भारतीय अर्थव्यवस्था
विशेष : आरबीआई एक्ट : धारा – 7
- 05 Nov 2018
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संदर्भ
दुनिया की हर सरकार अपने देश की अर्थव्यवस्था को अपने हिसाब से चलाना चाहती है जिसका मकसद देश के आर्थिक हालात को दुरुस्त करना और उसे नई दिशा देना होता है। इसमें छोटे और मझोले उद्योगों के लिये विकास का रास्ता सुनिश्चित करने के साथ ही बुनियादी संरचनाओं और बड़े उद्योगों को बढ़ाने के अलावा जनता की आर्थिक स्थिति को भी ठीक करना होता है। देश में अर्थव्यवस्था के संचालन और उसे पटरी पर लाने में सरकार के साथ– साथ बैंकों का भी बहुत अहम योगदान होता है। बैंकों के संचालन और देश की आर्थिक और मौद्रिक स्थिति को अनुकूल बनाए रखने में केंद्रीय बैंक यानी रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया का खास योगदान होता है। रिज़र्व बैंक न केवल देश में नोट जारी करता है बल्कि सरकार द्वारा विदेशों से लिये जाने वाले कर्ज़ का हिसाब-किताब भी रखता है। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक पर देश के सभी बैंकों का संचालन और उनके देखरेख की ज़िम्मेदारी होती है। बैंकों की ब्याज दर और बैंकिंग सेक्टर से जुड़ी अन्य बातों की देख-रेख भी रिज़र्व बैंक ही करता है। रिज़र्व बैंक काफी हद तक स्वायत्त होकर अपनी इन गतिविधियों को अंजाम देता है। लेकिन बीते कुछ दिनों से आरबीआई एक्ट की धारा-7 के इस्तेमाल पर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच तनाव की खबरें सुखियों में है। आज के इस विशेष अंक में हम बात करेंगे आरबीआई एक्ट की धारा-7 के बारे में और जानेंगे कि क्या है धारा-7 का पूरा मुद्दा। इसके अलावा आरबीआई की स्थापना और कामकाज से जुड़े तथ्यों पर भी नज़र डालेंगे।
आरबीआई अधिनियम की धारा-7 की पृष्ठभूमि
- आरबीआई ने बैंक ऑफ़ इंग्लैंड एक्ट, 1946 तथा कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया एक्ट, 1945 के प्रावधानों को मिलाकर एक मसौदा तैयार किया था जिसमें केंद्र को आरबीआई को निर्देश देने की शक्ति दी गई है।
- इसमें कहा गया है कि जब सरकार आरबीआई के गवर्नर की सलाह के खिलाफ काम करने का फैसला ले ले तो उसे आरबीआई पर लागू होने वाली कार्यवाही की ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
- हालाँकि उस समय सरकार इस प्रावधान के पक्ष में नहीं थी और इसे दुबारा तैयार किया गया।
- सरकार को सार्वजनिक हित में बैंकों को निर्देश जारी करने के लिये मज़बूत बनाने के उद्देश्य से 1949 में धारा-7 को संशोधित किया गया था।
- आरबीआई अधिनियम की धारा-7 प्रबंधन से जुड़ी हुई है और आज़ाद भारत के इतिहास में इससे पहले इसका इस्तेमाल नहीं किया गया।
- दरअसल, धारा-7 के तहत आरबीआई को निर्देश दिये जाने का मामला पहली बार तब सामने आया जब इस साल की शुरुआत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय, बिजली कंपनियों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
- इसमें कुछ बिजली उत्पादक कंपनियों ने आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर को इलाहबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस सर्कुलर में डिफ़ॉल्ट हो चुके लोन को रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम में डालने से रोका गया है।
- आरबीआई ने जब बताया कि कानूनी तौर पर सरकार केंद्रीय बैंक को आदेश दे सकती है तो कोर्ट ने अगस्त महीने में जारी अपने आदेश में कहा कि सरकार ऐसा निर्देश देने पर विचार कर सकती है।
- हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को कोर्ट के फैसले में कही गई बातों को देखते हुए धारा-7 के तहत मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर 15 दिन के अंदर आरबीआई को निर्देश देने के बारे में सोचना चाहिये।
क्या है आरबीआई क़ानून की धारा -7 ?
- इस धारा से ही सरकार को आरबीआई को निर्देश जारी करने का अधिकार मिलता है।
- दरअसल, धारा-7 प्रबंधन से संबंधित है। इस धारा में 3 उपधाराएँ हैं जिनमें इसके सभी प्रावधानों के बारे में बताया गया है।
- जब कभी आरबीआई केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करता है तो धारा-7 के तहत लिखित निर्देश जारी किया जा सकता है।
- धारा-7 (1) के अनुसार, केंद्र सरकार रिज़र्व बैंक के गवर्नर के साथ विचार विमर्श के बाद जनहित में समय समय पर केंद्रीय बैंक को निर्देश जारी कर सकती है।
- धारा-7 (2) के अनुसार, सरकार को रिज़र्व बैंक के कामकाज का संचालन उसकी केंद्रीय मंडल के निदेशक बोर्ड को देने का अधिकार देती है। इस तरह के किसी भी दिशा-निर्देश के बाद बैंक का काम केंद्रीय निदेशक मंडल को सौंप दिया जाएगा। यह निदेशक मंडल बैंक की सभी शक्तियों का उपयोग कर सकता है और रिज़र्व बैंक की ओर से किये जाने वाले सभी कार्यों को कर सकता है।
- धारा-7 (3) के तहत रिज़र्व बैंक के गवर्नर और उसकी अनुपस्थिति में नामित डिप्टी गवर्नर की मौजूदगी में भी केंद्रीय निदेशक मंडल के पास बैंक के सामान्य मामलों और कामकाज के अधीक्षण और निर्देशन की शक्तियाँ होंगी और वह उन सभी शक्तियों का इस्तेमाल कर पाएगा जो कि आरबीआई के पास होती हैं।
क्या है पूरा मामला?
- केंद्र सरकार ने अब तक के इतिहास में पहली बार आरबीआई कानून की धारा 7 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए कमज़ोर बैंकों को नकदी मुहैया कराने, छोटे और मध्यम उद्योगों को कर्ज देने और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिये नकदी जैसे मुद्दों पर आरबीआई को समाधान करने को कहा है।
- इसके लिये सरकार ने आरबीआई को तीन पत्र भेजे जिसमें मामले को जल्दी निपटाने के अलावा कार्य ढाँचे में सुधार के साथ ही नकदी प्रबंधन से जुड़े अलग-अलग मुद्दे थे।
- सरकार ने आरबीआई अधिनियम की धारा-7 के तहत परामर्श भी माँगा जो कि सार्वजनिक हित के मामलों पर केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निर्देश जारी करने की शक्ति देती है।
- इस मामले पर वित्त मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने आरबीआई की स्वायत्तता का सम्मान किया है और इसे बढ़ावा दिया है।
- मंत्रालय के मुताबिक, वह समय-समय पर केंद्रीय बैंक से कई मसलों पर व्यापक विचार-विमर्श करता है।
- मंत्रालय का मानना है कि आरबीआई और सरकार दोनों को अपनी कार्य प्रणाली में सार्वजनिक हित तथा देश की अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों को ध्यान में रखना होता है।
- वित्त मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार ने विचार-विमर्श के विषयों को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया है और अंतिम निर्णय को ही सार्वजनिक किया जाता है।
वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच मतभेद के कारण
- दरअसल, वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच मतभेद के कई कारण हैं। वित्त मंत्रालय का मानना है कि केंद्रीय बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के कमज़ोर बैंकों का संचालन सही तरीके से नहीं कर पा रहा है। साथ ही, बाज़ार में नकदी प्रवाह की कमी को दूर करने और बिजली क्षेत्र में ख़राब ऋण का निपटारा भी सही तरीके से नहीं हो पा रहा है।
- सरकार चाहती है कि संकटग्रस्त पावर सेक्टर को राहत दी जाए और उसे दिवालिया प्रक्रिया से बाहर रखा जाए। सरकार को लगता है कि ऐसा करने से अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा।
- सरकार का मानना है कि प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) के तहत कार्यवाही के नियमों में कुछ ढील दी जानी चाहिये ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 10000 से ज़्यादा लघु उद्योगों को और कर्ज़ दे सकें।
- वर्तमान में लघु उद्योगों का बुरा हाल है और पूंजी की सख्त ज़रूरत है। वहीँ दूसरी तरफ, आरबीआई का मानना है कि अगर पावर सेक्टर को छूट मिलती है तो हर कोई यह छूट चाहेगा।
- साथ ही PCA के तहत नियमों में ढील देने से सार्वजनिक क्षेत्र के कमज़ोर बैंक तेज़ी से छोटे उद्योगों को लोन बाटेंगे और इस तरह एक और कर्ज़ संकट पैदा हो जाएगा।
- इसके अलावा सरकार यह भी चाहती है कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये आरबीआई ब्याज़ दरों में कटौती करे, लेकिन आरबीआई ने ब्याज़ दरों को कम करने के स्थान पर उसे और बढ़ा दिया।
सरकार और आरबीआई के बीच यह विवाद कब सामने आया?
- सरकार और आरबीआई के बीच यह विवाद तब सामने आया जब 26 अक्तूबर को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने एक बयान में रिज़र्व की स्वायत्तता को लेकर सरकार पर प्रश्न उठाया।
- उन्होंने कहा कि सरकार आरबीआई की आज़ादी का सम्मान करे। यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो आरबीआई की नाराज़गी झेलनी पड़ेगी।
- इसके जवाब में 30 अक्तूबर को वित्त मंत्री ने आरबीआई को देश में ख़राब ऋण संकट के लिये ज़िम्मेदार ठहराया। वित्त मंत्री ने कहा कि आरबीआई 2008 से 2014 के बीच बैंकों को मनमाना कर्ज़ देने से रोकने में नाकाम रहा और इसी वज़ह से बैंकिंग सेक्टर में वर्तमान NPA संकट पैदा हुआ है।
आरबीआई अधिनियम, 1934 : प्रमुख धाराएँ
- बीते कुछ दिनों से आरबीआई कानून की धारा 7 सुर्ख़ियों में है। इस कानून में 1936 में संशोधन किया गया था जिसके ज़रिये भारत में बैंकिंग फर्मों की देख-रेख के लिये ढाँचे की व्यवस्था की गई।
- इस अधिनियम में कुल 61 धाराएँ हैं। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण धाराएँ इस प्रकार हैं-
- धारा 3 : रिजर्व बैंक की स्थापना और इनकॉर्पोरेशन की बात करती है।
- धारा 4 : केंद्रीय बैंक की पूंजी के बारे में बताती है। यह उस वक्त 5 करोड़ रुपए थी।
- धारा 8 : इसमें केंद्रीय बैंक की स्थापना का उल्लेख है।
- धारा 17 : आरबीआई के कामकाज के बारे में विस्तार से वर्णन।
- धारा 18 : बैंकों के लिये आपातकालीन ऋण।
- धारा 21 : भारत सरकार द्वारा बैंकिंग मामलों का संचालन और सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन।
- धारा 22 : सिर्फ आरबीआई के पास भारत में मुद्रा (नोट) जारी करने का विशेष अधिकार।
- धारा 24 : नोट का अधिकतम मूल्य 10000 रुपए तक होना।
- धारा 42 : अनुसूचित बैंकों के नकद भंडार के बारे में।
- धारा 45 U : रेपो, रिवर्स रेपो, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और प्रतिभूतियों को परिभाषित करती है।
- आरबीआई अधिनियम 1934 की पहली अनुसूची उन 4 क्षेत्रों को परिभाषित करती है जिसके तहत भारतीय राज्य आते हैं। ये चार क्षेत्र हैं- पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र।
- अधिनियम की दूसरी अनुसूची में भारत के सभी अनुसूचित बैंकों की सूची है।
आरबीआई की ज़िम्मेदारियाँ तथा संरचना
- केंद्रीय बैंक होने के नाते आरबीआई की अर्थव्यवस्था में काफी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। आरबीआई का प्रमुख कार्य भारत की मौद्रिक नीति तैयार करना उसे लागू करना और उसकी निगरानी करना है।
- आरबीआई खुद रिटेल बैंकिंग का कार्य नहीं करता है और न ही जनता से डिपॉजिट लेता है। यह केंद्रीय बैंक के रूप में कार्य करता है जहाँ वाणिज्यिक बैंक खाताधारक होते हैं और धन जमा कर सकते हैं।
- आरबीआई की स्थापना हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। इस आयोग को 1926 में गठित गया था।
- आरबीआई का मुख्यालय शुरू में कोलकाता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया।
- शुरुआत में आरबीआई निजी स्वामित्व वाला बैंक था। अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली और 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण हुआ। राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।
- आरबीआई की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्यों का वर्णन किया गया है। बैंक नोटों के मुद्दे को विनियमित करना और भारत में मौद्रिक स्थिरता के नजरिये से नोटों का भंडार बनाए रखना और देश हित में मुद्रा एवं साख प्रणाली का संचालन करना इसके मुख्य कार्य हैं। यानी आरबीआई देश की मुद्रा और क्रेडिट प्रणाली को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- आरबीआई कानून की प्रस्तावना में वित्त कानून 2016 के ज़रिये संशोधन किया गया है। इसमें कहा गया है कि मौद्रिक नीति का मकसद ग्रोथ के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कीमतों में स्थिरता बनाए रखना है।
- आरबीआई का कामकाज केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार आरबीआई अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड को चार साल के लिये नियुक्त करती है।
- बोर्ड में पूर्णकालिक गवर्नर तथा अधिकतम चार उप गवर्नर होते हैं। इसके अलावा, सरकार अलग अलग क्षेत्रों से 10 निदेशक और 2 सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति करती है। साथ ही 4 स्थानीय बोर्डों के लिये 4 निदेशकों की भी नियुक्ति की जाती है।
- देश के चार क्षेत्रों- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में आरबीआई के स्थानीय बोर्ड हैं।
- आरबीआई के 27 क्षेत्रीय कार्यालय और 4 उप कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांश राज्यों की राजधानियों में हैं।
आरबीआई के मुख्य कार्य
- केंद्रीय बैंकिंग का कार्य।
- नोटों को जारी करने का एकाधिकार।
- करेंसी जारी करने के साथ उसका विनियमन।
- परिचालन के योग्य नहीं रहने पर करेंसी और सिक्कों को नष्ट करना।
- विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक।
- विदेशी विनिमय दरों को स्थिर रखने के लिये विदेशी मुद्रा को बेचना और खरीदना।
- विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार का विकास करना एवं उसे बनाए रखना।
- मौद्रिक नीति तैयार करना, उसे लागू करवाना और उसकी निगरानी करना।
- विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना।
- साख यानी क्रेडिट का नियंत्रक।
- वाणिज्यिक बैंकों को दिये जाने वाले कार्यों को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये नीतिगत मौद्रिक उपायों का इस्तेमाल करना। इसमें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, CRR कैश रिज़र्व रेशियो, स्टेचुटरी लिक्विडिटी रेशियो (SLR) जैसे मात्रात्मक और गुणात्मक उपाय।
- सरकार का बैंकर अर्थात् यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है।
- वाणिज्यिक बैंकों के लिये बैंकर और उनके लिये अंतिम ऋणदाता।
- अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखना।
- गैर-मौद्रिक कार्यों के तहत बैंकों को लाइसेंस देने के साथ बैंकों की निगरानी करना।
- बैंकिंग परिचालन के लिये मानदंड निर्धारित करना जिसके तहत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है।
- जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करना और आम जनता को किफायती बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निगरानी।
- भारतीय रिज़र्व बैंक से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प पहलू यह भी है कि हमारा केंद्रीय बैंक भारत के अलावा पाकिस्तान और म्याँमार के केंद्रीय बैंक के रूप में भी काम कर चुका है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है और भारत की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करता है।
निष्कर्ष
सरकार और आरबीआई के बीच गतिरोध पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वह आरबीआई और सरकार के बीच चल रहे मामलों पर निगरानी बनाए हुए है। IMF ने कहा है कि वह पूरी दुनिया में केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता का समर्थन करता है।
हालाँकि सरकार और आरबीआई में विवाद नई बात नहीं है। इनके बीच पहले भी कई मौकों पर विभिन्न मुद्दों को लेकर मतभेद देखा गया है। आमतौर पर ब्याज़ दर, बैंकिंग में तरलता और प्रबंधन को लेकर इनके अलग-अलग विचार रहे हैं लेकिन अंततः विवाद सुलझा लिये जाते हैं। उम्मीद है कि इस विवाद को भी सुलझा लिया जाएगा।