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  • 15 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 36: पिछले कुछ वर्षों में संसद के कामकाज़ में व्यवधान के कारण उसकी गुणवत्ता में गिरावट आई है। संसद के कामकाज में व्यवधान के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संसद के व्यवधान के संबंध में एक संक्षिप्त परिचय देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये और संसद के कामकाज में व्यवधान के बारे में किसी रिपोर्ट या डेटा का उल्लेख कीजिये।
    • संसद के कामकाज में व्यवधान के कारणों की विवेचना कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    बीते कुछ समय में भारतीय विधायी कार्यवाही में चर्चा काफी कम हो गई हैं, जबकि अवरोध के मामले बढ़ गए हैं। जबकि भारतीय संसद के अतिरिक्त हर जगह तीव्र बहसें चल रही हैं।

    एक अन्य पीआरएस रिपोर्ट में बताया गया है कि 16वीं लोकसभा (2014-19) ने अवरोधों के कारण अपने निर्धारित समय का 16% हिस्सा गँवा दिया। यद्यपि यह स्थिति 15वीं लोकसभा (37%) से तो बेहतर थी लेकिन 14वीं लोकसभा (13%) की तुलना में खराब थी।

    राज्यसभा ने अपने निर्धारित समय का 36% हिस्सा गँवाया, जबकि 15वीं (2009-14) और 14वीं (2004-09) लोकसभा कार्यकाल के दौरान, राज्यसभा ने अपने निर्धारित समय का क्रमश: 32% और 14% गँवा दिया।

    अवरोध के कारण:

    • विवादास्पद मुद्दों और सार्वजनिक महत्त्व के विषयों पर चर्चा: संसद की कार्यवाही में अधिकांश अवरोध या तो उन सूचीबद्ध विषयों पर चर्चा से उत्पन्न होते हैं जो विवादास्पद हैं या उन गैर-सूचीबद्ध विषयों पर चर्चा से होता है जो सार्वजनिक महत्त्व के हैं।
      • पेगासस प्रोजेक्ट, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 आदि उन विषयों के उदाहरण हैं जो बीते दिनों संसदीय कार्यवाही में अवरोधों के कारण बने।
    • अवरोधों से सत्ता पक्ष को अपने उत्तरदायित्वों से बचने में सहायता मिल सकती है: प्रश्नकाल और शून्यकाल के दौरान सबसे अधिक अवरोध देखे गए हैं।
    • गैर-सूचीबद्ध चर्चा के लिये समर्पित समय की कमी: किसी विशेष सत्र में या किसी विशेष संसदीय कार्यवाही के दौरान गैर-सूचीबद्ध विषयों के संबंध में प्रश्न और आपत्ति उठाने हेतु पर्याप्त समय की कमी के कारण भी प्रायः अवरोध उत्पन्न होते हैं।
    • अनुशासनात्मक शक्तियों का न्यूनतम उपयोग: अवरोधों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किये जा सकने का एक अन्य प्रणालीगत कारण यह है कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा अनुशासनात्मक शक्तियों का न्यूनतम उपयोग किया जाता है।
    • अन्य कारण:
      • अपनी शिकायतों को अभिव्यक्त कर सकने के लिये अपर्याप्त समय के कारण सांसदों में असंतोष।
      • सरकार का अनुत्तरदायी रवैया और ट्रेजरी बेंचों की प्रतिशोधी कार्यवाही।
      • राजनीतिक दल संसदीय मानदंडों का पालन नहीं करते हैं और अपने सदस्यों को अनुशासित नहीं बनाते हैं।
      • विधायिका के नियमों के तहत हंगामा करने वाले संसद सदस्यों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई का अभाव।
    • दलगत राजनीति: जब भी कोई विवादास्पद मुद्दा संसद के समक्ष आता है तो सरकार उस पर बहस करने से कतराती है, जिससे विपक्षी सांसद आचरण नियमों का उल्लंघन करने को बाध्य होते हैं और संसद की कार्यवाही को बाधित करते हैं।
    • चूँकि उन्हें नियमों के उल्लंघन या हंगामे में भी अपने दलों का समर्थन प्राप्त होता है, इसलिये सदन से निलंबन की चुनौती भी उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाती।

    मुद्दे:

    • संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन: प्रश्न पूछने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 से प्राप्त होता है जिसके मुताबिक, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति और इस प्रकार देश के लोगों के प्रति उत्तरदायी होगी।
    • प्रतिनिधिक लोकतंत्र के लिये एक बाधा: संसदीय चर्चा एक प्रतिनिधिक लोकतंत्र के कार्यरत होने की अभिव्यक्ति है, क्योंकि इसके माध्यम से लोगों का प्रतिनिधित्व शासन के मामलों पर सरकार से सीधे सवाल कर सकता है।

    आगे की राह :

    • आचार संहिता: सदन में अव्यवस्था पर रोक के लिये सांसदों और विधायकों हेतु आचार संहिता को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
    • कार्य-दिवसों की संख्या में वृद्धि करना: वर्ष 2001 में आयोजित बैठक की अनुशंसा के अनुसार संसद के कार्य-दिवसों में वृद्धि की जानी चाहिये। बैठक में प्रतिवर्ष संसद के लिये 110 कार्य-दिवसों और राज्य विधानसभाओं के लिये 90 कार्य-दिवसों का संकल्प लिया गया था।
    • लोकतांत्रिक भागीदारी: संसद की कार्यवाही में सभी अवरोध प्रायः आवश्यक रूप से प्रतिकूल नहीं होते हैं। ऐसे में सरकार को अधिक लोकतांत्रिक रवैया अपनाते हुए विपक्ष को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करना चाहिये।
    • प्रोडक्टिविटी मीटर: किसी सत्र की समग्र उत्पादकता का अध्ययन भी किया जा सकता है और इसे साप्ताहिक रूप से जनता को प्रसारित किया जा सकता है। इसके लिये एक ‘प्रोडक्टिविटी मीटर’ (Productivity Meter) का निर्माण किया जा सकता है जो अवरोध और स्थगन के कारण नष्ट हुए घंटों की संख्या को ध्यान में रखेगा और संसद के दोनों सदनों के दिन-प्रतिदिन के कार्यकलाप की उत्पादकता की निगरानी करेगा।

    लोकतंत्र की सफलता इस बात से निर्धारित की जाती है कि वहाँ विचार-विमर्श और वार्ता को कितना प्रोत्साहन दिया जा रहा है। संसद की कार्यवाही में अवरोध का समाधान संसद को और अधिक सशक्त बनाए जाने में निहित है। महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिये एक मंच के रूप में संसद की भूमिका को और गहन किया जाना चाहिये।

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