्याय की प्रासंगिकता:
अतः जलवायु न्याय जलवायु परिवर्तन के पर्यावरणीय और पारिस्थितिक परिणामों से अलग देखने और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित करने के लिये मज़बूत राजनीतिक कार्रवाई करने की मांग करता है। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मानवीय बनाता है तथा ग्रीनहाउस गैसों पर एक प्रवचन के मध्ययम से एक नागरिक अधिकार आंदोलन में बदलाव पर ज़ोर देता है, जो लोगों और समुदायों के दिल में जलवायु प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होेता हैं। नागरिक समाज समूहों को सतत् विकास का रास्ता अपनाने और जलवायु परिवर्तन कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिये सरकारों पर दबाव बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
(A)
इस केस में अंतर्निहित मुद्दे
एबीसी कंपनी की परियोजना सरकार की नीति के अनुरूप होने के बावजूद क्षेत्र के स्थानीय लोगों के प्रतिरोध का सामना कर रही है।
इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
(B)
कंपनी के लक्ष्य और निवासियों की चिंता के बीच संघर्ष को हल करने के लिये कदम
नोट: विश्व बैंक के अनुसार सीडीडी एक दृष्टिकोण है जो स्थानीय विकास परियोजनाओं हेतु सामुदायिक समूहों के लिये नियोजन निर्णयों और निवेश संसाधनों पर नियंत्रण रखता है।
दृष्टिकोण
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प्रस्तुत मामला एक सैन्य दल द्वारा ड्रोन का संचालन करने से पहले एक नैतिक दुविधा उत्पन्न करता है जो रोटी बेचने वाली एक छोटी लड़की को मारने के संपार्श्विक नुकसान के साथ एक आतंकवादी सेल पर बम गिराया जाना है। दुविधा इस बात को लेकर है कि:
हितधारक
सैन्य दल के समक्ष उपलब्ध विकल्प हैं:
अ) मिशन को आगे बढ़ाएँ और बम गिराएंँ:
कार्यवाही के पक्ष में तर्क- आतंकवादियों को मारकर और किसी भी हमले को रोककर सैकड़ों लोगों को बचाना। यह देश को किसी भी आतंकवादी हमले से बचाने के अपने सैन्य कर्तव्य को पूरा करने में सहायक होगा। इसके लिये सैन्य टीम की न केवल समुदायों द्वारा बल्कि उन संगठनों से भी सरहाना की जानी चाहिये जो संभवतः पुरस्कार और पदोन्नति के लिये कार्य करते हैं।
कार्यवाही के विपक्ष में तर्क- इसमें एक निर्दोष छोटी लड़की को संपार्श्विक हत्या शामिल है जो टीम के सदस्यों के लिये आजीवन अपराध बोध बन सकता है अत: लड़की की हत्या के आंतरिक विवेक को सही नहीं ठराया जा सकता है।
मिशन को रोकना
ब) सैन्य दल के प्रमुख के रूप में मेरे सामने बम गिराने और एक निर्दोष छोटी बच्ची को मारने के नकारात्मक कर्तव्य और लोगों की जान बचाने के सकारात्मक कर्तव्य के बीच एक नैतिक दुविधा होगी। मेरे संभावित कार्य निम्नलिखित होंगे:
दृष्टिकोण
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परिचय
लैंगिक भेदभाव सामाजिक पूर्वाग्रहों की अभिव्यक्तियाँ है। भारत जैसे पितृसत्तात्मक सामाजिक इतिहास वाले पारंपरिक देश में इस प्रकार के कई पूर्वाग्रह विद्यमान हैं जो कार्यस्थल में भी भेदभाव को बढ़ावा देते हैं।
इन लैंगिक पूर्वाग्रहों को नैतिक अनुशीलन, लैंगिक संवेदनशीलता और नैतिक व्यवहार के अनुकरणीय मानकों द्वारा समाप्त करना होगा।
प्रारूप
युवा महिला अधिकारी द्वारा उठाए गए संभावित कदम:
निष्कर्ष
हल करने का दृष्टिकोण:
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हितों में टकराव (Conflict of Interest) | |
पेशेवर बनाम सार्वजनिक |
पेशेवर
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वकील बनाम नैतिक ग्राहक |
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एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में, देश की भलाई के बारे में सोचना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। इस कल्याणकारी आधार में, आर्थिक प्रणाली बहुत महत्त्वपूर्ण है। ऐसी प्रकृति की घटनाएँ किसी देश की नींव को हिला सकती हैं। इसके अलावा, ऐसे व्यक्ति को दंडित न करने से अन्य व्यक्तियों को अपराध करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा। इन उद्देश्यों के अनुसरण की प्रक्रिया में अपराधी का डाटा जहाँ तक संभव हो साझा किया जाना चाहिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
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सोशल मीडिया, दुनिया भर के लोगों को जोड़ने और ऐसे मामलों पर भी राय व्यक्त करने जो हमें दूर से प्रभावित करते हैं, का एक उत्कृष्ट माध्यम बन गया है। यह इस कारण से है कि लोग, विशेष रूप से लोकतांत्रिक देशों के, अन्य देशों में होने वाली घटनाओं पर स्वतंत्र रूप से टिप्पणी करते हैं।
भारत जैसे देश के लिये, इसकी सबसे बड़ी ताकत यानी लोकतंत्र इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है। निहित स्वार्थ समूहों द्वारा भारत की लोकतांत्रिक छवि और सद्भावना को कमज़ोर करने के प्रयास किये गए हैं। ऐसे परिदृश्य में, सरकार द्वारा कुछ हद तक धोखे का संदेह इस केस स्टडी में उचित प्रतीत होता है।
इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, कई नैतिक मुद्दे हैं जिनमें सभी हितधारक शामिल हैं:
समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने के उपाय:
लोकतंत्र में शासन एवं नीतियाँ नैतिक विचारों से अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं, और असंतोष या संघर्ष के मामले में, इस मुद्दे का समाधान भी सभी हितधारकों द्वारा नैतिक आचरण में निहित है। ऐसी स्थितियों की उपस्थिति सरकार और संवैधानिक तंत्र में नागरिकों के विश्वास को मज़बूत करता है।
हल करने का दृष्टिकोण:
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प्रमुख हितधारक:
(i) पुलिस अधिकारी: जो कि साइबर इंटेलिजेंस में विशेषज्ञता प्राप्त है।
(ii) मंत्री: जो कि विपक्ष के नेता की जानकारी निकालना चाहता है।
(iii) विपक्ष के नेता
(iv) आम जनता: सरकार के द्वारा उठाया गया कोई भी कदम जनता की चिंता का सबब बन सकता है।
इस केस स्टडी में लोक सेवा नैतिकता तथा प्राधिकरण द्वारा दिये गए आदेश का पालन करने व दोनों में से एक विकल्प चुनने में नैतिक दुविधा की स्थिति विद्यमान है। मंत्री द्वारा विपक्षी नेताओं की चैट तथा ईमेल में सेंध लगाने का अनुरोध मेरे लिये एक नैतिक दुविधा की स्थिति उत्पन्न कर रहा है। मैं इस दुविधा की स्थिति में हूँ कि मैं मंत्री के अनुरोध का पालन करूँ या नहीं।
उपरोक्त स्थिति में मैं निम्नलिखित कार्रवाई कर सकता हूँ-
एक साइबर विशेषज्ञ और ज़िम्मेदार अधिकारी के रूप में यह आवश्यक है कि मैं सच्चाई का पता लगाऊँ तथा मंत्री के आदेश का आँख मूँदकर अनुसरण करने का अर्थ है कि मैं अपनी सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता तथा सरकारी सेवक की निष्पक्षता से विचलित हो जाऊँ जिसे समर्पण के साथ जनता की सेवा देने के लिये नियुक्त किया गया है।
उपर्युक्त चरणों का पालन करने से इस मुद्दे को कुछ हद तक नैतिक व न्यायसंगत तरीके से सँभाला जा सकता है।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों की सुरक्षा के नाम पर जासूसी करने पर प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है। वर्ष 2017 के के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता को एक मौलिक अधिकार घोषित किया है तथा उसे संवैधानिक गारंटी प्रदान की है। इस निर्णय को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की जासूसी करवाना अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण लगता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा व पूर्व-आतंकवादी खतरों को देखते हुए निगरानी रखना आवश्यक महसूस हो रहा है। हालाँकि, निगरानी की प्रकृति को ऐसा होना चाहिये कि जो सार्वजनिक जनता की पहुँच से बाहर हो। चूँकि यह स्पष्ट है कि निजता का अधिकार एक संप्रभु अधिकार नहीं है, इसलिये सरकार द्वारा इसका उल्लंघन न्यायसंगत है, किंतु इसके लिये निजता व सुरक्षा के प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
सरकारी संस्थाओं द्वारा अनियंत्रित एवं अनगिनत डेटा संग्रहण एवं परीक्षण एक पुलिस व निगरानी राज्य की नींव रखते हैं। इसलिये भारतीय निगरानी व्यवस्था में नैतिक मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिये जो कि निगरानी व्यवस्था में नैतिक पहलुओं पर विचार करने हेतु आवश्यक है।
तकनीक का प्रयोग राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के एक उपकरण के रूप में किया जाना चाहिये तथा तकनीक के उपयोग में जवाबदेहिता को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये, ताकि ऐसी विशेषज्ञता प्राप्त लोक सेवक आवश्यक रूप से न्यायसंगत व ईमानदार रह सके।