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13 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 34: अदालती मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजेएस) की स्थापना एक त्वरित आवश्यकता प्रतीत होती है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजेएस) के कार्यान्वयन के लाभों और मुद्दों पर चर्चा कीजिये? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा AIJS के बारे में संक्षिप्त परिचय देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा AIJS के लाभों की विवेचना कीजिये।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा AIJS के साथ मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- एक उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
वर्ष 1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 312 (1) में संशोधन करके संसद को एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के निर्माण के लिये कानून बनाने का अधिकार दिया, जिसमें AIJS भी शामिल है, जो संघ और राज्यों दोनों के लिये समान है।
अनुच्छेद 312 के तहत, राज्यसभा को अपने उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है। इसके बाद संसद को AIJS बनाने के लिये एक कानून बनाना होगा।
इसका अर्थ है कि AIJS की स्थापना के लिये किसी संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी ‘अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ’ मामले (1993) में इसका समर्थन करते हुए कहा कि AIJS की स्थापना की जानी चाहिये।
AIJS के लाभ:
- जनसंख्या अनुपात में न्यायाधीशों को नियुक्त करना: भारत में न्यायपालिका में न्यायाधीशों की कमी है जो मामले में विलंब को इंगित करता है। इस प्रकार, एआईजेएस न्यायिक रिक्तियों में अंतर्निहित अंतर को पूरा करने की परिकल्पना करता है।
- समाज के सीमांत वर्गों का उच्च प्रतिनिधित्व: सरकार के अनुसार AIJS समाज के हाशिए पर स्थित और वंचित वर्गों के समान प्रतिनिधित्व के लिये एक आदर्श समाधान है।
- प्रतिभा को आकर्षित करना: सरकार का मानना है कि अगर इस तरह की सेवा सामने आती है, तो इससे प्रतिभाशाली लोगों का एक पूल बनाने में मदद मिलेगी जो बाद में उच्च न्यायपालिका का हिस्सा बन सकते हैं।
- ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण: भर्ती में ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण निचली न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद जैसे मुद्दों से भी निपटने में सहायक होगा। यह समाज के निचले स्तरों में न्याय व्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार करेगा।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस: सरकार ने भारत की ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार के अपने प्रयास में निचली न्यायपालिका में सुधार का लक्ष्य रखा है, क्योंकि रैंक निर्धारित करने में कुशल विवाद समाधान प्रमुख सूचकांकों में से एक है।
संबद्ध चुनौतिायाँ:
- अनुच्छेद 233 और 312 के बीच विरोधाभास: अनुच्छेद 233 के अनुसार अधीनस्थ न्यायपालिका में भर्ती राज्य का विशेषाधिकार है।
- इसके कारण कई राज्यों और उच्च न्यायालयों ने इस विचार का विरोध किया है कि यह संघवाद के खिलाफ है।
- यदि इस तरह के नियम बनाने और ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने की राज्यों की मौलिक शक्ति छीन ली जाती है, तो यह संघवाद के सिद्धांत और बुनियादी संरचना सिद्धांत के खिलाफ हो सकता है।
- भाषायी बाधा: चूँकि निचली अदालतों में मामलों की बहस स्थानीय भाषाओं में होती है, इसलिये इस बात की आशंका है कि उत्तर भारत का कोई व्यक्ति दक्षिणी राज्य में सुनवाई कैसे कर सकता है।
- संवैधानिक सीमा: अनुच्छेद 312 का खंड 3 एक प्रतिबंध लगाता है कि AIJS में ज़िला न्यायाधीश के पद से कम पद शामिल नहीं होगा। इस प्रकार AIJS के माध्यम से अधीनस्थ न्यायपालिका की नियुक्ति को संवैधानिक बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
- उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियंत्रण को कमज़ोर करना: AIJS के निर्माण से अधीनस्थ न्यायपालिका पर उच्च न्यायालयों के नियंत्रण का क्षरण होगा, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
लंबित मामलों की दुर्गम संख्या एक भर्ती प्रणाली की स्थापना की मांग करती है जो मामलों के त्वरित निपटान के लिये बड़ी संख्या में कुशल न्यायाधीशों की भर्ती करे। हालाँकि AIJS के विधायी ढाँचे में आने से पहले सर्वसम्मति बनाने और AIJS की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है।