Mains Marathon

दिवस 15: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में क्या अंतर है? FPI का बहिर्वाह भारतीय बाज़ार और रुपए को कैसे प्रभावित करता है? (250 शब्द)

25 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • FPI और FDI के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • FDI और FPI में अंतर स्पष्ट कीजिये।
  • रुपए और भारतीय बाज़ार के मूल्य पर FPI बहिर्वाह के प्रभाव पर टिप्पणी कीजिये।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एक देश में एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक हितों में किया गया निवेश है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियाँ और अन्य वित्तीय परिसंपत्तियाँ शामिल हैं। यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्रदान नहीं करता तथा ये बाज़ार की अस्थिरता के आधार पर अपेक्षाकृत तरल होती हैं।

FDI और FPI के बीच अंतर:

पैरामीटर

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)

परिभाषा

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एक देश में एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियांँ और अन्य वित्तीय परिसंपत्तियांँ शामिल होती हैं।

निवेशकों की भूमिका

सक्रिय निवेशक

निष्क्रिय निवेशक

प्रकार

प्रत्यक्ष निवेश

अप्रत्यक्ष निवेश

नियंत्रण

उच्च नियंत्रण

बहुत कम नियंत्रण

अवधि

दीर्घावधि निवेश

अल्पकालिक निवेश

परियोजनाओं का प्रबंधन

कुशल

तुलनात्मक रूप से कम कुशल

निवेश किया जाता है

विदेशी देश की भौतिक संपत्ति में

विदेशी देश की वित्तीय परिसंपत्तियाँ

प्रवेश और निकास

कठिन

अपेक्षाकृत कठिन।

प्रवाह

विदेशी देश को निधियों, प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों का अंतरण।

विदेशी देश के लिये पूंजी प्रवाह

शामिल ज़ोखिम

स्थिर

अस्थिर

भारतीय बाज़ार और रुपए पर FPI के बहिर्वाह का प्रभाव:

  • पूंजी बाज़ार से लगातार पूंजी निकासी से शेयर बाज़ारों में खलबली मच गई है, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति दरों में वृद्धि के कारण रुपया भी कमज़ोर हुआ है।
  • डॉलर और FPI निकासी के मज़बूत होने के परिणामस्वरूप भारत का विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखने को मिलेगी।
  • विदेशी फंडों की निरंतर निकासी के कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य घट गया है।
  • रुपए के मूल्य में गिरावट आने पर आयात लागत बढ़ सकती है। इस प्रकार रुपए के अवमूल्यन से आयात बिल अधिक हो सकते हैं।
  • वैश्विक बाज़ार की संवेदनशीलता के परिणामस्वरूप बाज़ार में गिरावट आई है।
  • रुपए के मूल्यह्रास से तेल आयात लागत अधिक होगी, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होगी।

अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं के लिये FPI और FDI दोनों ही वित्तपोषण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विदेशी पूंजी का उपयोग बुनियादी ढाँचे के विकास, विनिर्माण सुविधाओं और सेवा केंद्रों की स्थापना तथा अन्य उत्पादक संपत्तियों जैसे मशीनरी और उपकरण में निवेश करने के लिये किया जा सकता है, जो आर्थिक विकास में योगदान देते है तथा रोज़गार को प्रोत्साहित करते है।