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दिवस 9: "औपनिवेशिक विरासत का अवशेष होने के बावजूद देशद्रोह कानून वर्तमान युग में भी प्रासंगिक है। हालाँकि, इसमें कुछ संशोधनों की आवश्यकता है"। विश्लेषण कीजिये।

19 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • राजद्रोह कानून के बारे में संक्षेप में समझाते हुए परिचय दीजिये।
  • राजद्रोह कानून के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • वर्तमान समय में कानून से जुड़े मुद्दों को भी सूचीबद्ध कीजिये।
  • राजद्रोह कानून के लिये आगे की राह बताइये।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A राजद्रोह को एक अपराध के रूप में परिभाषित करती है जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न करना शामिल है।

विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस खंड के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।

राजद्रोह कानून का महत्त्व:

  • उचित प्रतिबंध
    • भारत का संविधान उचित प्रतिबंध [अनुच्छेद 19(2) के तहत] निर्धारित करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रति ज़िम्मेदारी को सुनिश्चित करता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि यह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
  • एकता और अखंडता बनाए रखना:
    • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला करने में मदद करता है।
  • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना:
    • यह चुनी हुई सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में मदद करता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
  • अदालत की अवमानना के साथ संरेखण:
    • यह अदालत की अवमानना के साथ एक संरेखण है। एक निर्वाचित सरकार कार्यपालिका का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिये सरकार की अवमानना पर रोक लगाई जा सकती है।

राजद्रोह कानून से संबंधित मुद्दे:

  • औपनिवेशिक युग का अवशेष:
    • औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने के लिये राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया।
    • लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत "राजद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
    • इस प्रकार राजद्रोह कानून का इस प्रकार का व्यापक उपयोग औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
  • संविधान सभा का रुख:
    • संविधान सभा संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा।
    • उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार को दबाने के लिये राजद्रोह कानून को एक हथियार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय दिया। इसने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी तथा हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक सीमित कर दिया।
    • इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
    • मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण भारत को तेज़ी से उभरते एक निर्वाचित निरंकुश राज्य के रूप में वर्णित किया जा रहा है, ।

आगे की राह

  • IPC की धारा 124A की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में है। हालांँकि सरकार के निर्णयों से असहमति और उसकी आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु करना चाहिये।
  • राजद्रोह की परिभाषा को केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिये।
  • देशद्रोह कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।