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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या सैन्य खर्च में वृद्धि होनी चाहिये?

  • 20 May 2018
  • 12 min read

संदर्भ
हाल के दिनों में भारतीय सैन्य खर्च में वृद्धि की आवश्यकता ज़ोरों पर है। वर्तमान समय में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही है। दूसरी ओर, पाकिस्तान और चीन से सैन्य मोर्चे पर लगातार खतरा बना हुआ है। कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस वर्ष के बजट में रक्षा बजट में और वृद्धि होनी चाहिये थी। वहीं, कुछ का मानना है कि भारत को हथियारों की अंधी दौड़ से बचना चाहिये और अपने संसाधनों का समझदारी पूर्वक उपयोग करना चाहिये।

आज हम वाद-प्रतिवाद-संवाद के ज़रिये इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या वाकई  भारतीय सैन्य खर्च में वृद्धि की आवश्यकता है।

वाद 

  • एक विकासशील देश जो अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिये प्रतिबद्ध है, हेतु  रक्षा आमतौर पर अंतिम स्थान पर आती है। लेकिन कोई भी सरकार विभिन्न प्रकार के सुरक्षा खतरों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकती।
  • भारत जैसे देश के लिये ऐसे खतरे सामान्य खतरों से कहीं ज़्यादा गंभीर हैं क्योंकि भारत खतरनाक पड़ोसी देशों के बीच स्थित है एवं आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना कर रहा है।
  • व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा एक राष्ट्र को उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति करने में सहायता करती है, और मज़बूत सुरक्षा उसका एक सबसेट है। 
  • हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, राष्ट्रीय रणनीतिक संस्कृति और अपनी सैन्य क्षमता के प्रति एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण में कमी किसी भी देश को अपने रक्षा व्यय से इष्टतम लाभ प्राप्त करने से रोकते हैं।
  • फरवरी, 2018 में सेना ने रक्षा के लिये संसदीय स्थायी समिति के समक्ष दी गई जानकारी में बताया की उनके 68 प्रतिशत उपकरण पुराने हो चुके हैं एवं इस वर्ष के बजट में सेना के लिये जीडीपी का लगभग 1.50 प्रतिशत (2018-19 के कुल बजट खर्च का 12.1%) आवंटन किया गया है जिसके कारण कम-से-कम 24 पूंजीगत परियोजनाओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।

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  • डोकलाम संकट जैसे विवादों के बाद सेना को अपने उपकरणों को आधुनिक बनाने की महती आवश्यकता महसूस हो रही है।
  • सैन्य सुरक्षा के अंतर्गत ऐसी क्षमताओं का विकास भी शामिल है जिनसे देश के आंतरिक मामलों में विरोधी ताकतों द्वारा किये जा सकने वाले हस्तक्षेपों को रोका जा सके।
  • चूँकि नौकरशाही और निर्णय-निर्माण (decision-making) के स्तर पर अभी भी अपेक्षित समझ का अभाव है, अतः आधुनिकीकरण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
  • विशाल नौकरशाही नियंत्रण और रक्षा मंत्रालय में किसी भी सैन्य प्रतिनिधित्व का अभाव होने के कारण प्राथमिकताओं की समझ संदेहास्पद बनी रहती है।
  • इस समस्या का निवारण तभी संभव है जब निर्णय समय पर लिये जाएँ और उपकरणों के अधिग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए।
  • साथ ही वित्तीय सहायता पर्याप्त मात्रा में मिलनी चाहिये और इस हेतु उपलब्ध तंत्र द्वारा वित्तीय संसाधनों की आपूर्ति में विलंब नही होना चाहिये।
  • अधिक धन आवंटन के बिना सेना वांछित रूपांतरण के स्तर पर कभी नहीं पहुँच पाएगी।
  • व्यय के प्रबंधन में भी सुधार की आवश्यकता है।

प्रतिवाद

  • पश्चिमी देशों में जारी हथियारों की अंधी दौड़ में शामिल होने की बजाय हमें बुद्धिमत्ता से काम लेने  की  आवश्यकता है।
  • उन देशों को हमसे कहीं अधिक उन्नत तकनीकी ज्ञान उपलब्ध है और साथ ही तकनीकी क्षेत्र में निवेश करने हेतु धन की उपलब्धता भी अधिक है, जबकि भारत में स्थिति वैसी नहीं है। अतः बिना सोचे- समझे उनका अनुकरण करना नुकसानदेह साबित हो सकता है।
  • भारत अभी भी हथियारों की गुणवत्ता से अधिक उनकी मात्रा पर ध्यान केंद्रित किये हुए है और इस चक्कर में संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहा है।
  • सीधे शब्दों में कहें तो हमारे नीति-निर्माताओं द्वारा अपनी सोच में परिवर्तन लाना अति आवश्यक है। 
  • उदाहरण के रूप में स्वीडन को लिया जा सकता है जो अपनी सुरक्षा पर प्रतिवर्ष $6 बिलियन की छोटी सी राशि खर्च करता है और इसके बावजूद सुरक्षा के क्षेत्र में निश्चिंत रहता है।
  • भारत की रक्षा खरीद में  मिक्स एंड मैच पॉलिसी उस समय तार्किक थी जब देश पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए थे किंतु अभी इसका कोई औचित्य नहीं है और इससे बड़े पैमाने पर संसाधनों की बर्बादी होती है एवं उपकरणों की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सेना के भोजनालयों, गोल्फ कोर्स आदि के संचालन में बड़े स्तर पर संसाधनों का अपव्यय होता है जिससे सेना के खर्चों में 2-3 गुना वृद्धि हो जाती है।
  • हमें यह समझने की ज़रूरत है कि पश्चिमी प्रौद्योगिकी का दोहन करने के लिये अत्यधिक प्रशिक्षित व्यक्तियों, बुनियादी मानव मूल्यों में वृद्धि की आवश्यकता होती है। ऐसे में हम अपने सैनिकों को उच्च तकनीकी की समुचित समझ के अभाव में मरने के लिये नहीं छोड़ सकते।
  • स्मार्ट सेनाओं को स्मार्ट लोगों की आवश्यकता होती है। भारत को अधिक सैनिकों में अतार्किक निवेश की बजाय कम सैनिकों में अधिक निवेश करने की ज़रूरत है।
  • अगर भारत अपने आपूर्तिकर्त्तार्ओं, सोच और मानव संसाधनों को तर्कसंगत बनाता है, तो यह उपलब्ध संसाधनों में भी बहुत कुछ हासिल कर सकता है। हालाँकि, बजट में कटौती सेना को बौद्धिक आलस्य के भाव से बाहर निकालने में एक महत्त्वपूर्ण पहला कदम होगा।

संवाद 

  • 1962 में जीडीपी के अनुपात में सैन्य क्षेत्र के लिये कम आवंटन की घोषणा के बाद से ही सैन्य खर्च का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। 
  • सेना के प्रमुखों द्वारा भी इस संबंध में समय-समय पर आपत्ति जताई जाती रही है। उनका मानना है कि कम धन आवंटन से सेना के आधुनिकीकरण को गंभीर नुकसान हो सकता है।
  • भारत गंभीर बाहरी और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। उत्तर-पूर्व और कश्मीर में लगातार होती घुसपैठ से बड़ी संख्या में सेना की यूनिटों को क्षति पहुँच रही है।
  • पाकिस्तान के साथ रिश्तों में लगातार कड़वाहट आ रही है।
  • ऐसे में सैन्य निर्भरता में अधिक बढ़ोतरी होना जायज है और इस हेतु सेना के पास समुचित मात्रा में संसाधन होने भी आवश्यक हैं।
  • चीन के वैश्विक शक्ति के रूप में उभार को प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है और ऐसे में उसका दिनों-दिन बढ़ता दबदबा भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। अतः चीन से सामरिक प्रतिस्पर्द्धा हेतु हमें सैन्य ताकत में वृद्धि करनी ही होगी। इसके लिये सैन्य बजट में वृद्धि अति आवश्यक है।
  • रोबोटिक्स, मानव रहित तंत्र, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इत्यादि पर ध्यान केंद्रित न करने के कारण सेना पर तकनीकी रूप से दूसरे दर्जे की शक्ति बनने का खतरा मंडरा रहा है। साइबर खतरों से निपटने के लिये सेना के भीतर कोई संगठन नहीं है।
  • हालाँकि, कुछ लोगों का मानना है कि भारत दुनिया में पाँचवा सबसे बड़ा सैन्य बजट वाला देश है और इस बजट में कोई भी वृद्धि पहले से दबावग्रस्त जनता पर अत्यधिक बोझ डाल सकती है।
  • इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सेना हेतु धन आवंटन और मौजूद ढाँचे में सामंजस्यता का अभाव है और यदि यह जारी रहा तो पहले से कमज़ोर सैन्य तंत्र और कमज़ोर हो जाएगा। 
  • ऐसी स्थिति से बचने के लिये सरकार और सेना को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अदा करनी होंगी।
  • भारत में सामरिक मुद्दों पर सेना और नागरिकों के बीच वार्ता का नितांत अभाव रहा है। साथ ही अक्सर सैन्य संसाधनों की उपलब्धता के प्रश्न पर राजनेता संसाधनों की समुचित मात्रा उपलब्ध होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। 
  • सरकार को इस समस्या के समाधान हेतु वृहद् स्तरीय पुनर्विलोकन करना होगा और समस्याओं के समाधान हेतु रोडमैप या प्लान तैयार करना होगा।
  • इस प्लान के अंतर्गत हथियारों और अवसंरचना की भावी आवश्यकता पर भी ध्यान देना होगा।
  • सेना हेतु धन आवंटन भी आगे इसी प्लान के आधार पर करना चाहिये।
  • सेना को भी अपने संगठनात्मक ढाँचे की तरफ ध्यान देना होगा, साथ ही अपना फोकस मात्रा की बजाय गुणवत्ता पर केंद्रित करना होगा।

निष्कर्ष  
यह चिंताजनक है कि सेना के 68% उपकरण पुराने हैं, लेकिन शायद इसने नई तकनीक और विचारों में निवेश करने का अवसर भी प्रदान किया है। अतिरिक्त धन का निवेश आवश्यक प्रतीत होता है, लेकिन इससे तब तक कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक सेना अपने संगठनात्मक दर्शन (organisational philosophy) का पुनर्विलोकन नहीं करती। महँगे हथियारों के अधिकाधिक आयात की बजाय ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जिससे हथियारों के आयात पर निर्भरता में कमी तो आएगी ही, साथ में  देश के अंदर नए रोज़गारों का सृजन भी होगा। 

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