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दिवस 9: भारत में सहकारिता के सामने कौन सी चुनौतियाँ हैं और चर्चा कीजिये कि सहकारिता मंत्रालय का गठन उनके सामने आने वाली समस्याओं के रामबाण के रूप में कैसे कार्य करेगा?

19 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सहकारी समितियाँ क्या हैं, यह परिभाषित करते हुए परिचय दीजिये।
  • भारत में सहकारिता के समक्ष आने वाली चुनौतियों की विवेचना कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि भारत के सामने आने वाली समस्याओं के लिये सहकारिता मंत्रालय रामबाण के रूप में कैसे कार्य करेगा।
  • उपर्युक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) के अनुसार, सहकारिता सहकारी व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये स्वेच्छा से एकजुट होते हैं।
  • सहकारी समितियाँ कई प्रकार की होती हैं जैसे- उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Society), उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Society), ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Society), आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Society) और विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Society)।

चुनौतियाँ:

  • कुप्रबंधन एवं हेरफेर:
    • व्यापक संख्या में सदस्यता कुप्रबंधन का एक कारण होती है जब तक कि ऐसी सहकारी समितियों के प्रबंधन हेतु कुछ सुरक्षित तरीकों का उपयोग नहीं किया जाता है।
    • शासी निकायों के चुनावों में धन इतना शक्तिशाली उपकरण बन गया कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के शीर्ष पद सामान्यत: सबसे अमीर उन किसानों को मिल जाते थे जिन्होंने अपने लाभ के लिये संगठन में हेरफेर किया था।
  • जागरुकता की कमी:
    • लोगों को आंदोलन के उद्देश्यों, सहकारी संस्थाओं के नियमों और विनियमों के बारे में पूर्ण जानकारी न होना।
  • प्रतिबंधित क्षेत्रों तक पहुँच:
    • इनमें से अधिकांश समितियाँ कुछ सदस्यों तक ही सीमित हैं और उनका संचालन केवल एक या दो गाँवों तक ही सीमित है।
  • कार्यात्मक क्षमता में कमी:
    • सहकारी आंदोलन को प्रशिक्षित कर्मियों की अपर्याप्तता का सामना करना पड़ता है।

नवगठित सहकारिता मंत्रालय भारत में सहकारी आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान करेगा और इसे निम्नलिखित तरीके से मज़बूत करने में मदद करेगा:

  • यह "सहयोग से समृद्धि तक" दृष्टि को साकार करने में मदद करेगा ताकि सहकारी समितियाँ आत्मनिर्भर बन सकें।
  • इससे देश में सहकारी आंदोलन को मज़बूत करने और ज़मीनी स्तर तक इसकी पहुँच को मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
  • यह सहकारी-आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देगा जिसमें देश के विकास के लिये अपने सदस्यों के बीच ज़िम्मेदारी की भावना भी शामिल है।
  • उपयुक्त नीति, कानूनी और संस्थागत ढाँचे के निर्माण से सहकारी समितियों को उनकी क्षमता का एहसास कराने में मदद मिलेगी।
  • 'बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 (2002 का 39)' के प्रशासन सहित सहकारी समितियों का निगमन, विनियमन और समापन एक राज्य तक सीमित नहीं होगा, बशर्ते कि प्रशासनिक मंत्रालय या विभाग के नियंत्रण में कार्यरत सहकारी इकाइयों के लिये बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 (2002 का 39) के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के प्रयोजन के लिये 'केंद्रीय सरकार' होगी।
  • सहकारी विभागों और सहकारी संस्थाओं के कर्मियों (सदस्यों, पदाधिकारियों एवं गैर-अधिकारियों की शिक्षा सहित) का प्रशिक्षण।

निष्कर्ष:

  • वैकुंठ मेहता सहकारी प्रबंधन संस्थान जैसे संस्थानों द्वारा किये गए विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि सहकारी संरचना केवल कुछ मुट्ठी भर राज्यों में फलने-फूलने और अपनी छाप छोड़ने में सफल रही है। नए मंत्रालय के तहत सहकारी आंदोलन को अन्य राज्यों में प्रवेश करने हेतु आवश्यक वित्तीय एवं कानूनी शक्ति मिलेगी।
  • पिछले कुछ वर्षों में सहकारी क्षेत्र में धन की कमी देखी गई है। नए मंत्रालय के तहत सहकारी ढाँचे को एक नई दिशा मिल सकेगी।