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संसद टीवी संवाद


भारतीय अर्थव्यवस्था

द बिग पिक्चर : उत्पादकता तथा धारणीयता

  • 28 Feb 2019
  • 11 min read

संदर्भ

राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (National Productivity Council-NPC) द्वारा 12 फरवरी से 18 फरवरी, 2019 तक ‘राष्ट्रीय उत्पादकता सप्ताह’ मनाया गया। 2019 के लिये इसकी थीम ‘उत्पादकता और धारणीयता के लिये सर्कुलर इकॉनमी’ (Circular Economy for Productivity and Sustainability) है।

पृष्ठभूमि

  • 2050 तक पृथ्वी पर 10 अरब लोग होंगे। ताज़े पानी, तेल या तांबे जैसे प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती कमी को देखते हुए कोई भी यह सवाल कर सकता है कि व्यवसाय कैसे बचेंगे, या मनुष्य कैसे जीवित रहेंगे?
  • दुनिया की आबादी बढ़ रही है और इससे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। वर्ष 2050 तक पर्याप्त भोजन, पानी और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये हमें लीनियर इकॉनमी से सर्कुलर इकॉनमी की तरफ आगे बढ़ना होगा।
  • यही कारण है कि सरकार ने सर्कुलर इकॉनमी के लिये व्यापक कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • इसका उद्देश्य स्वस्थ और सुरक्षित जीवन तथा काम करने की उत्कृष्ट स्थिति सुनिश्चित करना और पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाना है।

सर्कुलर इकॉनमी तथा लीनियर इकॉनमी में अंतर

  • हमारा वर्तमान आर्थिक मॉडल 'लीनियर' (linear) रही है। लीनियर का मतलब यह है कि किसी उत्पाद को बनाने के लिये उपयोग होने वाले कच्चे माल के इस्तेमाल के बाद बचे अपशिष्ट (जैसे पैकेजिंग) को फेंक दिया जाता है।
  • 1950 से अब तक 6 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक या तो प्रकृति में समाप्त हो गया है या उसे जला दिया गया है या मिट्टी में दबा दिया गया है।
  • रीसाइक्लिंग पर आधारित अर्थव्यवस्था में उपयोग होने वाले पदार्थों का पुन: उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये बेकार हो चुके काँच का उपयोग नए काँच बनाने के लिये किया जाता है और नए कागज़ बनाने के लिये बेकार हो चुके कागज़ का उपयोग किया जाता है। इसे सर्कुलर इकॉनमी कहा जाता है।
  • यह देखते हुए कि भविष्य में भोजन, आश्रय, हीटिंग और अन्य आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त कच्चे माल की आवश्यकता होगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था का सर्कुलर होना अत्यंत आवश्यक है।
  • अर्थात् उत्पादों और सामग्रियों को अधिक कुशलता से बनाने और उनका पुन: उपयोग करके कचरे (waste) को रोकना।

economy

सर्कुलर इकॉनमी क्या है?

  • यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादों को स्थायित्व, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के लिये डिज़ाइन किया जाता है और इस प्रकार लगभग हर चीज़ का पुन: उपयोग, पुन: उत्पादन और कच्चे माल में पुनर्नवीनीकरण या ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • इसमें 3 R [कम करना (Reduce), पुन: उपयोग (Reuse) तथा पुनर्चक्रण (Recycle)], नवीनीकरण, पुनर्प्राप्ति और सामग्रियों की मरम्मत शामिल है। इस प्रकार, सर्कुलर इकॉनमी संसाधनों के अधिक कुशल उपयोग के संदर्भ में उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति अपने मोबाइल को त्यागने की योजना बना रहा है, तो उसे किसी और (यानी मोबाइल को पुनः उपयोग योग्य बनाने) को दिया जा सकता है, बजाय इसके कि उसे ऐसे ही फेंक दिया जाए।
  • एक बार जब मोबाइल फेंकने की स्थिति में पहुँच जाता है, तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि इसमें मौजूद हर चीज़, एल्युमीनियम, तांबा, प्लास्टिक आदि को उत्पादन चक्र में वापस लाया जाए ताकि अर्थव्यवस्था का चक्र पूरा हो सके।
  • वर्तमान में अधिकांश देश एक लीनियर प्रक्रिया का पालन करते हैं जिसमें कच्चे माल को पर्यावरण से लिया जाता है तथा नए उत्पाद तैयार किये जाते हैं तथा बचे कच्चे माल को उपयोग के बाद नष्ट कर दिया जाता है।
  • जर्मनी और जापान ने इसे अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिये एक बाध्यकारी सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया है, जबकि चीन ने इस पर एक कानून भी बनाया है।

उद्योग के लिये लाभ

  • सर्कुलर इकॉनमी उद्योगों, विशेष रूप से विनिर्माण उद्योगों द्वारा आवश्यक कच्चे माल की आवश्यकता को पूरा करती है।
  • एक सर्कुलर इकॉनमी में उद्योगों द्वारा उत्पादित उत्पादन इनपुट के रूप में उद्योगों में वापस आता है। उदाहरण के लिये जब मोबाइल के कुछ हिस्सों को अलग किया जाएगा, तो कुछ उद्योगों के लिये तांबा और एल्युमीनियम कच्चे माल बन जाएंगे।
  • इसके अलावा, सर्कुलर इकॉनमी संसाधनों के कुशल उपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है जो उद्योगों को अपने कारोबार के 3-5% के बराबर नकद मुनाफा कमाने में मदद करती है। अंततः, QCDF (Quality-गुणवत्ता, Cost-लागत, Delivery-वितरण और Flexibility-लचीलापन) तथा उद्योगों के स्थायित्व के स्तर में सुधार होता है।

राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (NPC)

  • NPC (National Productivity Council) भारत में उत्पादकता संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय स्तर का एक संगठन है।
  • यह 1958 में उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। यह एक स्वायत्त, बहुपक्षीय, गैर-लाभकारी संगठन है जिसमें तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों तथा अन्य हितधारकों के अलावा नियोक्ताओं, श्रमिक संगठनों और सरकार का समान प्रतिनिधित्व होता है।
  • एनपीसी टोक्यो स्थित एशियाई उत्पादकता संगठन (Asian Productivity Organisation-APO) का एक घटक है, जो एक अंतर-सरकारी निकाय है, भारत इसका एक संस्थापक सदस्य है।

सर्कुलर इकॉनमी के लाभ

1. पर्यावरण के लिये

  • विभिन्न देशों में लाखों टन कचरा पैदा होता है। सर्कुलर इकॉनमी इसको कच्चे माल में परिवर्तित कर कचरे के निपटान की समस्या को हल करती है।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या के अलावा, सर्कुलर इकॉनमी वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा मृदा प्रदूषण की समस्या को भी हल करती है।

2. उपभोक्ताओं के लिये

  • सर्कुलर इकॉनमी में उत्पाद उपभोक्ताओं के लिये अधिक लागत प्रभावी होते हैं क्योंकि वे लंबे समय तक रहने के अलावा अधिक गुणकारी होते हैं।
  • इससे क्षमता में वृद्धि के चलते रखरखाव की लागत में कमी के साथ-साथ निपटान भी होता है।

सर्कुलर इकॉनमी और भारत

  • भारत में पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण की बहुत अधिक संभावना है क्योंकि उत्पन्न कचरे का 10-15% से भी कम पुनर्चक्रण प्रक्रिया में जाता है।
  • शुरुआत के लिये निर्माण, कृषि, वाहन और गतिशीलता (Mobility) जैसे क्षेत्रों पर विचार किया जा सकता है क्योंकि आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों में अधिक वृद्धि की संभावना है और इस प्रकार भारत 2030 तक 40 लाख करोड़ रुपए से अधिक की बचत करने में सक्षम होगा।
  • भारत पहले से ही सर्कुलर इकॉनमी के पथ पर आगे बढ़ रहा है। NPC और सरकार की पहल बताती है कि रीसाइक्लिंग डिजिटल इंडिया ’कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। स्वच्छ भारत मिशन भी कचरे से धन अर्जित करने पर केंद्रित है।
  • भारत में सर्कुलर इकॉनमी को आगे बढ़ाने के लिये इस पर एक नीतिगत रूपरेखा तैयार करना समय की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से MSMEs सर्कुलर इकॉनमी की दिशा में परिवर्तित होने में बहुत मदद कर सकते हैं।
  • इसके लिये निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है-

♦ वीनीकरण और आसान चक्रण के लिये डिज़ाइनिंग प्रक्रियाएँ।
♦ सर्कुलर इकॉनमी और इसके लाभ के बारे में जनता को जागरूक करना।
♦ सर्कुलर इकॉनमी के सुचारु रूप से कार्यान्वयन के लिये सहयोगात्मक मॉडल तैयार करना।
♦ प्रसारित तथा प्रचारित करने के लिये नवीन उत्पाद।
♦ संसाधनों को बचाने के लिये पारदर्शिता, वर्चुअलाइज़ेशन, डीमैटरियलाइज़ेशन, और फीडबैक संचालित इंटेलिजेंस के लिये डिजिटलीकरण।
♦ पर्यावरणीय स्थिरता के लिये ऊर्जा कुशलता।

निष्कर्ष

दुनिया में संसाधन सीमित हैं। सर्कुलर इकॉनमी संसाधनों के उपयोग में मदद करेगी। माइंडसेट सर्कुलर इकॉनमी के कार्यान्वयन की कुंजी है। देशों को इस बात पर सोच-विचार करने की ज़रूरत है कि वे पर्यावरण से क्या ले रहे हैं और उसमें क्या योगदान दे रहे हैं। उन्हें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अपशिष्ट में बदलने से पहले सामग्री का पुनर्नवीनीकरण या पुन: उपयोग सुनिश्चित किया जाए।

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