कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम फैसला: नदियाँ राष्ट्रीय संपत्ति हैं | 21 Feb 2018
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा 2007 में दिये गए फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल द्वारा दायर याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताभ राय और जस्टिस ए.एम. खानविलकर ने हाल ही में 120 साल पुराने कावेरी जल विवाद पर फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 20 सितंबर को इस पीठ ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
नदी जल विवाद से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
(टीम दृष्टि इनपुट) |
क्या कहा सुप्रीम अदालत ने?
- इस फैसले में दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी कावेरी के पानी में तमिलनाडु की हिस्सेदारी को 192 टीएमसी फीट (अरब क्यूबिक फीट) से घटाकर 177.25 टीएमसी फीट कर दिया गया और कर्नाटक को अब 14.75 टीएमसी फीट पानी ज़्यादा दिया जाएगा।
- इसमें से मंड्या जिले में स्थित कावेरी नदी से 120 किलोमीटर दूर कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू को 4.75 टीएमसी फुट पानी दिया जाएगा।
- बंगलूरू के लोगों की पेयजल और भूमिगत जल की ज़रूरतों तथा औद्योगिक आवश्यकता के मद्देनज़र कर्नाटक की हिस्सेदारी में इजाफा किया गया।
- कर्नाटक कहता रहा है कि कावेरी का ज्यादातर पानी बंगलूरू और अन्य शहरों में पीने के लिये इस्तेमाल होता है और सिंचाई के लिये पानी बचता ही नहीं है।
- उल्लेखनीय है कि कावेरी न्यायाधिकरण ने कावेरी बेसिन में 740 टीएमसी फीट पानी पाया और तमिलनाडु को 419, कर्नाटक को 270, केरल को 30 और पुद्दुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी देने का फैसला किया था।
- पीठ ने कहा कि कावेरी न्यायाधिकरण ने तमिलनाडु में नदी के बेसिन में उपलब्ध भूजल पर ध्यान नहीं दिया था। पीठ ने कावेरी बेसिन के कुल 20 टीएमसी फीट 'भूमिगत जल' में से 10 टीएमसी फीट अतिरिक्त पानी निकालने की अनुमति तमिलनाडु को दे दी है।
- केरल और पुदुचेरी को मिलने वाले पानी में कोई बदलाव नहीं किया गया है और इन्हें पहले की तरह क्रमशः 30 और 7 टीएमसी फीट पानी मिलता रहेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जल को राष्ट्रीय संपत्ति बताते हुए कहा कि फैसले को लागू कराना केंद्र सरकार का काम है।
- अदालत ने कहा कि यह नवीनतम फैसला 15 वर्ष के लिये है तथा अब केंद्र और कर्नाटक एवं तमिलनाडु की सरकारों को फैसले के सुचारू क्रियान्वयन पर ध्यान देना चाहिये।
बनेगा कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड
न्यायालय ने केंद्र सरकार से कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड गठित करने को कहा है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि तमिलनाडु को उसके हिस्से का पानी मिले। अर्थात यह बोर्ड बतौर नियामक अदालत के फैसले को लागू कराने का काम करेगा। अदालत ने केंद्र सरकार को इसके लिये छह सप्ताह का समय दिया है। उल्लेखनीय है कि अक्तूबर, 2016 में केंद्र सरकार ने यह कहते हुए बोर्ड गठित करने से इनकार कर दिया था कि यह उसके अधिकार-क्षेत्र में नहीं आता और यह महज़ कावेरी जल विवाद अधिकरण की सिफारिश मात्र थी।
शहरों का नियोजित विकास होना ज़रूरी (टीम दृष्टि इनपुट) |
राष्ट्रीय संपत्ति है पानी
न्यायालय द्वारा पानी को राष्ट्रीय संपत्ति बताते हुए यह कहना कि इस पर किसी भी राज्य का मालिकाना हक नहीं है, देश के अन्य राज्यों के बीच चल रहे जल विवाद को सुलझाने का एक मज़बूत आधार बन सकता है। न्यायालय ने कहा कि कोई भी राज्य नदी के स्वामित्व को लेकर दावा नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक प्राकृतिक संपत्ति है और इस पर पूरे देश का अधिकार है। यह कहकर न्यायालय ने हर्मन डॉक्ट्रिन और जल के प्राकृतिक बहाव के सिद्धांत, दोनों ही सिद्धांतों को नकार दिया और ‘न्यायसंगत बँटवारे या इस्तेमाल’ के सिद्धांत पर ज़ोर दिया।
विदित हो कि नदी जल को राज्य सूची की प्रविष्टि-17 में रखा गया है, जबकि नदी घाटी के नियमन और विकास को संघीय सूची की प्रविष्टि-56 में स्थान दिया गया है। इसी वज़ह से प्रायः यह प्रश्न उठता है कि नदी जल विवाद में केंद्र का नियम मान्य होगा या राज्य का? कुछ जानकार इसे भी नदी जल विवाद का एक कारण मानते हैं।
नदी जल विवाद से जुड़े अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत
(टीम दृष्टि इनपुट) |
कावेरी विवाद क्या है?
- विवाद जिस कावेरी नदी के पानी को लेकर है, उसका उद्गम पश्चिमी घाट में कर्नाटक के कोडागु ज़िले में ब्रह्मगिरि पर्वत से होता है।
- कावेरी नदी का कुल जल क्षेत्र लगभग 87,900 वर्ग किलोमीटर है, जो कि समूचे भारतीय भू-भाग का लगभग 2.7 प्रतिशत है।
- कावेरी नदी में मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ--हेमवती, हरांगी, काबिनी, स्वर्णवटी तथा भवानी हैं।
- भौगोलिक रूप से कावेरी नदी को तीन प्रमुख भागों में बाँटा गया है--पश्चिमी घाट, मैसूर का पठार तथा डेल्टा क्षेत्र।
- लगभग 765 किलोमीटर लंबी यह नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, तिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु के पूमपुहार में बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
- इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हज़ार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका शामिल है।
कावेरी जल विवाद के मूल में इस्तेमाल योग्य जल संसाधनों की पुनर्साझेदारी का मसला है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच सिंचाई के लिये पानी की जरूरत को लेकर दशकों से विवाद जारी है। पानी के बँटवारे का विवाद मुख्य रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच है, लेकिन कावेरी बेसिन में केरल और पुद्दुचेरी के कुछ छोटे-छोटे इलाके भी इसमें शामिल हैं। कावेरी एक अंतरराज्यीय नदी है। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी इस नदी के बेसिन में आते हैं। (टीम दृष्टि इनपुट) |
- 1892 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच पानी के बँटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था, लेकिन जल्द ही समझौता विवादों में घिर गया।
- इस विवाद के समाधान के लिये 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज्य के बीच एक समझौता हुआ था।
- उसके बाद भारत सरकार द्वारा 1972 में बनाई गई एक कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चारों दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ था।
- जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत इस मामले को सुलझाने के लिये आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किये जाने का निवेदन किया।
- केंद्र सरकार ने 2 जून, 1990 को कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया, जिसने वर्ष 1991 में एक अंतरिम फैसला दिया था।
इसके बाद 2007 में 16 साल की सुनवाई के पश्चात् ट्रिब्यूनल ने फैसला दिया कि प्रतिवर्ष 419 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए, जबकि 270 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक को दिया गया। कावेरी बेसिन में 740 टीएमसी फीट पानी मानते हुए ट्रिब्यूनल ने यह फैसला दिया था, जिसमें केरल को 30 टीएमसी फीट और पुद्दुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी दिया गया। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही इस फैसले से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। तब से अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चलती रही है।
कावेरी नदी का समीकरण
(टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: जल एक सीमित संसाधन है और इसकी मांग मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही है। 1951 की जनगणना में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5177 क्यूबिक मीटर थी जो कि 2011 में मात्र 1545 क्यूबिक मीटर रह गई, जबकि इस बीच जनसंख्या में लगभग 335% की वृद्धि हुई है। यानी घटते जल-स्रोत और बढ़ती आवश्यकता, मांग-आपूर्ति के संतुलन को बिगाड़ते हैं जिससे नदी जल विवाद पैदा होता है।
कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु की जीवनरेखा कही जाती है और ये दोनों राज्य सिंचाई के लिये अधिकतम पानी की मांग करते रहे हैं। यह भी स्पष्ट है कि कोई भी ऐसा फैसला लगभग नामुमकिन है, जो सभी पक्षों को पूरी तरह संतुष्ट कर सके। इस फैसले की असली परीक्षा अब इस बात में होगी कि ज़मीनी स्तर पर इसे कैसे लागू किया जाता है?
देश में और भी कई नदी जल विवाद विभिन्न राज्यों के बीच लंबे समय से चल रहे हैं, जो एक गंभीर विषय है। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु बने नियम-कानूनों की अस्पष्टता और शिथिलता भी नदी जल विवाद के राजनीतिकरण को बढ़ावा देती है जिससे यह समस्या सुलझने की बजाय उलझती ही चली जाती है और नदी जल विवाद का कारण बनती है। लगभग इसी तरह की समस्या कुछ अन्य नदियों के जल के बँटवारे को लेकर भी है। प्रत्येक राज्य इसी देश का हिस्सा है और उनके बीच इस तरह का विवाद किसी के भी हित में नहीं है।