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भारतीय राजनीति

रणबीर सिंह समिति

  • 28 Jul 2020
  • 16 min read

संदर्भ:  

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा ‘वैवाहिक दुष्कर्म, इच्छामृत्यु, यौन अपराधों और राजद्रोह जैसे कई गंभीर तथा संवेदनशील अपराधों की परिभाषा पर पुनः विचार करने के लिये एक पाँच सदस्यीय राष्ट्रस्तरीय समिति का गठन किया है। गृह मंत्रालय द्वारा गठित इस समिति ने 49 तरह के अपराधों को पुनर्विचार के लिये चुना है। समिति हिंसक घटनाओं के लिए विशेष कानूनों की शुरुआत करने पर भी विचार कर रही है, जिसमें भीड़ के द्वारा की जाने वाली हिंसा और ऑनर किलिंग (सम्मान की रक्षा में हत्या) शामिल है।  

             

प्रमुख बिंदु:   

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पाँच सदस्यीय समिति के गठन का निर्णय देश की आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) में सुधार लाने का एक प्रयास है। 
  • नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के वर्तमान कुलपति डॉ. रणवीर सिंह को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।    
  • गौरतलब है कि दिसंबर 2019 में संसद में भीड़ हत्या (Mob Lynching) जैसी घटनाओं के लिये अलग कानून की मांग पर केंद्रीय गृह मंत्री ने जानकारी दी थी कि सरकार ऐसे मामलों को लेकर IPC और CrPC में आवश्यक परिवर्तन पर विचार कर रही है।     

आपराधिक कानूनों में सुधारों के प्रयास: 

  • पूर्व में भी देश में समय-समय पर न्याय प्रणाली में सुधार के प्रयास किये जाते रहे हैं।     
    • मलिमथ समिति (वर्ष 2003): मलिमथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System of India- CJSI) से जुड़े लगभग 150 से अधिक सुधारों के सुझाव दिये थे।  
    • माधव मेनन समिति (वर्ष 2007): माधव मेनन समिति ने वर्ष 2007 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कई अपराधों को परिभाषित करने के साथ-साथ पीड़ितों को अधिकार देने के उद्देश्य से कुछ अपराधों को वर्गीकृत करते हुए चार अलग-अलग संहिताओं में बाँटने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त समिति ने दांडिक न्याय सुधार हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग को बढ़ावा देने तथा पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाए जाने का सुझाव दिया।   
    • न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा समिति (वर्ष 2013): वर्ष 2012 के निर्भया मामले के बाद बनी जस्टिस वर्मा समिति की रिपोर्ट के आधार पर ‘आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2013’ लाया गया।  
    • विधि आयोग (Law Commission): इसी प्रकार विधि आयोग भी समय-समय पर आपराधिक कानूनों में सुधार के लिये अपनी रिपोर्ट देता रहा है। 
    • ‘पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो’ (Bureau of Police Research and Development -BPRD): केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो भी समय-समय पर इस संदर्भ में अपनी रिपोर्ट जारी करता रहता है।  
    • न्याय प्रदायगी और विधिक सुधार का राष्ट्रीय मिशन (National Mission of Justice Delivery and Legal Reforms- NMJDLR):  NMJDLR आपराधिक कानूनों में सुधार के लिये सुझाव देता है, इसके प्रमुख केंद्रीय न्याय मंत्री होते हैं।
  • अन्य सदस्य-
    • केंद्रीय गृह मंत्री 
    • राज्यों के प्रतिनिधि,
    • उच्चतम न्यायालय और बार काउंसिल के प्रतिनिधि, विधि आयोग अध्यक्ष आदि। 

सुधार की आवश्यकता:

  • अप्रासंगिकता: वर्तमान में देश में सक्रिय कई आपराधिक कानून ब्रिटिश शासन के समय के हैं, ऐसे में कानूनों में समय के साथ बदलती ज़रूरतों के अनुरूप बदलाव की आवश्यकता है।      
  • न्यायिक समानता: वर्तमान में कई मामलों में ज़मानत न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करती है, ऐसे में लंबे समय से एक ज़मानत अधिनियम (Bail Act) की मांग उठाई जाती रही है। जिससे अलग-अलग मामलों में अपराध की गंभीरता, आरोपी की आपराधिक पृष्ठभूमि, सजा की तीव्रता और पुनर्वास की संभावना आदि पहलुओं के संदर्भ में समानता लाई जा सके। 
  • दुरुपयोग का रोकना: कानून समाजिक संतुलन स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं परंतु कुछ मामलों में अपराधों से जुड़े कानूनों के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं, जिसमें कानून के दुरुपयोग से किसी निर्दोष व्यक्ति को प्रताड़ित करने या किसी अपराधी को सजा से बचाने का प्रयास किया जाता है।         
  • कानूनी व्याख्या से जुड़े मुद्दे: कई कानूनों के मामलों में न्यायालयों द्वारा कानून की व्याख्या उन आधारों/लक्ष्यों से भिन्न है, जिसके लिये संसद द्वारा संबंधित कानून को बनाया गया था।   

अन्य विवादित मुद्दे: 

  • राजद्रोह (Sedition): भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) की धारा 124A को ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों के विचारों के दमन के उद्देश्य के लाया गया था। ऐसे में देश की स्वतंत्रता के बाद से इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठते रहे हैं। 
  • इसी प्रकार IPC और CrPC के तहत सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध अपराधों के मामले में दिये गए अधिकारों को लेकर भी प्रश्न उठते रहे हैं।
  • तकनीकी से जुड़े मामले: वर्तमान में तकनीकी और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ मानहानि जैसे मामलों में अपराध के दायरे और इसके प्रभाव पर अध्ययन की आवश्यकता है। 

समिति का उद्देश्य:

  • इस समिति का उद्देश्य सिद्धांतों के अनुरूप प्रभावी और कुशल तरीके से देश के आपराधिक कानूनों के संदर्भ में सुधारों की सिफारिश करना है, जो व्यक्ति, समुदाय और राष्ट्र की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

समिति के प्रमुख उद्देश्यों में से कुछ निम्नलिखित हैं-  

IPC से जुड़े सुधार:  

  • I.P.C के विभिन्न अध्यायों के तहत परिभाषाओं को फिर से जाँचना, संशोधित करना, हटाना या नई परिभाषा जोड़ना।
  • I.P.C के तहत विभिन्न अध्यायों में निर्धारित जुर्माने की राशि की समीक्षा करना।
  • न्यायिक निर्णयों के साथ I.P.C के प्रावधानों को संरेखित (Align) करना, आदि।

दंड प्रक्रिया संहिता से जुड़े सुधार: 

  • दंड प्रक्रिया (नियत-प्रक्रिया / अपराध-नियंत्रण) के उच्चतम स्वरुप- ‘जिसके तहत न केवल पीड़ित और आरोपी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाती है बल्कि साथ ही साथ सार्वजनिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है’ को ध्यान में रखते हुए दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) में आवश्यक संशोधन करना।
  • आधुनिक कानूनी विकास के अनुरूप CrPC में अपेक्षित सुधारों के लिये अपराधों की मूलभूत परिभाषाओं और वर्गीकरणों को संशोधित करना तथा पुनर्स्थापनात्मक न्याय के आधुनिक आदर्शों के अनुरूप दंड (मृत्युदंड, कारावास एवं जुर्माने) से जुड़े सुधार।
  • विधायी और न्यायिक कार्यों तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता करने के लिये एक सुसंगत दंडात्मक नीति विकसित करना, आदि।  

भारतीय साक्ष्य अधिनियम से जुड़े सुधार:  

  • आधुनिक फोरेंसिक विज्ञान में प्रगति और अन्य क्षेत्रों के तकनीकी सुधारों की आवश्यकता के अनुरूप अधिनियम में अपेक्षित सुधारों से जुड़े सुझाव देना।
  • अधिनियम के अध्याय-III और V के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता से जुड़े सुधार, आदि।

दुष्कर्म से जुड़े मामले:

  • समिति ने सुझावों के लिये जारी प्रश्नावली में IPC की धारा 375 के तहत ‘सहमति’ (Concent) के मानक के संदर्भ में सुझाव मांगे है।

समिति द्वारा मांगे गए अन्य सुझाव:

  • समिति ने इच्छामृत्यु और आदमी एवं उसकी नाबालिग पत्नी से संबंधों को अपराध की श्रेणी में लाने के संदर्भ में सुझाव मांगे हैं। 
    • ध्यातव्य है वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायलय ने अपने एक निर्णय में स्पष्ट किया था कि नाबालिग पत्नी से यौन संबंध को दुष्कर्म मन जाएगा।
  • समिति ने ‘कार्पोरेट होमोसाइड’ (Corporate Homicide) अर्थात किसी ‘संस्थान की लापरवाही से व्यक्ति की मृत्यु’ के मामलों पर भी विचार-विमर्श के लिये सुझाव मांगे हैं।   

लाभ:                       

  • इस प्रकार की समितियों के माध्यम से समय-समय पर न्यायिक प्रणाली में अपेक्षित सुधारों के माध्यम से न्यायालयों को अधिक प्रभावी बनाने में सहायता मिलेगी।           
  • समिति के संशोधनों के माध्यम से आपराधिक कानूनों में औपनिवेशिक काल की कमियों को दूर कर कानूनी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • कानूनों के संदर्भ में बेहतर स्पष्टता होने से मामलों की सुनवाई में समय कम लगेगा और न्यायालयों पर लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के दबाव को कुछ सीमा तक किया जा सकेगा।
  • वर्तमान में इस समिति को दिये गए अधिकांश मुद्दों (जैसे-भीड़ द्वारा हत्या को हत्या की श्रेणी में रख कर न्याय हो सकता है) के संदर्भ में कानून पहले से उपलब्ध है, परंतु इनके लिये में नए कानूनों की मांग के विषय पर समिति की जाँच के माध्यम से इस विवाद का अंत किया जा सकेगा।

चुनौतियाँ:

  • समय-सीमा: समिति के कार्यों के अनुरूप इसे दी गई समय-सीमा बहुत ही कम है।     
  • समिति में विविधता की कमी: कई पूर्व न्यायधीशों और विधि क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस समिति में विविधता की कमी का आरोप लगाया है। उदाहरण के लिये इस समिति में किसी भी महिला सदस्य को शामिल नहीं किया गया है।
  • इस समिति के सदस्य पूर्णकालिक नहीं हैं, अधिकांश इस समिति के सदस्य होने साथ अपनी पेशेवर प्रतिबद्धताएँ जारी रखे हुए हैं।
  • इस समिति के गठन पर प्रश्न इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि 21वें विधि आयोग की कार्यावधि 31 अगस्त, 2018 को समाप्त, होने के बाद 22वें विधि आयोग गठन हुआ है परंतु अभी तक इसके सदस्यों का निर्धारण नहीं किया गया है।
  • वर्तमान में COVID-19 महामारी के बीच समिति की गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं।       

समाधान:

  • पूर्व में कानूनी सुधारों के लिये बनी कई समितियाँ कई-कई वर्षों तक बिना किसी परिणाम के कार्य करती रहती हैं, जिससे अधिक समय लगने के कारण समिति की स्थापना का उद्देश्य कुछ सीमा तक निरर्थक हो जाता है। परंतु यदि समिति को अपने कार्यों के लिये अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है तो इस समय सीमा को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • इस समिति के कार्य क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों और विधि क्षेत्र से विशेषज्ञों को समिति में स्थान दिया जाना चाहिये।     

निष्कर्ष:

वर्तमान में देश में सक्रिय कई कानून बहुत ही पुराने हैं और कुछ कानून औपनिवेशक पृष्ठभूमि से भी संबंधित हैं। देश के विकास के लिये आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ समय-समय पर न्याय तंत्र में अपेक्षित सुधार बहुत ही आवश्यक हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नियुक्त समिति के माध्यम से कई संवेदनशील मामलों से जुड़े कानूनों में सुधारों की आवश्यकता की समीक्षा की जा सकेगी, जिससे न्याय प्रणाली के प्रति जनता के विश्वास में वृद्धि होगी। हालाँकि सरकार को वर्तमान में समिति के सदस्यों में विविधता और प्रतिनिधित्व की कमी जैसे प्रश्नों पर भी ध्यान देते हुए इन कमियों को शीघ्र ही दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न: भारतीय न्याय प्रणाली को प्रभावी और पारदर्शी बनाने की दिशा में पूर्व में स्थापित समितियों (कानून सुधार) के योगदान पर प्रकाश डालते हुए हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा स्थापित ‘रणबीर सिंह समिति’ के आवश्यकता और इसकी चुनौतियों की तर्क सहित समीक्षा कीजिये।

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