शासन व्यवस्था
देश-देशांतर/द बिग पिक्चर : अप्रचलित कानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया जारी
- 05 Jan 2018
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संदर्भ
संसद के शीतकालीन सत्र में पुराने एवं अप्रासंगिक कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिये निरसन और संशोधन विधेयक, 2017 तथा निरसन और संशोधन (दूसरा) विधेयक 2017 पारित किया गया। इनके तहत पुराने एवं अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त करने के क्रम में संसद ने और 245 कानूनों को निरस्त कर दिया।
पृष्ठभूमि
- देश को स्वतंत्र हुए 70 वर्ष हो गए हैं, लेकिन अंग्रेजों के ज़माने के कानून आज भी मौजूद हैं। अब जिन कानूनों को निरस्त किया गया है, वे ऐसे कानून थे जो आज़ादी के आंदोलन को दबाने के लिये बनाए गए थे। इन पुराने कानूनों में सुधार तो हो नहीं सकता था, इसलिये इनमें संशोधन की बात सोचना भी बेकार था।
- उल्लेखनीय है कि इससे पहले मई 2014 से अगस्त 2016 के बीच 1175 ऐसे पुराने कानूनों को हटाया जा चुका है, जिनका कोई औचित्य नहीं रह गया था।
निरसन और संशोधन विधेयक, 2017 के तहत 104 पुराने कानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया, जबकि निरसन और संशोधन (दूसरा) विधेयक, 2017 के तहत 131 पुराने एवं अप्रसांगिक कानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया।
कानून कैसे-कैसे?
- अब तक जो कानून समाप्त किये गए हैं उनमें सरकारी मुद्रा अधिनियम, 1862, पश्चिमोत्तर प्रांत ग्राम और सड़क पुलिस अधिनियम 1873, नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876, राजद्रोहात्मक सभाओं का निवारण अधिनियम 1911, बंगाल आतंकवादी हिंसा दमन अनुपूरक अधिनियम 1932 शामिल है।
- पुलिस अधिनियम 1888, फोर्ट विलियम अधिनियम 1881, हावड़ा अपराध अधिनियम 1857, सप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम 1942, युद्ध क्षति प्रतिकर बीमा अधिनियम 1943 जैसे अंग्रेज़ों के समय के पुराने और अप्रचलित कानूनों को समाप्त किया गया है।
- शत्रु के साथ व्यापार (आपात विषयक उपबंधों का चालू रखना) अधिनियम 1947, कपास उपकर संशोधन अधिनियम 1956, दिल्ली किराएदार अस्थायी उपबंध अधिनियम 1956, विधान परिषद अधिनियम 1957, आपदा संकट माल बीमा अधिनियम 1962, खतरनाक मशीन विनियमन अधिनियम 1983, सीमा शुल्क संशोधन अधिनियम 1985 शामिल हैं।
- कुछ ऐसे भी कानून हैं, जो 150-175 साल पुराने हैं, उन्हें भी निरस्त किया गया है, इनमें हावड़ा ऑफेंस एक्ट, गंगा टैक्स कानून 1880, ड्रैमेटिक परफॉरमेंस एक्ट 1872, वेस्टलैंड क्लेम एक्ट व सराय एक्ट 1867 जैसे कानून शामिल हैं।
इनके अलावा इंडिया ट्रेजर ट्रोव एक्ट 1878, दि बंगलौर मैरिजेज वेलिडेटिंग एक्ट 1934, दि इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट 1898, दि संथाल परगना एक्ट 1855, दि शेरिफ फीस एक्ट 1852, कॉफी एक्ट 1942, दि न्यूज़ पेपर (प्राइस एंड पेज) एक्ट 1956, यंग पर्सन्स (हार्मफुल पब्लिकेशंस) एक्ट 1956, एक्सचेंज ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1948, विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिये (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम 1948 और इंडियन इंडिपेंडेंस पाकिस्तान कोर्ट्स (पेंडिंग प्रोसेडिंग्स) एक्ट 1952 जैसे बिल्कुल अप्रासंगिक कानून भी समाप्त होने की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं।
अप्रचलित कानूनों पर विभिन्न रिपोर्टें
- अप्रचलित कानून निरस्त करने पर विधि आयोग की 96वीं रिपोर्ट (1984)
- विधि आयोग ने 1947 के पहले के कुछ कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की थी (रिपोर्ट 1993)
- कानूनों को निरस्त और संशोधित करने पर विधि आयोग की 159वीं रिपोर्ट (1998)
- प्रशासनिक विधियों की समीक्षा पर 1998 में आयोग की रिपोर्ट (इसे ही पी.सी. जैन आयोग रिपोर्ट कहा जाता है)
क्या हुई कार्रवाई?
आज़ादी के बाद हमारे देश में कानून की किताब में जितने नए अध्याय ज़ुडे हैं, उससे कहीं अधिक हटाए गए हैं। ये ब्रिटिशकालीन अध्याय कानूनी किताब में आर्काइव की तरह पड़े थे और यह क्रम अभी जारी है।
- सरकार पहले उन कानूनों को निरस्त कर रही है, जिन्हें रद्द करने की सिफारिश किसी आयोग द्वारा पहले की जा चुकी है।
- इसके अंतर्गत पी.सी. जैन आयोग द्वारा 250 अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को खत्म करने की सिफारिश भी शामिल हैं।
- 1998 में इसी कमेटी ने 700 विनियोग व वित्त विधेयकों को भी खत्म करने की सिफारिश की थी, जो अनुपयोगी व बेकार हो चुके हैं। ऐसे विधेयकों की ज़रूरत सीमित समय के लिये ही होती है।
- 2014 में नई सरकार द्वारा यह प्रक्रिया शुरू करने से पहले वर्ष 1950 में 1029 ऐसे कानूनों को किताब से हटाया गया था।
- उसके बाद 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में यह काम हुआ था और फिर 2014 में नई सरकार आने के बाद इस काम में तेज़ी आई।
मई 2014 से अगस्त 2016 के बीच रद्द कानून प्रधानमंत्री कार्यालय, भारतीय विधि आयोग की सिफारिशों और उसके बाद विधि विभाग द्वारा गठित दो सदस्यीय रामानुजम समिति ने निरस्त करने के लिये पुराने और निरर्थक पड़ चुके 1824 कानूनों की पहचान की थी। अप्रासंगिक और बेकार कानूनों की समीक्षा के बाद इसने अपनी रिपोर्ट में 637 कानून रद्द करने की सिफारिश की थी।
(टीम दृष्टि इनपुट) |
क्या अंतर पड़ेगा?
बेशक ये कानून प्रचलन में नहीं थे, लेकिन इनका अस्तित्व बना हुआ था और इस कारण इनके दुरुपयोग की संभावना भी बनी रहती थी। जानकारों का मानना है कि ये कानून विधि व्यवस्था पर एक बोझ जैसा बने हुए थे, क्योंकि इनमें से कई कानून तो ऐसे थे, जिनका स्थान नए कानून ले चुके हैं। कई देशों में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है कि समय के साथ प्रभावी न रह जाने वाले या ऐसे कानून जिनमें निरंतरता नहीं है, उन्हें हटा दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि समय के साथ उनकी कीमत कम हो गई है।
- इसे अंग्रेज़ी में Periodic Spring-cleaning of the Statute Book कहा जाता है।
देश में अब जो कानून निरस्त किये जा रहे हैं, वे तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार बनाए गए थे और वर्तमान दौर में उनकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई थी। लेकिन इनके तहत यदि कोई मामला चल रहा है तो वह निरस्त नहीं होगा।
विधि आयोग की अंतरिम रिपोर्टें
2014 में नई सरकार बन जाने के बाद विधि आयोग ने अपनी 248, 249, 250 और 251वीं अंतरिम रिपोर्टों में क्रमश: 72, 113, 74 और 30 बेकार और अप्रासंगिक हो चुके कानूनों (जिनमें कुछ राज्यों के क़ानून भी शामिल थे) की पहचान करके उन्हें जल्द-से-जल्द निरस्त करने की सिफारिश की थी। वैसे विधि आयोग हर बार ऐसे कानूनों की समाप्ति को लेकर अपनी रिपोर्ट में उल्लेख करता रहता है। जैसे:
- पुराने पड़ गए कानूनों की समीक्षा करना और उन्हें समाप्त करने की सिफारिश करना।
- उन कानूनों की पहचान करना, जिनकी ज़रूरत या प्रासंगिकता नहीं रह गई है और जिन्हें तुरंत समाप्त किया जा सकता है।
- उन कानूनों की पहचान करना, जो आर्थिक उदारीकरण के मौजूदा माहौल में उपयुक्त हैं और जिन्हें बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है।
- उन कानूनों की पहचान करना जिनमें बदलाव या संशोधन की आवश्यकता है, इनमें संशोधन के लिये सुझाव देना।
- कानूनों के समन्वय और उनके सामंजस्य के लिये विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों के विशेषज्ञ समूहों द्वारा सुझाए गए संशोधन/सुधार पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करना।
- एक से अधिक विभागों/मंत्रालयों के कामकाज को प्रभावित करने वाले कानूनों के संबंध में मंत्रालयों/विभागों की सिफारिश पर विचार करना।
विधि आयोग भारतीय विधि आयोग को प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुनर्गठित किया जाता है। यह आयोग संविधान में उल्लिखित अपने गठन संबंधी नियमों और शर्तों के तहत काम करता है और इसे अपने क्रियाकलापों में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह (बी.एस.) चौहान विधि आयोग के 21वें अध्यक्ष हैं। विधि आयोग के प्रमुख कार्य
(टीम दृष्टि इनपुट) |
विनियोग और वित्त विधेयकों की भरमार
केंद्र सरकार लगभग 700 विनियोग कानूनों को भी रद्द कर चुकी है। उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष कम-से-कम 12 विनियोग विधेयक सरकारी राजकोष से धन निकालने के लिये लाए और पारित किये जाते हैं। पिछले कई दशकों में बड़ी संख्या में विनियोग कानून पारित किये गए थे, लेकिन अपनी प्रासंगिकता खोने के बावजूद ये विधि पुस्तिका में बने हुए थे। उल्लेखनीय है कि विनियोग अधिनियम एक सीमित अवधि के लिये होता है और यह एक वित्त वर्ष की अवधि के लिये खर्च का अधिकार सरकार को प्रदान करता है। ऐसे कानूनों के बारे में जानकारों का कहना है कि इनकी 'सेल्फ लाइफ' निर्धारित कर देनी चाहिये, ताकि 1-2 वर्ष बाद ये स्वतः समाप्त हो जाएँ।
निष्कर्ष: पिछले वर्ष नीति आयोग द्वारा आयोजित किये गए ‘ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ की व्याख्यानमाला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि प्रशासकीय बदलाव के लिये पुरानी व्यवस्था बदलने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। अप्रचलित कानूनों और पुरानी पड़ चुकी प्रशासकीय व्यवस्था दूर रखकर नए प्रयोग करने से ही बदलाव लाना संभव हो सकेगा।
पुराने अप्रचलित-अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करने से यह सुनिश्चित होता है कि हमारा विधिक ढाँचा बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। जब समाज और उसकी सोच बदल जाती है, तब उसकी प्राथमिकताएँ भी बदल जाती हैं। ऐसे में नए कानूनों की ज़रूरत महसूस होने लगती है। यही वजह है कि पुराने कानूनों में समय-समय पर संशोधन की ज़रूरत पड़ती है। उसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिये ऐसा करना अनिवार्य है। वहीं जिन कानूनों की कोई ज़रूरत नहीं उन्हें खत्म कर देना चाहिये, परंतु देश में इसकी गति धीमी रही है। देश में पुराने पड़ चुके इन कानूनों को खत्म करने की मांग लंबे समय से होती रही है, क्योंकि कई बार इनका प्रयोग देश में चलने वाली लंबी कानूनी प्रक्रिया को और जटिल बनाने के लिये भी किया जाता है तथा कभी-कभी ये भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं। देश में अभी भी कई ऐसे कानून हैं, जो 100 साल से भी अधिक पुराने हैं और अब लागू करने के योग्य नहीं हैं। अब मैकाले के समय के कानूनों की समीक्षा वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर होनी चाहिये, क्योंकि परिस्थितियों और समय के अनुसार अपराध के तौर-तरीके बदले हैं।