उच्च शिक्षा में सब्सिडी | 11 Dec 2019
संदर्भ:
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में आवासीय छात्रावासों की प्रस्तावित फीस वृद्धि को लेकर व्यापक विरोध ने एक बार पुनः उच्च शिक्षा में सब्सिडी जैसे मुद्दों को चर्चा का विषय बना दिया है।
- उच्च शिक्षा में सब्सिडी के लिये आए दिन छात्र विरोध करते देखे जाते हैं जिससे यह मुद्दा उभर कर आया है कि उच्च शिक्षा में सब्सिडी दी जानी चाहिये या नहीं। विदित हो कि वर्ष 2011-12 की जनगणना के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल आबादी में से 25.7 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा 13.7 प्रतिशत के आस-पास है।
- हालाँकि विगत कुछ वर्षों में इस संख्या में कमी देखने को मिली है, परंतु फिर भी इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी भारतीय समाज में गरीबी और आर्थिक असमानता की जड़ें काफी मज़बूत और गहरी हैं।
- इस संदर्भ में कई विश्लेषकों का मानना है कि यदि हम देश में आर्थिक असमानता को दूर कर सभी नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं तो शिक्षा पर सब्सिडी को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। जबकि इसके विपरीत कुछ लोगों का मानना है कि शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी अर्थव्यवस्था पर एक प्रकार का दबाव होती है।
सार्वजनिक उच्च शिक्षा का महत्त्व:
- सार्वजनिक शिक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समाज के सभी सदस्यों के पास पढ़ने, लिखने, गणित, बुनियादी सामाजिक बातचीत में दक्ष बनाने और निर्देशों की व्याख्या करने की क्षमता आदि का एक बुनियादी कौशल हो। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये कि लोग सामाजिक स्थिति या धन की परवाह किये बिना सीखने की बुनियादी क्षमता बनाए रखने में सक्षम हों।
- अमीरों के लिये शिक्षा हमेशा सुलभ रही है। वे शिक्षा के लिये भुगतान कर सकते हैं लेकिन निम्न और मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों के लिये उच्च शिक्षा की लागत का भुगतान करने में असमर्थ होते हैं तथा उनके लिये उच्च शिक्षा एक सपने की तरह होती है।
- शिक्षा के उद्देश्य को समझने के लिये हमें बुद्धि, योग्यता और सफलता की अपनी समझ को व्यापक बनाना होगा। इसलिये यह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से उपलब्ध होनी चाहिये।
- समग्रता और न्यायसंगता किसी भी अच्छे सार्वजनिक संस्थान की प्रमुख विशेषताएँ होती हैं तथा उच्चतर शिक्षा में सार्वजनिक वित्तपोषण के बिना समग्रता और न्यायसंगता सुनिश्चित नहीं की जा सकती।
- उच्च शिक्षा की गुणवत्ता इसलिये भी जरूरी है कि उच्च शिक्षा के अंतर्गत अनुशासन की सर्वाधिक अपेक्षा की जाती है। इसी गुणवत्ता के चलते डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री या फिर विभिन्न विषयों के विद्वान, शोधार्थी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
उच्च शिक्षा के संबंध में महापुरुषों के कथन:
- जी.के.चेस्तेरसन- “शिक्षा हमारे समाज की आत्मा है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती है।”
- अरस्तू - “ शिक्षा की जड़ें कड़वी हैं लेकिन फल बहुत ही मीठा है।”
- होरेस मैन- “बिना शिक्षा प्राप्त किये कोई व्यक्ति अपनी चरम ऊँचाइयों को नहीं छू सकता।”
- जॉर्ज वाशिंगटन करवर- “ शिक्षा स्वतंत्रता के स्वर्णिम द्वार खोलने की कुंजी है।”
भारत में उच्चतर शिक्षा:
- उल्लेखनीय है कि उच्चतर शिक्षा की वर्तमान प्रणाली वर्ष 1823 के माउंट स्टुअर्ट एल्फिंस्टन (Mountstuart Elphinstone) की रिपोर्ट से शुरू होती है, जिसने अंग्रेज़ी और यूरोपीय विज्ञान को पढ़ाने के लिये स्कूलों की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया।
- बाद में लॉर्ड मैकाले ने 1835 की अपनी रिपोर्ट में देश के मूल निवासियों को अंग्रेज़ी का अच्छा विद्वान बनाए जाने के प्रयासों की वकालत की।
- 1854 के सर चार्ल्स वुड का डिस्पैच, जिसे 'भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा का मैग्ना कार्टा' के नाम से जाना जाता है, ने प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक की उचित ढंग से योजना बनाने की सिफारिश की।
- इसने स्वदेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने और शिक्षा की सुसंगत नीति तैयार करने की योजना बनाई। इसके बाद 1857 में कलकत्ता, बॉम्बे (अब मुंबई) और मद्रास विश्वविद्यालय तथा बाद में 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्थापित किया गया।
- वर्तमान समय की बात करें तो MHRD के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में तकरीबन 2 करोड़ से अधिक छात्र पंजीकृत हैं।
- हालाँकि इस बड़े आँकड़े से देश की उच्चतर शिक्षा की स्थिति का आकलन करना शायद नाइंसाफी होगी, क्योंकि MHRD का ही अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण बताता है कि 18-23 वर्ष के मात्र 25.8 प्रतिशत छात्र ही उच्चतर शिक्षा के लिये पंजीकृत हो पाते हैं।
- 2019 की सुप्रसिद्ध QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में केवल सात भारतीय विश्वविद्यालयों को शीर्ष 400 विश्वविद्यालयों में स्थान प्राप्त हुआ।
भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति:
- यूजीसी का करीब 65 प्रतिशत अनुदान सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ को मिलता है, जबकि स्टेट यूनिवर्सिटीज़ को 35 प्रतिशत पर संतोष करना पड़ता है। इन्हीं स्टेट यूनिवर्सिटीज़ और उनसे संबद्ध कॉलेजों में सर्वाधिक दाखिले लिये जाते हैं।
- उच्च शिक्षा में सब्सिडी पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। विडंबना यह है कि हमारे देश में उच्च शिक्षा में दाखिले यूँ भी कम हैं।
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय के 2017-18 के अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में सिर्फ 26 प्रतिशत लोग यूनिवर्सिटीज़ में दाखिला लेते हैं तथा अंडर ग्रेजुएट स्तर पर सबसे ज्यादा 79.2 प्रतिशत दाखिले लिये जाते हैं।
- इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएट स्तर तक यह 11.2 प्रतिशत रह जाता है।
- सर्वेक्षण कहता है कि अंडर ग्रेजुएट स्तर के बाद आगे की पढ़ाई के लिये दाखिलों की संख्या कम होती जाती है।
- अर्थात् छात्र हायर स्टडीज़ से पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसका एक दूसरा पहलू भी है कि सरकार खुद शिक्षा पर कम-से-कम खर्च करती है।
- 2019-20 के बजट में शिक्षा पर केवल 03 प्रतिशत का आवंटन किया गया है। इसमें उच्च शिक्षा क्षेत्र को मात्र 1 प्रतिशत आवंटन ही दिया गया है जिसके कारण विश्वविद्यालयों में संसाधनों का अभाव है।
उच्च शिक्षा में अन्य देशों की स्थिति:
- कई देशों में शिक्षा, खास तौर पर उच्च शिक्षा सस्ती और मुफ्त है।
- स्वीडन में सरकारी और निजी कॉलेजों में कोई ट्यूशन फीस नहीं ली जाती। वहाँ 68% युवा विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। हर स्टूडेंट पर सरकार औसत 20 हज़ार डॉलर से ज्यादा खर्च करती है।
- डेनमार्क अपनी कुल GDP का तकरीबन 0.6 प्रतिशत हिस्सा उच्चतर शिक्षा के छात्रों की सब्सिडी पर खर्च करता है। गौरतलब है कि वहाँ कुल 55 प्रतिशत युवा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करते हैं।#
- फिनलैंड भी अपने छात्रों को उनकी शिक्षा और अन्य खर्चों के लिये तमाम छात्रवृत्तियाँ और अनुदान देता है। वहाँ तकरीबन 69 प्रतिशत युवा विश्वविद्यालयों में पंजीकृत हैं।
- आयरलैंड वर्ष 1995 से ही अपने अधिकांश पूर्णकालिक स्नातक छात्रों की ट्यूशन फीस का भुगतान करता है।
- आइसलैंड की सरकार अपने छात्रों पर सालाना औसतन 10,429 डॉलर खर्च करती है और वहाँ तकरीबन 77 प्रतिशत युवा उच्चतर शिक्षा के लिये पंजीकृत हैं।
- ध्यातव्य है कि नार्वे उच्चतर शिक्षा पर सब्सिडी के लिये अपनी GDP का 1.3 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता है जो कि विश्व में शिक्षा पर किया जाने वाला सबसे अधिक खर्च है। यहाँ भी तकरीबन 77 प्रतिशत छात्र उच्चतर शिक्षा में पंजीकृत हैं।
उच्च शिक्षा में सब्सिडी के लाभ:
- देश के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि देश के विकास और उसकी आर्थिक प्रगति में शिक्षा का काफी योगदान होता है। शिक्षा हमें जीने का एक नया नज़रिया देती है और जीवन जीने के स्तर में भी सुधार करती है।
- शिक्षा में सब्सिडी सकारात्मक सुधार जैसे- स्वास्थ्य सुधार, जनसंख्या वृद्धि, गरीबी एवं अपराध में कमी और लोकतंत्र को मज़बूत बनाने का काम करती है।
- समग्रता और न्यायसंगता:
- उच्च शिक्षा में सब्सिडी ने समाज के हाशिये पर मौजूद तमाम सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया है।
- गौरतलब है कि समग्रता और न्यायसंगता किसी भी अच्छे सार्वजनिक संस्थान की प्रमुख विशेषताएँ होती हैं तथा उच्चतर शिक्षा में सार्वजनिक वित्तपोषण के बिना समग्रता और न्यायसंगता सुनिश्चित नहीं की जा सकती।
- अर्थव्यवस्था:
- सब्सिडी युक्त शिक्षा अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उच्च शिक्षा से जुड़े छात्र विभिन्न शोध में हिस्सा लेते हैं और अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था में बेहतर योगदान का प्रयास करते हैं। उल्लेखनीय है कि उच्चतर शिक्षा नवाचार, रचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है।
- जनसांख्यिकीय लाभ:
- भारत में एक विशाल युवा जनसंख्या मौजूद है, परंतु कई अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश भारतीय युवाओं में बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुकूल शैक्षणिक और कौशल दक्षता नहीं है। अतः यह कहा जा सकता है कि सब्सिडी युक्त शिक्षा देश में जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- बाज़ारीकरण पर आधारित कार्यक्रमों की मांग के अनुसार, शुल्क संरचना का युक्तिकरण सामर्थ्य और निवेश मूल्य तथा विभिन्न आय समूहों के अनुसार सब्सिडी के सर्वोत्तम उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- सामाजिक गतिशीलता:
- पहले यह माना जाता था कि उच्चतर शिक्षा पर मात्र कुलीन वर्ग का ही अधिकार है, जिसके कारण अधिकांश सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े गरीब उच्चतर शिक्षा से वंचित रह जाते थे।
- लेकिन अब उच्च शिक्षा में सब्सिडी और अन्य लाभों के रूप में सरकार द्वारा जो प्रयास किये गए हैं उसकी वजह से तमाम ऐसे लोग भी आज उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुँच रहे हैं, जो अपनी दैनिक आवश्यकताओं तक के लिये भी अनवरत संघर्ष करते रहे हैं।
- मानवीय पूंजी:
- देश ने सीएसआईआर, आईआईटी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे संस्थानों का एक विस्तृत नेटवर्क विकसित किया है जो जनता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।
- ये संस्थान देश में अनुसंधान और विकास तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में प्रशिक्षित श्रम प्रदान करने के केंद्र बन गए हैं।
- इन संस्थानों से समाज के सभी वर्गों के छात्र शिक्षा प्राप्त कर इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी आदि के रूप में सरकार में उच्च पदों पर आसीन हैं।
उच्च शिक्षा के लिये सब्सिडी का समावेश:
- सार्वजनिक वित्त के वितरण में असमानता: IIT और इंजीनियरिंग कॉलेजों जैसे प्रमुख संस्थानों के छात्र के लिये सब्सिडी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की तुलना में उच्चतर है, खासकर उदार कला (Liberal Arts) संस्थानों के लिये।
- उच्च शिक्षा और प्रारंभिक शिक्षा के बीच धन आवंटन का विवाद: प्रारंभिक शिक्षा के लिये संसाधनों की कमी को देखते हुए भारत को उच्च शिक्षा के वित्तपोषण पर दुर्लभ कर संसाधनों का उपयोग करना बंद कर देना चाहिये।
- विश्व बैंक के एक अध्ययन में तर्क दिया गया है कि विभिन्न कारकों के चलते स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे सार्वजनिक प्रावधानों से गरीबों की तुलना में अमीर अधिक लाभ हासिल करते हैं। नि:शुल्क प्रोविज़निंग के बावजूद सेवाओं का लाभ उठाने के लिये निजी लागत की आवश्यकता होती है, जिसका भुगतान करने में अमीर सक्षम होते हैं।
- सब्सिडी का अमीरों के लिए बहुत अधिक होना।
- सुस्त मांग के मद्देनजर शिक्षित श्रम की अधिशेष आपूर्ति एक शिक्षित कार्यबल को कम रिटर्न देती है।
भारत में उच्च शिक्षा में दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर समस्या:
- फ्री राइडर्स: सब्सिडी का उद्देश्य समाज के कमज़ोर वर्ग को सहायता प्रदान करना है। हालाँकि अक्सर यह देखा जाता है कि सब्सिडी के लाभों का उपयोग समाज के मध्य और कुलीन वर्ग द्वारा किया जाता है।
- सब्सिडी गुणवत्ता की शिक्षा की गारंटी नहीं देती है: बिना गुणवत्ता सुनिश्चित किये शिक्षा का कोई उपयोग नहीं रहता है। इसके अलावा सब्सिडी योग्यता को बाधित करती है।
- सब्सिडी के वितरण में असमानता: सार्वजनिक वित्त के वितरण में काफी असमानता है। IIT और इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे प्रमुख संस्थानों के छात्रों को मिलने वाली सब्सिडी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों विशेषकर उदार कला (Liberal Arts) संस्थानों की तुलना में काफी अधिक है।
- निजीकरण: निजी संस्थान आमतौर पर पहुँच और इक्विटी को बढ़ावा देने के उपायों के लिये उत्तरदायी नहीं होते हैं। इसलिये निजी शिक्षा संस्थानों तक अर्थव्यवस्था के कमज़ोर वर्गों की बड़ी संख्या में पहुँच नही होती।
भारत में उदारीकरण और उच्च शिक्षा:
- स्वतंत्रता के पश्चात् से ही अपर्याप्त धनराशि के साथ उच्च शिक्षा को उत्कृष्ट बनाने की चुनौती का नतीजा यह हुआ कि इसका स्तर लगातार घटता गया और निजीकरण तथा राजनीतिकरण लगातार बढ़ता गया। ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं है। देश के आईआईटी और आईआईएम ने शिक्षा की उत्कृष्टता की मिसाल पेश की है। लेकिन इनके दायरे में आने वाले विद्यार्थियों की संख्या मात्र 3.5 करोड़ है।
- पिछले कुछ वर्षों से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं। उदारीकरण के बाद के युग में उच्च शिक्षा में सार्वजनिक व्यय वास्तविक अर्थों में ठहराव की अवधि से गुजरा और प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय वास्तव में तेजी से घट गया।
- यह सब तब हुआ जबकि निजी उच्च शिक्षा ने प्रभावशाली विस्तार का दौर देखा। इसलिये उच्च शिक्षा में छात्रों के समग्र उपयोग के बाद उदारीकरण के दौर में काफी वृद्धि हुई। इस विस्तार का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र के विस्तार के लिये ज़िम्मेदार था।
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप समग्र रूप से शिक्षा के लिये सार्वजनिक व्यय में वृद्धि नहीं हुई। इससे बाधा उत्पन्न हुई। समग्र रूप से शिक्षा क्षेत्र के भीतर 1990 के दशक में उच्च शिक्षा से लेकर प्राथमिक शिक्षा तक के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
विभिन्न समितियाँ और अनुसंधान:
- पुन्नैय्या समिति 1992-93:
- पुन्नय्या समिति ने एक सामान्य नियम के रूप में सिफारिश की कि विश्वविद्यालयों को आंतरिक संसाधनों के माध्यम से अपने वार्षिक रखरखाव व्यय की 15 प्रतिशत राशि की व्यवस्था करनी चाहिये और इसे दस वर्षों के अंत में कम-से-कम 25 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहिये।
- आंतरिक संसाधनों को बढ़ाने के लिये समिति ने सिफारिश की कि प्रत्येक राज्य में सभी सरकारी वित्तपोषित और सहायता प्राप्त संस्थानों में ट्यूशन फ़ीस को प्रति छात्र कम-से-कम 20 प्रतिशत वार्षिक आवर्ती लागत के तर्कसंगत स्तर पर संशोधित किया जाना चाहिये।
- स्वामीनाथन पैनल 1992:
- डॉ० स्वामीनाथन पैनल जिसे अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा स्थापित किया गया था, उद्योगों और अन्य संगठनों से शैक्षिक उपकर एकत्र करने का प्रस्ताव रखा गया।
- बिड़ला अंबानी रिपोर्ट 2000:
- इस समिति ने सिफारिश की थी कि सरकार को प्राथमिक शिक्षा तक ही सीमित रहना चाहिये और उच्च शिक्षा निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जानी चाहिये।
- उच्च शिक्षा में उपयोगकर्त्ता-वेतन सिद्धांत का प्रवर्तन।
- समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों को ऋण और छात्रवृत्ति प्रदान करना।
- गतिविधियाँ:
- चीन ने पिछले दो दशकों में बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा पर खर्च किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका का आइवी लीग विश्वविद्यालय के होनहार छात्रों को शुल्क भुगतान करने की क्षमता की परवाह किये बिना प्रवेश की अनुमति देटा है।
- देश की 10वीं और 11वीं पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा पर अधिक फोकस किये जाने के परिणामस्वरूप चीन में उच्च शिक्षा क्षेत्र का तेज़ी से विकास हुआ है।
- चीन अपने छोटे संस्थानों और विश्वविद्यालयों को बड़े विश्वविद्यालयों से जोड़कर उच्च स्तर पर हो रहे अध्ययन-अध्यापन का लाभ ग्रहण कर रहा है।
- चीनी विश्वविद्यालय भी विश्वविद्यालय के स्वामित्व वाली कंपनियों के मुनाफे से उत्पन्न धन का उपयोग कर रहे हैं।
योजनाएँ:
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS): जिसे पात्र राज्य उच्चतर शिक्षण संस्थानों को वित्तपोषित करने के उद्देश्य से वर्ष 2013 में प्रारंभ किया गया था।
- ब्याज सब्सिडी योजना: भारत में व्यवसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिये आर्थिक रूप से कमज़ोर सभी वर्ग के छात्रों को वहनीय उच्च शिक्षा प्रदान करने का प्रयोजन इस योजना में शामिल है।
- शिक्षा में बुनियादी ढाँचे और प्रणालियों को पुनर्जीवित करना (RISE): स्वास्थ्य संस्थानों सहित प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में अनुसंधान और संबंधित बुनियादी ढाँचे के निवेश में वृद्धि करना।
- उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA): यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केनरा बैंक की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है जो भारत के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों में शैक्षिक बुनियादी ढाँचे के अनुसंधान और विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च फेलो (स्कीम)
- जूनियर रिसर्च फैलोशिप
- ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन स्कॉलरशिप
- शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन और समावेश कार्यक्रम (EQUIP) 2019-2024: मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय ने अपनी पंचवर्षीय योजना में धन सृजन के नए तरीके प्रस्तावित किये हैं।
- सरकार ने प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) का गठन किया।
चिंताएँ/चुनौतियाँ:
- शिक्षा पर सब्सिडी प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य समाज के हाशिये पर मौजूद लोगों को आर्थिक लाभ देकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। हालाँकि कभी-कभी यह देखा जाता है कि वे लोग भी इस प्रकार की सब्सिडी का लाभ उठा लेते हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत नहीं होती, जिसके कारण ज़रूरतमंद लोगों तक लाभ नहीं पहुँच पाता।
- कई विश्लेषकों का तर्क है कि मात्र सब्सिडी के माध्यम से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
- शिक्षा में सब्सिडी का असमान वितरण भी एक बड़ी समस्या है। आँकड़े बताते हैं कि देश में अधिकांश शिक्षा सब्सिडी कुछ ही बड़े संस्थानों को दी जाती है, जबकि उदार कला (Liberal Arts) संबंधी संस्थानों को इसका काफी कम हिस्सा मिलता है।
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बीते वर्ष उच्चतर शिक्षा की सब्सिडी के संबंध में जो आँकड़े जारी किये गए थे उनसे पता चलता है कि वर्ष 2016 से 2018 के मध्य उच्चतर शिक्षा के लिये दिया गया केंद्र सरकार का 50 प्रतिशत से अधिक धन IITs, IIMs और NITs में पढ़ने वाले मात्र 03 प्रतिशत छात्रों को मिला।
- जबकि 865 उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले 97 प्रतिशत छात्रों को आधे से भी कम धन मिला।
- उच्चतर शिक्षा का निजीकरण भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि निजी संस्थान आम लोगों तक सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुँच प्रदान करने के लिये उत्तरदायी नहीं होते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य इसके माध्यम से लाभ कमाना होता है।
आगे की राह:
- एक संस्थान द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, उचित विनियमन की अनुपस्थिति में ज़रूरतमंदों तक लाभ पहुँचाने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। अतः इस संदर्भ में उचित विनियमन की आवश्यकता है ताकि उन लोगों को सब्सिडी का लाभ प्राप्त करने से रोका जा सके जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है।
- विश्वविद्यालय प्रशासन को अन्य स्रोतों से फंड एकत्रित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गठित पुन्नय्या समिति (1992-93) की सिफारिशें लागू की जा सकती हैं, जिसके अनुसार उच्चतर शिक्षा में हुए कुल व्यय का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही विद्यार्थियों से वसूला जाना चाहिये।
- विश्वविद्यालय प्रशासन को धन का सृजन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सार्वजनिक उच्च शिक्षा में समानता, समावेशिता या गुणवत्ता पर प्रति छात्र सार्वजनिक धन में भारी वृद्धि की जानी चाहिये।
- उच्च शिक्षा के सार्वजनिक प्रावधान भी असमानता को कम करने में महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम कर सकते हैं।
- राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रणाली का योगदान इस बात पर निर्भर करता है कि आने वाले दिनों में इसे किस तरह से वित्तपोषित किया जाना है।
निष्कर्ष:
शिक्षा में सब्सिडी सकारात्मक सुधार जैसे- स्वास्थ्य सुधार और जनसंख्या वृद्धि, गरीबी एवं अपराध में कमी तथा लोकतंत्र को मज़बूत बनाने का काम करती है। शिक्षा एक बेहतर भविष्य की कुंजी होती है यह न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास में योगदान देती है बल्कि देश के विकास में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विदित हो कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना देश के प्रत्येक नागरिक का विशेषाधिकार है। इससे लोगों में अपने कानूनी अधिकार के प्रति समझ विकसित होती है और वर्ग विभाजन तथा गैर-बराबरी जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में मदद मिलती है। अतः आवश्यक है कि देश में उच्चतर शिक्षा को बढ़ाया जाए ताकि देश के बेहतर भविष्य पर निवेश को सुनिश्चित किया जा सके।
प्रश्न: देश के सभी नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के संदर्भ में शिक्षा पर सब्सिडी को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। विश्लेषण कीजिये।