पॉलिसी वाच : राष्ट्रीय हरित विमानन नीति | 04 Apr 2019
संदर्भ
देश में हवाई अड्डों और अन्य विमानन परियोजनाओं के विकास के लिये तेज़ी से मंज़ूरी हासिल करने के लिये नागर विमानन मंत्रालय ने एक सरल नियामकीय ढ़ाँचा बनाने का प्रस्ताव रखा है।
- इस संबंध में मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय हरित विमानन नीति’ (National Green Aviation Policy) पर श्वेत-पत्र जारी किया है एवं लोगों से राय मांगी है।
- श्वेत-पत्र में विमानन उद्योग की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों से संबंधित रणनीतिक फ्रेमवर्क तैयार किया गया है।
- इसमें विमान को जैव ईंधन से चलाने और विमानन क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल कदमों को उठाए जाने पर ज़ोर दिया गया है।
पृष्ठभूमि
- देश की अर्थव्यवस्था में विमानन क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है। वाणिज्यिक विमानन भी दुनिया भर में सबसे तेज़, सबसे सुरक्षित और सबसे दूरगामी परिवहन मोड के रूप में विकसित हुआ है।
- भारतीय वायु परिवहन क्षेत्र ने हाल के वर्षों में तेज़ी से विकास किया है तथा आने वाले वर्षों में इसके और भी तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है।
- अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात एसोसिएशन (International Air Traffic Association-IATA) ने अगले 20 वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन 6.1% की यात्री वृद्धि का अनुमान लगाया है।
- भारत अगले 10 वर्षों के भीतर जर्मनी, जापान, स्पेन और ब्रिटेन से आगे निकल जाएगा और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हवाई यात्री बाज़ार बन जाएगा।
ग्रीन एविएशन क्या है?
- ग्रीन एविएशन के अंतर्गत विमान ईंधन दक्षता में सुधार, कुशल वायु यातायात नियंत्रण की अगली पीढ़ी को विकसित करने और भविष्य में दुनिया भर में कार्बन रहित वायु परिवहन की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये नई प्रौद्योगिकियों और इंजीनियरिंग प्रक्रियाओं का विकास करना शामिल है।
- ग्रीन एविएशन पर्यावरण पर विमानन के प्रभाव की ज़िम्मेदारी लेने के बारे में है जिसमें कार्बन फुटप्रिंट, अन्य उत्सर्जन और शोर-शराबा (Noise) शामिल हैं।
स्थिरता एवं पर्यावरण संबंधी चिंताएँ
- एविएशन वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सबसे तेज़ी से बढ़ते स्रोतों में से एक है और वर्तमान में यह कुल मानव द्वारा उत्पन्न (Anthropogenic) ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन (जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल-IPCC, 2004 के मुताबिक) में 2% का योगदान देता है।
- इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइज़ेशन (ICAO) की एन्वायरनमेंटल रिपोर्ट On board a sustainable future 2016 में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण पर्यावरण में हो रहे बदलाव से हवाई जहाज़ों के उड़ान भरने की क्षमता प्रभावित होगी, जबकि बढ़ते जल स्तर के कारण हवाई अड्डे प्रभावित होंगे।
- हवाई अड्डों के नज़दीक विमानों का शोर जनता के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिम पैदा करता है, साथ ही इससे हवाई अड्डों के विस्तार और विकास के प्रभावित होने की संभावना है।
- भारत के कुछ राज्यों में वायु प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर के परिणामस्वरूप परिचालन अवरोध और अंतर्राष्ट्रीय ट्रेवल और टूरिज्म में कमी आ सकती है, इससे हवाई अड्डे के आसपास दृश्यता (Visibility) की स्थिति भी कम हो सकती है।
- भारत में नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में बढ़ते बुनियादी ढाँचे के विकास ने संसाधनों की खपत से संबंधित चिंता को बढ़ा दिया है। सभी हितधारकों के लिये संसाधन संरक्षण उपायों, ग्रीन बिल्डिंग अवधारणा आदि को अपनाने की आवश्यकता है।
- हवाई अड्डों के आसपास नगरपालिका निकायों द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन कारणों के चलते भी हवाई अड्डों और विमान संचालन के लिये चिंताजनक क्षेत्रों में से एक है।
- इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि भारतीय विमानन क्षेत्र का तेज़ी से विकास होगा, पर्यावरण और स्थिरता जैसी चिंता का बढ़ना महत्त्वपूर्ण है।
- उपर्युक्त चिंताओं को दूर करने और इन मुद्दों को हल करने के लिये नागरिक उड्डयन के सतत् विकास के उद्देश्य की प्राप्ति के साथ हरित नागरिक उड्डयन नीति की आवश्यकता की परिकल्पना की गई है।
राष्ट्रीय हरित नागरिक विमानन नीति
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए देश में नागरिक उड्डयन क्षेत्र के समावेशी और सतत् विकास के लिये प्रतिबद्ध है।
- यह श्वेत-पत्र विमानन उद्योग की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक रणनीतिक रूपरेखा तैयार करता है।
- भारत में वायु परिवहन के सभी समावेशी, हरित और सतत् विकास को सक्षम बनाना, इसे बढ़ावा देना और मजबूती प्रदान करना तथा नागरिक उड्डयन गतिविधियों के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करके भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सुरक्षित और स्थायी हवाई यात्रा प्रदान करना इस नीति के प्रमुख उद्देश्य हैं।
रणनीतिक उद्देश्य
- भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास का समर्थन करने और इसे अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation-ICAO) के विज़न और मिशन के साथ संरेखित करना।
- भारतीय विमानन को सबसे अधिक संसाधन कुशल क्षेत्रों में से एक बनाना।
- भारत के नागरिक उड्डयन पारिस्थितिकी तंत्र में सौर और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के विकास तथा इनके अधिकतम उपयोग में सक्षम करना और बढ़ावा देना।
- विमानन इकाइयों में पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली (Environmental Management System-EMS) के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
- पारंपरिक से उन्नत पर्यावरण के अनुकूल संसाधन कुशल बुनियादी ढाँचा/प्रणाली के साथ विमानन प्रणालियों को विकसित करना।
- GHG और अन्य गैसीय उत्सर्जन को कम करने के लिये वैश्विक ढाँचे के अनुरूप राष्ट्रीय ढाँचा।
- पर्यावरणीय स्थिरता हेतु सभी विमानन पेशेवरों की सक्षमता बढ़ाना।
- भारतीय नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि को पूरा करने के लिये पर्यावरणीय स्थिरता की उचित देखभाल के साथ विमानन परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिये एक अनुकूल नियामकीय व्यवस्था तैयार करना।
नीति के कार्य क्षेत्र
नीति का उद्देश्य विमानन क्षेत्र में पर्यावरण के सभी प्रमुख पहलुओं को संबोधित करना है। नीति में चिन्हित प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं-
- पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली
- ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन
- ऊर्जा और संसाधन संरक्षण
- अपशिष्ट प्रबंधन
- भूमि, मिट्टी, आवास और जैव विविधता
- क्षमता और कौशल विकास
- एयरपोर्ट मास्टर प्लानिंग
- शोर प्रबंधन
- स्थानीय वायु गुणवत्ता
- सौर और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा
- जल प्रबंधन
- सरलीकृत नियामकीय नियम
निष्कर्ष
वर्तमान में हवाई यात्राओं का कुल GHG (Green House Gas) उत्सर्जन में 2-3% का योगदान है, लेकिन इसके 2050 तक बढ़कर 5% होने का अनुमान है। ऐसा इसलिये है क्योंकि हवाई यात्रा तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है। 2004 से 2014 के बीच विमानन क्षेत्र का राजस्व दोगुना हो गया। विमानन से कार्बन उत्सर्जन तेज़ी से बढ़ रहा है। दुनिया भर में उड़ानों की संख्या अगले 15 वर्षों में दोगुनी होने की उम्मीद है।
ग्रीन एविएशन एक सतत् प्रक्रिया है और विमानों के उत्कृष्ट डिज़ाइन तथा निर्माण और बेहतर वायुगतिकी (Aerodynamics) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सामूहिक प्रयासों से ही सफलता हासिल की जा सकती है। वैकल्पिक और हरित ईंधन स्रोत जैसे कि ईंधन सेल्स (Fuel Cells) तथा जैव ईंधन कुशल इंजन, परिवहन अनुकूलन नेटवर्क विकास, कुशल वायु यातायात प्रबंधन, विधायी नीतियाँ तथा सकारात्मक आर्थिक साधन हरित विमानन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।