जैव विविधता और पर्यावरण
विशेष: हीट वेव और मानसून का विज्ञान
- 01 Jun 2018
- 20 min read
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
देशभर में इन दिनों भीषण गर्मी कहर बरपा रही है और पहाड़ भी इससे अछूते नहीं हैं। यूँ तो ऐसी गर्मी (तापमान 42 से 48 डि.से. तक होता है) मई के मध्य से लेकर जून मध्य तक हर साल पड़ती है, जब तक कि मानसून-पूर्व की फुहारें धरती की तपिश को कम नहीं कर देतीं। लेकिन हर साल उत्तरोत्तर बढती जा रही इस गर्मी को जानकार जलवायु परिवर्तन से भी जोड़कर देखने लगे हैं।
दूसरी ओर, इस बार मानसून ने समय से 3 दिन पहले ही केरल में दस्तक दे दी है। हर साल आने वाला यह मानसून क्यों हमारे लिये ज़रूरी है? कैसे मानसून भारत पर असर डालता है? कहाँ से और क्यों आता है यह मानसून?
- पहले चर्चा होगी तपते हुए मौसम की और उसके बाद बात करेंगे इस तपिश को शांत करने वाली मानसूनी वर्षा की।
मौसम और जलवायु में अंतर
- मौसम का अर्थ है किसी स्थान विशेष पर, किसी विशेष समय में वायुमंडल की स्थिति। यहाँ 'स्थिति' की परिभाषा को हमें व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझना होगा।
- मौसम में अनेक कारकों यथा-वायु का ताप, दाब, उसके चलने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की मौजूदगी और उनकी परस्पर अंतःक्रियाएँ शामिल होती हैं। ये अंतःक्रियाएँ ही मुख्यतः किसी स्थान के मौसम का निर्धारण करती हैं।
- किसी स्थान पर होने वाली इन अंतःक्रियाओं का लंबे समय तक अध्ययन करके जो निष्कर्ष निकाला जाता है, उसे उस स्थान की जलवायु कहते हैं।
- मौसम रोज़ बदल सकता है, बल्कि एक दिन में ही कई बार बदल सकता है, लेकिन जलवायु आसानी से नहीं बदलती। किसी स्थान की जलवायु बदलने में सैकड़ों, हज़ारों या लाखों वर्षों का समय भी लग सकता है।
- इसीलिये हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ‘बदलती हुई जलवायु’ की नहीं।
(टीम दृष्टि इनपुट)
ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत और प्रभाव?
- ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज और उष्ण किरणें हवा से नमी सोख लेती हैं, पृथ्वी का तापमान एकदम बढ़ जाता है और सब जगह ताप ही ताप अनुभव होता है।
- ऐसा इसलिये होता है क्योंकि पृथ्वी की विशिष्ट आकृति के कारण सौर किरणों की तीव्रता उसके प्रत्येक क्षेत्र पर एक समान नहीं होती।
- पृथ्वी के मध्य भाग में भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्र में इनकी तीव्रता सर्वाधिक होती है।
- जैसे-जैसे मध्य भाग से ऊपर (उत्तर) और नीचे (दक्षिण) की ओर बढ़ते हैं, यह तीव्रता कम होती जाती है।
- साथ ही उत्तर और दक्षिण की ओर जाते समय सौर किरणों द्वारा तय की जाने वाली दूरियाँ भी बढ़ती जाती हैं।
- इन कारणों से भूमध्य रेखा के आस-पास वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है।
- उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते समय यह तीव्रता कम होती जाती है और ध्रुवों तक पहुँचते-पहुँचते अत्यंत क्षीण होकर लगभग नगण्य हो जाती है। यही कारण है कि ध्रुवीय प्रदेश सदैव हिमाच्छादित रहते हैं।
हीट वेव क्या है?
- भारतीय मौसम विभाग देश के विभिन्न इलाकों में लोगों की गर्मी सहन करने की क्षमता के अनुरूप हीट वेव का निर्धारण करता है, जिसे 'लू' कहा जाता है।
- मई-जून के महीनों में उत्तरी और मध्य तथा पश्चिमी भारत में हर साल भयानक गर्मी और हीट वेव की स्थिति बनती है।
- देश के पश्चिमी भागों और पाकिस्तान से आने वाली गर्म हवाओं से तापमान में वृद्धि होती है।
- भारतीय मौसम विभाग ने कुछ राज्यों और क्षेत्रों को ऐसी श्रेणी में रखा है जो हर साल हीट वेव जैसी स्थितियों का सामना करते रहे हैं।
- राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, विदर्भ, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, तटीय आंध्र प्रदेश और उत्तरी तमिलनाडु इनमें शामिल हैं, जहाँ आठ दिन या इससे अधिक समय तक ऐसी परिस्थितियाँ बनी रहती हैं।
- मौसम विभाग के मुताबिक जब लगातार 7-8 दिनों तक तापमान 40 डि.से. से ज्यादा और सामान्य से 5 डिग्री अधिक हो, तब हीट वेव की स्थितियाँ बनती हैं।
- पहाड़ी इलाकों में ऐसी स्थिति तापमान के 30 डि.से. से अधिक हो जाने पर बनती है।
- तटीय इलाकों में लू के अलग मानक हैं।
हीट वेव एक्शन प्लान
- विभिन्न राज्यों में हीट वेव के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये हीट वेव एक्शन प्लान बनाए जाते हैं, क्योंकि स्कूली बच्चे, ट्रैफिक पुलिसकर्मी, बुजुर्ग, मज़दूर और ड्राइवर इसका सबसे अधिक शिकार बनते हैं।
- इस प्लान के तहत पार्कों को दिन-रात खोले जाने से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर पीने के पानी की व्यवस्था करना, ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को हीट वेव से बचाने के लिये चौराहों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण पॉइंट्स पर पोर्टेबल हट बनवाना, स्कूल के समय में परिवर्तन करना, कार्यालयों को समय से पहले खोलना और श्रमिकों के काम करने के समय में बदलाव जैसे उपाय किये जाते हैं।
- इनके अलावा स्थानीय परिवहन के लिये बस स्टॉप को छायादार बनाना, बेघरों के लिये रैनबसेरों को ऊष्मारोधी बनाना, अस्पतालों में अतिरिक्त उपाय करना आदि तथा आपातस्थिति में सहायता के लिये मेडिकल इमरजेंसी नंबर जारी किये जाते हैं।
धीरे-धीरे बढ़ रहा है पृथ्वी का औसत तापमान
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी देश के कई राज्यों में भीषण गर्मी से आम जनजीवन बेहाल हो गया। अधिकांश स्थानों में तापमान 45 डिग्री को पार कर गया। बढ़ती गर्मी को देखते हुए मौसम विभाग ने कई बार हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रेड अलर्ट जारी किया।
58 सालों में औसत तापमान केवल 0.5 डि.से. बढ़ा
एक अध्ययन से पता चलता है कि 1960 से अब तक भारत के औसत तापमान में केवल 0.5 डि.से. की वृद्धि हुई है, लेकिन इसका प्रभाव कहीं अधिक हुआ है। अध्ययन के अनुसार मात्र इतनी वृद्धि से ही गर्म हवाओं के प्रभाव में ढाई गुनी बढ़ोतरी हो गई अर्थात गर्मी अधिक महसूस होती है।
- किसी भी देश का औसत तापमान उस देश के चुनिंदा शहरों के तापमान का औसत होता है।
- यह औसत पूरे 365 दिनों का निकाला जाता है, इसलिये इसे वार्षिक औसत तापमान कहते हैं।
- किसी शहर का वार्षिक औसत तापमान निकालने के लिये उस शहर के दैनिक औसत तापमान का औसत निकाला जाता है।
- किसी शहर का दैनिक औसत तापमान उस शहर के अधिकतम और न्यूनतम तापमान का औसत होता है।
- 1951 से लेकर वर्ष 2000 तक की अवधि के दौरान देश में मानसून सीज़न के दौरान दीर्घावधि औसत वर्षा 89 सेंटीमीटर रही है।
गर्मी के बाद मानसून; क्या है मानसून? कहाँ से और कैसे आता है मानसून?
मानसून के आने के पूर्व भारतीय मानसूनी क्षेत्र गर्मी के प्रकोप में जकड़ा होता है। यह क्षेत्र मध्य पाकिस्तान और उससे सटे हुए भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों तक फैला रहता है। भारत के दक्षिणी छोर (केरल का तटवर्ती क्षेत्र) में मई के अंत में अथवा जून के प्रारंभ में मानसून की वर्षा से मानसून के मौसम की शुरुआत होती है तथा देश के अधिकांश भागों में जून से सितंबर के बीच ही अधिकांश वर्षा होती है।
- भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की अवधि 1 जून से 30 सितम्बर तक मानी जाती है।
- भारतीय मौसम विभाग लगभग 16 पैरामीटरों का बारीकी से अध्ययन कर मानसून की भविष्यवाणी करता है।
- इन 16 पैरामीटरों को चार भागों में बाँटा गया है और इन्हीं पैरामीटरों को आधार बनाकर मानसून के पूर्वानुमान निकाले जाते हैं।
- पूर्वानुमान निकालते समय तापमान, हवा, दबाव और बर्फबारी जैसे कारकों का ध्यान भी रखा जाता है।
- अप्रैल-मई में सूर्य हिंद महासागर में विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता हैl इससे समुद्र की सतह गर्म हो जाती है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुँच जाता हैl ऐसी स्थिति में हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएँ सक्रिय होती हैं।
- ये हवाएँ आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा को पार कर एशियाई भू-भाग की तरफ बढ़नी शुरू होती हैं। इसी से समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
- विषुवत रेखा को पार कर हवाएँ और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की तरफ बढ़ते हैं। यहाँ से मानसूनी हवाएँ दो भागों में विभाजित हो जाती हैं--एक अरब सागर शाखा तथा दूसरी बंगाल की खाड़ी शाखाl
- आगे अरब सागर की शाखा पुनः तीन उप-शाखाओं में विभाजित होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों (प्रायद्वीपीय भारत, छोटा नागपुर पठार और गुजरात से पंजाब-हरियाणा क्षेत्र) में प्रवेश करती है और वर्षण का कारक बनती हैl
- दूसरी तरफ, बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने वाली मानसूनी पवन की दिशा कोरोमंडल तट के समानांतर होती हैl
विदित हो कि बंगाल की खाड़ी शाखा से होने वाली वर्षा की मात्रा में पूर्व से पश्चिम की ओर जाने पर क्रमशः कमी आती है। साथ ही प्रायद्वीपीय भारत में अरब सागर की शाखा के द्वारा होने वाली वर्षा की मात्रा में पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर कमी आती हैl
मानसूनी हवाएँ
- भारत में मानसून उन ग्रीष्मकालीन हवाओं को कहते हैं जिनसे वर्षा होती है, ये हवाएँ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिंद महासागर से होकर आती है।
- इनकी दिशा दक्षिण पश्चिम एवं दक्षिण से उत्तर एवं उत्तर पश्चिम की ओर होती है। इस कारण इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं के नाम से भी जाना जाता है।
- ग्रीष्मकाल में मानसूनी हवाएँ सागर से ज़मीन की ओर एवं शीतकाल में ज़मीन से सागर की ओर चला करती हैं। दिशा बदलने के कारण इन्हें क्रमशः दक्षिण-पश्चिम मानसून एवं उत्तर-पूर्वी मानसून या लौटता मानसून कहते हैं।
- ये मानसूनी हवाएँ इतनी प्रबल होती हैं कि इनके प्रभाव से उत्तरी हिंद महासागर में सागरीय धारा प्रवाहित होने लगती है तथा इन हवाओं की दिशा के साथ उक्त सागरीय धारा भी इन हवाओं की दिशा में अपनी दिशा बदल लेती हैं।
- इस प्रकार सागरीय धाराओं का वर्ष में दो बार दिशा बदलना केवल हिंद महासागर में होता है, विश्व के अन्य किसी महासागर में इस प्रकार की घटना नहीं होती।
- मानसूनी हवाओं के नाम पर उत्तरी हिंद महासागर की इस धारा को मानसून धारा कहते हैं।
लौटते मानसून की वर्षा
- शीतकाल में भारत में हवाएं उत्तर से दक्षिण की ओर एवं ज़मीन से सागर की ओर चलती हैं। इन्हें लौटता मानसून भी कहते हैं और यह लौटता मानसून भारत के पूर्वी तट से तमिलनाडु तट पर सागर से ज़मीन में प्रवेश कर जाता है। जल के ऊपर से आने के कारण इन हवाओं में सागरीय नमी आ जाती है, इसलिये इनसे मुख्य रूप से तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में तथा थोड़ी-बहुत वर्षा केरल, कर्नाटक एवं दक्षिण आंध्र प्रदेश में दिसंबर-जनवरी में हो जाती है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
भारत की जीवन रेखा है मानसून
- भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और देश की अधिकांश कृषि आधारित है मानसून में होने वाली वर्षा पर। जब मानसून बेहतर रहता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिये भी सुखद संदेश लेकर आता हैl
- देश की आधी से अधिक आबादी (53%) कृषि कार्यों में संलग्न है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15% कृषि से ही आता हैl
- देश की कुल कृषि भूमि में 50% से अधिक पर नियमित सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है और यह वर्षा जल पर निर्भर हैl अतः अच्छी वर्षा कृषि के लिये लाभदायक हैl
- भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ की फसल का लगभग आधा योगदान रहता है। धान, कपास, सोयाबीन, जूट, मूंगफली, गन्ना इत्यादि खरीफ की प्रमुख फसलें हैं, जिनमें पानी की आवश्यकता अधिक होती है।
- पर्याप्त मानसूनी वर्षा से नदियों, झीलों तथा जलाशयों-तालाबों में पानी भर जाता है। इसे भूजल स्तर भी ठीक हो जाता है यानी इससे जल चक्र का नियमन होता हैl
- जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली का अपेक्षित उत्पादन तो नदियों में जल के अपेक्षित स्तर पर ही निर्भर है। अगर मानसून अच्छा हो तभी बिजली का उत्पादन भी अधिक होता है।
मानसून मिशन मॉडल
पहली बार भारत मौसम विज्ञान विभाग ने 2017 में मानसूनी वर्षा के संचालन संबंधी मौसमी पूर्वानुमान के लिये मानसून मिशन मॉडल का उपयोग किया।
मानसून मिशन मॉडल क्या है?
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2012 में राष्ट्रीय मानसून मिशन लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य विभिन्न समयावधियों में मानसून वर्षा की पूर्वानुमान प्रणाली को विकसित करना था।
- राष्ट्रीय मानसून मिशन के अंतर्गत मानसून भविष्यवाणी प्रणाली को उच्च क्षमता से जोड़ा गया तथा मौसम पूर्वानुमान के लिये उच्च क्षमता वाले वायुमंडलीय मॉडल की स्थापना की गई।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने तीन वर्षों के लिये (2017-2020) मानसून मिशन चरण-2 कार्यक्रम लॉन्च किया है। इसके अंतर्गत सामान्य से कम/अधिक वाले पूर्वानुमानों पर ज़ोर दिया जाएगा तथा अनुप्रयोगों आधारित मानसून पूर्वानुमान विकसित किये जाएंगे।
मानसून मिशन मॉडल का उद्देश्य
मानसून मिशन का उद्देश्य हर समय और हर स्तर पर देश के विभिन्न स्थानों पर माह से लेकर ऋतुओं तक मानसून, वर्षा और उसके पूर्वानुमान के लिये सर्वाधिक आदर्श और अत्याधुनिक गतिकीय मॉडल ढांचे का विकास करना है।
इस मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- एक निर्धारित अथवा विस्तारित समय-सीमा (16 दिनों से एक सीजन) के लिये मानसूनी वर्षा का बेहतर पूर्वानुमान करना।
- लघु से मध्यम श्रेणी के समय (अधिकतम 15 दिन) के स्तर पर तापमान, वर्षा और चरम मौसम की घटनाओं की भविष्यवाणी में सुधार करना।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: अप्रैल और मई में गर्मी पड़ना मानसून के लिये जरूरी है और यह हर साल पड़ती भी है। लेकिन लगातार तापमान का सामान्य से अधिक बने रहना बेशक जलवायु परिवर्तन की आहट न हो, लेकिन यह एक खतरे की दस्तक ज़रूर है, जो लोगों के स्वास्थ्य से लेकर देश की अर्थव्यवस्था तक को प्रभावित करता है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के जो खतरे पिछले दो दशक से चर्चाओं में रहे हैं, अब उनका असर दिखाई देने लगा है भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष अप्रैल से जून के दौरान देश के अधिकांश हिस्सों में औसत तापमान सामान्य से अधिक रहने की चेतावनी दी है। लेकिन साथ ही मानसून सीज़न के दौरान कुल वर्षा दीर्घावधि औसत का 97 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान भी जताया है, जिसमें ± 5 प्रतिशत का अंतर हो सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था के लिये मानसून बेहद अहम कारक माना जाता है। बेहतर मानसून से देश में बेहतर फसल की उम्मीद की जा सकती है और भारत जैसे देश में जहाँ आधे से अधिक कृषि योग्य भूमि की सिंचाई मानसूनी वर्षा पर निर्भर रहती है, मानसून का साथ मिलना देश की सेहत के लिये निश्चित रूप से अच्छी खबर है।