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  • 08 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 29: "हालाँकि भारत में संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने के लिये अधिनियम पारित करने हेतु मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन इसके साथ कुछ नकारात्मक बातें भी जुड़ी हुई हैं। चर्चा कीजिये (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • महिला आरक्षण विधेयक के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • संसद और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • संसद और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण के मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    हाल ही में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा लंबे समय से लंबित महिला आरक्षण विधेयक को संसद में लाने की मांग की गई थी।

    यह विधेयक मई 2008 में राज्यसभा में पेश किया गया था और इसे स्थायी समिति के पास भेजा गया था। 2010 में, यह सदन में पारित किया गया था और अंत में लोकसभा में भेजा गया। हालाँकि, विधेयक 15वीं लोकसभा के साथ समाप्त हो गया।

    विधेयक में महिलाओं के लिये लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।

    आरक्षित सीटें राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को बारी-बारी से आवंटित की जा सकती हैं।

    इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्ष बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा।

    महिलाओं के लिये आरक्षण का महत्त्व:

    • महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण तीन मूलभूत और गैर-परक्राम्य सिद्धांतों पर आधारित है:
      • पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता।
      • महिलाओं का अपनी क्षमता के पूर्ण विकास का अधिकार।
      • महिलाओं को आत्म-प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय का अधिकार।
    • राजनीतिक निर्णय लेने में एक लैंगिक अन्तराल है और महिला नेताओं को स्थिति निर्णयों को प्रभावित करने तथा किशोर लड़कियों को राष्ट्र निर्माण में योगदान करने के लिये प्रेरित करने हेतु अधिक संख्या में आने की आवश्यकता है।
    • रवांडा के अनुभव ने दिखाया है कि आरक्षण महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में पर्याप्त बदलाव ला सकती है। सामाजिक अभिव्यक्ति के हर पहलू को प्रभावित करने वाली व्यवस्थित असमानता को केवल महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है, जो हमारी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को मज़बूत करने में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।

    महिला आरक्षण के मुद्दे:

    • यह तर्क दिया गया है कि यह महिलाओं की असमान स्थिति को कायम रखेगा क्योंकि उन्हें योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धी नहीं माना जाएगा।
    • विधेयक पारित होने के बाद, महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों को भरना आवश्यक हो जाएगा, जिससे 33% आबादी अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित हो जाएगी।
    • कई विधायक और सांसद जो अब राज्य विधानसभाओं और प्रतिनिधि सभा में सीटें रखते हैं, वे अपनी पत्नियों और अन्य रिश्तेदारों के साथ रिक्तियों को भरने का प्रयास करेंगे।
    • यह भी तर्क दिया जाता है कि यह नीति चुनावी सुधार के बड़े मुद्दों जैसे राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र से ध्यान भटकाती है।
    • यह महिला उम्मीदवारों के लिये मतदाताओं की पसंद को प्रतिबंधित करता है।
    • प्रत्येक चुनाव में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के रोटेशन से एक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिये काम करने हेतु प्रोत्साहन कम हो सकता है क्योंकि वह उस निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ने के लिये अपात्र हो सकता है।
      • कुछ विशेषज्ञों ने राजनीतिक दलों और दोहरे सदस्य क्षेत्रों में आरक्षण जैसे वैकल्पिक तरीकों को अपनाने/ बढ़ावा देने का सुझाव दिया है।

    आगे की राह

    यह भारत जैसे देश के लिये आवश्यक है कि मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधियों में समाज के सभी वर्गों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाए; इसलिये इसको बढ़ावा देने हेतु सरकार को आवश्यक कदम उठाने पर विचार करना चाहिये।

    • महिला आरक्षण विधेयक को पारित करना:
      • सभी राजनीतिक दलों को एक आम सहमति तक पहुँचते हुए महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित करना चाहिये, जिसमें संसद और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव किया गया है।
    • राज्य स्तर पर स्थानीय निकायों की महिला प्रतिनिधियों को बढ़ावा देना:
      • स्थानीय स्तर पर महिलाओं का एक ऐसा समूह उभर चुका है, जो सरपंच और स्थानीय निकायों के सदस्य के रूप में स्थानीय स्तर के शासन का तीन दशक से अधिक समय का अनुभव रखता है।
      • वे अब राज्य विधानसभाओं और संसद में बड़ी भूमिका सकती हैं।
    • राजनीतिक दलों में महिला कोटा:
      • गिल फॉर्मूला: भारतीय निर्वाचन आयोग के उस प्रस्ताव को लागू किये जाने की आवश्यकता है, जिसके अनुसार किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को अपनी मान्यता बनाए रखने के लिये राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों में महिलाओं के एक न्यूनतम सहमत प्रतिशत को अवसर देना ही होगा।
    • पार्टी के भीतर लोकतंत्र को बढ़ावा देना:
      • कोई राजनीतिक दल—जो वास्तविक अर्थ में लोकतांत्रिक होगा, वह निर्वाचन प्रक्रिया से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष जैसे पदों पर दल की महिला सदस्यों को उचित अवसर प्रदान करेगा।
    • रूढ़ियों को तोड़ना:
      • समाज को महिलाओं को घरेलू गतिविधियों तक सीमित रखने की रूढ़िवादिता को तोड़ना होगा।
      • सभी संस्थानों (राज्य, परिवार और समुदाय) के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं—जैसे शिक्षा में अंतराल को कम करने, लिंग भूमिकाओं पर फिर से विचार करने, श्रम के लैंगिक विभाजन और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को दूर करने के प्रति सजग हों और इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएँ।
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