प्रौद्योगिकी
विशेष : कार्टोसेट-2 का सफल प्रक्षेपण
- 15 Jan 2018
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संदर्भ व पृष्ठभूमि
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV) ने अपनी 42वीं उड़ान में 12 जनवरी को 6 अन्य देशों के 28 और भारत के 3 उपग्रहों सहित 1332 कि.ग्रा. के कुल 31 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। इस उड़ान को पीएसएलवी-सी40 नाम दिया गया।
पीएसएलवी-सी40 की सफल उड़ान
- पीएसएलवी-सी40 की लंबाई 44.4 मीटर, वज़न 320 टन और व्यास 2.8 मीटर है।
- पीएसएलवी-सी40 वर्ष 2018 का पहला मिशन था।
- इस मिशन में दूर-संवेदी श्रृंखला के 710 कि.ग्रा. वज़नी कार्टोसैट-2 उपग्रह (भारत का 100वाँ) के साथ दो अन्य स्वदेशी (एक माइक्रो-100 कि.ग्रा. वज़नी माइक्रोसैट) और एक नैनो-11 कि.ग्रा. वज़नी आईएनएस-1सी) तथा अमेरिका के 19, दक्षिण कोरिया के 5, कनाडा, ब्रिटेन, फ्राँस और फिनलैंड (सभी का 1-1) के 28 छोटे उपग्रहों सहित कुल 31 उपग्रहों को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।
क्या खास था इस प्रक्षेपण में?
चार चरण वाले पीएसएलवी-सी40 रॉकेट में बारी-बारी से ठोस एवं तरल ईंधन का इस्तेमाल किया गया। इसके पहले और तीसरे चरण में ठोस ईंधन तथा दूसरे और चौथे चरण में तरल ईंधन भरा गया था। यह एक अलग किस्म का मिशन था, पीएसएलवी-सी40 रॉकेट के इस प्रक्षेपण में खास बात यह थी कि 30 मिनट के मिशन में उपग्रहों को छोड़ने के बाद यह दो घंटे तक और चलता रहा और इस दौरान रॉकेट की ऊँचाई कम की गई तथा एक नई कक्षा में नया उपग्रह छोड़ा गया। अर्थात् ये सारे उपग्रह दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किये गए।
- सबसे पहले उपग्रह कार्टोसेट-2 को 17 मिनट बाद 505 किलोमीटर की ऊँचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया।
- इसके बाद धीरे-धीरे 28 विदेशी उपग्रहों को उनकी ध्रुवीय कक्षाओं में स्थापित किया।
- इस उड़ान में खास बात यह थी कि हमारे तीसरे उपग्रह माइक्रोसैट को 359 किलोमीटर की ऊँचाई वाली निचली कक्षा में स्थापित करना था।
- ऐसा करने के लिये रॉकेट के चौथे चरण के इंजन को तीन बार पुन: प्रज्ज्वलित करना पड़ा ताकि उसकी गति कम हो जाए और वह 359 किलोमीटर के निम्न उन्नतांश पर आ जाए।
- इसी के साथ इसरो ने एक ही रॉकेट से दो अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रह स्थापित करने की क्षमता भी प्राप्त कर ली है।
विदेशी उपग्रहों का ज़िम्मा एंट्रिक्स पर
(टीम दृष्टि इनपुट) |
अंतरिक्ष से निगरानी करेगा कार्टोसैट-2
- कार्टोसेट श्रृंखला का यह सातवां उपग्रह था और इस श्रृंखला के उपग्रहों को पाँच वर्षों की मिशन लाइफ के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- कार्टोसैट-2 एक अर्थ इमेजिंग उपग्रह है जो धरती की तस्वीरें लेता है, इसीलिये इस उपग्रह को 'आई इन द स्काई' यानी आसमानी आँख भी कहा गया है।
- कार्टोसैट-2 उपग्रह में उन्नत किस्म के पैंक्रोमेटिक (श्वेत-श्याम) तथा मल्टीस्पेक्ट्रल (रंगीन) कैमरों का इस्तेमाल किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य दूरसंवेदी डाटा प्राप्त करना है।
- इन उपग्रहों का मुख्य उद्देश्य सब-मीटर रेज़ोल्यूशन (श्वेत-श्याम छवि) पर एवं दो मीटर रेज़ोल्यूशन (4 बैंड रंगीन छवि) पर पृथ्वी की ऊपरी सतह की हाई रेज़ोल्यूशन छवियाँ उपलब्ध कराना है।
- इस उपग्रह में लगे उन्नत किस्म के कैमरों से भारत अपने उत्तर-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी सीमा के इलाकों की पुख्ता निगरानी कर सकता है।
- इस उपग्रह का उपयोग ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के मानचित्रण, तटीय क्षेत्रों की निगरानी, समुद्री इलाकों में होने वाले बदलावों पर नज़र रखने के लिये किया जाएगा।
- इन उपग्रहों से प्राप्त हाई रेज़ोल्यूशन छवियों की आश्वयकता विविध अनुप्रयोगों में उपयोगी हैं, जिनमें कार्टोग्राफी, अवसंरचना योजना निर्माण, शहरी एवं ग्रामीण विकास, उपयोगिता प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधन इवेंट्री एवं प्रबंधन, आपदा प्रबंधन शामिल हैं।
- इस उड़ान के पूर्व पीएसएलवी लघु और मध्यम श्रेणी के 209 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर चुका है।
उल्लेखनीय है कि कार्टोसेट श्रृंखला का एक उपग्रह पहले ही से अंतरिक्ष में काम कर रहा है। माना जाता है उसी के ज़रिये वो तस्वीरें मिली थीं जिनकी मदद से लाइन ऑफ कंट्रोल के पार पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी और शायद यही कारण है कि पाकिस्तान ने कार्टोसेट-2 के प्रक्षेपण पर आपत्ति जताई है।
पीएसएलवी की समस्याओं को सुधारा गया
पीएसएलवी रॉकेट अभी तक केवल दो बार विफल हुआ है। इसकी पहली उड़ान 20 सितंबर, 1993 को हुई थी (मिशन पीएसएलवी-डी1) जो विफल रही थी। इसमें रॉकेट के साथ इस पर सवार उपग्रह ‘आईआरएस-1ई’ भी जलकर नष्ट हो गया था। इसके लंबे समय बाद इसरो को दूसरी विफलता पिछले वर्ष 31 अगस्त को मिली, जब मिशन पीएसएलवी-सी39 के तापीय कवच (हीट शील्ड) उससे अलग नहीं हो सके थे।
भारत दो प्रकार के उपग्रह प्रक्षेपण यानों का विकास कर उनका इस्तेमाल करता है:
- ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), जिससे भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह प्रक्षेपित किये जाते हैं।
- भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) से इनसैट श्रेणी के उपग्रह छोड़े जाते हैं।
2017 में इसरो की उपलब्धियाँ
(टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: इसरो के लिये अपना 100वाँ उपग्रह तो अंतरिक्ष में स्थापित करना निस्संदेह एक बड़ी उपलब्धि है। इसरो कई मामलों में अलग है क्योंकि इसकी असफलता दर विश्व की अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों से काफी कम है। इसरो दुनिया की पहली ऐसी अंतरिक्ष एजेंसी है, जिसने चांद और मंगल ग्रह के लिये अपने जो पहले मिशन भेजे, वे दोनों ही सफल रहे, जबकि अमेरिका और चीन जैसे देशों के ऐसे पहले मिशन असफल रहे थे। इसरो की एक अन्य सफलता यह है कि इसने उपग्रह प्रक्षेपण की सबसे सस्ती तकनीक विकसित की है और इसके बावजूद उस पर अन्य देशों का भरोसा कम नहीं हुआ। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इसरो की नींव उस दौर में पड़ी थी, जब दो ध्रुवीय दुनिया में शीतयुद्ध चल रहा था और भारत को विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा था। आसानी से मिलने वाली तकनीक भी भारत के लिये उपलब्ध नहीं थी। इसरो ने उन पाबंदियों के बीच से अपने लक्ष्य हासिल करने का हुनर सीखा और यही इसकी सबसे बड़ी USP है। भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने पर भारत के लिये इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग करना संभव है। यदि इसी प्रकार भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अंतरिक्ष विज्ञान में नई ऊँचाइयाँ हासिल कर लेंगे।