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13 Jul 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस 3: मैंग्रोव प्रणालियों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। क्या तटीय जैव विविधता की सुरक्षा हेतु हरित संरचनात्मक उपाय टिकाऊ हैं?
उत्तर
पहुँच
- मैंग्रोव प्रणालियों का परिचय दीजिये।
- संक्षेप में स्पष्ट कीजिये कि ग्लोबल वार्मिंग का मैंग्रोव पर कैसे प्रभाव पड़ता है।
- यह भी चर्चा कीजिये कि तटीय जैव विविधता को संरक्षित करने और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान को रोकने में हरित संरचनात्मक उपाय कैसे टिकाऊ हैं।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये
एक मैंग्रोव एक छोटा पेड़ या झाड़ी है जो समुद्र तट के किनारे उगता है, इसकी जड़ें अक्सर पानी के नीचे नमकीन तलछट में होती हैं। 'मैंग्रोव' शब्द दलदल में पेड़ों और झाड़ियों को संदर्भित करता है। मैंग्रोव विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लवण-सहिष्णु पादप समुदायों का एक विविध समूह है जो ऑक्सीजन की कमी, उच्च लवणता और दैनिक ज्वारीय आप्लावन (Tidal Inundation) जैसे सीमाकारी कारकों के बीच भी अस्तित्व को बनाए रखता है।
मैंग्रोव प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव।
सामान्य रूप से मैंग्रोव वन पारिस्थितिकी तंत्र में असाधारण शारीरिक अनुकूलन होता है ताकि वे विपरीत परिस्थितियों में भी रह सकें।
हालाँकि, समुद्र के स्तर में वृद्धि उन कारकों में से एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो मैंग्रोव आवासों के क्षरण में योगदान करते हैं। समुद्र के स्तर में परिवर्तन मैंग्रोव की संरचना और विकास को प्रभावित करते हैं, जबकि तापमान में वृद्धि उनके घनत्व को प्रभावित करती है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव -
- चक्रवातों और हवाओं की गति में वृद्धि से मैंग्रोव को अत्यधिक नुकसान होता है।
- बढ़ी हुई तूफान की चाल और ज्वार तटीय क्षरण को तीव्र करते हैं जिससे मैंग्रोव की जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं।
- बढ़ी हुई ग्लोबल वार्मिंग से मैन्ग्रोव की विभिन्न प्रजातियों की संरचना में परिवर्तन होता है और कई आक्रामक प्रजातियों का आगमन भी होता है जिससे मैंग्रोव प्रजातियों का विनाश होता है।
- त्वरित कटाव के कारण अत्यधिक गाद के जमाव से मैंग्रोव के न्यूमाटोफोरस को नुकसान पहुँचता है और यह ऑक्सीजन की कमी का कारण भी बन सकता है।
- वर्षा पैटर्न में परिवर्तन मैंग्रोव हेतु मीठे पानी की आपूर्ति में कमी या वृद्धि कर सकता है और यह तट के साथ लवणता संरचना में परिवर्तन की ओर जाता है जिससे मैंग्रोव को खतरा होता है।
- समुद्र का स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव डूब जाते हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण भूमि उपयोग बदलने से कृषि और आवास तथा भूमि सुधार के लिये मानव कार्रवाई मैंग्रोव के विनाश की ओर जाती है।
- भूमि पर चारे और ईंधन के अभाव में मानव और जानवर एक विकल्प के रूप में मैंग्रोव का उपभोग करेंगे। जैसे, कच्छ के रण का खारी ऊंट।
जलवायु परिवर्तन के कारण मैंग्रोव के नुकसान का उदाहरण:
नवीनतम इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, सुंदरबन में वर्ष 2017 और वर्ष 2019 के बीच 2 वर्ग किमी मैंग्रोव कवर की कमी देखी गई जो 2214 वर्ग किमी से घटकर 2112.11 वर्ग किमी रह गई। यह नुकसान मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी में कटाव और समुद्र के स्तर में वृद्धि से प्रेरित था।।
तट पर ग्रीन संरचनात्मक उपाय
- हरित संरचनात्मक उपाय मैंग्रोव और कोरल पारिस्थितिकी तंत्र जैसे तटीय पौधों को संदर्भित करते हैं।
- तट पर और ज्वारीय सीमा के बीच मैंग्रोव का रोपण तथा तट के पास कोरल की खेती जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे चक्रवातों, स्ट्रोम, आक्रामक प्रजातियों आदि के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये बहुत टिकाऊ तरीके हैं।
- मैंग्रोव और कोरल की भौतिक उपस्थिति चक्रवातों, ज्वार और तूफानों की गति को कम कर सकती है।
- ये वन अन्य एविफौना और समुद्री प्रजातियों के लिये भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं तथा समृद्ध तटीय जैव विविधता में वृद्धि भी करते हैं।
- ये संरचनाएं ईंधन, भोजन से लेकर फाइबर तक मनुष्यों की ज़रूरतों को भी पूरा करती हैं।
- ये संरचनाएं एक समृद्ध जैव विविधता की ओर ले जाती हैं जो आक्रामक प्रजातियों के विस्तार के विरुद्ध बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं।
मैंग्रोव के संरक्षण के लिये उठाए गए कुछ कदम इस प्रकार हैं-
- समुदाय-आधारित बहाली कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में स्थानीय समुदायों द्वारा आरंभ किया गया था, जहाँ समुदाय ने मैंग्रोव की खेती और वृक्षारोपण के लिये नई तकनीकों का आविष्कार किया, एक ग्राम-स्तरीय वन संरक्षण परिषद बनाई और ज़िले में 6000 मैंग्रोव पौधे लगाए।
- गुजरात में, कच्छ में स्थित एक गैर सरकारी संगठन सहजीवन ने कैमल ब्रीडर्स एसोसिएशन ऑफ कच्छ (कुथ उचेरक मालधारी संगठन (KUUMS)) के लिये "नमक बनाने वाले उद्योगों से कांडला के मैंग्रोव को बचाने" के लिये धन जुटाने हेतु एक फोटो स्टोरी अभियान शुरू किया।
मैंग्रोव और कोरल समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के कारण होने वाली किसी भी आपदा में रक्षा की पहली पंक्ति हैं। यह सभी के हित में होगा यदि ये संरचनाएं फली-फूलीं रहें और खुद को बनाए रखें।