राज्यसभा
विशेष: जनसंख्या स्थिरता की ओर बढ़ रहा भारत
- 17 Jan 2018
- 19 min read
संदर्भ व पृष्ठभूमि
तेज़ी से बढ़ रही देश की जनसंख्या चिंता का विषय है तथा जानकारों व संयुक्त राष्ट्र का यह मानना है कि इस रफ्तार पर काबू नहीं पाया गया तो 2025 तक हमारा देश चीन को पीछे छोड़कर विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
भारत में जनसंख्या का स्वरूप
- जब देश आज़ाद हुआ था, तब देश की आबादी लगभग 36 करोड़ थी और वर्ष 2025 तक इसमें लगभग 1 अरब लोग और जुड़ जाएंगे यानी तब हम हो जाएंगे लगभग 135 करोड़।
- बेहतर होती स्वास्थ्य सुविधाओं और निरंतर सुधर रही जीवन-शैली के चलते आज जीवन प्रत्याशा लगभग 69 वर्ष हो गई है, जो 1951 में केवल 37 वर्ष थी।
जीवन प्रत्याशा क्या है? (टीम दृष्टि इनपुट) |
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 तथा अन्य सर्वे रिपोर्टें
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर के आँकड़ों से पता चलता है कि देश की जनसंख्या अब स्थिरता की ओर अग्रसर है।
- देश की कुल जन्म दर में कमी आई है और यदि ऐसा लंबे समय तक चला तो आबादी न केवल स्थिर होगी, बल्कि उसमें कमी भी आ सकती है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर में जन्म दर प्रति महिला 2.2 शिशु देखने को मिली, जो इससे पहले तीसरे दौर के सर्वेक्षण में 2.7 थी।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर के आँकड़ों से पता चलता है कि इसमें 8.32 लाख परिवार शामिल हुए, जो पहले की तुलना में 5.68 लाख परिवार अधिक हैं।
- 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जन्म दर में कमी देखने को मिली, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े और अधिक आबादी वाले राज्यों में इसे कम करने की चुनौती अभी बनी हुई है।
- आबादी के स्थिरीकरण के लिये प्रजनन दर 2.1 शिशु प्रति महिला होनी चाहिये, जिसे प्राप्त करने के लिये प्रयास जारी हैं। अर्थात् औसतन प्रति परिवार केवल दो बच्चे।
- शिशु मृत्यु दर में निरंतर आ रही कमी स्वास्थ्य सूचकांक में सुधार का महत्त्वपूर्ण संकेतक है। वर्ष 2016 में देश में शिशु मृत्यु दर में तीन अंकों (8 प्रतिशत) की गिरावट दर्ज की गई है।
- 2015 में जन्मे प्रति 1000 में से 37 शिशुओं की मृत्यु के मामले सामने आए थे, जो 2016 में घटकर 34 प्रति हज़ार के स्तर पर आ गया।
- 2015 में 9.3 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु होने का अनुमान था, जबकि 2016 में 8.4 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु के मामले दर्ज किये गए थे अर्थात् शिशुओं की मृत्यु के मामलों में 90 हज़ार की कमी आई।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पहली बार 1992-93 में किया गया था और इसमें जन्म दर, मातृ और शिशु मृत्यु दर, पोषण-स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाएँ परिवार नियोजन और इससे संबंधित सेवाएँ इत्यादि को शामिल किया जाता है।
- 2015-16 में किये गए एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार देश के दो बड़े समुदायों--हिंदू और मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी समुदायों में प्रजनन दर में कमी देखने को मिली है।
- कुछ समुदायों में यह स्तर 'रिप्लेसमेंट लेवल' से भी कम हो गया है, अर्थात् यदि इन समुदायों में प्रजनन दर में कमी का यही स्तर बना रहता है तो इनकी आबादी मौज़ूदा संख्या से कम होनी शुरू हो जाएगी। इन समुदायों में ईसाई, सिख, जैन और बौद्ध शामिल हैं।
- सामाजिक आधार पर भी जन्म दर में विषमता देखने को मिलती है। जनजातीय समाज में यह 2.5, अनुसूचित जातियों में 2.3, पिछड़ा वर्ग में 2.2 और सवर्ण जातियों में यह सबसे कम 1.9 प्रति हज़ार है।
2025 तक चीन से आगे निकल जाएगा भारत
(टीम दृष्टि इनपुट) |
- साक्षरता और आर्थिक आधार पर भी जन्म दर में भिन्नता मिलती है। पूर्ण साक्षर और स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में बेहतर माने जाने वाले राज्य केरल में यह 1.6 है तो उत्तर प्रदेश में यह 2.7 प्रति हज़ार है।
- आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों में जन्म दर 3.2 है तो सर्वाधिक संपन्न वर्ग में यह 1.5 प्रति हज़ार है।
- पिछले एक दशक में संस्थागत प्रसव अधिक होने और सघन टीकाकरण कार्यक्रम की वज़ह से भी शिशु मृत्यु दर में कमी देखने में आई है।
- देश में लिंगानुपात में सुधार देखने को मिल रहा है और इसके साथ नव-विवाहित महिलाओं में गर्भ-निरोधकों का प्रसार बढ़कर 54 प्रतिशत हो गया है।
- जनसंख्या पर अंकुश लगाने के लिये भारत सरकार ने देश के सात प्रदेशों में 146 ज़िलों में नई पहल शुरू की है। ये ज़िले उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम से हैं, जहाँ प्रति महिला जन्म दर 3 या उससे अधिक है।
- देश की 28 प्रतिशत आबादी इन्हीं ज़िलों में रहती है, ऐसे में सरकार यहां परिवार नियोजन सेवाओं को उन्नत बनाने के लिये ‘मिशन परिवार विकास’ कार्यक्रम शुरू करने जा रही है।
जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) (टीम दृष्टि इनपुट) |
जनसंख्या नियंत्रण में सहायक अन्य कारक
- सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास
- मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी
- परिवार नियोजन कार्यक्रम
- जागरूकता अभियान
- प्रोत्साहन कार्यक्रम
- आर्थिक-सामाजिक कारण
- किसान परिवारों में ज़मीन के बँटवारे की चिंता
- देश में माध्यम वर्ग का विस्तार
- महिला रोज़गार की दर में वृद्धि
- महँगी शिक्षा तथा महँगी स्वास्थ्य सुविधाएँ
- बढती महँगाई और आधुनिक जीवन शैली
- परिवार के लिये कम समय
- भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों का कम होना
- 12 से 23 महीने के बच्चों का संपूर्ण टीकाकरण
- परिवार में निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
जनसंख्या स्थिरता कोष
(टीम दृष्टि इनपुट) |
जनसंख्या को नियंत्रित करने की चुनौती
भारत सहित लगभग पूरे विश्व में, विशेषकर विकासशील और अल्प-विकसित देशों में बढ़ती जनसंख्या आज एक विकट समस्या बन गई है। अगर इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले दिनों में और भी भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जनसंख्या को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती है और हमारे देश में परिवार कल्याण व स्वास्थ्य मंत्रालय इस ओर प्रयासरत है। वैसे इधर दक्षिण और उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों में पहले से कम रहने वाली जन्म दर और कम हुई है। यदि देशभर में जन्म दर की यही रफ्तार रही तो 2018 से 2020 के बीच जनसंख्या स्थिर हो जाने की संभावना है। यही दर और आगे बनी रही तो 2025 तक जनसंख्या घट भी सकती है।
आबादी और विकास का संबंध (टीम दृष्टि इनपुट) |
जनसंख्या स्थिरीकरण के लाभ
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जनसंख्या के स्थिर होने के अपने लाभ हैं। इनमें बढती गरीबी पर लगाम, संसाधनों का सही इस्तेमाल, सरकारी योजनाओं की सफलता, बढ़ते अपराधों में कमी, बेरोज़गारी पर नियंत्रण, सरकार के वित्तीय बोझ में कमी शामिल हैं। देश की जनसंख्या यदि आने वाले 20 वर्षों तक स्थिर रहती है तो अस्थिर विकास और बढती बेरोज़गारी पर लगाम लगाई जा सकती है।
राष्ट्रीय पोषण रणनीति
(टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: अब तक के अनुभवों से पता चलता है कि देश में जनसंख्या को नियंत्रित करना बेहद चुनौती-भरा रहा है। आबादी को नियंत्रित करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है प्रजनन दर पर अंकुश लगाना। बेशक पिछले तीन दशकों में आबादी बढ़ने की दर अपेक्षाकृत कम हुई है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के नवीनतम आँकड़े बढ़ती वैश्विक जनसंख्या से जुड़े कई गंभीर पहलू उजागर करते हैं। भारत की जनसंख्या भी दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। तेज़ी से बढ़ती इस आबादी के लिये भोजन, वस्त्र, आवास जैसी आवश्यक सुविधाएँ जुटाना एक बड़ी चुनौती है। देश की बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय है। इससे न केवल सामाजिक, बल्कि आर्थिक समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं। वर्तमान में देश की मौजूदा जनसंख्या को तुरंत कम नहीं किया गया, तो आने वाले समय में समस्या और विकट हो जाएगी। लैंगिक असमानता, पुत्र जन्म को प्राथमिकता, गरीबी, भारतीयों की परंपरागत विचार प्रक्रियाएँ, पुराने सांस्कृतिक मानदंड कुछ ऐसे हैं, जो परिवार नियोजन को प्रभावी तरीके से लागू करने में बाधक बनते हैं। जनसंख्या नियंत्रण के लिये केंद्र सरकार की नीति परिवार नियोजन पर बल देने की रही है, लेकिन इसमें अभी अधिक सार्वजनिक जागरूकता और अधिक सार्वजनिक भागीदारी की आवश्यकता है।