द बिग पिक्चर : यूनिवर्सल बेसिक इनकम | 23 Jan 2019
संदर्भ
केंद्र सरकार द्वारा देश में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ (Universal Basic Income-UBI) योजना लागू करने की चर्चा के बीच सिक्किम ने दावा किया कि वह इस योजना को लागू करने वाला पहला राज्य होगा और उसने बिना शर्त डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजना लाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। सिक्किम की सत्तारूढ़ पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF) ने 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपने घोषणा-पत्र में UBI को शामिल करने का फैसला किया है और इसका उद्देश्य 2022 तक योजना को लागू करना है। उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत सरकार अपने राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को बिना शर्त एक तयशुदा धनराशि देती है।
पृष्ठभूमि
- क्या भारत में आय असमानता की चौड़ी होती जा रही खाई को पाट दिया गया है? क्या सभी लोगों के लिये पीने का स्वच्छ पानी, रहने को घर और खाने को भोजन मिल रहा है? क्या अमीर व गरीब सभी के बच्चे एक मानक शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं? यदि इन सभी सवालों का जवाब ‘नहीं’ है तो क्यों न तमाम सामाजिक, आर्थिक मानकों का अध्ययन करते हुए सभी के लिये एक ‘बेसिक इनकम’ की व्यवस्था कर दी जाए।
- प्रत्येक व्यक्ति को जीवन यापन के लिये न्यूनतम आय की गारंटी मिलनी चाहिये, यह कोई नया विचार नहीं है। ‘थॉमस मूर’ नाम के एक अमेरिकी क्रांतिकारी दार्शनिक ने हर किसी के लिये एक समान आय की मांग की थी। वह चाहते थे कि एक ऐसा ‘राष्ट्रीय कोष' हो जिसके माध्यम से हर वयस्क को एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाए। ‘बर्ट्रेंड रसेल’ ने 'सोशल क्रेडिट' आंदोलन चलाया जिसमें सबके लिये एक निश्चित आय की बात की गई थी।
- भारत में यह अवधारणा चर्चा में इसलिये रही क्योंकि वर्ष 2016-17 के भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में UBI को एक अध्याय के रूप में शामिल कर इसके विविध पक्षों पर चर्चा की गई है।
- गौरतलब है कि आर्थिक सर्वेक्षण में यूबीआई योजना को गरीबी कम करने के लिये एक संभावित विकल्प बताया गया था।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम?
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम देश के प्रत्येक नागरिक को दिया जाने वाला एक आवधिक (Periodic), बिना शर्त नकद हस्तांतरण है। इसके लिये व्यक्ति के सामाजिक या आर्थिक स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है।
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा की दो मुख्य विशेषताएँ हैं-
- UBI अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक (Universal) है, अर्थात् यह लक्षित (Targated) नहीं है।
- यह बिना शर्त नकद ट्रांसफर है। अर्थात् किसी भी व्यक्ति को UBI हेतु पात्र होने के लिये बेरोज़गारी की स्थिति या सामाजिक-आर्थिक पहचान को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
- UBI एक न्यूनतम आधारभूत आय की गारंटी है जो प्रत्येक नागरिक को बिना किसी न्यूनतम अर्हता के आजीविका के लिये हर माह सरकार द्वारा दी जाएगी।
- इसके लिये व्यक्ति को केवल भारत का नागरिक होना ज़रूरी होगा।
बेसिक आय की अवधारणा भारत के लिये आवश्यक क्यों?
- कोई योजना कितनी सफल रही है इस बात का आकलन संबंधित योजना के प्रदर्शन के आधार पर किया जा सकता है, विदित हो कि मध्य प्रदेश में ऐसी एक योजना को शुरू किया गया था जिसमें पायलट प्रोजेक्ट के तहत मध्य प्रदेश के आठ गाँवों में छह हजार से ज़्यादा लोगों को मासिक भुगतान किया गया। इसका नतीजा बहुत दिलचस्प रहा।
- अधिकांश ग्रामीणों ने उस पैसे का उपयोग घरेलू सुविधा बढ़ाने (शौचालय, दीवार, छत) में किया, ताकि मलेरिया के खिलाफ सावधानी बरती जा सके। अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों में यह देखा गया कि बेहतर वित्तीय स्थिति में वे राशन की दुकानों की बजाय बाज़ार जाने लगे, उन्होंने अपने पोषण में सुधार किया और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों की स्थिति बेहतर हुई। अतः हम कह सकते हैं कि बेसिक इनकम का यह विचार एक उत्तम पहल है।
- बेसिक इनकम को पायलट प्रोजेक्ट के ज़रिये बढ़ाना और धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक इसे अमल में लाना भारत में आदर्श प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसके माध्यम से गाँवों में लोगों के रहन-सहन के स्तर को सुधारा जा सकता है, उन्हें पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है और बच्चों के पोषण में सुधार भी लाया जा सकता है। एक नियमित बेसिक इनकम से भूख और बीमारी से विवेकपूर्ण ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है।
- बेसिक इनकम, बाल श्रम को कम करने में भी मददगार साबित हो सकती है। इसके ज़रिये उत्पादक कार्यों में वृद्धि करके गाँवों की तस्वीर बदली जा सकती है और यह सतत् विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास होगा। विदित हो कि बेसिक इनकम की मदद से सामाजिक विषमता को भी कम किया जा सकता है। यदि एक वाक्य में कहें तो बेसिक इनकम का यह विचार आय असमानता और इसके दुष्प्रभावों के श्राप से भारत को मुक्त कर सकता।
(टीम दृष्टि इनपुट)
UBI पर आर्थिक सर्वेक्षण क्या कहता है?
- आर्थिक सर्वेक्षण गरीबी कम करने के प्रयास में विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के विकल्प के रूप में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की अवधारणा की वकालत करता है।
- यह बताता है कि गरीबों की मदद करने का एक अधिक कुशल तरीका उन्हें UBI के माध्यम से सीधे संसाधन प्रदान करना होगा।
- यह मौजूदा अनेक कल्याणकारी योजनाओं और विभिन्न प्रकार के सब्सिडी का एक बेहतर विकल्प होगा।
- यह JAM (जनधन-आधार-मोबाइल) प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीधे नकद हस्तांतरण के रूप में प्रशासनिक दक्षता लाएगा।
UBI की राह में चुनौतियाँ
- दुनिया में उच्च असमानता की स्थिति और ऑटोमेशन के कारण रोज़गार के नुकसान की संभावना ने कई उन्नतशील अर्थव्यवस्थाओं को यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की अवधारणा पर विचार करने को प्रेरित किया है, ताकि उनके नागरिकों को न्यूनतम स्तर की आय समर्थन की गारंटी दी जा सके।
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि सबके लिये बेसिक इनकम का बोझ कोई बहुत विकसित अर्थव्यवस्था ही उठा सकती है जहाँ सरकार का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 40 फीसदी से भी ज़्यादा हो और टैक्स से होने वाली कमाई का आँकड़ा भी इसके आसपास ही हो।
- यदि हम भारत की बात करें तो टैक्स और GDP का यह अनुपात 17 फीसदी से भी कम बैठता है। हम तो बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत ढाँचे के अलावा सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, मुद्रा और बाहरी संबंधों से जुड़ी संप्रभु प्रक्रियाओं का बोझ ही बहुत मुश्किल से उठा पा रहे हैं।
- बेसिक इनकम की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ‘बेसिक आय’ का स्तर क्या हो, यानी वह कौन-सी राशि होगी जो व्यक्ति की अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सके? मान लें कि हम गरीबी रेखा का पैमाना लेते हैं, जो कि औसतन 40 रुपए रोज़ाना है (ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 47 रुपए), तो प्रत्येक व्यक्ति को लगभग 14000 रुपए सालाना या 1200 रुपए प्रतिमाह की गारंटी देनी होगी।
- प्रथम दृष्टया यह राशि व्यावहारिक प्रतीत होती है लेकिन यदि हम इस प्रकार देखें तो अपनी कुल जनसंख्या की 25 फीसद को सालाना 14000 रुपए और अन्य 25 फीसद आबादी को सालाना 7000 रुपए देने की ज़रूरत पड़ेगी और बाकी आबादी को कुछ भी देने की ज़रूरत नहीं होगी तो ऐसे में योजना की लागत आएगी प्रतिवर्ष 6,93,000 करोड़ रुपए।
- विदित हो कि यह राशि वित्तीय वर्ष 2016-17 में सरकार के भुगतान बज़ट के 35 फीसद के बराबर है। ज़ाहिर है, वर्तमान परिस्थितियों में यह आवंटन सरकार के लिये संभव नहीं है।
दुनिया भर में UBI के लिये आवाज़ क्यों उठ रही है?
- अर्थशास्त्री असमानता, मजदूरी में धीमी वृद्धि, बढ़ते ऑटोमेशन के कारण UBI की वकालत कर रहे हैं।
- आने वाले 2-3 दशक विश्व भर में क्रांतिकारी होने वाले हैं। बड़े बदलाव होने की संभावना है। ऑटोमेशन यानी मशीन, रोबोट, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल के कारण लोगों के लिये नौकरियाँ न सिर्फ भारत में बल्कि यूरोप, रूस तथा अमेरिका में भी बहुत तेज़ी के साथ कम हो रही हैं।
- जर्मनी तथा अन्य देशों में बहुत सी कंपनियों में जहाँ 200 से 300 लोग काम करते थे अब 2 से 4 लोग कर रहे हैं और बाकी सारा काम मशीनें कर रही हैं। साथ ही जो लोग नौकरीयाँ कर रहे हैं वे उच्च दक्षता वाले हैं।
- ऐसा अनुमान है कि आने वाले समय में ऑटोमेशन की वज़ह से बहुत सी नौकरियाँ ख़त्म हो जाएंगी। यही कारण है कि राजनीतिज्ञ यूनिवर्सल बेसिक इनकम लाने की बात कर रहे हैं।
UBI के पक्ष में तर्क
- अगर भारत की बात करें तो यहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता है और गरीबों को सब्सिडी एवं सहायता प्रदान करने वाली कई सरकारी योजनाएँ विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हैं। इनमें GDP का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। साथ ही इनके क्रियान्वयन में भी समस्या आती है।
- वर्तमान में केंद्र सरकार की कुल 950 योजनाएँ चल रही हैं। इन योजनाओं को चलाने के लिये GDP का करीब 5 प्रतिशत खर्च होता है। ये योजनाएँ गरीबों को लाभ पहुँचा रही हैं या नहीं, यह चर्चा का विषय है।
- आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि इन सभी योजनाओं को यदि बंद कर दिया जाए तथा इनमें खर्च होने वाले पैसे को UBI की ओर ले जाया जाए तो गरीबों तक प्रत्यक्ष रूप से पैसा पहुँचेगा और उनकी स्थिति में सुधार होगा।
- सिस्टम में अनेक खामियों के चलते जिन लोगों को वास्तव में सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है, उन्हें छोड़ दिया जाता है। इसलिये यह तर्क दिया जाता है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम सभी नागरिकों को बेसिक आय प्रदान कर इन समस्याओं को दूर कर सकती है।
क्या सिक्किम UBI लागू करने में सक्षम है?
- सिक्किम के प्रस्तावित UBI के पक्ष में सबसे आम तर्क यह है कि यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा क्योंकि यह अन्य सभी कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी को समाप्त करेगा।
- गरीबों हेतु लक्षित अक्षम सरकारी परियोजनाओं से अपव्यय भी समाप्त हो जाएगा। सरकार का कहना है कि उसने इस योजना के वित्तीय प्रक्रिया पर पहले ही विचार कर लिया है।
- राज्य द्वारा कई जलविद्युत परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन से राज्य को विद्युत अधिशेष प्राप्त हुआ है।
- राज्य में 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और अगले कुछ वर्षों में यह बढ़कर 3000 मेगावाट हो जाएगा। राज्य की आवश्यकता केवल 200-300 मेगावाट है और बाकी विद्युत ट्रेडिंग कंपनियों को बेच दी जाती है जिससे राजस्व में वृद्धि होती है। इसका उपयोग UBI में किया जा सकता है।
- इसके अलावा, सिक्किम पर्यटकों के लिये सबसे अधिक पसंदीदा गंतव्यों में से एक है और इससे उसे पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है। इसकी प्रति व्यक्ति GDP 2004-05 से दोहरे अंकों में बढ़ रही है।
- सिक्किम में 2011-12 में गरीबी का अनुपात 22% अर्थात् 51,000 (8.2%) कम हुआ है जो 2004-05 में 1.7 लाख (30.9%) था।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार कम आबादी वाला यह राज्य जीवन स्तर के मामले में भारत के बेहतर राज्यों में से एक है।
- सिक्किम में गरीबी का स्तर (Poverty Level) 8 से 9 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। साथ ही प्रति व्यक्ति सकल आय के मामले में इसका सभी भारतीय राज्यों में तीसरा स्थान है, अर्थात् इसके पास पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं।
- सिक्किम महिलाओं के लिये भी सबसे सुरक्षित और प्रगतिशील राज्यों में से एक है, जहाँ कार्यस्थल पर औसत से अधिक उपस्थिति है तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराध बहुत कम हैं।
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार, राज्य की साक्षरता दर 2001 के 68.8 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 82.2 प्रतिशत हो गई है।
- अतः इस योजना को पायलट तौर पर लागू कर सिक्किम एक बेहतर उदाहरण पेश करने में सक्षम हो सकता है।
आगे की राह
- सबको पैसा देने के लिये धन कहाँ से आएगा? अगर मौजूदा जन-कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ UBI को लागू करना हो, तो यह प्रश्न और भी स्वाभाविक और गंभीर रूप में हमारे सामने खड़ा होता है।
- इसीलिये यह माना जाता है कि UBI तभी संभव है, जब कर संरचना (Tax Structure) को प्रगतिशील या रैडिकल बनाया जाए।
- विकसित देशों में न्यूनतम मानव श्रम के उपयोग के साथ उत्पादन करने वाली मशीनों पर टैक्स लगाने का विचार चर्चित रहा है।
- भारत में भी ऑटोमेशन का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों पर ज़्यादा टैक्स लगाया जा सकता है तथा उस पैसे को UBI में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- हालाँकि पूरे भारत में UBI लागू करना एक बड़ी चुनौती होगी फिर भी कुछ आवश्यक कदम उठाकर इसे संभव बनाया जा सकता है।
- दक्षिण एशिया में स्थिरता एवं चीन, पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध तथा तेल के आयात व रक्षा खर्च में कमी कर दी जाए तो शायद इतना पैसा बचाया जा सकता है कि भारत आने वाले समय में UBI पर गंभीरता से विचार कर सकता है।
- एक गणना के मुताबिक, UBI को यदि वास्तव में यूनिवर्सल रखना है तो उसके लिये जीडीपी का 10 फीसदी खर्च करना होगा। अगर इसे सिर्फ कुछ तबकों के लिये लागू किया जाता है, तो फिर इस योजना को यूनिवर्सल नहीं कहा जा सकता।
निष्कर्ष
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बेसिक इनकम का विचार भारत की जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा लेकिन सबके लिये एक बेसिक इनकम तब तक संभव नहीं है जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडी को खत्म न कर दिया जाए। अतः सभी भारतवासियों के लिये एक बेसिक इनकम की व्यवस्था करने की बजाए सामाजिक-आर्थिक जनगणना की मदद से समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के लिये एक निश्चित आय की व्यवस्था करना कहीं ज़्यादा प्रभावी और व्यावहारिक होगा।
बेसिक इनकम के माध्यम से लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष सुधार तो देखा जा सकता है लेकिन इसके अतिरिक्त सामाजिक स्थिति में सुधार का भी अपना एक अलग महत्त्व है जो कि भारत जैसे देश में प्रत्यक्ष तौर पर नज़र नहीं आता। यह आवश्यक नहीं कि जो नीतियाँ कनाडा और फ़िनलैंड में प्रभावी व प्रमाणित हो रही हों वे भारत में भी उतनी ही प्रभावी होंगी।