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22 Jul 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दिवस 12: चीन की ऋण-जाल नीति, न केवल छोटे देशों के लिये बल्कि भारत के लिये भी चिंता का एक विषय है। इससे संबंधित प्रमुख मुद्दों को उज़ागर करते हुए आगे की राह बताइये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत चीन की ऋण-जाल नीति का संक्षिप्त विवरण देकर कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि कैसे चीन का ऋण जाल छोटे देशों और भारत के लिये चिंता का विषय है।
- चीन की ऋण-जाल नीति के मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह सुझाते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये
ऋण-जाल कूटनीति एक प्रकार की कूटनीति है जो देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में दिये गए ऋण पर आधारित है।
इसमें एक ऋणदाता देश जानबूझकर दूसरे ऋणी देश को अत्यधिक ऋण प्रदान करता है, जब वह देश अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है, तो कथित इरादे से ऋणी देश से आर्थिक या राजनीतिक रियायतें निकाली जाती है।
उदाहरण के लिये चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के पट्टे पर ले लिया, क्योंकि श्रीलंका चीनी ऋण का भुगतान करने में विफल रहा।
छोटे देशों के लिये चिंता का कारण:
भारत के निकटतम पड़ोसी - श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल या तो आर्थिक संकट में डूब गए हैं या आर्थिक संकट के करीब हैं। आसमान छूती महंगाई और घटते विदेशी भंडार के साथ श्रीलंका गहरे आर्थिक संकट की चपेट में है। पाकिस्तान भी एक राजनीतिक संकट के बीच आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। इसी तरह नेपाल भी आर्थिक संकट की आशंका से जूझ रहा है जिसके कारण इसने विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के कारण वाहनों और अन्य विलासिता की वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। देश के केंद्रीय बैंक नेपाल राष्ट्र बैंक ने कहा कि उन्हें ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में किसी तरह का संकट हो सकता है, जिसका मुख्य कारण बढ़ते आयात का होना है।
आर्थिक संकट के अलावा इन देशों के बीच देखा जा रहा है कि वे सभी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा हैं। BRI लगभग 70 देशों में निवेश करने के लिये चीन द्वारा विकसित एक वैश्विक बुनियादी ढाँचा विकास रणनीति है। चीनी सरकार, BRI के माध्यम से, बंदरगाहों, सड़कों, पुलों, बाँधों, बिजली स्टेशनों, रेलमार्गों आदि के निर्माण में निवेश करती है। चीन को तीनों देशों के साथ बीआरआई सौदों के लिये जाना जाता है।
लगभग 40 देशों ने चीन की ऋण जाल की नीति को झेला है, इनमें लाओस, ज़ाम्बिया और किर्गिस्तान भी शामिल हैं।
भारत के लिये चिंता का कारण:
- चीन की सीमा से लगे छोटे देश: नेपाल, पाकिस्तान आदि जैसे छोटे राष्ट्रों का चीन के प्रभाव में आना भारत के लिये एक चिंता का विषय है।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: इसने इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को काफी हद तक बढ़ा दिया है जो इस क्षेत्र में एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरने की भारत की इच्छा के विरुद्ध है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये चुनौती: चीन की ऋण जाल नीति से चीन की मुखरता में वृद्धि होगी जो खुले और शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये एक सीधी चुनौती है।
- भारत की संप्रभुता के खिलाफ: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) जैसी चीनी वित्त पोषित परियोजनाएँ जो भारत के क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, भारत की संप्रभुता के लिये एक सीधी चुनौती हैं।
चीन की ऋण-जाल नीति के साथ मुद्दे:
- अपारदर्शिता: अपारदर्शिता विशिष्ट है क्योंकि चीन का व्यापार ऋण के रूप में या विशेष प्रयोजन वाहनों के माध्यम से ऋणों को छिपाने का इतिहास रहा है। चीन अपने विदेशी ऋणों के रिकॉर्ड प्रकाशित नहीं करता है और इसके अधिकांश अनुबंधों में गैर-प्रकटीकरण खंड होते हैं जो उधार्ताकर्त्ताओं को अपनी सामग्री का खुलासा करने से रोकते हैं।
- उच्च ब्याज दरें: चीनी ऋण आमतौर पर सस्ता नहीं है ब्याज दरें अन्य देशों द्वारा द्विपक्षीय सहायता पर लगाए जाने वाले शुल्क से लगभग तीन गुना अधिक प्रतीत होती हैं।
- कम क्रेडिट रेटिंग वाली परियोजनाओं को उधार देना: चीन उन देशों को परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है जिनकी क्रेडिट रेटिंग अच्छी नहीं है तथा जिनके पास बाहरी वित्त के कुछ वैकल्पिक स्रोत हैं। इसने परियोजना परिसंपत्तियों को संपार्श्विक के रूप में धारण करके ऋण के बाद संपत्ति का अधिग्रहण कर अपने हितों की रक्षा की है।
- परियोजनाओं पर नियंत्रण: दावा यह है कि चीन अन्य देशों को पैसा उधार देता है, जो अपने ऋण चुकौती को पूरा नहीं कर पाने पर प्रमुख संपत्तियों का नियंत्रण समाप्त कर देते हैं।
चीन की ऋण-जाल नीति के लिये प्रतिक्रियाएँ::
- वैश्विक प्रतिक्रिया:
- B3W पहल: G7 देशों ने चीन के BRI का मुकाबला करने के लिये 47वें G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल' का प्रस्ताव रखा।
- इसका उद्देश्य विकासशील और कम आय वाले देशों में बुनियादी ढाँचे के निवेश घाटे की समस्या को दूर करना है, जिस पर वर्तमान में चीन का कब्ज़ा है।
- ब्लू डॉट नेटवर्क (BDN): यह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा गठित एक बहु-हितधारक पहल है, जो वैश्विक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उच्च गुणवत्ता, विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने हेतु सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाने के उद्देश्य से बनाई गई है।
- BDN की घोषणा औपचारिक रूप से नवंबर 2019 में बैंकॉक, थाईलैंड में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम में की गई थी।
- ग्लोबल गेटवे: BRI के साथ प्रतिस्पर्द्धा के लिये यूरोपीय संघ ने हाल ही में ग्लोबल गेटवे नामक एक नई बुनियादी ढाँचा विकास योजना शुरू की है।
- B3W पहल: G7 देशों ने चीन के BRI का मुकाबला करने के लिये 47वें G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल' का प्रस्ताव रखा।
- भारत की प्रतिक्रिया:
- चीन के बढ़ते प्रभाव के साथ भारत अपने 'मानव-केंद्रित विकास' दृष्टिकोण के साथ स्वयं को मज़बूत करना चाहता है। भारत ने श्रीलंका को 2.5 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन की पेशकश की है। इसके अतिरिक्त भारत और नेपाल भी अपने संबंधों को ठीक करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- भारत इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहता है और सहकारी रणनीतियों और मानवीय सहायता के माध्यम से अपने पूर्वी पड़ोसी चीन की बढ़ती ऋण-जाल की पहल का मुकाबला करना चाहता है, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करना और चीन को अपनी अन्य सीमाओं से दूर रखना है।
आगे की राह:
- सहभागिता का विकल्प: अधिक उन्नत देशों द्वारा वैकल्पिक परियोजनाएँ शुरू की जानी चाहिये जो मेज़बान या सहायता प्राप्तकर्त्ता देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए सहभागी प्रकृति की हों।
- वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोत: इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं के वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों को ध्यान में रखा जाना चाहिये। इसके लिये बड़े देशों को आगे आना होगा।
- साथ ही ऐसे मामलों में सहायता प्रदान करने के लिये और अधिक पेशेवर वित्तीय संस्थानों को आमंत्रित किया जाएगा।
- भारत की भूमिका: भारत को अपने पड़ोसियों को वैकल्पिक कनेक्टिविटी व्यवस्था प्रदान करने के लिये इस क्षेत्र में अपने भागीदारों के साथ काम करना होगा।
- समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग: दक्षिण एशिया और वृहद् हिंद महासागर में अकेले कार्य करने की भारत की क्षमता सीमित है।
- इसे अपने बुनियादी ढाँचे के निर्माण और उन्नयन के लिये आवश्यकता पड़ने पर जापान जैसे भागीदारों से मदद लेनी चाहिये तथा चीनी नेतृत्व वाले कनेक्टिविटी कॉरिडोर एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का विकल्प तैयार करना चाहिये।