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Mains Marathon

  • 06 Sep 2022 रिवीज़न टेस्ट्स सामान्य अध्ययन पेपर 4

    दिवस 58: संपूर्ण पाठ्यक्रम टेस्ट सामान्य अध्ययन पेपर 4

    प्रश्न 1. (a) मुक्तिपरक (जीवनरक्षक) नैतिकता क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
             (b) मूल्य क्या हैं? शासन में मूल्यों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (150 शब्द)

    प्रश्न 2. (a) सैन्य सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से जुड़ी नैतिक चिंताएँ क्या हैं? (150 शब्द)
             (b) भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के आलोक में क्या आप इसकी अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता में बदलाव को देखते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिये। (150 शब्द)
             (c) ई-नागरिक घोषणा-पत्र क्या है? साथ ही यह भी वर्णित कीजिये कि प्रगति प्लेटफॉर्म एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र के निर्माण में कैसे सहायता कर सकता है? (150 शब्द)

    प्रश्न 3. (a) किस प्रकार निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी लोक सेवाओं में तटस्थता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)
             (b) एक लोक सेवक को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिये। उन अवांछनीय नकारात्मक भावनाओं की चर्चा कीजिये जिनसे उसे बचना चाहिये। (150 शब्द)

    प्रश्न 4. (a) शासन में भ्रष्टाचार पर कौटिल्य के दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये। ये अवधारणाएँ आज भी भारतीय संस्कृति में कितनी प्रासंगिक हैं? (150 शब्द)
             (b) महात्मा गांधी के ग्यारह व्रत आज के समाज के लिये कैसे प्रासंगिक हैं? (150 शब्द)

    प्रश्न 5. (a) कुछ व्यक्तियों की राय है कि समय और विभिन्न परिस्थितियों के साथ मूल्य बदलते हैं जबकि कुछ अन्य दृढ़ता से मानते हैं कि कुछ मानवीय मूल्य हैं जो सार्वभौमिक और अपरिवर्तनीय दोनों हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (150 words)
             (b) प्रभावी नेतृत्त्व के लिये सत्ता की साझेदारी और सहभागितापूर्ण निर्णय लेना आवश्यक है। अपने उत्तर के समर्थन में प्रासंगिक उदाहरण दीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न 6. (a) आज की जटिल दुनिया में एक प्रशासक के लिये भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका का परीक्षण कीजिये। उदाहरण के साथ उन प्रमुख विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिये जिन्हें एक भावनात्मक रूप से बुद्धिमान प्रशासक द्वारा आत्मसात की जानी चाहिये। (250 शब्द)
            (b) विकास की मांगों और जलवायु न्याय की आवश्यकताओं को संतुलित किया जाना चाहिये। इस दृष्टिकोण से जलवायु न्याय के समकालीन महत्त्व की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न 7. एबीसी लिमिटेड एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी है जो विशाल शेयरधारक आधार के साथ विविध व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न है। कंपनी लगातार विस्तार कर रही है और रोज़गार का सृजन कर रही है। कंपनी अपने विस्तार और विविधीकरण कार्यक्रम के तहत विकासपुरी में एक नया संयंत्र स्थापित करने का निर्णय लेती है, जो अविकसित क्षेत्र है। नए संयंत्र को ऊर्जा-कुशल तकनीक का उपयोग करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो कंपनी को उत्पादन लागत में 20% तक बचाने में मदद करेगा। इस तरह के अविकसित क्षेत्रों को विकसित करने के लिये निवेश आकर्षित करने की सरकार की नीति के साथ कंपनी का निर्णय पूर्णतः उचित है। सरकार ने अविकसित क्षेत्रों में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये पाँच साल तक कर अवकाश (टैक्स हॉलिडे) की भी घोषणा की है। हालाँकि नया संयंत्र विकासपुरी क्षेत्र के निवासियों के जीवन में हलचल ला सकता है, जो अन्यथा शांत है। नया संयंत्र लगने से रहने की लागत में वृद्धि हो सकती है तथा अन्य क्षेत्रों से पलायन करके लोग वहाँ आकर सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। संभावित विरोध को भांपते हुए कंपनी ने विकासपुरी क्षेत्र के लोगों और आम जनता को यह बताने की कोशिश की कि कैसे उसकी कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) नीति वहाँ के निवासियों की संभावित कठिनाइयों को दूर करने में मदद करेगी। इसके बावजूद विरोध शुरू हो जाता है और कुछ निवासियों ने मामला न्यायपालिका में ले जाने का फैसला किया क्योंकि सरकार को याचिका देने का कोई परिणाम नहीं निकला। (2016)

    (क) मामले में शामिल मुद्दों की पहचान करें।
    (ख) कंपनी के लक्ष्य को पूरा करने और निवासियों की चिंता को दूर करने के लिये क्या सुझाव दिया जा सकता है?

    प्रश्न 8. एक दिये गए परिदृश्य में सैन्य दल को एक आतंकवादी सेल का पता चलता है, जो एक हमले की तैयारी कर रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों के मारे जाने की आशंका है। सैन्य दल द्वारा हमले को रोकने के लिये एक ड्रोन की मदद से आतंकवादियों पर बम गिराने की योजना बनाई जाती है। जैसे ही टीम बम गिराने वाली होती है तो उनके कैमरों द्वारा ब्लास्ट वाली जगह पर ब्रेड बेचने वाली एक छोटी लड़की को देखा जाता है। क्या उन्हें कई अन्य लोगों को मृत्यु से बचाने हेतु लड़की को नज़रंदाज़ करते हुए अपने मिशन को अंज़ाम देना चाहिये?

    (क) फायदे और नुकसान के साथ सैन्य दल के लिये उपलब्ध विकल्पों का परीक्षण कीजिये।
    (ख) इस स्थिति में सैन्य दल प्रमुख के रूप में, आप किस कार्यवाही को अपनाएंगे? (250 शब्द)

    प्रश्न 9. एक युवा महिला IAS अधिकारी को एक सरकारी विभाग में नियुक्त किया गया है तथा इस महिला अधिकारी को कार्य के दौरान बड़े पैमाने पर लैंगिक पूर्वाग्रह का एहसास होता है। पुरुष कर्मचारी न तो वरिष्ठ महिला अधिकारियों से आदेश लेना चाहते हैं और न ही महिला अधिकारियों को गंभीर/महत्त्वपूर्ण विभागीय परियोजनाओं में शामिल किया जाता हैं। महिलाओं हेतु कार्य संस्कृति को अनुकूल बनाने एवं इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने हेतु युवा IAS अधिकारी द्वारा उठाए जाने योग्य कदम बताइये।

    प्रश्न 10. आप एक कानूनी फर्म में भागीदार हैं। आपकी फर्म के ग्राहकों में एक उच्च सामाजिक ख्याति का व्यक्ति है और उसका व्यवसाय समृद्धशाली है। यह ग्राहक आपकी फर्म से पिछले पाँच वर्षों से जुड़ा है। लेकिन अब यह ग्राहक भारत की सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी का भागीदार घोषित किया गया है। ग्राहक फरार है और यह माना जा रहा है कि वह एक ऐसे देश में भाग गया है जो केवल पर्याप्त दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने पर ही उसे प्रत्यर्पित कर सकता है। इस मामले में जाँच एजेंसियों ने आपकी फर्म पर छापा मारा है और ऐसे दस्तावेज़ प्राप्त किये हैं जो ग्राहक के अपराधी होने का संकेत देते हैं। परंतु आप जानते हैं कि अभी भी फर्म के पास बहुत सी ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो ग्राहक का अपराध सिद्ध करने के लिये अति महत्त्वपूर्ण हैं। आपको अहसास है कि उस ग्राहक को गिरफ्तार करना और उसे न्याय हेतु प्रस्तुत करना देश हित में होगा। ऐसी परिस्थितियाँ सामने आने पर आप क्या करेंगे? विभिन्न हितों के संघर्ष का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और देश का एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों की व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न 11. महीनों पहले संसद ने भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांति लाने के उद्देश्य से एक विधेयक पारित किया था। कई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा इसका आने वाले वर्षों में उच्च आर्थिक विकास के वाहक और एक प्रगतिशील कदम के रूप में स्वागत किया जाता है। दुर्भाग्य से, कुछ संसदीय प्रक्रियाओं को दरकिनार करने और प्रभावित लोगों के लिये सुधारों की संभावनाओं को संप्रेषित करने में राजनीतिक कार्यपालिका की विफलता के कारण, सशंकित नागरिकों ने सुधारों को वापस लेने की मांग करते हुए शांतिपूर्ण विरोध शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों की व्यापक पैमाने पर भागीदारी और प्रतिबद्धता ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। हाल ही में, पश्चिमी देशों की कई मशहूर हस्तियों और कार्यकर्त्ताओं ने इस मुद्दे को उठाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का सहारा लिया। जिस समन्वित तरीके से सोशल मीडिया पोस्ट उभरे हैं, उससे सरकार को उन अराजक तत्त्वों की भागीदारी पर संदेह हुआ है जो गलत सूचना का प्रचार-प्रसार करने की कोशिश कर रहे हैं। एक जुझारू कदम के तहत, सरकार ने आधिकारिक तौर पर इन सूचनाओं को ‘प्रेरित’ और ‘गलत’ बताया है। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की सूचनाएँ भारतीय हस्तियों के सोशल मीडिया पोस्ट से भी सामने आई, जिन्होंने पुष्टि की कि ये घरेलू मुद्दे हैं और उन्हें दोषपूर्ण प्रचार से मुक्त होना चाहिये। कई लोगों ने इस संभावना को भी इंगित किया है कि ये पोस्ट सरकार के इशारे पर लिखे गए थे।

    (क) उपर्युक्त मामले में शामिल नैतिक मुद्दों की पहचान और चर्चा कीजिये।
    (ख) सरकार द्वारा स्थिति से निपटने के लिये वैकल्पिक उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    प्रश्न 12. आप एक ईमानदार पुलिस अधिकारी हैं, जिसकी साइबर इंटेलिजेंस में विशेषज्ञता है। अपने उत्कृष्ट कार्यकाल (कैरियर) के दौरान आपने कई आपराधिक नेटवर्कों का पर्दाफाश किया, ऑनलाइन आंतकी गतिविधियों को ट्रैक किया तथा अवैध वित्तीय नेटवर्क का पर्दाफाश किया है। आपकी नियुक्ति स्नूपिंग, जासूसी, हैकिंग एवं लक्षित सिस्टम पर मालवेयर के हमले पर विशेषज्ञता के साथ साइबर विशेषज्ञ के रूप में हुई है। अपने क्षेत्र में सफलताओं की एक श्रृंखला के साथ आप अपने सरकारी समूह में प्रसिद्ध हो गए हैं। आपके विभाग प्रमुख की रिटायरमेंट पार्टी पर एक मंत्री के निजी सहायक आपके पास आते हैं तथा आपको मंत्री के साथ एक व्यक्तिगत मीटिंग हेतु आमंत्रित करते हैं। मंत्री के साथ हुई मीटिंग में मंत्री आपको हाल में हुई एडवांस एयरक्राफ्ट खरीद के संबंधों में जानकारी देते हैं जिसमें पारदर्शिता की कमी होने के कारण विपक्ष द्वारा इसे चुनौती दी जा रही है। मंत्री आपसे कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं के व्यक्तिगत चैट और ईमेल प्राप्त करने के लिये कहता है जिससे उनके पूर्व भ्रष्टाचारों का पता लगाया जा सके और उन पर उनके खुद के बचाव का दबाव बनाया जा सके जिससे रक्षा सौदे पर कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी। आप व्यक्तिगत रूप से महसूस करते हैं कि यह सौदा भारत के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा हेतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

    (क) इस परिस्थिति में क्या आप मंत्री के प्रस्ताव से सहमत होंगे?
    (ख) क्या आपको लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की जासूसी करना एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायोचित है? (250 शब्द)

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    उत्तर 1:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जीवनरक्षक नैतिकता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
    • जहाँ आवश्यक हो वहाँ उचित उदाहरण दीजिये।
    • इसकी सीमाओं को संक्षेप में बताइये।

    देशों के बीच सहयोग एवं खुलेपन से कैसे सभी को लाभ हो सकता है, इसको बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    जीवनरक्षक नैतिकता वर्ष 1974 में प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी गैरेट हार्डिन द्वारा प्रस्तावित संसाधनों के वितरण के समतुल्य है। हार्डिग के अनुसार, प्रत्येक देश एक जीवन नौका के समान है जो कि विशिष्ट वहन क्षमता रखते हैं और अन्य व्यक्तियों को भी वहन करने की क्षमता रखते हैं। किंतु इससे उस देश के मूल निवासियों के लिये आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता में बाधा उत्पन्न हो सकती है। किंतु वर्तमान परिदृश्य में विकसित एवं विशेषाधिकार प्राप्त देश गरीब देशों एवं इनके प्रवासियों को सहायता प्रदान नहीं करना चाहते ऐसा शायद इसलिये कि उनमें इनके पीड़ित व्यक्तियों के प्रति कोई कर्त्तव्य-बोध नहीं होता और यह कृत्य उनके अपने नागरिकों के लिये संसाधनों की उपलब्धता को और तनावपूर्ण बना सकता है।

    हाल के दिनों में विकसित देशों में तीव्र प्रवासी विरोधी प्रवृत्तियाँ देखी जा रही हैं। युद्धग्रस्त देशों जैसे कि सीरिया, इराक, लीबिया तथा यमन जैसे देशों से आए शरणार्थियों को कई यूरोपीय देशों ने प्रवेश नहीं दिया। यहाँ तक कि भारत ने शरणार्थी सहिष्णु होने के बावजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को सहर्ष स्वीकार नहीं किया है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक नियंत्रणकारी आव्रजन नीति का शुभारंभ किया है जिसमें मध्य अमेरिकी देशों में अशांति तथा गरीबी से क्षुब्ध होकर अमेरिका आने वाले लोगों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। उपर्युक्त सभी कार्यवाहियाँ मानवता की दृष्टि से अनैतिक प्रतीत होती हैं किंतु यदि जीवनरक्षक नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो ये कृत्य पूर्णत: उचित प्रतीत होते हैं।

    विज्ञान-प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास एवं शासन में मानवीय प्रगति सभी देशों में जीवनस्तर को सुधारने में विफल रही हैं। विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अविकसित एवं विफल राष्ट्रों में रह रहा है जहाँ वे गरीबी, जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों एवं गृहयुद्धों से जूझ रहे हैं इन प्रभावित लोगों को त्वरित सहायता और शरण दिए जाने की आवश्यकता है। एक जीवनरक्षक नैतिकता का पोषक यह कह सकता है कि देशों को संसाधनों की सीमितता की स्थिति में केवल अपने ही नागरिकों का ध्यान रखना चाहिये।

    उपर्युक्त तर्क दो आधारों पर त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है, हालाँकि संसाधन सीमित हैं, परंतु वास्तविक समस्या उनके असमान वितरण में है। दूसरा सहायता एवं शरण के आकांक्षी ऐसा अपने स्वयं के कृत्यों से नहीं कर रहे हैं। विकसित देशों द्वारा इन देशों का शोषण विभिन्न तरीकों जैसे उपनिवेश बनाकर, अपने भू-राजनीतिक हितों के लिये इनकी आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर तथा अपने विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिये जलवायु में तीव्रता से परिवर्तन आदि कर रहे हैं।

    जीवनरक्षक नैतिकता राष्ट्र-राज्यों को अभेद्य संस्थाओं के रूप में निर्दिष्ट करती है जहाँ बाह्य परिवर्तनों के प्रति संवेदनहीनता व्याप्त होती है। वस्तुत: जहाँ विश्व कई देशों में विभक्त है वहाँ मानवता हम सबको एकजुट करती है। वैश्विक स्तर पर ‘कॉमंस’ एवं गरीबी कहीं भी हो वह हम सभी की समृद्धि के लिये खतरा है। विश्व के देश एक-दूसरे की सहायता के मूल्य से बच नहीं सकते। संसाधन-संपन्न एवं सशक्त देश शरणार्थियों की सहायता कर अपनी सॉफ्टपावर व सामासिक संस्कृति को बढ़ा सकते हैं एवं प्रवासियों के कौशल का प्रयोग अपनी आर्थिक समृद्धि के लिये कर सकते हैं।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समझाइये कि मूल्य क्या होते हैं।
    • शासन में महत्त्वपूर्ण मूल्यों, जैसे- सत्यनिष्ठा, तटस्थता तथा जवाबदेहिता आदि की चर्चा कीजिये।
    • मूल्य कैसे शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बताइये।

    मूल्य वे मूलभूत मान्यताएँ हैं, जो व्यक्ति के दृष्टिकोण, कार्यों और व्यवहारों का मार्गदर्शन करते हैं। मूल्य, आदर्श व्यवहार का एक चिरस्थायी भाव है। वह हमें यह निर्धारित करने में मदद करते हैं कि हमारे लिये क्या महत्त्वपूर्ण है? मूल्य द्वारा उन व्यक्तिगत गुणों को वर्णित किया जा सकता है, जिन्हें हम अपने कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिये चुनते हैं। जिस तरह का व्यक्ति हम होना चाहते हैं या अपने आपको, दूसरों को और हमारे आसपास के लोगों को हम जिस प्रकार देखना चाहते हैं उसमें मूल्य हमारी सहायता करते हैं।

    मूल्यों, नीतियों और संस्थाओं की व्यवस्था, जिनके द्वारा एक समाज अपने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मामलों का प्रबंधन राज्य के भीतर और नागरिक समाज एवं निजी क्षेत्र के बीच बातचीत के माध्यम से करता है, को शासन कहा जाता है।

    अखंडता, तटस्थता, ज़िम्मेदारी, विश्वसनीयता, निष्पक्षता, गोपनीयता, सार्वजनिक सेवाओं के प्रति समर्पण, पारदर्शिता और दक्षता जैसे मूल्य प्रशासन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं और कानून, स्थिरता, समता और समावेशिता व सशक्तीकरण के साथ सभी के लिये व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।

    निम्नलिखित मूल्यों का किसी भी समाज के सामाजिक ढाँचे पर बड़ा प्रभाव पड़ता है:

    • सत्यनिष्ठता- सत्यनिष्ठता को नैतिकता और ईमानदारी का मज़बूती से पालन करने के रूप में समझा जा सकता है। सत्यनिष्ठता का उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना, व्यवहार के उच्च मानकों को बढ़ावा देना, नीति-निर्धारण में शामिल लोगों की विश्वसनीयता और वैधता को मज़बूत करना, सार्वजनिक हित की रक्षा करना और नीति-निर्माण प्रक्रिया में विश्वास बहाल करना है।
    • वस्तुनिष्ठता- वस्तुनिष्ठता का अर्थ है व्यक्तिगत राय या पूर्वाग्रह के बिना स्थापित मानदंडों, कानूनों, नियमों, विनियमों के आधार पर तर्कसंगत निर्णय लेना। सार्वजनिक अधिकारियों के पैसले निष्पक्ष और योग्यता के आधार पर होने चाहियें। वस्तुनिष्ठता को नोलन समिति और द्वितीय प्रशासनिक रिपोर्ट दोनों द्वारा शासन हेतु सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मूल्यों में से एक माना जाता है।
    • निष्पक्षता- निष्पक्षता नियत प्रक्रिया में पूर्वाग्रह का अभाव है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक हितधारक के विचारों को ध्यान में रखा जाए, साथ ही यह किसी भी राष्ट्र का समावेशी विकास सुनिश्चित करता है।
    • पारदर्शिता- पारदर्शिता का अर्थ है- निर्णय प्रक्रिया का प्रर्वतन नियमों और विनियमों का पालन करते हुए करना। इसका अर्थ यह भी है कि सूचना स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और सीधे विभिन्न लोगों के लिये सुलभ है।
    • प्रतिक्रियाशीलता- सुशासन के लिये आवश्यक है कि संस्थान और प्रक्रिया सभी हितधारकों को उचित समय सीमा के भीतर सेवा प्रदान करे। जैसे सूचना के अधिकार के त्वरित उत्तरों से लोगों का विश्वास सरकारी मशीनरी में बना रहेगा तथा इसे सुदृढ़ बनाएगा जिससे नागरिक केंद्रित शासन को बढ़ावा मिलेगा।
    • जवाबदेहिता- जवाबदेहिता सुशासन की प्रमुख आवश्यकता है। केवल सरकारी संस्थाएँ ही नहीं बल्कि निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी संगठनों को भी जनता और उनके संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिये।

    इस प्रकार मूल्य मार्गदर्शक की भाँति कार्य करते हैं। ये उन नैतिक आचरणों को पुर्नर्स्थापित करते हैं जो कि सुशासन हेतु आवश्यक हैं। मूल्य संस्थागत सहयोग के बिना कमज़ोर होते जाते हैं और अंतत: समाप्त हो जाते हैं। उच्च मूल्यों वाले संस्थानों की कार्य-दक्षता बढ़ जाती है। अंतत: मूल्य, जनता के प्रति सेवा भावना व प्रशासनिक प्रतिबद्धता को मज़बूत करते हैं, सुशासन हेतु आवश्यक होते हैं।


    उत्तर 2:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सैन्य सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) की उपयोगिता से चर्चा प्रारंभ कीजिये तथा इसमें नैतिक आयामों की आवश्यकता को रेखांकित कीजिये।
    • पारंपरिक सैन्य बलों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता से एकीकृत करने से उत्पन्न होने वाले विभिन्न नैतिक मुद्दों का विवरण दीजिये।
    • मानवीय सिद्धांतों को प्राथमिकता देने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकता के साथ निष्कर्ष दीजिये।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक ऐसी तकनीक है जो कि कंप्यूटर को मानव की भाँति सोचने तथा कार्य करने में सक्षम बनाती है। यह अपने चारों ओर के वातावरण से सूचनाएँ एकत्रित कर उनसे सीखकर उनके अनुरूप प्रतिक्रिया देती है। वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी की इस क्रांतिकारी प्रगति से सैन्य सुरक्षा में अभूतपूर्व परिवर्तन लाया जा सकता है। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका तीव्रता से बढ़ रही है। ऐसे में वे नैतिक सिद्धांत जो मानवीय आचरण को संचालित करते थे, वे कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सेना में उपयोग करने पर चिंता का विषय बन सकते हैं। जो कि निम्नवत देखे जा सकते हैं-
    • निजता का अधिकार व अन्य मानवाधिकारों का हनन: उन्नत ए.आई. उपकरणों के प्रयोग से सैन्य बलों की निगरानी एवं गश्ती गतिविधियों में कई गुना तक वृद्धि हुई है। ऐसी स्थिति में सीमा से लगे हुए क्षेत्रों और उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में निजता एवं अन्य मौलिक अधिकारों के हनन संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • मानवीय व्यवहार एवं मान्यताओं में परिवर्तन: निरंकुश देशों में जहाँ जनता पर किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष के प्रति निष्ठावान होने की अनिवार्यता होती है वहाँ किसी भी प्रकार की जातीय, सांस्कृतिक तथा धार्मिक मतभिन्नताओं को सत्तारूढ़ सरकार की निरंकुशता झेलनी पड़ सकती है। उदाहरणस्वरूप चीन के झिंजियांग प्रांत में चीनी सेना चेहरे पहचानने की तकनीक का उपयोग करके तथा जासूसी करने तथा के लिये ए.आई. उपकरणों का प्रयोग कर उईगर मुसलमानों के व्यवहारों एवं मान्यताओं में परिवर्तन कर रही है। इसके अलावा सरकार जनता के व्यवहार का आकलन करने के लिये सामाजिक क्रेडिट स्कोर प्रणाली का भी विकास कर रही है।
    • मानवीय बुद्धिमत्ता एवं क्षमताओं की भूमिकाओं में कमी: परंपरागत रूप से युद्ध संबंधी निर्णय उन सैन्य जनरलों (अधिकारियों) द्वारा लिया जाता था जिन्हें कई युद्धों का अनुभव हो, किंतु वर्तमान समय में ए.आई. प्रणाली अधिक तर्कसंगत एवं विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम है जिसकी आँकड़ा विश्लेषण क्षमता एवं गणनाएँ मानवीय बुद्धि एवं क्षमता से कई गुना अधिक है।
    • भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सहानुभूति: सैन्य बलों में शामिल सैनिक मैत्री और बंधुत्व के भाव से संचालित होते हैं जिससे वे कठिन परिस्थितियों में एक-दूसरे का भावनात्मक रूप से साथ देते हैं किंतु किसी ड्रोन, स्वचालित हथियार या रोबोटिक कुत्ते के साथ युद्धरत एक सैनिक मशीन से ऐसी सहानुभूति की उम्मीद नहीं की जा सकती। महत्त्वपूर्ण निर्णयों के मामले में भी ए.आई. में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का अभाव होता है तथा उसके द्वारा लिये गए मशीनी निर्णय अत्यंत भयावह भी हो सकते हैं। जॉन एफ. कैनेडी ने ई.आई. का उपयोग करके यू.एस.एस.आर. के नेताओं को फोन करके अपनी चिंताओं से अवगत कराते हुए क्यूबा मिसाइल संकट को टाल दिया था। हालाँकि, ए.आई. के उपयोग से खतरे को भाँपते हुए ऐसे त्वरित निर्णय लिये जाने की क्षमता कम हो जाती है।
    • युद्ध में सामंजस्य की कमी: सैन्य सुरक्षा ए.आई. के उपयोग से हिंसा और विनाश में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है, यदि किन्हीं दो देशों के बीच युद्ध होता है तो कोई एक देश स्वचालित हथियारों के उपयोग से इसे एकतरफा बनाने की कोशिश करेगा जिससे व्यापक क्षति हो सकती है।
    • जवाबदेहिता और ज़िम्मेदारी: किसी भी युद्ध में कुछ मानक सिद्धांतों के तहत उचित आचरण का ध्यान रखा जाना चाहिये। आज यदि सैन्यकर्मी युद्ध के नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं तो उन पर युद्ध अपराधों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, किंतु जैसे ही हमने स्वचालित मशीनों को युद्ध में शामिल किया तो उनकी जवाबदेही न्यून हो जाएगी, साथ ही मशीनों को क्रूर कृत्यों के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

    आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये ए.आई. का तर्कसंगत उपयोग प्रगतिशील साबित हो सकता है, हालाँकि नैतिक सिद्धांत और सही आचरण को आत्मसात करने की आवश्यकता है क्योंकि महात्मा गांधी ने कहा था कि कोई भी 'मानवता के बिना विज्ञान' पाप है और हमें सैन्य सुरक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अंधाधुंध उपयोग के पहले इन शब्दों को ध्यान में रखना चाहिये।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • गुट निरपेक्षता नीति के विचार को संक्षेप में समझाइए।
    • भारत की अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता का मार्गदर्शन करने वाले मूलभूत सिद्धांतों का उल्लेख कीजिये।
    • उदाहरणों के साथ भारत की अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता में बदलाव के कारण बताइये।

    भारत की गुटनिरपेक्ष नीति इस विचार पर आधारित थी कि एक देश को अपनी विदेश नीति के लिये स्वतंत्र होना चाहिये, जो किसी अन्य देश के अधीन नहीं होनी चाहिये। अतः इसने आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और राज्यों की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता एवं बहुपक्षीय सैन्य समझौतों का पालन न करने पर ध्यान केंद्रित किया है।

    यह 'पंचशील' सिद्धांतों पर आधारित थीा:

    • सभी देशों द्वारा अन्य देशों के क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
    • दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
    • दूसरे देश पर आक्रमण न करना।
    • परस्पर सहयोग व लाभ को बढ़ावा देना।
    • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का पालन करना।

    भारतीय विदेश नीति में 'नैतिक आदर्शवाद':

    • विदेश नीति में भारत का आदर्शवाद शांति, सहिष्णुता और सर्वदेशीयवाद के सभ्यतागत मूल्यों द्वारा निर्देशित है। अतः भारत मुख्य रूप से अपनी संस्कृति, लोकतांत्रिक शासन आदि के आधार पर अपनी सॉफ्ट पावर पर निर्भर है।
    • मानवाधिकारों के लिये सार्वभौमिक चार्टर के प्रारूपण में भारत की सक्रिय भागीदारी, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत का योगदान, कोरियाई युद्ध के दौरान मध्यस्थता हेतु भारतीय राजनयिक सेवाओं की पेशकश, सभी का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये भारत की सभ्यतागत जिम्मेदारी को पेश करना था।

    निम्नलिखित कारक भारत की अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता में बदलाव का संकेत देते हैं:

    • अल्पकालिक राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता: राष्ट्रीय हित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता के साथ संघर्ष में आ सकता है।
      • उदाहरण के लिये: भारत अपने राष्ट्रीय हित के लिये परमाणु हथियारों की खरीदी कर रहा है, भले ही यह स्पष्ट रूप से परमाणु निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
      • भारत ने अपने राष्ट्रीय हित के कारण म्याँमार के साथ 'रोहिंग्या मुद्दा' नहीं उठाया, जबकि भारत वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भारतीय दर्शन ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की अवधारणा को आधार प्रदान करता है।
    • NAM 2.0 के युग में 'नैतिक यथार्थवाद' के तत्व उभर रहे हैं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सत्ता दृष्टिकोण पर उचित ध्यान दिया जा रहा है।
      • वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, मालदीव में 1988 के ऑपरेशन कैक्टस और पाकिस्तान के प्रति हालिया विदेश नीति के रुख के दौरान भारत की वास्तविक राजनीति में बदलाव देखा जा सकता है।
    • भू-राजनीतिक परिवर्तन: गुटनिरपेक्षता से भारत-प्रशांत क्षेत्र में 'शुद्ध सुरक्षा प्रदाता' होने की भारत की महत्त्वाकांक्षा भारत को गठबंधन तथा सैन्य अभ्यास में शामिल होने के लिये प्रेरित करती है।
      • उदाहरण के लिये: यूएसए और जापान के साथ मालाबार अभ्यास, यूएसए, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड समूह का उदय।

    अपनी विदेश नीति में बदलाव के बाद भी भारत के मूल्य अभी भी बरकरार है जिसे अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण संक्रमण के समर्थन में देखा जा सकता है और सैन्य प्रभुत्व पर निर्भरता के बजाय लोगों से लोगों के बीच संपर्क पर इसका ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

    (c)

    हल करने का दृष्टिकोण

    • ई-नागरिक घोषणा-पत्र एवं इसके महत्त्व को संक्षेप में बताइये।
    • इसके मुख्य सिद्धांतों एवं घटकों की चर्चा कीजिये।
    • प्रगति का संक्षिप्त परिचय देते हुए इसकी विशेषताओं को बताइये।
    • शिकायत निवारण में प्रगति की भूमिका को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    उत्तर:

    ई-नागरिक घोषणा-पत्र ई-गवर्नेंस का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जो कि एक ऐसा ई-दस्तावेज़ है जो किसी संगठन के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं, उनके गैर-भेदभावपूर्ण वितरण, पहुँच, शिकायत निवारण तंत्र, उत्तरदायित्व तथा पारदर्शिता के संबंध में नागरिक-केंद्रित प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है, इसके अंतर्गत संगठन द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये नागरिकों से संबंधित अपेक्षाओं को शामिल करता है।

    ई-नागरिक घोषणा-पत्र के छ: मूल सिद्धांत हैं-

    गुणवत्ता: सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।

    चुनाव: जहाँ तक संभव हो चुनने का अधिकार।

    मानक: सेवा के मानकों को पूरा करना।

    कीमत: करदातों के पैसों की।

    जवाबदेही: व्यक्तियों एवं संगठनों के प्रति।

    पारदर्शिता: शिकायत निवारण के लिये नियमों एवं प्रक्रियाओं का पालन।

    ई-नागरिक घोषणा-पत्र के प्रमुख घटकों को निम्नवत् देखा जा सकता है-

    • विज़न एवं मिशन स्टेटमेंट
    • संगठन द्वारा हस्तांतरित व्यापार का विवरण
    • ग्राहकों का विवरण
    • प्रत्येक ग्राहक समूह को प्रदान की जाने वाली सेवाओं का विवरण
    • शिकायत निवारण तंत्र का विवरण तथा उस तक पहुँचने प्रक्रिया।
    • ग्राहकों की अपेक्षाएँ।

    प्रगति (PRAGATI) एप्लिकेशन

    प्रगति का पूरा नाम प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एवं टाइमली इंप्लीमेंटेशन है जिसका उद्देश्य सतर्क प्रशासन एवं समयानुकूल संस्कृति को प्रारंभ करना है। यह प्रमुख हितधारकों को रियल टाइम पर ई-पारदर्शिता एवं ई-जवाबदेही उपलब्ध कराती है।

    प्रगति प्लेटफॉर्म निम्नलिखित रूप में प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र के रूप में कार्य करता है-

    • प्रगति प्लेटफॉर्म तीन नवीनतम तकनीकों- डिजिटल डेटा प्रबंधन, वीडियो कॉन्प्रेंसिंग तथा भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी को शामिल करता है जिसके माध्यम से प्रधानमंत्री किसी विषय पर संबद्ध केंद्रीय तथा राज्यों के अधिकारियों से पूरी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। इससे ज़मीनी स्तर पर सही स्थिति की पूरी सूचना प्राप्त होगी। यह ई-गवर्नेंस तथा सुशासन में एक अभिनवकारी परियोजना है।
    • यह एक त्रिस्तरीय प्रणाली है जो पी.एम.ओ., केंद्र सरकार के सचिवों तथा राज्यों के मुख्य सचिवों को एक मंच पर लाता है। इसके, साथ प्रधानमंत्री संबंधित केंद्रीय व राज्य अधिकारियों के साथ सीधे संपर्क कर सकते हैं।
    • प्रधानमंत्री मासिक कार्यक्रम में डाटा तथा भू-सूचना विज्ञान विज़ुअल युक्त वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारत सरकार के सचिवों तथा राज्य के मुख्य सचिवों से संवाद करेंगे। यह कार्यक्रम हर महीने के चौथे बुधवार को 3:30 बजे अपराह्न में आयोजित किया जाएगा जिसे प्रगति दिवस कहा जाता है।
    • प्रधानमंत्री के समक्ष लोक शिकायत, चालू कार्यक्रम तथा लंबित परियोजनाओं से संबंधित उपलब्ध डेटाबेस को चिह्नित किया जाएगा तथा उनका समाधान खोजा जाएगा।

    नागरिक घोषणा-पत्र कानूनों के उचित क्रियान्वयन तथा सेवा वितरण के लिये एक मज़बूत संस्थागत तंत्र उपलब्ध कराता है। प्रगति जैसे प्लेटफॉर्म निश्चित रूप से प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएंगे तथा लालफीताशाही एवं भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति में कमी लाने हेतु प्रभावी समाधान उपलब्ध कराएंगे।


    उत्तर 3:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • निष्पक्षता व गैर-तरफदारी पद का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • लोक सेवा में तटस्थता बनाए रखने में इनके महत्त्व को बताइये।
    • उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने तर्कों की पुष्टि कीजिये।
    • अंत में सकारात्मक निष्कर्ष दीजिये।

    एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वजनिक कार्यालयों का प्रत्येक धारक जनता के प्रति जवाबदेह होता है। जवाबदेही का प्रत्यारोपण आचार संहिता के माध्यम से किया जाता है, जो अंतत: सार्वजनिक रूप में सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता को सुधारता है। निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी नैतिकता के दो प्रमुख आयाम हैं, जो कि लोक सेवा में एक तटस्थ दृष्टिकोण के विकास में सहायक होते हैं। तटस्थता को किसी भी लाभ अथवा व्यक्तिगत फायदे के प्रति उदासीनता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है तथा निष्पक्षता एक पक्षपातविहीन दृष्टिकोण है, जिसमें अमीर-गरीब, जाति-धर्म के सामाजिक दबाव आदि से तटस्थ रहकर कार्य किया जाता है। वहीं गैर-तरफदारी किसी विशेष विचारधारा अथवा राजनीतिक दलों के प्रति झुकाव या संबद्धता की अनुपस्थिति की द्योतक है।

    निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी सभी के लिये सुशासन की अवधारणा के प्रवर्तन हेतु एक तंत्र का निर्माण करते हैं। हालाँकि, भारत जैसे जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक लोक सेवक का वस्तुनिष्ठ व निष्पक्ष होना अत्यधिक मुश्किल कार्य है। ऐसी स्थिति में निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करते हैं तथा समाज को सर्वोत्तम सेवाएँ देने में सहायक होते हैं। ये मूल्य लोक सेवकों के लिये विभिन्न व्यवस्थाओं या पार्टियों के साथ बिना किसी संघर्ष के और पूरे उत्साह से कार्य करने हेतु पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं।

    दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि लोक सेवकों को ‘सभी के कल्याण’ के लिये कार्य करना होता है। उसे नीतियों के क्रियान्वयन हेतु व्यक्तिगत विश्वासों के विपरीत भी कार्य करना पड़ता है। लोक नीतियों के क्रियान्वयन में जाति, वर्ग, क्षेत्र या धर्म के विचार के बिना कार्य करना होता है। उदाहरण के लिये, किसी लोक सेवक को आदिवासी क्षेत्र में काम करने के क्रम में आदिवासी समाज के सांस्कृतिक विश्वासों के साथ असहमति हो सकती है, किंतु यह असहमति उसकी जनता की सेवा करने की इच्छाशक्ति को प्रभावित न करे।

    इस प्रकार देखा जाए तो एक लोक सेवक भी किसी विशिष्ट समाज का भाग है। यदि उसमें अपने समाज का कोई सामाजिक मानदंड बचा रहता है तो वह व्यक्तिगत विचारों के आधार पर पक्षपाती निर्णय ले सकता है। उदाहरण के लिये, किसी समाज के संभ्रंात वर्ग का सिविल सेवक कभी भी समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति सहानुभूति या करुणा नहीं रख सकता। निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी लोक सेवकों में बेहतर प्रशासन एवं कल्याणकारी नीतियों के निष्पक्ष क्रियान्वयन हेतु अभिवृत्ति का विकास करेंगे।

    जब कभी भी अंतरात्मा की असंतुष्टि और नैतिक दुविधा की स्थिति हो तो सही-गलत में फर्क करने में निष्पक्षता एवं गैर-तरफदारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो अंतत: तटस्थता, सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता लाने में सहायक होते हैं। ये वास्तविक अर्थों में लोक सेवा के प्रति समर्पण की ओर ले जाते हैं। श्री टी.एन. शेषन कठिन परिस्थितियों में भी अपनी गरिमा और सम्मान के साथ आगे बढ़ पाए। ऐसा वे इसलिये कर पाए क्योंकि उन्होंने सदैव तटस्थता, गैर-तरफदारी और निष्पक्षता के सिद्धांत का पालन किया। उनके इस दृष्टिकोण ने चुनाव आयोग में अभूतपूर्व सुधार किये। इस प्रकार गैर-तरफदारी और निष्पक्षता सुशासन, तटस्थता तथा निर्णयन में पारदर्शिता को सुनिश्चित करते हैं। ये मूल्य हितों के संघर्ष को रोकने हेतु सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं ताकि संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित विभिन्न आदर्शों का पालन किया जा सके।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रस्तावना में भावनाओं और उनके प्रभावों के बारे में संक्षेप में लिखिये।
    • उन अवांछनीय नकारात्मक भावनाओं की चर्चा कीजिये जिनसे लोक सेवकों को बचना चाहिये।
    • नकारात्मक भावनाओं को प्रबंधित करने के लिये कुछ उपाय देते हुए उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    भावनाएँ जैविक रूप से आधारित मनोवैज्ञानिक अवस्थाएँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के विचारों, व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं और प्रसन्नता या नाराज़गी से जुड़ी होती हैं। इसकी परिभाषा पर वर्तमान में कोई वैज्ञानिक सहमति नहीं है। भावनाओं को अक्सर मनोदशा, स्वभाव, व्यक्तित्व, रचनात्मकता के साथ जोड़ा जाता है।

    वर्ष 1972 में, पॉल एकमैन ने सुझाव दिया कि छह बुनियादी भावनाएँ हैं जो मानव संस्कृतियों में सार्वभौमिक हैं: भय, घृणा, क्रोध, आश्चर्य, खुशी और उदासी।

    प्रारूप

    नकारात्मक भावनाओं को लोक सेवकों को कैसे प्रबंधित करना चाहिये:

    • नकारात्मक भावनाओं को प्रबंधित करना: शत्रुता, मोह, घृणा, स्वार्थ, अहंकार, ईर्ष्या, लालच, पाखंड, द्वेष और इसी तरह की अन्य भावनाओं को कभी भी लोक सेवकों द्वारा अपने कार्यों में नहीं लाना चाहिये।
      • अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हमारा मन शांत और प्रसन्न बना रहे।
      • उन्हें सफलता या असफलता, खुशी या दुख, जीत या हार, लाभ या हानि और मान या अपमान के बारे में चिंताओं से ग्रस्त नहीं होना चाहिये।
      • लोक सेवकों को सफलता से अनावश्यक रूप से उत्साहित नहीं होना चाहिये या असफलता से अत्यधिक निराश नहीं होना चाहिये।
      • मनुष्य स्वभाव से ही स्वार्थी होता है। लेकिन लोक सेवकों को चाहिये कि वे मनुष्य और समाज की सेवा की ओर स्वयं को निर्देशित करके स्वार्थी प्रवृत्तियों को दूर करें।
    • धार्मिक असहिष्णुता: उन्हें धार्मिक कट्टरवाद से प्रेरित नहीं होना चाहिये और किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं होना चाहिये बल्कि धार्मिक रूप से सहिष्णु होना चाहिये।
    • असफलताओं से निराश न होना: व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की चुनौतियों से किसी को भी भागना नहीं चाहिये। विशेष रूप से सिविल सेवकों को पलायनवाद में नहीं पड़ना चाहिये और न ही झूठी वेदना की तलाश करनी चाहिये। दैवीय इच्छा या नियति जैसे विचारों को निष्क्रियता के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये।
      • पुरुष ईश्वरीय इच्छा को नहीं जान सकते। उन्हें अन्य मामलों के बारे में सोचे बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिये।

    निष्कर्ष

    भावनाओं को अभ्यास और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की क्षमता को विकसित करके प्रबंधित किया जा सकता है। यह अपनी और दूसरों की भावनाओं की पहचान करने, उन्हें नियंत्रित करने और प्रबंधित करने की क्षमता है।


    उत्तर 4:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण

    • शासन और भ्रष्टाचार पर कौटिल्य के विचारों की चर्चा कीजिये।
    • समकालीन समय में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
    • निष्पक्ष निष्कर्ष लिखिये।

    कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में शासन और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर चर्चा की है। अर्थशास्त्र भारत को पहला कल्याणकारी राज्य बनाने के लिये वैचारिक आधार प्रदान करता है।

    शासन पर कौटिल्य का दृष्टिकोण

    • कौटिल्य के अनुसार सुशासन सुनिश्चित करने के लिये एक उचित निर्देशित लोक प्रशासन होना चाहिये जहाँ शासक को अपनी पसंद और नापसंद को अपनी प्रजा के हित में आत्मसमर्पण करना चाहिए तथा सरकार चलाने वाले कर्मियों को उत्तरदायी और ज़िम्मेदार होना चाहिये।
    • वह कहता है कि "अपनी प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, उनके कल्याण में उसका कल्याण निहित है। वह केवल उसे श्रेष्ट नहीं मानेगा जो उसे प्रसन्न करता है, बल्कि उसे श्रेष्ट मानेगा जो उसकी प्रजा को प्रसन्न करता हो तथा उसके लिये लाभकारी है"। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण सुशासन पर उनके महत्त्व को प्रदर्शित करता है
    • कौटिल्य ने आगे इस बात पर ज़ोर दिया कि नागरिक अनुकूल सुशासन के लिये प्रशासनिक प्रथाओं के साथ-साथ नेतृत्व, जवाबदेही, बुद्धि, ऊर्जा, अच्छे नैतिक आचरण और शारीरिक रूप से स्वस्थ्य संबंधी गुण रखने वाले सक्षम मंत्रियों और अधिकारियों में एकरूपता होनी चाहिये, जो त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हों।
    • एक शासक जो चार सिद्धांतों धार्मिकता, प्रमाण, मामले का इतिहास और प्रचलित कानून के आधार पर न्याय करता है, वह पृथ्वी पर विजय प्राप्त करेगा।
    • उनके अनुसार यदि शासक उत्तरदायी, ज़िम्मेदार, जवाबदेह, हटाने योग्य और वापस लेने योग्य हैं, तो स्थिरता है, अन्यथा अस्थिरता होगी।
    • सुशासन के लिये राजा सहित सभी प्रशासक प्रजा के सेवक माने जाते थे। उन्हें प्रदान की गई सेवाओं के लिये भुगतान किया गया जाता है, न कि उनके स्वामित्व के लिये।

    भ्रष्टाचार पर दृष्टिकोण:

    सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार पर उनके विचार उल्लेखनीय रूप से यथार्थवादी थे जो सिद्धांत के बजाय व्यवहार पर उनके ज़ोर को रेखांकित करते हैं।

    • उनके अनुसार, भ्रष्टाचार से बचना मुश्किल हो सकता है क्योंकि कौटिल्य ने कहा कि यह बताना असंभव है कि, "जिस तरह पानी के नीचे चलने वाली मछली पीने या न पीने योग्य पानी में नहीं मिल सकती है।
    • वह धोखा देने के लिये एक निरुत्साह के रूप में भौतिक और शारीरिक दोनों तरह से सख्त सजा की सिफारिश करता है ।
    • कौटिल्य नौकरशाहों और राजनेताओं की विशेषताओं से अच्छी तरह वाकिफ थे और उन्होंने सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिये नियम बनाए।
    • उन्होंने आर्थिक प्रदर्शन को ठीक से मापने के लिये आर्थिक उद्यमों में लेखांकन विधियों के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

    वर्तमान भारतीय समाज में उनके विचारों/दृष्टिकोण की प्रासंगिकता:

    • वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुशासन और स्थिरता और भी अधिक लागू होती है। ये मूल्य वर्तमान संदर्भ में जवाबदेही के रूप में प्रासंगिक हैं; भारत द्वारा अपनाए गए लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली में नागरिकों के प्रति सरकार की ज़िम्मेदारी सर्वोपरि है।
    • कौटिल्य की आर्थिक धारणाओं का मुख्य केंद्र बिन्दु समाज कल्याण है। राज्य को गरीबों और असहायों की मदद करने और अपने नागरिकों के कल्याण में योगदान देने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता होनी चाहिये। भारत में हाशिए पर रहने वालों पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 1990 के आर्थिक सुधारों के बाद से भारत में आय की असमानताएँ लगातार बढ़ रही हैं।
    • लोक सेवकों और राजाओं के लिये नैतिक मानकों पर उनका ज़ोर अभी भी प्रासंगिक है उदाहरण के लिये द्वितीय एआरसी में सिविल सेवकों के साथ-साथ राजनीतिक अधिकारियों के लिये आचार संहिता का सुझाव दिया गया है।
    • भ्रष्टाचार पर कौटिल्य दृष्टिकोण आज भी आधुनिक भारत में प्रासंगिक हैं क्योंकि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत 180 देशों में से 78 वें स्थान पर है। सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार, चुनावी फंडिंग, क्रोनिज्म आदि के मुद्दों पर भारत में व्यापक रूप से बहस होती है।

    अर्थशास्त्र समग्र अर्थव्यवस्था पर व्यापक कवरेज प्रदान करता है, जिसमें बुनियादी ढाँचा (सड़क, सिंचाई, वानिकी और किलेबंदी), भार और माप, श्रम और रोज़गार, वाणिज्य और व्यापार, वस्तुओं और कृषि, भूमि उपयोग एवं संपत्ति से संबंधित कानून, मुद्रा और सिक्का ढलाई , ब्याज दरें और ऋण बाज़ार, टैरिफ और कर आदि शामिल हैं। यह आधुनिक समय के लिये महत्त्वपूर्ण है और कई समकालीन आर्थिक विचारों का उदाहरण देने के लिये उपयोगी हो सकता है।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • महात्मा गांधी की ग्यारह व्रत/प्रतिज्ञाओं के बारे में लिखिये।
    • आज के समाज में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • एक उचित निष्कर्ष लिखिये।

    महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम के निवासियों के आध्यात्मिक और नैतिक उत्थान के लिये ग्यारह व्रत/प्रतिज्ञाएँ दीं, लेकिन इन प्रतिज्ञाओं ने पूरे समाज के लाभ के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों के रूप में कार्य किया।

    ग्यारह व्रत:

    सत्य: 'सच्चिदानंद' [सत् (होना) + चित (सच्चा ज्ञान) + आनंद (परम सुख)] सर्वोच्च होने के विशेषणों में से एक है। सत्य का पालन केवल वाणी में ही नहीं बल्कि विचार और कार्य में भी अपेक्षित था।

    अहिंसा: अहिंसा वह मार्ग है जिसके द्वारा व्यक्ति सत्य तक पहुँचता है। इसका अर्थ न केवल शारीरिक हिंसा से बचना है बल्कि सभी घृणा, ईर्ष्या और दूसरों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा को भी दूर करना है।

    ब्रह्मचर्य: इसका अर्थ है- ब्रह्म की, सत्य की खोज में चर्या, अर्थात् उससे संबंध रखने वाला आचार। इसका मूल अर्थ है- सभी इंद्रियों का संयम।

    अस्तेय (चोरी न करना) – दूसरे की ची़ज को उसकी इजाजत के बिना लेना तो चोरी है ही, लेकिन मनुष्य अपनी कम से कम ज़रूरत के अलावा जो कुछ लेता या संग्रह करता है, वह भी चोरी ही है।

    अपरिग्रह या असंग्रह: एक व्यक्ति को ऐसा सादा जीवन जीना चाहिये कि वह समाज से केवल अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को अपने लिये ले।

    शरीरिक श्रम: जिनका शरीर काम कर सकता है, उन स्त्री-पुरुषों को अपने रोज़मर्रा के खुद करने के लायक सभी काम खुद ही कर लेने चाहिये। बिना कारण दूसरों से सेवा नहीं लेनी चाहिये।

    अस्वाद मनुष्य जब तक जीभ के रसों को न जीते, तब तक ब्रह्मचर्य का पालन बहुत कठिन है। भोजन केवल शरीर पोषण के लिये हो, स्वाद या भोग के लिये नहीं।

    अभय-निडरता : सत्य को साकार करने के लिये सारे भय को दूर करना आवश्यक है।

    सर्व-धर्म-समानत्व: सभी धर्मों के लिये समान सम्मान: सत्य की खोज सभी धर्मों के पीछे चलती आत्मा है। इसलिये कभी भी अपने धर्म को ही एकमात्र पूर्ण धर्म नहीं मानना चाहिये।

    स्वदेशी: अपने आसपास रहने वालों की सेवा में ओत-प्रोत हो जाना स्वदेशी धर्म है। जो निकट वालों को छोड़कर दूर वालों की सेवा करने को दौड़ता है, वह स्वदेशी धर्म को भंग करता है।

    अस्पृश्यता: अस्पृश्यता को दूर करना: गांधी का उद्देश्य अस्पृश्यता का सफाया करने तथा दबे-कुचले लोगों का उत्थान करना था।

    आज के समाज में महत्त्व:

    • व्यक्तिगत ईमानदारी और पेशेवर सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के लिये सच्चाई का पालन आवश्यक है।
    • असंगराह या गैर-कब्ज़े का दर्शन विश्व स्तर पर बढ़ते उपभोक्तावाद, पर्यावरणीय अस्थिरता और असमानता को दूर करने में मदद कर सकता है।
    • स्वच्छ भारत मिशन में नागरिकों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिये रोटी श्रम की अवधारणा का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है।
    • राष्ट्र के युवा मन में जिज्ञासा जगाने के लिये अभय या निर्भयता की आवश्यकता है ताकि उनकी अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्त किया जा सके साथ ही लोकतंत्र के सही अर्थ को कायम रखते हुए असहमतिपूर्ण आवाज उठाई जा सके।
    • अहिंसा वैश्विक शांति और समृद्धि का एकमात्र समाधान है विशेषकर जब दुनिया जातीय संघर्षों, आतंकवाद, युद्ध आदि की समस्याओं का सामना कर रही है।

    अतः गांधीवादी सिद्धांत आज भी समाज में शांति और सामाजिक एकजुटता के अग्रदूत के रूप में कार्य कर रहे हैं।


    उत्तर 5:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उदाहरणों के साथ मानवीय मूल्यों को परिभाषित कीजिये।
    • मूल्यों के प्रकार को समझाएँ, चाहे वे समय के साथ बदलते रहें या स्थायी हों।

    मूल्य जीवन के ऐसे तत्व हैं जिन्हें हम महत्त्वपूर्ण या वांछनीय मानते हैं। वे आचरण के मानक और मानव व्यवहार के मार्गदर्शक हैं। मूल्य व्यक्ति के चरित्र को उसके जीवन में एक केंद्रीय स्थान पर रखकर अर्थ और मज़बूती प्रदान करते हैं। मूल्य व्यक्ति के व्यक्तिगत दृष्टिकोण और निर्णयों और विकल्पों, व्यवहार एवं संबंधों को दर्शाते हैं।

    • मूल्य सापेक्ष के साथ-साथ निरपेक्ष भी हो सकते हैं।

    सापेक्ष मूल्य:

    • ये व्यक्तिगत और सामाजिक मानकों, उनकी पसंद, नापसंद, सामाजिक मानदंडों, परंपराओं पर आधारित हैं, उदाहरण के लिये 'वासुदेव कुटुम्बकम' के भारतीय पारंपरिक मूल्य, सार्वभौमिक भाईचारा, सहिष्णुता उदारवाद, व्यक्तिवाद और उपयोगितावाद के पश्चिमी मूल्यों के विपरीत हो सकते हैं।
    • मूल्य समाज में व्यवस्था लाने के लिये विकसित और संस्कृति विशिष्ट होते हैं। वे संस्कृतियों के साथ विकसित होते हैं।
      • उदाहरण के लिये: भारतीय समाज की वर्तमान पीढ़ी बलिदान और निस्वार्थता के भारतीय पारंपरिक मूल्यों के बजाय अधिक मुखरता दिखाने वाली महत्त्वाकांक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील है।
      • संयुक्त परिवार और यहाँ तक कि लिव-इन रिलेशनशिप के मानदंड आज अधिक सामाजिक रूप से स्वीकार किये जाते हैं।

    निरपेक्ष मूल्य:.

    • सत्य, कृतज्ञता, शांति, अहिंसा, सहानुभूति जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को समय और स्थान से परे माना जाता है। वे आधारभूत मूल्य हैं जो बदलते नहीं हैं बल्कि स्थिर रहते हैं।
    • आचरण के मानक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति, समाज से समाज में भिन्न होते हैं लेकिन कुछ मूल्य हो सकते हैं जिन्हें सार्वभौमिक माना जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये: हत्या हर समाज में एक अपराध है और इसलिये एक सार्वभौमिक आदर्श है।
      • इमैनुएल कांट ने मानवीय गरिमा को एक सार्वभौमिक मूल्य और उनकी स्पष्ट अनिवार्यताओं में से एक माना। इसी तरह, रॉल्स के लिए न्याय एक वास्तुशिल्प सिद्धांत है।

    इस प्रकार, मूल्य या तो सार्वभौमिक, सापेक्ष या गतिशील हो सकते हैं जो समय के साथ बदलते रहते हैं। जैसा कि आइंस्टीन ने एक बार ठीक ही कहा था कि "सफल व्यक्ति बनने की कोशिश न करें बल्कि मूल्यों के साथ व्यक्ति बनने की कोशिश करें"। मूल्य हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को प्रभावित करते हैं। वे हमें सही कार्य करने के लिये मार्गदर्शन करते हैं। मूल्य जीवन को दिशा और दृढ़ता प्रदान करते हैं।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रभावी नेतृत्त्व के लिये शक्ति-साझाकरण और सहभागी निर्णय लेने के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • इसके लिये उदाहरण दीजिये।
    • निष्पक्ष निष्कर्ष लिखिये।

    सत्ता-साझाकरण और सहभागी निर्णय लेने पर आधारित नेतृत्व अधिक आकर्षक और लोकतांत्रिक हो सकता है। सत्ता-साझाकरण न केवल नेता और समुदाय के बीच विश्वास का निर्माण करता है बल्कि यह नेतृत्व की अगली पंक्ति को भी प्रभावी ढंग से तैयार करता है साथ ही एक सहभागी निर्णय समुदाय में पाए जाने वाले विविध दृष्टिकोणों के बीच आपसी सम्मान को विकसित और मज़बूत कर सकता है।

    सत्ता का बंटवारा लोगों को ज़िम्मेदारी लेने के लिये प्रेरित करता है और अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी की भावना का आह्वान करता है। जब सत्ता साझा की जाती है तो समुदाय के सदस्यों का नेतृत्व उनकी दक्षता के आधार पर होता है। यह आगे विभिन्न लक्ष्यों या कार्यों के लिये व्यक्तियों के बीच स्वामित्व की भावना को बढ़ाता है तथा निगरानी की आवश्यकता को कम करता है। इस प्रकार संसाधनों का अधिक कुशल प्रबंधन होता है।

    सहभागी निर्णय लेने से समुदाय के सदस्यों के बीच एकता और सहयोग मज़बूत होता है। यह समानता को बढ़ावा देता है साथ ही समस्याओं के समाधान खोजने के लिये अधिक प्रभावी तरीके से परिणाम प्रदान करता है। एक नेता जो निर्णय लेने में सहभागी दृष्टिकोण का पालन करता है, उसके पूर्वाग्रहों से विचलित होने की संभावना कम होती है तथा समुदाय के विभिन्न वर्गों के प्रति अधिक सहानुभूति हो सकती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि सहभागी दृष्टिकोण शक्ति के समान वितरण पर ज़ोर देता है। यह एक शक्तिशाली समूह द्वारा किये जाने वाले शोषण की संभावना को भी कम करता है।

    महात्मा गांधी का नेतृत्व काफी हद तक सत्ता के बंटवारे और सहभागी निर्णय लेने पर आधारित था। गांधीवादी नेतृत्व ने मज़दूर वर्ग, आदिवासियों, महिलाओं, दलितों और भारतीय समाज के अन्य कमज़ोर वर्गों के अधिकांश समूहों को शामिल किया तथ उन्हें प्रभावी ढंग से देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। इसने अगली पीढ़ी के नेताओं के लिये अपने नेतृत्व में अधिक लोकतांत्रिक होने की एक मिसाल कायम की।

    एक प्रभावी नेतृत्व न केवल समुदाय के सदस्यों की वर्तमान पीढ़ी को उत्पादकता की ओर निर्देशित करता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों में प्रगतिशील, समावेशी और सहानुभूतिपूर्ण नेतृत्व को तैयार करने के लिये आवश्यक नींव भी प्रदान करता है। यह वह है जो समाज को बेहतर कार्य के लिये बदलता है।


    उत्तर 6:

    (a)

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संक्षेप में EI को परिभाषित कीजिये।
    • एक प्रशासक के लिये EI की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
    • भावनात्मक रूप से बुद्धिमान प्रशासक के प्रमुख गुणों की चर्चा कीजिये।
    • निष्कर्ष लिखिये।

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने और नियंत्रित करने की क्षमता एवं साथ ही दूसरों की भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता से है।

    नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धि एक बहुत महत्त्वपूर्ण कौशल होती है। डैनियल गोलेमैन ने भावनात्मक बुद्धिमत्ता के 5 तत्त्व बताए हैं:

    स्व-जागरूकता: स्व-जागरूकता एक व्यक्ति की भावनाओं, शक्तियों, चुनौतियों, उद्देश्यों, मूल्यों, लक्ष्यों और सपनों को ईमानदारी से प्रतिबिंबित करने एवं समझने की क्षमता है।

    आत्मनियमन: यह किसी की भावनाओं को नियंत्रित करने से संबंधित है, इसके माध्यम से व्यक्ति किसी की भावनाओं पर शासन कर सकता है। साथ ही किसी भी विषय पर त्वरित प्रतिक्रिया करने के बजाय गहन सोच-विचार कर अनुक्रिया करता है।

    आत्म अभिप्रेरण: इसका अर्थ है कि जब व्यक्ति को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बाहर से पर्याप्त अभिप्रेरणा न मिले तो उसमें यह क्षमता होनी चाहिये कि वह स्वयं को निरंतर प्रेरित कर सके।

    समानुभूति: दूसरों की अनुभूतियों और आवश्यकताओं को उसी के नज़रिये से समझने और उसके अनुरूप व्यवहार करने की क्षमता।

    सामाजिक दक्षता: इसका अर्थ है कि व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों के साथ कुछ इस प्रकार से संबंध बनाए रखने चाहिये की उन संबंधों से उसे तथा सभी को लाभ हो।

    एक प्रशासक द्वारा EI का अनुप्रयोग:

    • EI एक नेता को व्यक्तिगत सीमाओं के प्रति सचेत करने और संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये व्यक्तिगत शक्तियों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
    • यह नेतृत्व के लिये आवश्यक मानसिक स्पष्टता को सुनिश्चित करता है जो विघटनकारी भावनाओं को दूर कर सही निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
    • यह व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है और साथ ही संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये व्यक्ति में समर्पण की भावना भी उत्पन्न करता है।
    • यह स्वस्थ कार्य-सबंधों तथा कार्य-संस्कृति के वातावरण को विकसित करने में मदद करता है, जो संगठनात्मक नेतृत्त्व के कार्य को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
    • समानुभूति रखने वाला व्यक्ति भावनात्मक अभिव्यक्तियों, मौखिक संकेतों जैसे या चेहरे के भाव आदि को पढ़ सकता है।
    • यह एक प्रशासक को किसी विशिष्ट एजेंडा या कार्रवाई हेतु समर्थन प्राप्त करने के लिये दूसरों को मनाने, समझाने या प्रभावित करने में मदद करता है।

    एक प्रशासक के रूप में लोकसेवक के पास समाज के संरक्षक के रूप में कार्य करने की ज़िम्मेदारी होती है, इस संदर्भ में भावनात्मक बुद्धिमत्ता कौशल का उपयोग इस लक्ष्य की प्राप्ति में उसकी सहायता कर सकता है और निर्णय लेने की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

    (b)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षेप में हाल की घटनाओं का परिचय दीजिये जिन्होंने जलवायु न्याय को जनता की अंतरात्मा में वापस लाया है।
    • उन तत्वों का वर्णन कीजिये जो जलवायु न्याय के वर्तमान महत्त्व को परिभाषित करते हैं।
    • सतत् विकास की ओर बढ़ने के महत्त्व को संबोधित करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    जलवायु न्याय एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग ग्लोबल वार्मिंग को एक नैतिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में तैयार करने के लिये किया जाता है, न कि प्रकृति में विशुद्ध रूप से भौतिक या पर्यावरणीय रूप के लिये।

    16 वर्षीय स्वीडिश छात्र और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित #FridaysForFuture आंदोलन में दुनिया भर के 123 से अधिक देशों के युवाओं और स्कूली बच्चों ने भाग लिया। उनकी मुख्या मांग यह है कि सरकारें कार्बन उत्सर्जन को कम करें। इसने विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण और जलवायु न्याय की आवश्यकता की चर्चा को नया रूप दिया है।

    वर्तमान समय में जलवायु न्याय की प्रासंगिकता:

    • विकास बनाम पर्यावरण क्षरण: विकास के लिये किये गए उपायों का पर्यावरण पर काफी हद तक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन नकारात्मक रूप से वर्षा के प्रारूप को प्रभावित करता है, जैसे कमज़ोर देशों में खाद्य सुरक्षा ज़ोखिम क बढ़ना है, समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण शहरों का डूबना आदि। आईपीसीसी की रिपोर्ट में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ते वैश्विक तापमान के विनाशकारी प्रभावों के बारे में सख्त चेतावनी दी गई है।
    • निवेश को प्राथमिकता देना: विकासशील देशों में विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन कार्यों को लागू करने के लिये निवेश हेतु धन की कमी है। स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम) के माध्यम से उत्पन्न धन वर्तमान संकट से निपटने के लिये अपर्याप्त है। जलवायु न्याय जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित समुदायों की कमज़ोरियों के आसपास निवेश को प्राथमिकता देने की संभावनाएँ प्रदान करता है।
    • व्यवसायों और औद्योगिक समूहों द्वारा पैरवी करना: जीवाश्म ईंधन आधारित व्यवसायों में तेल आधारित कंपनियां और बड़े उद्योगपति सरकारों पर दबाव डालते हैं कि वे नवीकरणीय आधारित समाधानों के लिए त्वरित संक्रमण के लिए निर्णय न लें। जलवायु न्याय चर्चा को नीति निर्धारण में पीड़ित समुदायों के परिप्रेक्ष्य में स्थानांतरित करता है।
    • विकसित देशों द्वारा दिखाया गया प्रतिरोध: संयुक्त राज्य अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर आ रहा है तथा कनाडा की संसद ने जलवायु परिवर्तन कार्यों में निवेश में वृद्धि से इनकार कर दिया है, विकसित देशों की उपेक्षा और उनकी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करने से इनकार करने को दर्शाता है। जलवायु न्याय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की असमान प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करता है और कुछ देशों द्वारा अन्य देशों में किये गए कार्यों के लिये जवाबदेही की तस्वीर पेश करता है।

    अतः जलवायु न्याय जलवायु परिवर्तन के पर्यावरणीय और पारिस्थितिक परिणामों से अलग देखने और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित करने के लिये मज़बूत राजनीतिक कार्रवाई करने की मांग करता है। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मानवीय बनाता है तथा ग्रीनहाउस गैसों पर एक प्रवचन के मध्ययम से एक नागरिक अधिकार आंदोलन में बदलाव पर ज़ोर देता है, जो लोगों और समुदायों के दिल में जलवायु प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होेता हैं। नागरिक समाज समूहों को सतत् विकास का रास्ता अपनाने और जलवायु परिवर्तन कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिये सरकारों पर दबाव बनाने की तत्काल आवश्यकता है।


    उत्तर 7:

    (A)

    इस केस में अंतर्निहित मुद्दे

    एबीसी कंपनी की परियोजना सरकार की नीति के अनुरूप होने के बावजूद क्षेत्र के स्थानीय लोगों के प्रतिरोध का सामना कर रही है।

    इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

    • लोगों और उद्योगों के बीच विश्वास में कमी।
    • ज़ेनोफोबिया (अनजान लोगों से भय) जो कि मानव की एक अंतर्निहित मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है।
    • अविकसित क्षेत्र होने के कारण विकासपुरी के लोगों में जागरूकता का अभाव या अज्ञानता।
    • विकास होने पर रहन-सहन के खर्च मे बढ़ोतरी के साथ सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन को लेकर लोगों के बीच डर।

    (B)

    कंपनी के लक्ष्य और निवासियों की चिंता के बीच संघर्ष को हल करने के लिये कदम

    • सर्वप्रथम और सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि विकास के प्रति स्थानीय लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाया जाए।
      • सूचना, संचार और शिक्षा के दृष्टिकोण का उपयोग किया जाए।
      • कंपनी को परियोजना के कारण होने वाले विकास और संभावनाओं के बारे में जागरूकता लाने की ज़रूरत है। लोगों को यह विश्वास दिलाया जाए कि इस परियोजना के पूरे होने से, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और क्षेत्र की अवसंरचना का विकास आदि लाभ सामने आएंगे।
      • क्षेत्र के निवासियों और कंपनी के बीच मौजूद विश्वास की कमी को कम करने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता सेतु का काम कर सकती है।
    • स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देना और उन्हें सरकार के दृष्टिकोण और योजनाओं से अवगत कराना।
      • स्थानीय निवासियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने से उनके अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा तथा उनके मन से सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन के प्रति भय भी दूर होगा।
    • कौशल विकास कार्यक्रमों को कंपनी की CSR पहल का हिस्सा बनाना चाहिये।
    • यद्यपि ये विकास बनाम समुदाय के बीच संघर्ष से निपटने के लिये अल्पकालिक उपाय हो सकते हैं किन्तु इसका दीर्घकालिक समाधान समुदाय-संचालित विकास (CDD) दृष्टिकोण में निहित है।

    नोट: विश्व बैंक के अनुसार सीडीडी एक दृष्टिकोण है जो स्थानीय विकास परियोजनाओं हेतु सामुदायिक समूहों के लिये नियोजन निर्णयों और निवेश संसाधनों पर नियंत्रण रखता है।


    उत्तर 8:

    दृष्टिकोण

    • परिचय में इसमें शामिल विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये।
    • विभिन्न हितधारकों की पहचान कीजिये।
    • सैन्य दल के समक्ष उपलब्ध विकल्पों का उल्लेख कीजिये।
    • यदि आप सैन्य टीम के प्रमुख होते तो आपके द्वारा किस कार्यवाही का चयन किया जाता।

    प्रस्तुत मामला एक सैन्य दल द्वारा ड्रोन का संचालन करने से पहले एक नैतिक दुविधा उत्पन्न करता है जो रोटी बेचने वाली एक छोटी लड़की को मारने के संपार्श्विक नुकसान के साथ एक आतंकवादी सेल पर बम गिराया जाना है। दुविधा इस बात को लेकर है कि:

    • "लोगों की बड़ी संख्या को सुरक्षित करने के लिये उपयोगितावादी परिप्रेक्ष्य और इस प्रकार एक छोटी सी मासूम लड़की के जीवन की लागत पर सैकड़ों लोगों की जान बचाने के लिये बम को गिराना ।
    • उस निर्दोष लड़की को मारने वाले बम को लॉन्च करने का देओन्टोलॉजिकल परिप्रेक्ष्य क्योंकि " किसी को मारना अनैतिक है, भले ही हत्या से सैकड़ों लोगों की जान बचाने के उद्देश्य के लिये की गई हो "।

    हितधारक

    • आतंकी सेल हमले की तैयारी।
    • ब्लास्ट क्षेत्र में छोटी लड़की।
    • सैन्य दल जो ड्रोन का संचालन कर रहा है।
    • ऐसे सैकड़ों लोग जिनका जीवन खतरे में हैं।
    • राष्ट्र/सोसायटी।

    सैन्य दल के समक्ष उपलब्ध विकल्प हैं:

    अ) मिशन को आगे बढ़ाएँ और बम गिराएंँ:

    कार्यवाही के पक्ष में तर्क- आतंकवादियों को मारकर और किसी भी हमले को रोककर सैकड़ों लोगों को बचाना। यह देश को किसी भी आतंकवादी हमले से बचाने के अपने सैन्य कर्तव्य को पूरा करने में सहायक होगा। इसके लिये सैन्य टीम की न केवल समुदायों द्वारा बल्कि उन संगठनों से भी सरहाना की जानी चाहिये जो संभवतः पुरस्कार और पदोन्नति के लिये कार्य करते हैं।

    कार्यवाही के विपक्ष में तर्क- इसमें एक निर्दोष छोटी लड़की को संपार्श्विक हत्या शामिल है जो टीम के सदस्यों के लिये आजीवन अपराध बोध बन सकता है अत: लड़की की हत्या के आंतरिक विवेक को सही नहीं ठराया जा सकता है।

    मिशन को रोकना

    • पक्ष में तर्क: निर्दोष छोटी लड़की के प्राणों को बचाया जा सकता है।
    • विपक्ष में तर्क: ऐसे आतंकवादी ग्रुप जो कि सैकड़ों लोगों की जान लेने की क्षमता रखते हैं। इसके साथ ही इसे सैन्य दल की विफलता के रूप में देखा जा सकता है और भविष्य में इन आतंकवादियों द्वारा किये गए किसी भी आतंकवादी हमले में हुई क्षति की भरपाई करना मुश्किल हो सकता है।

    ब) सैन्य दल के प्रमुख के रूप में मेरे सामने बम गिराने और एक निर्दोष छोटी बच्ची को मारने के नकारात्मक कर्तव्य और लोगों की जान बचाने के सकारात्मक कर्तव्य के बीच एक नैतिक दुविधा होगी। मेरे संभावित कार्य निम्नलिखित होंगे:

    • मैं तब तक मिशन को स्टैंडबाय/होल्ड पर रखना पसंद करूंगा जब तक कि लड़की ब्लास्ट क्षेत्र से बाहर न हो जाए क्योंकि मेरी अंतरात्मा मुझे किसी निर्दोष की जान लेने का आदेश नहीं देगी। संभवतः इस फैसले द्वारा एक आतंकवादी ग्रुप द्वारा सैकड़ों लोगों की जान जोखिम में पड सकती हैं। हो सकता है कि मेरे इस निर्णय के चलते मेरी टीम द्वारा किये गए कार्य के लिये जाचं कमेटी भी गठित की जा सकती है।
    • मैं हरसंभव प्रयास करुंँगा कि जितना जल्दी हो सकेगा सबसे पहले लड़की को ब्लास्ट क्षेत्र से बाहर निकाला जाए और इसके बाद ही बम गिराएँ। इसके लिये यदि संभव हो तो मैं लड़की को विस्फोट के दायरे से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने के लिये ग्राउंड आधारित स्थानीय खुफिया या पुलिस प्राधिकरण से संपर्क करूंँगा या फिर लडकी के आस-पास कोई व्यवधान उत्पन्न करुँगा ताकि वह उस क्षेत्र को छोड़ दे।
    • यदि किसी भी प्रकार से लड़की को ब्लास्ट क्षेत्र से बाहर निकालना संभव नहीं है तो मैं उस स्थिति में भी बम गिराने का आदेश नहीं दूँगा, क्योंकि भविष्य में भी उन आतंकवादियों को मारने का मौका रहेगा, लेकिन अगर लड़की को मार दिया जाता है तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता है। इसके अलावा उन सैकड़ों लोगों को बचाने के लिये उचित रणनीति द्वारा उन आतंकवादियों द्वारा तैयार किये गए किसी भी हमले को प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी किया जा सकता है। इस प्रकार यह अभी भी एक जीत की स्थिति हो सकती है।

    उत्तर 9:

    दृष्टिकोण

    • परिचय में सामान्य रूप से लैंगिक भेदभाव के मुद्दे को बताएँ।
    • अपने कार्यस्थल पर लिंग आधारित पूर्वाग्रह को समाप्त करने के लिये उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताएंँ।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    लैंगिक भेदभाव सामाजिक पूर्वाग्रहों की अभिव्यक्तियाँ है। भारत जैसे पितृसत्तात्मक सामाजिक इतिहास वाले पारंपरिक देश में इस प्रकार के कई पूर्वाग्रह विद्यमान हैं जो कार्यस्थल में भी भेदभाव को बढ़ावा देते हैं।

    इन लैंगिक पूर्वाग्रहों को नैतिक अनुशीलन, लैंगिक संवेदनशीलता और नैतिक व्यवहार के अनुकरणीय मानकों द्वारा समाप्त करना होगा।

    प्रारूप

    युवा महिला अधिकारी द्वारा उठाए गए संभावित कदम:

    • उदाहरण के तौर पर आगे बढ़ना: उसे अपनी टीम में सहकर्मियों और सहकर्मियों के बीच लैंगिक विविधता और लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की कोशिश करनी चाहिये। जैसे सार्वजनिक रूप से एक महिला सहकर्मी को उसकी उपलब्धियों पर बधाई देना, अन्य महिला कर्मचारियों के पक्ष में खड़ा होना इत्यादि।
      • नेतृत्व की प्रतिबद्धता के बिना निर्धारित समय अवधि में कुछ भी नहीं किया जा सकता है। यह एक अच्छी कार्य संस्कृति को बढ़ावा देगा तथा पूरे विभाग के लिये व्यावहारिक मानक निर्धारित करने में सहायक होगा।
    • कार्य में अनुशासन और दक्षता बनाए रखना: शुरुआत या बाद में अन्य अधिकारियों द्वारा कार्य में अनुशासन और दक्षता की संस्कृति को विकसित करने में इसकी सराहना की जाएगी। यह अन्य महिला अधीनस्थ कर्मचारियों को भी प्रभावित करेगा तथा उनमें एक नई सकारात्मक भावना को विकसित करेगा।
    • सामाजिक संपर्क को बढ़ाना: अपनी महिला सहयोगियों के साथ पुरुष सहकर्मियों की सहभागिता को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि वे उन्हें एक-दूसरे के गुणों और क्षमता से अवगत कराया जा सके। यह एक-दूसरे में विश्वास और विश्वसनीयता की भावना को विकसित करने में सहायक होगा ।
    • नैतिक अनुनय: महात्मा गांधी जैसे राष्ट्रीय नायकों की तस्वीरों के साथ, रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू और इंदिरा गांधी जैसी हमारे इतिहास की बहादुर महिलाओं के चित्रों को कार्यालय की दीवारों पर लगा सकते हैं। यह सहयोगियों को राष्ट्र निर्माण में महिलाओं के अद्वितीय योगदान के बारे में याद दिलाता रहेगा।
    • भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग: अपनी भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं को समझना और उनका प्रबंधन करना। यह कार्य-जीवन में संतुलन स्थापित करने में भी मदद करेगा।
    • सेवा के लिये दृढ़ संकल्प: संगठन के मूलभूत मूल्य कर्मचारियों के लिये प्रेरक कारक के रूप में होने चाहिये। जब चीजें व्यवस्थित हो जाती हैं, तो वह छोटे से छोटा बदलाव ला सकती है।
    • कार्यालय पर प्रेरणादायक व्यक्तियों को आमंत्रित करना: महिला सदस्यों को प्रेरित करने के लिये स्वयं सहायता समूहों की मदद से कार्यालय में ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित करना जिन्होंने लोगों और समाज के समक्ष अपने कार्यों द्वारा एक वास्तविक प्रेरणादायक व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया हो।

    निष्कर्ष

    • पितृसत्तात्मक समाज को एक बेहतर क्रमिक दृष्टिकोण के साथ परिवर्तित किया जा सकता है क्योंकि विवादों के प्रत्यक्ष तौर पर होने पर अधिक जटिल मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं। चूंँकि कार्य संस्कृति लोगों के दृष्टिकोण और व्यवहार से संबंधित है, इसलिये इसे परिवर्तित करने में समय लगता है।
    • पुरुष सदस्यों में लैंगिक संवेदनशीलता को बहस और चर्चा के माध्यम से बढाया जा सकता है। स्थायी पूर्वाग्रहों को सामाजिक प्रभाव और अनुनय द्वारा समाप्त किया जा सकता है। दृढ़ विश्वास या अनुकरणीय व्यवहार द्वारा पितृसत्तात्मक बारीकियों के प्रति ग्रहणशीलता को लेकर निश्चित समय अवधि में परिवर्तन लाया जा सकता है क्योंकि पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी द्वारा तिहाड़ जेल में कैदियों के लिये सुधारात्मक कार्यों को इसी प्रकार लागू किया गया था।

    उत्तर 10:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इस मामले में हितों के टकराव के विभिन्न मुद्दों की पहचान कीजिये।
    • एक वकील तथा एक नागरिक के रूप में अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में चर्चा कीजिये।
    • अपने सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों के साथ कार्य योजना की पहचान कीजिये।
    • कार्रवाई की सबसे उपयुक्त विधि के साथ निष्कर्ष लिखिये।
    हितों में टकराव (Conflict of Interest)
    पेशेवर बनाम सार्वजनिक

    पेशेवर

    • ग्राहक के हितों के प्रति वफादारी/सुरक्षा तथा स्वतंत्र निर्णय एक ग्राहक के साथ वकील के संबंधों के आवश्यक तत्त्व हैं।
    • ग्राहक-अटॉर्नी विशेषाधिकार
    • राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य
    • देश के एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में जाँच एजेंसियों की सहायता करना हमारा कर्त्तव्य है।
    वकील बनाम नैतिक ग्राहक
    • वकील एक तकनीशियन है, जो पूरी तरह एक ग्राहक के कानूनी हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्यों के लिये कानून का उपयोग करता है।
    • नैतिक ग्राहक वकालत को सच्चाई एवं न्याय के प्रशासन के संदर्भ में देखता है। वकील, अंतत: न्यायालय का एक अधिकारी भी है, न कि केवल ग्राहक का वकील।
    • एक वकील के रूप में तथा देश के एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में उत्तरदायित्व
      • कानूनी प्रणाली एवं विधि के शासन के प्रति ज़िम्मेदारियाँ, जो हमारी राजनीतिक अर्थव्यवस्था एवं संवैधानिक लोकतंत्र की नींव हैं, जिसमें न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने में योगदान देने, विधि के शासन तथा विधिक संस्थानों को मज़बूत करने एवं अन्य वकीलों द्वारा अपने स्वयं की पेशेवर ज़िम्मेदारियों को बनाए रखने के प्रयासों का समर्थन करना शामिल हैं।
      • उस संस्था के प्रति ज़िम्मेदारियाँ, जिसमें वकील कार्य करते हैं, जैसे- निगम, लॉ फर्म एवं लॉ स्कूल तथा ऐसे संस्थानों द्वारा नियोजित लोगों के लिये, जैसे कि निगम का वैश्विक कार्यबल अथवा लॉ फर्म या लॉ स्कूल के कर्मचारी।
      • अन्य व्यापक सार्वजनिक हितों को सुरक्षित करने एवं स्वस्थ निजी आदेशों को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदारियाँ - विधि के शासन के पूरक के रूप में - एक सुरक्षित, निष्पक्ष तथा एक ऐसा समाज बनाने के लिये, जिसमें व्यक्ति और संस्थाएँ (प्रमुख निगमों, प्रमुख लॉ फर्मों एवं प्रमुख लॉ स्कूलों सहित) लंबी अवधि में कामयाब हो सकते हैं।
    • मेरे पास उपलब्ध विकल्प
      • मैं पूरी शक्ति के साथ अपने ग्राहक को बचाने की कोशिश करूँगा: यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार होगा। अटॉर्नी ग्राहक विशेषाधिकार एक ग्राहक तथा उसके वकील के बीच संबंध का आधार है। यह गोपनीयता सिद्धांत के तहत संरक्षण के सबसे पुराने स्वरूपों में से एक है तथा सभी लोकतंत्रों में एक मौलिक अधिकार है। यह एक स्थायी विशेषाधिकार है जो ग्राहक द्वारा सलाह लेने की प्रक्रिया शुरू करने पर आरंभ होता है। इसका इरादा ग्राहक अपने वकील को पूर्ण एवं स्पष्ट प्रकटीकरण के लिये सक्षम बनाना है जो बदले में अपने ग्राहक के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर सकता है।
      • ऐसा करने में, न केवल मैं अपनी पेशेवर नैतिकता का पालन करूँगा, बल्कि अपने ग्राहक के प्रति मेरा कर्त्तव्य भी पूरा होगा।
      • हालाँकि यदि उपर्युक्त अपराध मेरे कार्य के दायरे में नहीं है, तो मैं सरकारी एजेंसियों के साथ डाटा साझा करने में संकोच नहीं करूँगा।
    • मैं न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करूँगा: विधि के शासन के अनुसार, यदि न्यायिक प्रक्रिया डाटा जमा करने की मांग करती है, तो मैं अपने साझेदारों से इस संदर्भ में सलाह लूँगा। यदि वे सहमत हैं, तो जानकारी न्यायिक प्रक्रिया को जमा कर दी जाएगी, यदि वे सहमत नहीं हैं तो मैं मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करूँगा तथा उसी के अनुसार आगे बढ़ूंगा।
    • एक अनाम पत्र भेजना: मैं एजेंसियों को उपलब्ध डाटा के साथ अनाम पत्र भेजूंगा। हालाँकि ऐसा करने से मैं अपनी पेशेवर नैतिक संहिता का उल्लंघन करूँगा। नीतिशास्त्र के अनुसार देखा जाए तो यह सही नहीं होगा, लेकिन एक उपयोगितावादी दृष्टिकोण से, यह मेरी फर्म की प्रतिष्ठा को बचाने के उद्देश्य के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति मेरे दायित्व को भी पूरा करेगा।
    • एक ह्विसलब्लोअर बनना: संगठनात्मक एवं पेशेवर नैतिकता को नैतिक स्वायत्तता, व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी तथा समग्र रूप से समाज की भलाई के लिये संगठनात्मक समर्थन को प्रोत्साहित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। ऐसे मामले में, एजेंसियों के साथ डाटा साझा करना उचित होगा।

    एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में, देश की भलाई के बारे में सोचना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। इस कल्याणकारी आधार में, आर्थिक प्रणाली बहुत महत्त्वपूर्ण है। ऐसी प्रकृति की घटनाएँ किसी देश की नींव को हिला सकती हैं। इसके अलावा, ऐसे व्यक्ति को दंडित न करने से अन्य व्यक्तियों को अपराध करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा। इन उद्देश्यों के अनुसरण की प्रक्रिया में अपराधी का डाटा जहाँ तक संभव हो साझा किया जाना चाहिये।


    उत्तर 11:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • केस स्टडी की समझ को संदर्भित करते हुए शुरुआत कीजिये।
    • ऊपर वर्णित तथ्यों से जुड़े विभिन्न नैतिक मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • सार्वजनिक रूप से लोकतंत्र के आदर्शों और नैतिक आचरण को शामिल करते हुए मुद्दे से निपटने के लिये नैतिक सुझाव दीजिये।

    सोशल मीडिया, दुनिया भर के लोगों को जोड़ने और ऐसे मामलों पर भी राय व्यक्त करने जो हमें दूर से प्रभावित करते हैं, का एक उत्कृष्ट माध्यम बन गया है। यह इस कारण से है कि लोग, विशेष रूप से लोकतांत्रिक देशों के, अन्य देशों में होने वाली घटनाओं पर स्वतंत्र रूप से टिप्पणी करते हैं।

    भारत जैसे देश के लिये, इसकी सबसे बड़ी ताकत यानी लोकतंत्र इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है। निहित स्वार्थ समूहों द्वारा भारत की लोकतांत्रिक छवि और सद्भावना को कमज़ोर करने के प्रयास किये गए हैं। ऐसे परिदृश्य में, सरकार द्वारा कुछ हद तक धोखे का संदेह इस केस स्टडी में उचित प्रतीत होता है।

    इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, कई नैतिक मुद्दे हैं जिनमें सभी हितधारक शामिल हैं:

    • राजनीतिक और नैतिक कर्त्तव्य का विलोपन: आशंकित नागरिकों को बिल के बारे में अपनी मंशा और संभावनाओं को संप्रेषित करने में, राजनीतिक वर्ग स्पष्ट रूप से विफल रहा है। महात्मा गांधी ने बहुत पहले लोक सेवकों को एक मंत्र दिया था कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले अंतिम व्यक्ति के बारे में सोचें।
    • संवैधानिक परंपराओं और प्रथाओं का उल्लंघन: विधेयक को पारित करने के लिये सरकार ने कुछ संसदीय प्रक्रियाओं की अनदेखी की है। यह संवैधानिक प्रथाओं और लोकतांत्रिक दायित्वों/कर्त्तव्यों से समझौता है। इसके अलावा, एक कानून जो उचित संवैधानिक तंत्र के अधीन नहीं है, ऐसे में कानून के उद्देश्यों को पूरा करने में उसमें वैधता का अभाव दिखाई देता है।
    • व्यक्तिगत ईमानदारी से समझौता: मशहूर हस्तियों और कार्यकर्त्ताओं की ओर से, उक्त अधिनियम के बारे में जाने बिना विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करना, व्यक्तिगत ईमानदारी की कमी को दर्शाता है। जो लोग जनता पर प्रभाव डालते हैं, उन्हें सतर्क रहना चाहिये, उनके द्वारा अपनी राय व्यक्त करने में लापरवाह नहीं होना चाहिये। उन्हें भावनात्मक रूप से बुद्धिमान होना चाहिये और सार्वजनिक जीवन में नैतिक आचरण के बारे में पता होना चाहिये।

    समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने के उपाय:

    • लोगों की आत्म-अभिव्यक्ति का अधिकार सीमाओं से प्रतिबंधित नहीं है और इंटरनेट के युग में, किसी भी मामले पर घरेलू एवं विदेशी नागरिकों की राय को रोका नहीं जा सकता है।
    • एक जुझारू दृष्टिकोण की बजाय, कूटनीति पर निर्भर नरम उपायों, मीडिया और प्रवासी भारतीयों का उपर्युक्त स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे कि जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में परिवर्तन के समय, सरकार ने दुनिया को स्पष्ट तस्वीर पेश करने के लिये ऐसे उपकरणों का उपयोग किया था।
    • भारतीय सार्वजनिक प्रभावकों की भागीदारी ने उपर्युक्त मामले में संदेह पैदा किया है। बजाय इसके, राजनीतिक अधिकारियों को इसका नेतृत्व करना चाहिये क्योंकि इससे दोहरे लाभ होंगे- सबसे पहले, यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल राय को लक्षित करेगा। दूसरे, यह लोगों और राजनेताओं के बीच संचार की खाई को भर देगा जो विरोध के लिये ज़िम्मेदार कारणों में से एक है।
    • विदेशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से संदेहों की जाँच की जानी चाहिये और अटकलों को सार्वजनिक स्थान से दूर रखा जाना चाहिये, जब तक कि निर्णायक सबूत नहीं निकलते हैं क्योंकि यह लोगों में गलत धारणा पैदा कर सकता है। साथ ही, यह एक ऐसी तस्वीर भी पेश कर सकता है कि विरोध करने वाले लोगों को ताकतवर शक्तियों द्वारा अनावश्यक रूप से डराने का प्रयास किया जा रहा है। इससे विरोधों में शामिल समूहों के प्रति ध्रुवीकरण, राजनीतिक कटुता और नफरत पैदा होगी।

    लोकतंत्र में शासन एवं नीतियाँ नैतिक विचारों से अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं, और असंतोष या संघर्ष के मामले में, इस मुद्दे का समाधान भी सभी हितधारकों द्वारा नैतिक आचरण में निहित है। ऐसी स्थितियों की उपस्थिति सरकार और संवैधानिक तंत्र में नागरिकों के विश्वास को मज़बूत करता है।


    उत्तर 12:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इस केस स्टडी में शामिल हितधारकों को बताइये।
    • केस स्टडी के केंद्रीय मुद्दे का एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • मंत्री के प्रस्ताव पर आप अपने पास उपलब्ध विभिन्न विकल्पों की पहचान कीजिये।
    • व्यक्तिगत अधिकारों एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने में सरकार की ज़िम्मेदारी को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    प्रमुख हितधारक:

    (i) पुलिस अधिकारी: जो कि साइबर इंटेलिजेंस में विशेषज्ञता प्राप्त है।
    (ii) मंत्री: जो कि विपक्ष के नेता की जानकारी निकालना चाहता है।
    (iii) विपक्ष के नेता
    (iv) आम जनता: सरकार के द्वारा उठाया गया कोई भी कदम जनता की चिंता का सबब बन सकता है।

    इस केस स्टडी में लोक सेवा नैतिकता तथा प्राधिकरण द्वारा दिये गए आदेश का पालन करने व दोनों में से एक विकल्प चुनने में नैतिक दुविधा की स्थिति विद्यमान है। मंत्री द्वारा विपक्षी नेताओं की चैट तथा ईमेल में सेंध लगाने का अनुरोध मेरे लिये एक नैतिक दुविधा की स्थिति उत्पन्न कर रहा है। मैं इस दुविधा की स्थिति में हूँ कि मैं मंत्री के अनुरोध का पालन करूँ या नहीं।

    उपरोक्त स्थिति में मैं निम्नलिखित कार्रवाई कर सकता हूँ-

    • मैं इस मुद्दे को वरिष्ठ अधिकारी को बता दूँ तथा उनसे इस स्थिति से निकलने का रास्ता सुझाने का अनुरोध करूँ।
    • मैं सम्मानपूर्वक मंत्री के अवैध रूप से स्नूपिंग करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दूँगा, ताकि वह विपक्षी नेताओं पर अनुचित राजनीतिक लाभ प्राप्त न कर पाएँ। एक पुलिस अधिकारी होने के नाते मुझे कानून के खिलाफ नहीं जाना चाहिये, क्योंकि कानून व्यवस्था को बनाए रखना मेरा प्राथमिक कर्त्तव्य है।

    एक साइबर विशेषज्ञ और ज़िम्मेदार अधिकारी के रूप में यह आवश्यक है कि मैं सच्चाई का पता लगाऊँ तथा मंत्री के आदेश का आँख मूँदकर अनुसरण करने का अर्थ है कि मैं अपनी सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता तथा सरकारी सेवक की निष्पक्षता से विचलित हो जाऊँ जिसे समर्पण के साथ जनता की सेवा देने के लिये नियुक्त किया गया है।

    उपर्युक्त चरणों का पालन करने से इस मुद्दे को कुछ हद तक नैतिक व न्यायसंगत तरीके से सँभाला जा सकता है।

    एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों की सुरक्षा के नाम पर जासूसी करने पर प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है। वर्ष 2017 के के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता को एक मौलिक अधिकार घोषित किया है तथा उसे संवैधानिक गारंटी प्रदान की है। इस निर्णय को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की जासूसी करवाना अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण लगता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा व पूर्व-आतंकवादी खतरों को देखते हुए निगरानी रखना आवश्यक महसूस हो रहा है। हालाँकि, निगरानी की प्रकृति को ऐसा होना चाहिये कि जो सार्वजनिक जनता की पहुँच से बाहर हो। चूँकि यह स्पष्ट है कि निजता का अधिकार एक संप्रभु अधिकार नहीं है, इसलिये सरकार द्वारा इसका उल्लंघन न्यायसंगत है, किंतु इसके लिये निजता व सुरक्षा के प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।

    सरकारी संस्थाओं द्वारा अनियंत्रित एवं अनगिनत डेटा संग्रहण एवं परीक्षण एक पुलिस व निगरानी राज्य की नींव रखते हैं। इसलिये भारतीय निगरानी व्यवस्था में नैतिक मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिये जो कि निगरानी व्यवस्था में नैतिक पहलुओं पर विचार करने हेतु आवश्यक है।

    तकनीक का प्रयोग राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के एक उपकरण के रूप में किया जाना चाहिये तथा तकनीक के उपयोग में जवाबदेहिता को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये, ताकि ऐसी विशेषज्ञता प्राप्त लोक सेवक आवश्यक रूप से न्यायसंगत व ईमानदार रह सके।

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