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12 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 3
आपदा प्रबंधन
दिवस 33: भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन ज़ोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में भूस्खलन के मुद्दों पर चर्चा करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भूस्खलन के विभिन्न कारणों एवं प्रभावों का वर्णन कीजिये।
- राष्ट्रीय भूस्खलन ज़ोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त रूप से निष्कर्ष लिखिये।
उत्तर:
भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह एक प्रकार के वृहद् पैमाने पर अपक्षय है, जिससे गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मिट्टी और चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरते हैं।
ढलान संचलन तब होता है जब नीचे की ओर (मुख्य रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण) कार्य करने वाले बल ढलान निर्मित करने वाली पृथ्वी जनित सामग्री से अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। भू-स्खलन तीन प्रमुख कारकों के कारण होता है: भू-विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान और मानव गतिविधि।गतिविधियाँ।
- भू-विज्ञान भू-पदार्थों की विशेषताओं को संदर्भित करता है। पृथ्वी या चट्टान कमज़ोर या खंडित हो सकती है या अलग-अलग परतों में विभिन्न बल और कठोरता हो सकती है।
- भू-आकृतिक विज्ञान भूमि की संरचना को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिये वैसे ढलान जिनकी वनस्पति आग या सूखे की चपेट में आने से नष्ट हो जाती है, भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- मानव गतिविधि जिसमें कृषि और निर्माण कार्य शामिल हैं, में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- वर्षा, हिमपात, जल स्तर में परिवर्तन, मृदा अपरदन, भूजल में परिवर्तन, भूकंप, ज्वालामुखी गतिविधियाँ, मानवीय गतिविधियों द्वारा अशांति, या इन कारकों के किसी भी संयोजन से ढलानों में भूस्खलन शुरू हो सकता है।
- भूकंप के झटकों और अन्य कारक भी पानी के नीचे भूस्खलन को प्रेरित कर सकते हैं।
भूस्खलन संभावित क्षेत्र:
संपूर्ण हिमालय पथ, उत्तर-पूर्वी भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ियाँ/पहाड़, पश्चिमी घाट, तमिलनाडु कोंकण क्षेत्र में नीलगिरि भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र हैं।
भूस्खलन के विभिन्न प्रभाव इस प्रकार हैं:
- संपत्ति के विनाश के परिणामस्वरूप भू-स्खलन की पुष्टि की गई है। भू-स्खलन किसी क्षेत्र या देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। भूस्खलन के बाद प्रभावित क्षेत्र सामान्य रूप से पुनर्वास से गुजरता है।
- भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते है।
- पहाड़ियों और पहाड़ों की तलहटी में रहने वाले समुदायों को भू-स्खलन से मृत्यु का अधिक खतरा होता है। एक बड़ा भू-स्खलन अपने साथ विशाल चट्टानें, भारी मलबा और भारी मिट्टी ले जाता है।
- नीचे की ओर खिसकती मिट्टी, मलबा और चट्टानें नदियों में मिल सकती हैं और उनके प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती हैं। पानी के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप के कारण मछली जैसे कई जीव मर सकते हैं।
राष्ट्रीय भू-स्खलन ज़ोखिम प्रबंधन रणनीति
राष्ट्रीय भूस्खलन ज़ोखिम प्रबंधन रणनीति एक रणनीतिक दस्तावेज़ है जो आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण (2015-30) के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क के पाँचवें लक्ष्य (वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों वाले देशों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि करना), को भी पूरा करता है। यह रणनीतिक दस्तावेज़ भू-स्खलन आपदा ज़ोखिम में कमी और प्रबंधन के सभी घटकों जैसे खतरे की मैपिंग, निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली, जागरूकता कार्यक्रम, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण, विनियम और नीतियाँ, भू-स्खलन के स्थिरीकरण और शमन आदि को संबोधित करता है।
राष्ट्रीय भू-स्खलन ज़ोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटक इस प्रकार हैं:
- भूस्खलन जोखिम क्षेत्र।
- भूस्खलन निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली।
- जागरूकता कार्यक्रम
- हितधारकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
- पर्वतीय क्षेत्र विनियमों की तैयारी और नीतियाँ।
- भूस्खलन का स्थिरीकरण और शमन एवं भूस्खलन प्रबंधन (SPV का निर्माण)
उठाए गया कदम:
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने देश में संपूर्ण 4,20,000 वर्ग किमी. के भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र के 85% के लिये एक राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण तैयार किया है।
- आपदा की प्रवृत्ति के अनुसार क्षेत्रों को अलग-अलग ज़ोन में बाँटा गया है।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार करके निगरानी और संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।