देश-देशांतर – भारत-अमेरिका: गहराते रिश्ते | 04 Aug 2018
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
- भारत और अमेरिका के सम्बन्ध लगातार घनिष्ट होते जा रहे हैं। बीते सोमवार को अमेरिका ने भारत को द्विपक्षीय व्यापार के मामले में नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) के सदस्य देशों के बराबर का दर्ज़ा दिया है।
- अमेरिका के इस फैसले का भारत को सबसे बड़ा फ़ायदा यह होगा कि उसे उच्च तकनीकी वाले अमेरिकी रक्षा उपकरण और हथियार आदि आसानी से हासिल हो सकेंगे।
- जिन दशों को अमेरिका ने STA-1 (पहले स्तर का स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथोराइज़ेशन) का दर्जा दिया हुआ है, उन्हें इस नियंत्रण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया से छूट मिल जाएगी।
- भारत एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है जिसे इस सूची में शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने इस तरह का दर्जा सहयोगी नाटो देशों तथा ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया को भी दिया है।
- अब चूँकि भारत को भी यह दर्ज़ा मिल चुका है, इसलिये वह भी इस छूट का हक़दार हो गया है।
- इसके अतिरिक्त सख्त नियंत्रण वाले उत्पाद और कई ऐसे गैर-रक्षा उत्पाद भी अमेरिका से सहज तौर पर मिल सकेंगे जिनके निर्यात पर वहाँ सख्त नियंत्रण रखा जाता है और सिर्फ कड़ी लाइसेंसिंग प्रक्रिया के तहत इन उत्पादों का निर्यात किया जाता है।
क्या है सामरिक व्यापार प्राधिकरण या स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथोराइज़ेशन?
- वर्ष 2011 में निर्यात नियंत्रण सुधार पहल के रूप में सामरिक व्यापार प्राधिकरण या स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथोराइज़ेशन की अवधारणा प्रस्तुत की गई। इसके अंतर्गत दो सूचियाँ- STA-1 और STA-2 बनाई गईं। जो देश इन दोनों में से किसी भी सूची में शामिल नहीं थे, उन्हें दोहरी उपयोग की वस्तुओं के निर्यात के लिये लाइसेंस की आवश्यकता पड़ती थी।
- विदित हो कि STA- 1 सूची में NATO के सहयोगी और ऑस्ट्रेलिया, जापान तथा दक्षिण कोरिया सहित 36 देश शामिल हैं, इन देशों की अप्रसार व्यवस्था को अमेरिका द्वारा सबसे अच्छा कहा गया है।
- उल्लेखनीय है कि ये देश चारों बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), ऑस्ट्रेलिया समूह और वासनेर व्यवस्था के हिस्सा हैं।
- यह व्यवस्था अमेरिका से निर्यात के संबंध में लाइसेंस अपवाद की अनुमति देती है। अमेरिकी सरकार इस प्रकार की प्राधिकरण निश्चित स्थितियों में लेन-देन विशिष्ट लाइसेंस (transaction – specific license) के बिना निश्चित वस्तु के निर्यात की अनुमति देती है।
- STA – 1 देशों को निर्यातित वस्तुओं में राष्ट्रीय सुरक्षा, रासायनिक या जैविक हथियार, परमाणु अप्रसार, क्षेत्रीय स्थिरता, अपराध नियंत्रण आदि शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक, लेज़र और सेंसर, सूचना, सुरक्षा, नेविगेशन, दूरसंचार, एयरोस्पेस आदि शामिल हैं।
- वहीं, STA-2 की सूची में शामिल देशों को यद्यपि कुछ मामलों में लाइसेंसिंग से छूट दी जाती है, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करने वाले या परमाणु अप्रसार आदि में योगदान करने वाले दोहरी उपयोग की वस्तुओं या प्रौद्योगिकी तक पहुँच नहीं दी जाती थी।
- उल्लेखनीय है कि STA-1 में शामिल होने से पहले भारत सात अन्य देशों अल्बानिया, हॉन्गकॉन्ग, इज़राइल, माल्टा, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका और ताइवान के साथ STA-2 की सूची में शामिल था।
क्यों पड़ी अमेरिका को इसकी ज़रूरत?
गौरतलब है कि भारत और अमेरिका का संबंध एक व्यापक फलक पर विस्तृत है। इसे शीतयुद्ध के दौर से लेकर सिविल न्यूक्लियर डील (2008) तक देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि न्यूक्लियर डील का महत्त्वपूर्ण विषय भारत को एक उच्च स्तरीय रक्षा तकनीक मुहैया कराना था। अमेरिका के कदम को इसी की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है।
अमेरिका और भारत के रिश्ते को कई बार संदेह की नज़र से देखा जाता है। साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता वर्चस्व भी उन महत्त्वपूर्ण कारकों में शामिल है जिसने भारत को अमेरिका के एक व्यापारिक साझेदार से सामरिक साझेदार के रूप में लाकर खड़ा किया है।
भारत के लिये संभावित लाभ
1. यह एक ऐसा कदम है जिसके माध्यम से भारत में उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्यात के लिये व्यक्तिगत लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
2. इससे रक्षा एवं उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत-अमेरिका व्यापार तथा तकनीकी सहयोग को और भी सुविधाजनक बनाया जा सकेगा।
3. यह भारत को अमेरिका के एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में स्थापित करता है तथा बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था के अंतर्गत एक ज़िम्मेदार सदस्य के रूप में भारत के निर्दोष रिकॉर्ड की पुष्टि करता है।
4. यह आधारभूत संचार, संगतता और सुरक्षा समझौते (Communication, Compatibility and Security Agreement- COMCASA) को भी बढ़ावा देता है।
Communication, Compatibility and Security Agreement- COMCASA
- न्य देशों के बीच अमेरिका आधरित उच्च प्रौद्योगिकी सहयोग की दिशा में मार्गदर्शन का कार्य करता है।
- यह व्यवस्था अमेरिका से संचार, सुरक्षा उपकरणों के हस्तांतरण के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करती है।
- यह समझौता अमेरिकी मूल के सुरक्षित डेटा लिंक का उपयोग करने वाले देश की सेना और अन्य देशों की सेनाओं की क्षमता के मध्य "अंतःक्रियाशीलता” की सुविधा प्रदान करता है।
- अन्य दो समझौते - लॉजिस्टिक्स विनिमय ज्ञापन समझौता(Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA) और भूस्थानिक सहयोग के लिये मूल विनिमय और सहयोग सहयोग समझौता (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-spital Cooperation- BECA) हैं।
(टीम दृष्टि इनपुट)
5. यह भारत द्वारा अमेरिकी उन्नत वायु रक्षा प्रणाली की खरीद को सुगम बनाएगा। उल्लेखनीय है कि इस प्रणाली के माध्यम से भारत हवाई हमलों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की रक्षा कर सकेगा। इस नेशनल एडवांस्ड एयर-टू-सरफेस मिसाइल सिस्टम-2 (NASAMS-II) की खरीद के लिये $ 1 बिलियन का अनुमान लगाया गया है।
निष्कर्ष
एक वह दौर था जब 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने अपनी 7वीं फ्लीट को बंगाल की खाड़ी में जाने का आदेश दिया था और भारतीय नौसेना उसके खिलाफ संघर्ष के लिये तैयार खड़ी थी। लेकिन आज वह दौर आ गया है जब अमेरिका द्वारा भारत को STA-1 का दर्जा दिया गया है और प्रीडेटर, गार्ज़ियन आर्म्ड कॉम्बेट ड्रोन आदि देने को तैयार है, जो कि उसने किसी अन्य देश को नहीं दिये हैं। भारत और अमेरिका के संबंधों में आए बदलाव को इसी संदर्भ में समझा जा सकता है। वस्तुतः वर्तमान अमेरिकी प्रशासन अपने व्यापार को सामरिक नज़रिये से देखने का प्रयास कर रहा है। इस तरह भारत को अपने पड़ोसियों के साथ भी संबंध को प्रगाढ़ बनाए रखने की आवश्यकता है और एक मल्टी अलायंड पॉलिसी का अनुपालन करने की आवश्यकता है।