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द बिग पिक्चर: ड्राफ्ट ड्रोन रूल्स: इम्पेटस टू फ्यूचर टेक

  • 21 Jul 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने "विश्वास, स्व-प्रमाणन और गैर-घुसपैठ निगरानी" (Trust, Self-certification and Non-Intrusive Monitoring) के आधार पर ड्राफ्ट ड्रोन नियम (Draft Drone Rule), 2021 जारी किया।

प्रमुख बिंदु

  • नया ड्रोन नियम, मानव रहित विमान प्रणाली नियम (Unmanned Aircraft System Rule), 2021 की जगह लेगा।
  • यहाँ नियमों का फोकस नए जमाने की तकनीक और ज़मीन पर इसके क्रियान्वयन को बढ़ावा देना है।
  • अगले 8-10 वर्षों तक भारत में ड्रोन क्षेत्र के लिये संचयी बाज़ार क्षमता तीन लाख करोड़ रुपए तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • नियम व्यक्तियों और कंपनियों के लिये ड्रोन संचालित करना बहुत आसान बनाते हैं।
    • यह निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिये प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाता है।

ड्रोन प्रौद्योगिकी क्षेत्र

  • ड्रोन: यह मानव रहित विमान (Unmanned Aircraft) के लिये एक आम शब्दावली है। मानव रहित विमान के तीन उप-सेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (Remotely Piloted Aircraft), ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट (Autonomous Aircraft) और मॉडल एयरक्राफ्ट (Model Aircraft)।
    • रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड और कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं।
  • ड्रोन प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग: ड्रोन एक परिवर्तनकारी तकनीक है। इनका उपयोग विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में किया जाता है:
    • रक्षा: ड्रोन सिस्टम को आतंकवादी हमलों के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
      • ड्रोन को राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र प्रणाली में एकीकृत किया जा सकता है।
    • स्वामित्व योजना: इस योजना के अंतर्गत ड्रोन तकनीक के उपयोग से एक वर्ष से भी कम समय में आबादी वाले क्षेत्रों का मानचित्रण करके लगभग 5 लाख गाँवों के निवासियों को उनके संपत्ति कार्ड प्राप्त कराने में मदद की गई।
    • ड्रोन का उपयोग: हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने तेलंगाना सरकार के साथ दूरदराज़ के क्षेत्रों में टीके पहुँचाने के लिये ड्रोन तकनीक का उपयोग करने हेतु एक परियोजना को मंज़ूरी दी है।
    • कृषि: ड्रोन की मदद से कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का छिड़काव किया जा सकता है।
      • इसका उपयोग किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान के लिये सर्वेक्षण करने हेतु भी किया जा सकता है।
    • वाणिज्यिक उपयोग: ड्रोन प्रौद्योगिकी के वाणिज्यिक उपयोग भी हैं:
      • रेलवे, ट्रैक मॉनीटरिंग के लिये ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है।
      • टावर की निगरानी के लिये टेलीकॉम कंपनियाँ ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं।
    • अन्य उपयोग: ड्रोन कानून प्रवर्तन एजेंसियों, आग और आपातकालीन सेवाओं के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ मानव हस्तक्षेप और स्वास्थ्य सेवाएँ सुरक्षित नहीं है।
  • ड्रोन क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास: ड्रोन उन 24 क्षेत्रों में से एक है, जिन पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा ध्यान दिया जाता है, जहाँ आत्मनिर्भर भारत योजना को अच्छी तरह से लागू किया जा सकता है।
    • भारत में न केवल IIT-कानपुर, IIT-बॉम्बे, IIT-दिल्ली आदि जैसे संस्थानों में बहुत व्यापक शोध किया जा रहा है, बल्कि साथ ही अनुसंधान को उत्पादों में परिवर्तित किया जा रहा है।
    • भारत में कई एप्लीकेशन क्षेत्रों में ड्रोन पेश करने के लिये IIT और अन्य कंपनियों के साथ 130 से अधिक स्टार्टअप पंजीकृत हैं।
    • अंतिम उपयोगकर्त्ता भी ड्रोन तकनीक को अपनाने के लिये उत्सुक हैं क्योंकि इससे उन्हें न केवल लागत कम करने में बल्कि अपनी डिजिटल मूल्य शृंखला में ड्रोन का लाभ उठाने के अवसर बढ़ाने में भी मदद मिलती है।

ड्राफ्ट ड्रोन नियम, 2021

  • विशिष्ट पहचान संख्या: प्रत्येक ड्रोन को उसके स्थान, ऊँचाई, गति आदि के प्रसारण के साथ एक विशिष्ट पहचान संख्या हेतु निर्दिष्ट किया गया है।
    • किसी भी ड्रोन के पास अन्य विवरण के साथ यदि एक विशिष्ट आईडी नंबर नहीं है, तो वह एक दुष्ट ड्रोन होगा।
    • ड्रोन की हर उड़ान की निगरानी डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म से की जाएगी, इसलिये जब कोई रिमोट पायलट ड्रोन उड़ाने की कोशिश करेगा, तो उसका ‘फ्लाई पाथ’ अपने आप प्लेटफॉर्म में पंजीकृत हो जाएगा।
  • डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म: यह एक सुरक्षित और स्केलेबल प्लेटफॉर्म प्रदान करने के लिये MoCA की एक पहल है जो ड्रोन प्रौद्योगिकी ढाँचे का समर्थन करता है, जैसे NPNT (कोई अनुमति नहीं, कोई टेक-ऑफ नहीं), उड़ान अनुमति को डिजिटल रूप से सक्षम करने और मानव रहित विमान संचालन तथा यातायात का कुशलता से प्रबंधन करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। 
    • डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पर न्यूनतम मानव इंटरफेस होगा और अधिकांश अनुमतियाँ स्वयं दी जाएंगी।
  • सरलीकृत आवश्यकताएँ: ड्रोन के अधिग्रहण और उपयोग की अनुमति देने की आवश्यकताओं को सरल बनाया गया है।
  • प्रोटोटाइप: प्रोटोटाइप प्राप्त करने हेतु निर्माताओं और अन्य हितधारकों की आवश्यकताओं को आसान बनाया गया है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: नए ड्राफ्ट नियम उद्योगों के लिये ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस प्रदान करते हैं।
    • पहले 25 फॉर्म भरे जाते थे जो अब 5 हो गए हैं।
    • पंजीकरण और रिमोट-पायलट लाइसेंसिंग के बारे में स्पष्टता प्रदान की गई है।
    • ड्रोन के बीमा का भी ध्यान रखा गया है।
  • देश का क्षेत्रों में विभाजन: डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म में देश को हरे, पीले और लाल क्षेत्रों में विभाजित करने वाला एक इंटरेक्टिव हवाई क्षेत्र का नक्शा होगा।
    • जबकि ‘यलो ज़ोन’ को पास के हवाई अड्डे की परिधि से 45 किमी से घटाकर 12 किमी. कर दिया गया है, ‘ग्रीन ज़ोन’ में 400 फीट तक और हवाई अड्डे की परिधि से 8 से 12 किमी. के बीच के क्षेत्र में 200 फीट तक उड़ान की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

संबंधित मुद्दे

  • सशस्त्र हमलों का अधिक जोखिम: बिना किसी पर्याप्त कानूनी समर्थन के ड्रोन का संचालन कई सुरक्षा खतरे पैदा कर सकता है।
    • हाल ही में जम्मू ड्रोन हमलों (Jammu Drone Attacks) में ड्रोन द्वारा हथियार गिराए जाने की घटनाएंँ भी हुई हैं।
    • उन्हें विनाशकारी उपयोग में लाया जा सकता है, जिसमें महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों पर हमला करना, बुनियादी ढांँचे को नष्ट करना आदि शामिल है।
  • पैरामिलिट्री को नियमों से छूट नहीं: नए मसौदे के अनुसार, नियम और कानून सेना, नौसेना या वायु सेना पर लागू नहीं होते हैं।
    • हालांँकि इसमें अभी भी अर्द्धसैनिक बल शामिल हैं। सीमापार ड्रोन गतिविधियों के कारण बीएसएफ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
  • कम कीमत पर बड़ी आबादी हेतु ड्रोन की खरीद: पारंपरिक हथियारों की तुलना में ड्रोन अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं जिसके परिणाम अधिक विनाशकारी होते हैं और यह ड्रोन हमलों की बढ़ती संख्या का प्राथमिक कारण है।
  • सामूहिक विनाश के हथियारों की डिलीवरी: जो बात लड़ाकू ड्रोन को सबसे खतरनाक बनाती है, वह है सामूहिक विनाश के हथियारों को पहुंँचाने के लिये उनके इस्तेमाल का खतरा।
    • राज्य के अलावा अन्य द्वारा लड़ाकू ड्रोन की खरीद गंभीर खतरे पैदा करती है।

आगे की राह: 

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: ड्रोन पायलटों हेतु  प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिये। अकेले ड्रोन तकनीक पर्याप्त नहीं होगी, तकनीक का पूरा उपयोग करने के लिये कुछ और पहलुओं का ध्यान रखना होगा।
  • सुरक्षा और लाभों को संतुलित करना: हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि दिशा-निर्देश इस तरह से हों कि सुरक्षा चिंताओं से बिल्कुल भी समझौता न किया जाए, लेकिन ड्रोन तकनीक का भी इसके अधिकतम लाभ के लिये उपयोग किया जाता है।
  • एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित करना: DRDO ने एक एंटी-ड्रोन सिस्टम को विकसित करने का कार्य  शुरू कर दिया है। इसमें सॉफ्ट किल और हार्ड किल का विकल्प भी उपलब्ध होगा।
    • सॉफ्ट किल विकल्पों में ड्रोन को जाम करना शामिल है।
    • हार्ड किल विकल्पों में ड्रोन को नीचे गिराने हेतु लेज़र तकनीक, मिसाइल या अन्य ड्रोन का इस्तेमाl करना शामिल है।
  • निवेश बढ़ाना: भारत को विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण संपत्तियों के आसपास खतरों का पता लगाने और उन्हें ट्रैक करने हेतु अपने स्वयं के मानव रहित हवाई वाहन (UAV) सिस्टम एवं काउंटर-ड्रोन तकनीक में निवेश करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: 

  • भारत में ड्रोन तकनीक का अत्यधिक महत्त्व है, अत: हमें न केवल प्रौद्योगिकी को अपनाने से पीछे हटने की ज़रूरत है बल्कि सुरक्षा चिंताओं से विवेकपूर्ण तरीके से निपटने की आवश्यकता है ।
    • हालांँकि सुरक्षा चिंताओं से समझौता नहीं किया जाना चाहिये।
  • आने वाले वर्षों में ड्रोन प्रौद्योगिकी के नागरिक और सैन्य क्षेत्र में सबसे अधिक लागत प्रभावी विकल्प तथा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली प्रणाली होने की उम्मीद है।
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