दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमि सुधार और हरित क्रांति के बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भूमि सुधार की विफलता और राष्ट्रों के विभिन्न भागों में कृषि के असमान विकास पर इसके प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
- एक निष्पक्ष निष्कर्ष के साथ उत्तर समाप्त कीजिये।
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भूमि सुधार:
- स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार की प्रक्रिया मूल रूप से दो व्यापक चरणों में हुई। पहला चरण, जो स्वतंत्रता के तुरंत बाद शुरू हुआ और यकीनन साठ के दशक की शुरुआत तक जारी रहा, इसमें निम्नलिखित विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया:
- बिचौलियों ज़मींदारों, जागीरदारों आदि का उन्मूलन।
- भू-जोत के आकार की अधिकतम सीमा
- भूमि समेकन
- निगमीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रम।
- किरायेदारी सुधारों में किरायेदारों को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करना, किराए में कमी और किरायेदारों को स्वामित्व अधिकार प्रदान करना शामिल है।
- इस चरण को संस्थागत सुधारों का चरण भी कहा जाता है।
- दूसरे चरण, जो साठ के दशक के मध्य या अंत में शुरू हुआ था, ने तथाकथित हरित क्रांति की क्रमिक शुरुआत देखी और इसे तकनीकी सुधारों के चरण के रूप में देखा गया है।
हरित क्रांति:
- हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया एक प्रयास था।
- उन्हें दुनिया में 'हरित क्रांति के जनक' के रूप में जाना जाता है। उन्होंने गेहूँ की उच्च उपज किस्मों (HYVs) के विकास में अपने काम के लिये 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता।
- भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम एस स्वामीनाथन ने किया था। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप 20 वीं शताब्दी के मध्य में शुरू होने वाले नए, उच्च उपज वाले किस्म के बीजों की विकासशील देशों में शुरुआत के कारण खाद्यान्नों (विशेष रूप से गेहूँ और चावल) के उत्पादन में बड़ी वृद्धि हुई।
- हरित क्रांति, 1967-68 से 1977-78 की अवधि में तेज़ी से विस्तृत हुई और भारत को खाद्यान्न की कमी वाले देश से बदलकर दुनिया के अग्रणी कृषि राष्ट्रों में से एक बना दिया।
भूमि सुधारों की विफलता के कुछ महत्त्वपूर्ण कारक:
- प्रामाणिक अभिलेखों की कमी, वित्तीय समर्थन की अनुपस्थिति, एक व्यापक दृष्टिकोण की अनुपस्थिति, अनुचित कार्यान्वयन, कानूनी बाधाएँ, अपर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासन का आकस्मिक रवैया।
- अधिकांश राज्यों में इन कानूनों को कभी भी बहुत प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया। योजना के दस्तावेज़ों पर बार-बार बल देने के बावजूद कुछ राज्य काश्तकारों को स्वामित्व के अधिकार प्रदान करने के लिये कानून पारित नहीं कर सके।
- बहुत बड़ी कुछ भू-संपदाओं को विभाजित कर दिया गया, लेकिन अधिकांश भूस्वामियों ने तथाकथित बेनामी हस्तांतरण द्वारा अपनी भूमि नौकरों, रिश्तेदारों आदि के नाम करा दी। इससे भूस्वामी भूमि के विभाजन के बाद भी उस पर अपना नियंत्रण बनाए हुए थे।
हरित क्रांति पर भूमि सुधार की विफलता का प्रभाव:
- हरित क्रांति ने आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असमानताओं को जन्म दिया है।
- इसने अब तक कुल फसली क्षेत्र के केवल 40 प्रतिशत भाग को प्रभावित किया है और 60 प्रतिशत अभी भी इससे अछूता है।
- सबसे अधिक लाभान्वित क्षेत्र उत्तर में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं।
- इसने असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा सहित पूर्वी क्षेत्र और पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों को शायद ही प्रभवित किया छुआ है।
- इन कारणों से किसानों को आवंटित कृषि भूमि बहुत कम थी जो हरित क्रांतियों के उद्देश्य के लिये उपयुक्त नहीं थी।
- हरित क्रांति ने केवल उन क्षेत्रों को प्रभावित किया जो पहले से ही कृषि के दृष्टिकोण से बेहतर थे।
- दुर्भाग्य से, कई छोटे किसान मशीनरी की लागत को वहन नहीं कर सकते थे क्योंकि यह बेहद महँगा था। उच्च प्रारंभिक लागत के अलावा, ईंधन और मरम्मत के लिये भी धन की आवश्यकता थी।
- इस प्रकार हरित क्रांति के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय असमानताओं की समस्या और बढ़ गई है।
भूमि-सुधार भूमि-एकाधिकार को तोड़ने में सफल रहे, लेकिन किसानों के बीच इन भूमि संसाधनों के अधिक असमान वितरण को जन्म दिया। हरित क्रांति ने आय असमानताओं को भी बढ़ा दिया। कुल मिलाकर, हरित क्रांति एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी।