भारतीय अर्थव्यवस्था
आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट
- 09 Jul 2021
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चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) का 23वाँ संस्करण जारी किया है।
- रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करती है।
प्रमुख बिंदु
- वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट: यह वित्तीय स्थिरता के जोखिमों और वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद की उप-समिति (FSDC - आरबीआई के गवर्नर की अध्यक्षता में) के सामूहिक मूल्यांकन को दर्शाती है। ज्ञातव्य है कि इसे वर्ष में दो बार जारी किया जाता है।
- टीकाकरण का प्रभाव: RBI के अनुसार, नीतियों का समर्थन और टीकाकरण वैश्विक सुधार में योगदान दे रहे हैं, हालाँकि कोविड-19 की दूसरी लहर ने घरेलू आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।
- बैंकिंग क्षेत्र के लिये सकल NPA: नवीनतम रिपोर्ट से के अनुसार, पूरे बैंकिंग क्षेत्र के लिये सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन पिछले FSR में उल्लिखित स्तर के अनुरूप नहीं।
- MSME क्षेत्र जोखिम में: खुदरा ऋण और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) क्षेत्र को दिये गए ऋणों में NPA स्तर या ऋण की गुणवत्ता आने वाले महीनों में वास्तव में खराब हो सकती है,जिसका प्रतिकूल प्रभाव उपभोक्ता ऋण पर पड़ेगा।
- बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव के स्तर में पूर्व के अनुमानों की अपेक्षा सुधार होता दिख रहा है और ऐसा लगता है कि बैंकों के पास पूंजी का बेहतर प्रावधान है किंतु MSME क्षेत्र तनाव का सामना कर रहा है जो कि चिंता का विषय है।
23वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट
- सकल NPA अनुपात: मार्च 2021 तक सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) का अनुपात 7.5% पाया गया, जो कि नियंत्रण में है। यह महामारी के कारण NPA बढ़ने की सभी अपेक्षाओं के विपरीत था।
- तनाव परीक्षणों से संकेत मिलता है कि सामान्य परिस्थितियों में मार्च 2022 तक NPA अनुपात बढ़कर 9.8% हो जाएगा।
- तनाव के कारण NPA अनुपात: मध्यम तनाव परिदृश्य के तहत जहाँ सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 6.5% है, सकल NPA अनुपात बढ़कर 10.36% हो सकता है।
- गंभीर दबाव की स्थिति में जहाँ सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 0.9% है, बैंकिंग क्षेत्र के लिये सकल NPA अनुपात बढ़कर 11.22% हो सकता है।
- राजकोषीय घाटे में वृद्धि: बजट 2020-21 के अनुसार, राजकोषीय घाटा 9.3% था। रिपोर्ट के तहत राजकोषीय घाटा बढ़ने की संभावना है।
- हाल के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 3 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ने की संभावना है, जिससे राजकोषीय दबाव लगभग 14 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा एवं इससे 9.3% के राजकोषीय घाटे में 3-4% की वृद्धि होगी।
- सरकारी प्रतिभूतियों पर बढ़ती निर्भरता: चिंता का एक और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सरकारी प्रतिभूतियों पर बैंकिंग क्षेत्र की बढ़ती निर्भरता है।
- बैंक अपनी तरलता का निवेश सरकारी प्रतिभूतियों में कर हैं।
- संकट के मध्य आरबीआई की सहायता: दो प्रमुख कारक हैं जिन्होंने GDP को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है- सकल स्थायी पूंजी निर्माण और निजी अंतिम उपभोग व्यय।
- यह आवासीय परिवारों और परिवारों की सेवा करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की अंतिम खपत पर किया गया व्यय है।
- इस अवधि के दौरान RBI ने ऋण सहायता के मामले में बैंकिंग क्षेत्र को मदद प्रदान की है।
- RBI ने संपार्श्विक सहायता (Collateral Support) प्रदान किया है और नई क्रेडिट लाइनें खोली हैं।
- कठिन समय के दौरान ऋण स्थगन और उसको पुनः वापस लेने की योजना ने चीज़ों को नियंत्रण में रखने में मदद की है।
आगे की राह
- RBI की सलाह: FSR बैंकों को सलाह दे रहा है कि वे अपनी पूंजी और तरलता की स्थिति को मज़बूत करें ताकि संभावित बैलेंस शीट तनाव के संदर्भ में बैंक बेहतर स्थिति में हों।
- अर्थव्यवस्था में मांग पैदा करना: अब अर्थव्यवस्था में मांग पैदा करने की ज़रूरत है। इसमें बैंकों और अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की अहम भूमिका होती है। मांग बढ़ने पर ही आर्थिक सुधार हो सकता है।
- दूसरी पीढ़ी के सुधार: दूसरी पीढ़ी के सुधारों को शुरू करने की ज़रूरत है। दूसरी पीढ़ी के सुधार का सबसे महत्त्वपूर्ण खंड कृषि और संबद्ध क्षेत्रों एवं लघु उद्योगों सहित ग्रामीण विकास है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना समग्र आर्थिक विकास के दायरे को आगे बढ़ाता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की क्षमता बढ़ाना: निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच NPA के मामले में लगभग 5% का अंतर है।
- निजी क्षेत्र के बैंकों के मामले में आधारभूत परिदृश्य में NPA लगभग 6% हो जाएगा, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में यह लगभग दोगुना अर्थात् 12% हो जाएगा।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को और अधिक कुशल बनाने की आवश्यकता है, यदि आवश्यक हो तो स्वामित्व परिवर्तन (निजीकरण) करने की भी आवश्यकता है।
- यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने आर्थिक संकट के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया दी है और कोविड-19 महामारी से तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुए हैं।
- बैड बैंकों को कार्य में लाना: बैंकिंग उद्योग को इस चुनौतीपूर्ण समय से बाहर निकालने के लिये बैड बैंकों का निर्माण जैसे कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
- एक बैड बैंक एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (ARC) या एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) है जो वाणिज्यिक बैंकों के खराब ऋणों को खरीदकर उनका प्रबंधन करती है और अंत में एक तय समयावधि में धन की वसूली करती है।
- इसी तरह वर्ष 2002 में खराब संपत्तियों को पृथक करने के लिये सरफेसी अधिनियम बनाया गया था जिससे NPA में उल्लेखनीय गिरावट आई थी।
- वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करना: पूंजी की मज़बूत स्थिति, सुशासन और वित्तीय मध्यस्थता में दक्षता इस प्रयास के लिये मील का पत्थर साबित हो सकते हैं ताकि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों की अखंडता व सुदृढ़ता स्थायी रूप से सुरक्षित हो।