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  • 26 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस 16: जैव ईंधन के विभिन्न प्रकार क्या हैं? राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति के महत्त्व पर चर्चा कीजिये? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जैव ईंधन का वर्णन करके अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • जैव ईंधन के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति के बारे में संक्षेप में बताइये और इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिये।
    • भारत के लिये जैव ईंधन के महत्त्व का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर का समापन कीजिये।
    • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित अथवा मृत पदार्थ) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीने) में निर्मित होता है, जैव ईंधन (Biofuels) माना जाता है।
    • जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय हो सकते हैं।
      • ठोस: लकड़ी, पौधों से प्राप्त सूखी हुई सामग्री तथा खाद
      • तरल: बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल
      • गैसीय: बायोगैस
    • इन्हें परिवहन, स्थिर, पोर्टेबल और अन्य अनुप्रयोगों के लिये डीज़ल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधन के अलावा इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, उनका उपयोग ऊष्मा और बिजली उत्पन्न करने वाले यंत्रो में भी किया जा सकता है।

    जैव ईंधन की श्रेणियाँ:

    • पहली पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये खाद्य स्रोतों जैसे कि चीनी, स्टार्च, वनस्पति तेल या पशु वसा से पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके बनाए जाते हैं ।
      • सामान्य रूप से पहली पीढ़ी के जैव ईंधन में बायो अल्कोहल, बायोडीज़ल, वनस्पति तेल, बायोएथर्स, बायोगैस आदि शामिल हैं ।
    • दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होते हैं जो खाद्य अपशिष्ट के रूप में माने जाते हैं, जैसे: डंठल, भूसी, लकड़ी के टुकड़े और फलों के छिलके और गुद्दे।
      • ऐसे ईंधन के उत्पादन के लिये थर्मोकेमिकल अभिक्रियाओं या जैव रासायनिक रूपांतरण प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
      • उदाहरण: सेल्यूलोज़ इथेनॉल और बायोडीज़ल।
    • तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं।
        • उदाहरण: ब्यूटेनॉल (Butanol)
      • शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों को खाद्य उत्पादन के लिये अनुपयुक्त भूमि और जल से उगाया जा सकता है, इससे घटते जल स्रोतों पर दबाव को कम किया जा सकता है।
    • चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • इन ईंधनों के उत्पादन के लिये उन फसलों को चुना जाता है जिनमें आनुवंशिक रूप से अधिक मात्रा में कार्बन अभिनियांत्रित होते हैं, उन्हें बायोमास के रूप में उगाया और काटा जाता है ।
      • उसके बाद फसलों को दूसरी पीढ़ी की तकनीकों का उपयोग करके ईंधन में परिवर्तित किया जाता है।
      • ईंधन का पूर्व दहन करके कार्बन का पता लगाया जाता है। तब कार्बन भू-अनुक्रमित होता है, जिसका अर्थ है कि कार्बन कच्चे तेल या गैसीय क्षेत्र में या अनुपयुक्त पानी के खेतों में जमा हो जाता है।
      • इनमें से कुछ ईंधन को कार्बन नकारात्मक माना जाता है क्योंकि उनका उत्पादन पर्यावरण से कार्बन की मात्रा को नष्ट करता है।
    • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018:
      • इस नीति में गन्‍ने का रस, सुगर वाली वस्‍तुओं जैसे- चुकंदर, स्‍वीट सोरगम, स्‍टार्च वाली वस्तुएँ जैसे– कॉर्न, कसावा, मनुष्‍य के उपभोग के लिये अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूँ , टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्‍तेमाल की अनुमति देकर इथेनॉल उत्‍पादन के लिये कच्‍चे माल के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है।
      • यह नीति राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन से पेट्रोल के साथ सम्मिश्रण के लिये इथेनॉल के उत्पादन हेतु अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति देती है।
      • उन्नत जैव ईंधन पर ज़ोर देने के साथ यह नीति 2जी इथेनॉल बायो रिफाइनरियों के लिये 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए अतिरिक्त कर प्रोत्साहन के अलावा 1G जैव ईंधन की तुलना में उच्च खरीद मूल्य प्रदान करती है।
    • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 का महत्त्व :
      • स्वास्थ्य लाभ: भोजन तैयार करने के लिये खाना पकाने के तेल का लंबे समय तक पुन: उपयोग, विशेष रूप से डीप-फ्राइंग में एक संभावित स्वास्थ्य खतरा है और इससे कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती हैं। यूज्ड कुकिंग ऑयल बायोडीजल के लिये एक संभावित फीडस्टॉक है और बायोडीजल बनाने के लिये इसके उपयोग से खाद्य उद्योग में उपयोग किये जाने वाले कुकिंग ऑयल का डायवर्जन रोका जा सकेगा।
      • स्वच्छ पर्यावरण: फसल के जलने और कृषि अवशेषों / कचरे को जैव ईंधन में परिवर्तित करने से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में और कमी आएगी।
      • किसानों को अतिरिक्त आय: 2 जी प्रौद्योगिकियों को अपनाकर, कृषि अवशेषों / कचरे को जो अन्यथा किसानों द्वारा जलाए जाते हैं, इथेनॉल में परिवर्तित हो सकते हैं।

    आगे की राह

    • भारत जैसे देश में परिवहन में जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने से कच्चे तेल के आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी।
    • जैव ईंधन नई नकदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में मदद कर सकता है।
    • शहरों में उत्पन्न होने वाली बंजर भूमि और नगरपालिका कचरे का उपयोग सुनिश्चित करके स्थायी जैव ईंधन के उत्पादन के प्रयास किये जाने चाहिये।
    • एक उचित रूप से डिजाइन और कार्यान्वित जैव ईंधन समाधान भोजन और ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकता है।
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