विशेष : जिनेवा कन्वेंशन | 02 Mar 2019
संदर्भ
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 28 फरवरी को अपने देश की पार्लियामेंट से यह ऐलान किया कि वह भारतीय विंग कमांडर को वापस भेजेंगे। इसे इमरान खान ने पाकिस्तान की तरफ से पीस जेस्चर यानी शांति का प्रयास बताया। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनंदन को मिग-21 फाइटर जेट के क्रैश हो जाने के बाद पाक-अधिकृत कश्मीर में हिरासत में ले लिया था।
- भारत ने पाकिस्तान से विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की मांग करते हुए जिनेवा कन्वेंशन का हवाला दिया है।
पृष्ठभूमि
- 19वीं सदी के मध्य से पहले दुनिया में युद्धबंदियों और युद्ध में भाग लेने वाले व अन्य लोगों पर शत्रु देश की ओर से किये जाने वाले अमानवीय बर्ताव को रोकने के लिये न तो कोई कानून था और न ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई कन्वेंशन हुआ था जो इस तरह के बर्ताव को रोकने का काम करे।
- वर्ष 1864 में युद्ध के समय घायलों की मदद करने के लिए युद्ध कर रहे देशों के बीच वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए रेड क्रॉस के संस्थापक हेनरी डुनेंट के प्रयास से जिनेवा कन्वेंशन को अस्तित्व में लाया गया था।
- युद्ध के दौरान युद्धबंदियों, अन्य कामों में लगे लोगों खासकर नागरिकों, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं, सहायक कामों में लगे लोगों के साथ ही घायल और बीमार लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये जिनेवा कन्वेंशन की शुरुआत हुई।
- जिनेवा कन्वेंशन और उसके प्रोटोकाल का मुख्य मकसद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मूल्यों की रक्षा करना है। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत युद्ध के प्रभावों को सीमित करने और युद्धबंदियों के अधिकारों के संरक्षण की कोशिश करता है।
जिनेवा कन्वेंशन क्या है?
जिनेवा कन्वेंशन में चार संधियों और तीन अतिरिक्त प्रोटोकाल यानी मसौदों को मंज़ूरी दी गई। यह कन्वेंशन युद्धबंदियों को कुछ अधिकार प्रदान करता है।
- 1864 और 1949 के बीच जिनेवा में संपन्न जिनेवा कन्वेंशन (Geneva Convention) कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों की एक ऐसी श्रृंखला है जो युद्धबंदियों (Prisoners of War-POW) और नागरिकों के अधिकारों को बरकरार रखने हेतु युद्ध में शामिल पक्षों को बाध्यकारी बनाती है।
- जिनेवा कन्वेंशन का मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिये कानून तैयार करना है।
- 1949 के समझौते में शामिल दो अतिरिक्त प्रोटोकॉल 1977 में अनुमोदित किये गए थे। दुनिया के सभी देश जिनेवा कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
- हालिया घटनाक्रम भी जिनेवा कन्वेंशन के दायरे में आता है क्योंकि जिनेवा कन्वेंशन के प्रावधान शांतिकाल, घोषित युद्ध और यहाँ तक कि उन सशस्त्र संघर्षों में भी लागू होते हैं जिन्हें एक या अधिक पक्षों द्वारा युद्ध के रूप में मान्यता नहीं दी गई हो।
पहला जिनेवा कन्वेंशन
- पहला जिनेवा कन्वेंशन 1864 में हुआ।
- इसमें युद्ध के दौरान घायल और बीमार सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई।
- इसके अलावा, चिकित्सा-कर्मियों, धार्मिक लोगों और चिकित्सा परिवहन की सुरक्षा की बात भी कही गई।
दूसरा जिनेवा कन्वेंशन
- दूसरा जिनेवा कन्वेंशन 1906 में हुआ। इस कन्वेंशन में विशेषकर समुद्री युद्ध और उससे जुड़े प्रावधानों को शामिल किया गया।
- इसमें युद्ध के दौरान समुद्र में घायल, बीमार और जलपोत के सैन्य-कर्मियों की रक्षा और अधिकारों की बात की गई।
तीसरा जिनेवा कन्वेंशन
- 1929 में हुआ तीसरा जिनेवा कन्वेंशन युद्ध युद्धबंदियों पर लागू होता है। इस कन्वेंशन में कैद की स्थिति और स्थानों को अधिक सटीक रूप से परिभाषित किया गया है।
- यह कन्वेंशन 'प्रिजनर ऑफ वॉर' को परिभाषित करता है और ऐसे कैदियों को उचित और मानवीय उपचार देने के बारे में बात करता है जिनका उल्लेख पहले कन्वेंशन में मिलता है।
- विशेष रूप से युद्धबंदियों के श्रम, उनके वित्तीय संसाधनों, उन्हें मिलने वाली राहत और उनके खिलाफ न्यायिक कार्यवाही के संबंध में।
- कन्वेंशन इस सिद्धांत को स्थापित करता है कि युद्धबंदियों को युद्ध की समाप्ति के बाद बिना देरी किये रिहा किया जाएगा।
चौथा जिनेवा कन्वेंशन
- दूसरे विश्वयुद्ध की घटनाओं से सबक लेते हुए 1949 में चौथे जिनेवा कन्वेंशन का आयोजन हुआ। इसमें तीसरे जिनेवा कन्वेंशन के नियम का आयोजन हुआ। इसमें तीसरे जिनेवा कन्वेंशन के नियम कानूनों में संशोधन किया गया।
- यह कन्वेंशन कब्जे वाले या युद्ध वाले क्षेत्र के साथ-साथ नागरिकों के संरक्षण की बात कहता है।
- इस कन्वेंशन के तहत बड़े पैमाने पर युद्धबंदियों के युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसमें नागरिक और सैन्य अधिकार शामिल हैं।
- इसके मुताबिक युद्ध क्षेत्र तथा आसपास के क्षेत्रों में नागरिकों और घायलों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
जिनेवा कन्वेंशन का बढ़ता दायरा
- 1949 का जिनेवा कन्वेंशन 21 अक्तूबर, 1950 को लागू हुआ समय के साथ-साथ इसके सदस्य देशों की संख्या की बढ़ती गई।
- 1950 के दशक में जहाँ 50 देशों ने इस कन्वेंशन को मान्यता दी, वहीं 1960 के दशक के दौरान 48 देश, 1970 के दशक के दौरान 20 देश, जबकि 1980 के दशक में 20 और देशों ने इस जिनेवा कन्वेंशन को मान्यता दी।
- 1990 के दशक में 26 देशों ने, जबकि साल 2000 के बाद सात देशों ने इस कन्वेंशन को अपनाया।
- फिलहाल 194 देश इस कन्वेंशन के दायरे में हैं।
- कुल मिलाकर जिनेवा कन्वेंशन युद्ध की बर्बरता से दुनिया को बचाने की एक कोशिश है, साथ ही हर परिस्थिति में मानवीय मूल्य बरकरार रहें इस दिशा में भी यह बेहद महत्त्वपूर्ण है।
जिनेवा कन्वेंशन : युद्ध बंदियों के अधिकारों की रक्षा
- अगर लड़ाई के दौरान कोई जवान या अधिकारी शत्रु देश की सीमा में दाखिल हो जाता है तो गिरफ्तारी की सूरत में उसे युद्धबंदी माना जाता है।
- किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर जिनेवा कन्वेंशन लागू हो जाता है। चाहे वह सैनिक महिला हो या पुरूष।
- जिनेवा कन्वेंशन में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
- प्रिज़नर ऑफ वार यानी युद्धबंदियों के क्या अधिकार हैं इसे जिनेवा कन्वेंशन में बताया गया है।
- इसके साथ ही कंवेंशन में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है।
- इसके ज़रिये व्यापक तौर पर युद्धबंदियों और युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसमें नागरिक और सैन्य अधिकार दोनों शामिल हैं।
- युद्धबंदियों के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिये इसके बारे में 1949 का जिनेवा कन्वेंशन साफ-साफ कहता है कि यह सभी मामलों में लागू होता है चाहे घोषित युद्ध का मामला हो या नहीं।
युद्धबंदियों के लिये प्रावधान
- युद्धबंदियों के साथ बर्बतापूर्ण व्यवहार तथा अमानवीय बर्ताव नहीं होना चाहिये।
- उन्हें किसी भी तरह से प्रताड़ित या शोषित नहीं किया जाना चाहिये।
- उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिये, साथ ही कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी।
- उन्हें डराया-धमकाया तथा अपमानित भी नहीं किया जा सकता।
- युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद और नंबर के बारे में पूछा जा सकता है। युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्म जैसी बातों को नहीं पूछा जा सकता।
- जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद-3 के मुताबिक, युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिये।
- हिरासत में लेने वाला देश युद्धबंदी के खिलाफ संभावित युद्ध अपराध के लिये मुकदमा चला सकता है लेकिन हिंसा की कार्यवाही के लिये मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
- युद्ध खत्म होने पर युद्धबंदी को तुरंत रिहा किया जाना चाहिये और उसे उसके देश भेजा जाना चाहिये।
- कोई देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता। प्रिजनर ऑफ़ वॉर के ऊपर युद्ध कारित करने के लिये मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। उसका नज़रबंद या कैद में लिया जाना सजा का रूप नहीं होगा।
- युद्धबंदियों को लौटाने के लिये उन्हें पहले रेडक्रॉस को सौंपा जाता है उसके बाद रेडक्रॉस के प्रतिनिधि ही ऐसे सैनिकों को उनके देश ले जाते हैं।
- दुनिया के ज़्यादातर देशों द्वारा इस कन्वेंशन का सम्मान किया गया है लेकिन कुछ देशों ने इसका उल्लंघन भी किया है।
- किसी भी गैर-कानूनी कार्य या चूक के कारण हिरासत में युद्धबंदी की मौत या उसके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से खतरे में डालना निषिद्ध है, और इसे वर्तमान कन्वेंशन का एक गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।
कन्वेंशन के प्रावधानों के पालन की निगरानी
- जिनेवा कन्वेंशन में सुरक्षा शक्तियों (Protecting Power) की व्यवस्था है जो यह सुनिश्चित करता है कि पक्षों द्वारा प्रावधानों का पालन किया जा रहा है।
- रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति आमतौर पर निगरानी की भूमिका को निभाती है।
निष्कर्ष
भारत एक शांतिप्रिय तथा मानवतावादी अवधारणा का प्रसार करने वाला देश है, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन करने के लिये सदैव प्रतिबद्ध रहा है। 1971 में पाकिस्तानी युद्धबंदियों को सकुशल वापस भेज कर भारत ने जिनेवा कन्वेंशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित भी किया है। उल्लेखनीय है कि जिनेवा कन्वेंशन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मूल्यों तथा युद्धबंदियों के अधिकारों की रक्षा करना है। इसके प्रावधानों के अनुसार, किसी भी घोषित या अघोषित युद्ध के उपरांत युद्धबंदियों के साथ किसी भी प्रकार का अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता। इसमें नागरिक और सैन्य दोनों प्रकार के अधिकारों को शामिल किया गया है। वर्तमान परिस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय दबाव और मज़बूत भारतीय कूटनीति का ही परिणाम है क़ि जिनेवा समझौतों का पालन करते हुए पाकिस्तान ने भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन को बिना शर्त वापस भारत भेजने का निर्णय लिया।